मीरा और फुटपाथ का भिखारी – दया की ताकत की कहानी
दिल्ली के पुराने बाजार में एक छोटा सा रेस्टोरेंट था – चौधरी भोजनालय।
वहीं काम करती थी मीरा, 23 साल की एक अनाथ लड़की। उसके माता-पिता एक हादसे में गुजर चुके थे। अब वह अपने छोटे भाई अमन के साथ मामा-मामी के घर रहती थी। मामा अच्छे थे, लेकिन मामी रोज ताने मारती – “कब तक अनाथों का बोझ उठाएंगे?”
मीरा दिनभर रेस्टोरेंट में सफाई और खाना परोसने का काम करती। मालिक चौधरी साहब हमेशा चिल्लाते – “जल्दी करो, वरना नौकरी से निकाल दूंगा!”
मीरा चुपचाप सहती, क्योंकि यही काम उसकी और अमन की जिंदगी चलाता था।
एक दिन रेस्टोरेंट में एक युवक आया – मैले कपड़े, बिखरे बाल, टूटी चप्पलें। उसने हाथ जोड़कर कहा, “चाचा जी, दो दिन से भूखा हूं, थोड़ा बचा खुचा खाना मिल जाएगा?”
रेस्टोरेंट में लोग हंसने लगे। चौधरी साहब ने उसे डांटकर बाहर निकाल दिया।
युवक फुटपाथ पर जाकर उदास बैठ गया।
मीरा ने यह सब देखा। उसका दिल दुख गया।
शाम को, जब भीड़ कम हुई, मीरा ने चुपके से एक थाली में रोटी, दाल, सब्जी रखी और युवक के पास पहुंची।
“यह लो, खाना खा लो। लेकिन आगे से रेस्टोरेंट में मत आना, चौधरी जी बहुत डांटते हैं। मैं रोज तुम्हें खाना दे दूंगी।”
युवक की आंखों में कृतज्ञता थी। “धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद।”
अब मीरा रोज उस युवक को खाना देने लगी।
धीरे-धीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई।
मीरा उससे अपने दिल की बातें साझा करती – “मामी रोज ताने मारती है, पैसे कम पड़ते हैं तो धमकी देती है कि घर से निकाल देगी।”
युवक उसकी बातों को ध्यान से सुनता और कहता – “तुम जैसी लड़की बहुत कम मिलती है, जो खुद तकलीफ सहकर भी दूसरों के लिए सोचती है।”
मीरा को पहली बार लगा कि इस शहर की भीड़ में कोई है जो उसे समझता है।
अब हर शाम दोनों की बातें लंबी होती जातीं। मीरा अपने बचपन की यादें, भाई की चिंता, अपने सपनों की बातें उस युवक से करती।
युवक मीरा को हौसला देता – “अब से हम दोस्त हैं, जो भी तकलीफ हो, मुझे बताना।”
रेस्टोरेंट के लोग, वेटर, ग्राहक सब मीरा और उस युवक की दोस्ती पर ताने कसते।
“देखो फिर जा रही है उस भिखारी के पास।”
मीरा ने सबकी बातें सुनकर भी तय कर लिया कि वह अपनी दोस्ती नहीं छोड़ेगी।
एक सर्द रात, युवक की हालत बहुत खराब थी। मीरा उसके पास बैठ गई, उसके ठंडे हाथों को थाम लिया।
तभी युवक बोला – “मीरा, मैं भिखारी नहीं हूं। मैं कभी करोड़पति था।”
मीरा चौंक गई।
युवक ने अपनी कहानी सुनाई – “कभी मेरी पहचान ऊंची इमारतें, लग्जरी कारें थीं। लेकिन लालच, धोखे और गलत फैसलों ने सब छीन लिया। दोस्त, रिश्तेदार सबने मुझे गिरा दिया। मैंने सब छोड़कर गुमनामी चुन ली।”
मीरा की आंखों से आंसू बह निकले।
युवक बोला – “करोड़ों में भी सच्ची दया नहीं मिली। तुम्हारे दिए दो निवाले में जो अपनापन है, वह किसी दौलत में नहीं था।”
अब मीरा और युवक की दोस्ती बहुत गहरी हो गई थी।
एक दिन युवक अचानक गायब हो गया।
मीरा रोज उसे ढूंढती, फुटपाथ पर जाती, लेकिन वह नहीं मिला।
उसका दिल उदास हो गया।
कुछ दिन बाद, चौधरी भोजनालय के बाहर अचानक चमचमाती कारें आकर रुकीं।
एक हैंडसम युवक, शाही लिबास में, सुरक्षाकर्मियों के साथ अंदर आया और बोला – “मीरा, बाहर आओ।”
मीरा चौंक गई।
सामने वही युवक था – अर्जुन।
अब उसके चेहरे पर आत्मविश्वास और खुशी थी।
अर्जुन ने सबके सामने कहा –
“मीरा, मैं वही हूं जिसे तुमने फुटपाथ पर खाना खिलाया। मैं करोड़पति था, लेकिन तुम्हारी दया ने मुझे नया जीवन दिया। मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।”
मीरा की आंखें भर आईं।
चौधरी साहब, जो पहले अर्जुन को भगा चुके थे, अब माफी मांगने लगे।
मामा ने खुशी-खुशी शादी के लिए हामी भर दी।
मामी को अब मीरा की अमीरी दिख रही थी।
शादी धूमधाम से हुई। मीरा अब अमीर परिवार की बहू बन गई। अमन अच्छे स्कूल में पढ़ने लगा।
मीरा कभी-कभी उस फुटपाथ की शाम को याद करती और सोचती – क्या पता था कि एक छोटी सी दया उसकी पूरी जिंदगी बदल देगी।
अर्जुन ने मीरा को अपने परिवार से मिलवाया। अब वे दोनों सुखी जीवन जी रहे थे।
मीरा ने सीखा – दया कभी व्यर्थ नहीं जाती।
उसका फुटपाथ का भिखारी अब उसका जीवन साथी बन गया।
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