इंसानियत का मोल: रामू दूधवाले और जानकी मां की कहानी

उत्तर प्रदेश के रामपुर गांव के बाहरी छोर पर एक पुरानी, वीरान हवेली थी। उसी हवेली में रहती थीं जानकी देवी—एक अकेली, बूढ़ी औरत, जिनका इस दुनिया में कोई नहीं था। गांव वाले उन्हें “जानकी मां” कहते थे, पर उनसे कोई मिलने नहीं जाता था। हवेली को लोग “भूतिया हवेली” मानते थे, तरह-तरह की कहानियां बनाते थे—कोई कहता उनके पास खजाना है, कोई कहता उनका परिवार उन्हें छोड़ गया है।

रामू, गांव का साधारण दूधवाला, हर रोज सुबह अपनी पुरानी मोटरसाइकिल से दूध पहुंचाने निकलता था। उसकी आमदनी बस इतनी थी कि घर का चूल्हा जल जाए, बेटी प्रिया की स्कूल फीस भर सके। जानकी मां उसकी सबसे पुरानी ग्राहक थीं। रामू के पिता भी यही काम करते थे, उनके जाने के बाद रामू ने ही जिम्मेदारी संभाली।

पिछले कुछ महीनों से रामू देख रहा था कि जानकी मां की सेहत गिरती जा रही है। वे और ज्यादा कमजोर हो गई थीं, आवाज धीमी हो गई थी। एक दिन महीने के आखिर में जब रामू हिसाब लेने गया, जानकी मां के पास पैसे नहीं थे। उन्होंने शर्मिंदगी से कहा, “बेटा, इस महीने पैसे नहीं हैं, अगले महीने ले लेना।”
रामू ने उनकी बेबसी देखी। घर लौटकर उसने पत्नी सीता को बताया। सीता ने चिंता जताई, “हमारा गुजारा कैसे चलेगा?”
रामू बोला, “अम्मा अकेली हैं, बीमार हैं, उनके पास दवा के पैसे भी नहीं हैं। अगर हमने मदद नहीं की तो कौन करेगा? यह मेरा धर्म है।”

अगली सुबह रामू ने फैसला लिया—”अम्मा, आप अगले महीने दूध का पैसा मत देना। यह मेरी तरफ से है।”
जानकी मां ने हैरानी से देखा, “नहीं बेटा, तुम्हारा भी तो परिवार है।”


रामू मुस्कुराया, “आप मुझे बेटा कहती हैं, तो क्या एक बेटा अपनी मां को एक महीने दूध नहीं पिला सकता?”

उस दिन के बाद रामू हर सुबह दूध लाता, कभी सब्जी या गुड़ भी दे देता। जानकी मां अब रोज दरवाजे पर उसका इंतजार करती थीं। उनकी आंखों में चमक लौट आई थी। पूरा एक महीना यूं ही बीत गया।

एक सुबह जब रामू दूध लेकर पहुंचा, हवेली का दरवाजा खुला था। अंदर जाकर देखा, जानकी मां अपनी कुर्सी पर शांत बैठी थीं—लेकिन अब वे इस दुनिया में नहीं थीं। रामू की आंखों में आंसू आ गए। उसने गांव के सरपंच को खबर दी, खुद अंतिम संस्कार की सारी जिम्मेदारी उठाई।

तीन-चार दिन बाद गांव में एक बड़ी कार आई। दिल्ली से एक वकील विनय प्रकाश पहुंचे। उन्होंने बताया कि वे जानकी देवी के वकील हैं और जानकी मां ने अपनी वसीयत उनके पास रखी थी।
वसीयत के अनुसार, जानकी मां अपनी सारी संपत्ति उस इंसान को देना चाहती थीं, जिसने उनकी मृत्यु के बाद निस्वार्थ भाव से उनका अंतिम संस्कार किया। गांव के सरपंच ने बताया—वह इंसान रामू है।

वकील ने सबके सामने जानकी मां का खत पढ़ा। उसमें लिखा था—
“मैंने अपनी पूरी जिंदगी अकेलेपन में बिताई। मेरा एक बेटा था, पर वह भी मुझे छोड़ गया। मेरे पास यह पुरानी हवेली और कुछ कंपनी के शेयर हैं, जिनकी कीमत अब करोड़ों में है। मैं यह दौलत किसी ऐसे इंसान को देना चाहती हूं जो इंसानियत की कीमत समझता हो। रामू, मेरा दूधवाला, जिसने बिना किसी स्वार्थ के मुझे एक महीने दूध पिलाया, वही मेरा असली वारिस है।”

खत में आगे लिखा था—
“रामू बेटा, मैं यह हवेली, जमीन और कंपनी के सारे शेयर तुम्हारे नाम करती हूं—कुल 25 करोड़ रुपये। पर इसके साथ एक जिम्मेदारी भी है—इन पैसों से गांव में एक अच्छा स्कूल बनवाना, गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना, एक अस्पताल खोलना, और हवेली को अनाथाश्रम में बदल देना। मुझे यकीन है, तुम मेरी आखिरी इच्छा जरूर पूरी करोगे।”

रामू की आंखों में आंसू थे। यह दौलत नहीं, एक मां का आशीर्वाद था। वकील की मदद से रामू ने कानूनी प्रक्रिया पूरी की, गांव में जानकी मां मेमोरियल अस्पताल, सीता-राम स्कूल और “मां का आंगन” नामक अनाथाश्रम बनवाया। अपनी बेटी को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया, खुद के लिए छोटा घर बनवाया। पर दूध का काम नहीं छोड़ा—क्योंकि यही उसकी पहचान थी।

कुछ सालों में रामपुर गांव बदल गया—अच्छी सड़कें, स्कूल, अस्पताल, अनाथाश्रम। रामू अब सिर्फ दूधवाला नहीं, पूरे गांव का “रामू भैया” था। उसकी छोटी सी नेकी ने हजारों लोगों की जिंदगी बदल दी। जानकी मां की आखिरी इच्छा को उसने इतने सुंदर तरीके से पूरा किया कि आज स्वर्ग में बैठी जानकी मां भी मुस्कुरा रही होंगी।