न्याय की जीत : डीएम और एसपी की गुप्त परीक्षा

विजयनगर शहर का मुख्य पुलिस स्टेशन कभी न्याय का प्रतीक था, लेकिन अब वह भ्रष्टाचार और अत्याचार का अड्डा बन चुका था। वहाँ बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता था। गरीब लोग अपनी शिकायत लेकर आते, लेकिन उन्हें न्याय की जगह अपमान और पैसों की मांग का सामना करना पड़ता।

इसी जिले के सबसे बड़े अधिकारी, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) विकास शर्मा अपने दफ्तर में जरूरी रिपोर्ट तैयार कर रहे थे। तभी उनका पीए रामलाल एक सफेद लिफाफा लेकर आया। उसमें एक साधारण सा पत्र था, जिसमें लिखा था कि विजयनगर पुलिस स्टेशन का इंस्पेक्टर राहुल सिंह शिकायत दर्ज करने के लिए रिश्वत मांगता है। गरीबों को न्याय नहीं मिलता, बल्कि अपमान मिलता है। पत्र के अंत में कोई नाम या पता नहीं था, बस लिखा था – “एक नागरिक जो न्याय की तलाश में है।”

विकास शर्मा ने पहले तो इसे मामूली शिकायत समझकर नजरअंदाज कर दिया। लेकिन तीन दिन बाद फिर एक ऐसा ही पत्र आया, जिसमें वही आरोप थे। अब विकास को शक पक्का हो गया। उन्होंने जिले की वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, एएसपी प्रियंका चौहान को बुलाया। प्रियंका ईमानदार और सख्त रवैये के लिए जानी जाती थी। दोनों ने मिलकर एक गुप्त योजना बनाई – वे आम नागरिक बनकर पुलिस स्टेशन जाएंगे ताकि इंस्पेक्टर का असली चेहरा सबके सामने आ सके।

योजना के मुताबिक प्रियंका ने साधारण हरी साड़ी पहनी, बिना मेकअप के, और विकास ने गरीब किसान का भेष धरा – पुरानी बनियान, धोती और चेहरे पर थकान का भाव। विकास ने अपनी बनियान के अंदर एक छोटा सा गुप्त कैमरा भी लगा लिया। दोनों पुलिस स्टेशन पहुँचे। गेट पर सिपाही सुनील बैठा था, जो बीड़ी पीते हुए मोबाइल देख रहा था। उसने दोनों को रोककर बदतमीजी से कहा, “अरे, कहाँ घुस रहे हो? पुलिस स्टेशन में घुसने के ₹600 लगते हैं। पैसे दो वरना बाहर रहो।”
विकास ने ₹500 देकर अंदर जाने की इजाजत ली।

स्टेशन के अंदर का माहौल देखकर दोनों हैरान रह गए। वहाँ का हॉल किसी सरकारी दफ्तर से ज्यादा किसी गुंडे के अड्डे जैसा लग रहा था। इंस्पेक्टर राहुल सिंह पैर पर पैर रखे अकड़कर बैठा था, और उसके दोनों तरफ सिपाही उसके कंधे दबा रहे थे।

विकास और प्रियंका धीरे-धीरे इंस्पेक्टर के सामने पहुँचे। विकास ने झुककर कहा, “साहब, हमें शिकायत दर्ज करानी है।”
राहुल ने घमंड से पूछा, “फीस जमा की या नहीं?”
विकास ने हैरानी से पूछा, “कौन सी फीस?”
राहुल बोला, “यहाँ शिकायत लिखवाने के लिए ₹6000 फीस लगती है। पैसे हैं तो बोलो, वरना निकल जाओ।”

विकास ने विनम्रता से कहा, “साहब, शिकायत दर्ज कराना हर नागरिक का हक है। आप पैसे क्यों मांग रहे हैं? यह तो रिश्वत है।”
यह सुनते ही इंस्पेक्टर राहुल गुस्से से लाल हो गया। वह अपनी कुर्सी से उठा और विकास के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। पूरा हॉल उस थप्पड़ की गूंज से भर गया। प्रियंका का खून खौल उठा, लेकिन विकास ने उसे शांत रहने का इशारा किया – सबकुछ कैमरे में रिकॉर्ड हो रहा था।

राहुल ने ₹5000 लेकर शिकायत लिखने का नाटक किया, लेकिन गरीब किसान की जमीन की समस्या सुनकर भी उसने मदद करने से साफ इनकार कर दिया। “जमींदार बड़ा आदमी है, हम उसके खिलाफ कुछ नहीं कर सकते। अब निकलो यहाँ से।”

दोनों अधिकारी समझ गए कि उनके पास इंस्पेक्टर राहुल के खिलाफ पक्के सबूत हैं – रिश्वत मांगना, अपमान करना, शिकायत दर्ज करने से मना करना, और थप्पड़ मारना – सबकुछ कैमरे में रिकॉर्ड हो चुका था।

विकास और प्रियंका ने तुरंत एक मजबूत केस तैयार किया। वीडियो सबूतों को इकट्ठा किया और अदालत में पेश करने की तैयारी शुरू की। मीडिया को भी खबर दे दी गई ताकि लोगों को पता चले कि न्याय के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

अगले दिन मामला अदालत में पहुँचा। पूरे शहर में हड़कंप मच गया। अदालत के बाहर मीडिया की भीड़ थी। जज साहब ने सुनवाई शुरू की। वीडियो सबूत कोर्ट में दिखाए गए – जिसमें सिपाही रिश्वत मांग रहा था, इंस्पेक्टर राहुल ₹6000 मांग रहा था, शिकायत दर्ज करने से मना कर रहा था और विकास को थप्पड़ मार रहा था।

मीडिया ने लाइव रिपोर्टिंग की। प्रियंका चौहान ने कोर्ट में बताया कि यह वीडियो उन्होंने खुद आम नागरिक बनकर रिकॉर्ड किया है। जज साहब ने राहुल सिंह को तुरंत सस्पेंड किया और रिश्वतखोरी व पद के गलत इस्तेमाल के जुर्म में **2 साल की जेल** की सजा सुनाई।

राहुल को हथकड़ी लगाकर अदालत से बाहर ले जाया गया। उसके चेहरे पर शर्म और हार साफ दिख रही थी। बाहर लोगों ने विकास शर्मा और प्रियंका चौहान का तालियों और नारों के साथ स्वागत किया।
विकास ने लोगों से कहा, “न्याय हमेशा जीतता है। अत्याचार चाहे कितना भी ताकतवर हो, सच और सबूतों के सामने उसकी हार निश्चित है।”

इस घटना के बाद विजयनगर पुलिस स्टेशन का माहौल बदल गया। नए इंस्पेक्टर की नियुक्ति हुई और सभी पुलिस वालों को सख्त निर्देश दिए गए कि वे लोगों के साथ सम्मान से पेश आएँ। विजयनगर फिर से शांत और खुशहाल हो गया।