रवि, सीमा और दिया की कहानी: त्याग, पछतावा और एक नई शुरुआत

रवि पसीने से तर-बतर, भागता हुआ एक विशाल कॉर्पोरेट ऑफिस के गेट पर पहुंचा। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। सामने वही इमारत थी, जिसे सीमा ने अपनी कामयाबी का मंदिर बना लिया था। लेकिन आज रवि की आँखों में सिर्फ अपनी बीमार बेटी दिया की चिंता थी।

“मुझे सीमा से मिलना है, बहुत जरूरी है,” रवि ने सिक्योरिटी गार्ड से कहा। गार्ड ने उसे तिरस्कार भरी नजरों से देखा और बाहर इंतजार करने को कहा। कुछ देर बाद ऑफिस का दरवाजा खुला, सीमा अपनी मैनेजर के साथ बाहर आई, महंगी कार की ओर बढ़ रही थी। रवि ने हाथ जोड़कर विनती की, “सीमा, प्लीज मेरी बात सुनो। दिया की तबियत बहुत खराब है, उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा है। मुझे पैसों की जरूरत है।”

सीमा ने उसे बीच में ही रोक दिया, “तुम फिर से मेरी जिंदगी में घुसपैठ करने आए हो? तलाक के कागजों पर दस्तखत हो चुके हैं। तुम्हारी गरीबी दिखाकर मुझसे पैसे लेना चाहते हो? जाओ, मेहनत करो, कमाओ। मेरे पास तुम्हारे बहाने सुनने का टाइम नहीं है।”

रवि का गला सूख गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह बार-बार विनती करता रहा, लेकिन सीमा ने गार्ड को इशारा किया और रवि को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। रवि जमीन पर गिर गया। उसकी आंखों में दर्द था, लेकिन मन में एक ही धुन थी—दिया को बचाना है।

कुछ साल पहले रवि और सीमा का एक खुशहाल परिवार था। उनकी पांच साल की बेटी दिया उनकी जान थी। रवि एक साधारण नौकरी करता था, सीमा अमीर परिवार की इकलौती संतान थी। लेकिन सीमा के मन में शक ने घर कर लिया। उसे लगा रवि का अपनी बॉस के साथ अफेयर है। लाख समझाने के बाद भी सीमा नहीं मानी और तलाक ले लिया। कोर्ट में रवि को एक बड़ी रकम सीमा को देनी पड़ी। घर के अलावा सब कुछ बिक गया। दोनों ने तय किया कि दिया को बारी-बारी से अपने पास रखेंगे।

एक दिन दिया को तेज बुखार और पेट दर्द हुआ। रवि ने सीमा को कई बार फोन किया, लेकिन सीमा ने फोन नहीं उठाया। रवि ने दिया को अस्पताल ले गया। डॉक्टर ने कहा, इलाज के लिए बड़ी रकम चाहिए। रवि के पास अब सिर्फ घर बचा था। उसने अपना आखिरी सहारा भी बेच दिया ताकि अपनी बेटी को बचा सके।

दिया का इलाज शुरू हुआ। रवि अस्पताल में दिया के पास बैठा रहता, उसकी उंगलियों को थामे रहता। सीमा के तानों की गूंज उसके कानों में थी, लेकिन पिता का प्यार सबसे ऊपर था। दवाइयों और रवि की देखभाल से दिया ठीक हो गई।

अब रवि के पास कोई घर नहीं था। वह दिया को लेकर सीमा के आलीशान बंगले पर गया। उसने दिया को सीमा को सौंपते हुए कहा, “दिया अब पूरी तरह ठीक है। मैं उसे तुम्हें सौंपने आया हूं। मैंने उसे बचाने के लिए अपना सब कुछ दे दिया है। अब मेरे पास यहां रहने का कोई कारण नहीं है। मैं इस शहर को छोड़कर जा रहा हूं।”

सीमा ने देखा, रवि की आंखों में दुख था, लेकिन वह मजबूरी का था। जैसे ही रवि जाने लगा, सीमा दरवाजे पर भागी और उसके पैरों पर गिर पड़ी। वह फूट-फूट कर रोने लगी, “रवि, मुझे छोड़कर मत जाओ। मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारी एक बात नहीं सुनी। मैं अंधी थी, तुम्हें अपमानित किया, गलत समझा। तुमने दिया के लिए अपना घर तक बेच दिया, लेकिन मैंने तुम्हें दरवाजे से धक्के मरवाए।”

रवि चुप था, लेकिन दिया रोती हुई अपने पिता के पैरों से लिपट गई। उस मासूम स्पर्श ने रवि का सारा दर्द दूर कर दिया। रवि ने सीमा को सहारा देकर उठाया। उसकी आंखों में भी नमी थी, लेकिन अब शांति थी। “अगर तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है तो यही मेरे लिए काफी है। मैं तुम्हें माफ करता हूं।”

सीमा ने रवि को गले लगा लिया। तीनों एक साथ रोए, गले मिले। सुबह का उजाला उनके लिए एक नई शुरुआत लेकर आया। सीमा ने अपनी सारी दौलत, कागजात रवि के सामने रख दिए, लेकिन रवि ने सिर्फ दिया का हाथ थामा। उन्हें अब दौलत नहीं, अपना परिवार चाहिए था।

उन्होंने पिछली गलतफहमियों को हमेशा के लिए दफन कर दिया। रवि और सीमा ने उसी दिन वादा किया कि अब उनका रिश्ता सिर्फ प्यार, विश्वास और सच्चाई पर टिका होगा। उन्हें एहसास हो गया कि सच्ची दौलत पैसे में नहीं, बल्कि एक-दूसरे के अटूट विश्वास और परिवार के लिए किए गए त्याग में है।

कुछ दिनों बाद दोनों की फिर से शादी हुई। परिवार का उजाला अब उनके जीवन में हमेशा के लिए फैल चुका था।