दो दोस्तों की कहानी – वक्त, फासले और दोस्ती की पहचान

दिल्ली के एक छोटे से गाँव में नईम और आकाश बचपन के सबसे करीबी दोस्त थे। दोनों साथ स्कूल जाते, खेलते, पढ़ते और शाम को घर लौटते वक्त एक ही रास्ते पर बातें करते। दोस्ती इतनी गहरी थी कि लगता था, ये कभी अलग नहीं होंगे। लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। एक दिन आकाश का परिवार शहर चला गया और दोनों दोस्तों की राहें जुदा हो गईं।

समय बीतता गया। नईम की ज़िन्दगी मुश्किलों से भरी थी। जम्मू की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर वह अपनी छोटी सी रेड़ी लगाकर पकोड़े, चाय और चाट बेचता था। रोज़ की कमाई से अपने दो बच्चों और पत्नी शाजिया का पेट पालता था। गरीबी, पुलिस वालों का डर, और कभी-कभी जबरदस्ती पैसे वसूलने वाले लोग—ये सब उसकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा थे। लेकिन नईम ने कभी हार नहीं मानी।

एक दिन जम्मू में खबर फैली कि नए डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट के तौर पर आकाश गुप्ता की नियुक्ति हुई है। मीडिया में चर्चा थी कि वह बिहार के छोटे गाँव से हैं, बहुत ईमानदार और सख्त अफसर हैं। जब नईम ने यह खबर सुनी तो उसका दिल जोर से धड़क उठा। क्या ये वही आकाश है, उसका बचपन का दोस्त? शाजिया ने पूछा, “किस आकाश की बात कर रहे हो?” नईम ने जवाब दिया, “वही, जिसके साथ मैंने स्कूल की पढ़ाई की थी।”

नईम की आँखों में पुरानी यादें तैर गईं—आकाश का बड़ा अफसर बनने का सपना, उसकी मेहनत, उसकी किताबों के लिए दीवानगी। नईम सोचने लगा, अगर कभी आमना-सामना हुआ तो क्या आकाश उसे पहचान पाएगा? या सिर्फ एक गरीब रेड़ी वाले की नजर से देखेगा?

आकाश के आने के बाद जम्मू में बदलाव शुरू हो गया। उन्होंने आदेश दिए कि सड़क किनारे गैर-कानूनी रेहड़ियों की जांच होगी। पुलिस ने कई रेहड़ियां हटाईं, नईम भी परेशान हो गया। उसने पुलिस से विनती की, “साहब, मेरे पास कागज नहीं हैं, लेकिन यही मेरी रोज़ी-रोटी है।” पुलिस ने कहा, “यह सब डीएम से कहो।”

नईम ने ठेला पीछे खिसका लिया, दिल में डर और उम्मीद दोनों थी—क्या आकाश गरीबों के साथ इंसाफ करेगा?

एक दिन आकाश अपने ऑफिस में थे, तभी एक बूढ़ी औरत आई और रोते हुए बोली, “साहब, मेरे बेटे का ठेला उठा लिया गया है। हमारा पेट कैसे भरेगा?” आकाश ने तुरंत जांच का आदेश दिया और खुद बाजार का दौरा करने निकल पड़े।

बाजार में रेड़ी वाले डरे हुए थे। नईम भी वहीं था, लेकिन उसने आकाश को देखकर सर झुका लिया। आकाश ने सबकी रेहड़ियों का जायजा लिया, परमिशन पूछी। जब वे नईम के पास पहुँचे तो नईम ने कहा, “साहब, मैं सालों से यहाँ बैठता हूँ, बस इतना ही कमा पाता हूँ कि बच्चों का पेट भर जाए।”

आकाश बोले, “कानून सबके लिए एक जैसा है। अगर परमिशन नहीं है तो कार्रवाई होगी।” नईम चुप रहा, चाहता था कि आकाश उसे पहचान ले, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।

रात को शाजिया ने पूछा, “तुमने उसे बताया क्यों नहीं?” नईम बोला, “अगर दोस्ती सच्ची है तो वो खुद पहचान लेगा।”

आकाश भी घर लौटकर सोचते रहे—उस रेड़ी वाले का चेहरा कहीं देखा सा लगता है। उन्होंने अपने बचपन की यादें टटोलनी शुरू की। अचानक उन्हें याद आया—क्या वो नईम था?

अगले दिन आकाश फिर बाजार गए, इस बार बिना किसी प्रोटोकॉल के। उन्होंने नईम की रेड़ी के पास जाकर कहा, “क्या अपने दोस्त को पकोड़े नहीं खिलाओगे?”

नईम की आँखों में आंसू आ गए। दोनों कुछ पल खामोश रहे, फिर गले लग गए। आकाश बोले, “दोस्त कैसे भूले जा सकते हैं? तुम्हारे साथ बिताए दिन मेरी सबसे बड़ी दौलत हैं।”

बाजार के लोग हैरान थे—डीएम एक रेड़ी वाले को गले लगा रहा था। आकाश ने सबको बताया, “यह सिर्फ एक रेड़ी वाला नहीं, मेरा दोस्त है। दोस्त के सामने मैं सिर्फ इंसान हूँ, कोई ओहदा नहीं।”

नईम बोला, “मैं सोचता था हमारी दुनिया बदल गई है। तुम अफसर बन गए, मैं रेड़ी वाला। लेकिन आज लगा, दोस्ती वक्त से बड़ी चीज़ है।”

आकाश ने ऐलान किया—अब इस जगह पर रेहड़ियों की परमिशन दी जाएगी, किसी गरीब की रेड़ी जबरदस्ती नहीं हटाई जाएगी।

बाजार तालियों से गूंज उठा। मीडिया में तस्वीरें छप गईं—डीएम अपने पुराने दोस्त से मिला और उसके साथ खाना खाया। नईम का घर खुशी से भर गया। शाजिया बोली, “मैंने कहा था किस्मत कभी भी पलट सकती है। आज तुम्हारे दोस्त ने तुम्हें इज्जत दी।”