अर्जुन यादव – 20 साल बाद लौटे सिपाही की कहानी
साल 10,999। कारगिल युद्ध के बाद की एक ठंडी सुबह थी। राजस्थान की सीमा पर तैनात जवान अर्जुन यादव, उम्र सिर्फ 26 साल, लेकिन चेहरे पर ऐसा जज़्बा कि दुश्मन भी देखकर सहम जाए। जब वह गांव से निकला था, मां ने माथे पर तिलक लगाया था, पिता ने सीना चौड़ा करके कहा था – ‘‘जा बेटा, तेरा खून इस मिट्टी की लाज रखेगा।’’ पत्नी सीता ने दरवाजे पर खड़े होकर बस इतना कहा था – ‘‘जल्दी लौट आना, मैं तेरे बिना अधूरी हूं।’’
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। सीमा पर अचानक हुई गोलीबारी में अर्जुन लापता हो गया। साथियों ने बहुत ढूंढा, मगर उसका कोई सुराग नहीं मिला। आर्मी रिकॉर्ड में लिखा गया ‘‘मिसिंग इन एक्शन’’। गांव में मातम छा गया। मां बेसुध होकर गिर पड़ी, सीता की आंखें पत्थर हो गईं। लोग कहने लगे – ‘‘वह अब लौट कर नहीं आएगा।’’ धीरे-धीरे सरकार ने भी उसका नाम शहीदों की सूची में डाल दिया। लेकिन मां के दिल को कभी यकीन नहीं हुआ। वह रोज शाम को चौखट पर दीपक जलाती और कहती – ‘‘मेरा अर्जुन जिंदा है, एक दिन लौटेगा।’’
साल दर साल बीतते गए। बेटे की तस्वीर घर के आंगन में लगी रही। सीता ने पति के नाम की चूड़ियां कभी नहीं तोड़ी, बस चुपचाप सफेद कपड़ों में जिंदगी काटने लगी। गांव वाले उसकी आंखों का दर्द समझते थे, पर किसी में हिम्मत नहीं थी यह कहने की कि अब भूल जाओ। लेकिन सच यह था कि अर्जुन जिंदा था और पाकिस्तान की एक अंधेरी जेल में कैद था। उसे सीमा पार दुश्मन सैनिकों ने पकड़ लिया था। आंखों पर पट्टी, हाथ बांधकर घसीटते हुए जेल में फेंक दिया गया। वहां शुरू हुआ असली इम्तिहान – 20 साल लंबा इम्तिहान।
जेल की कोठरी छोटी थी, ना खिड़की ना दरवाजा, बस लोहे की सलाखें। दिन-रात पूछताछ, यातनाएं, मारपीट। लेकिन अर्जुन ने कभी हार नहीं मानी। उनसे बार-बार पूछा जाता – ‘‘भारत की फौज की जानकारी दो, हथियार कहां छिपाए हैं?’’ लेकिन अर्जुन का एक ही जवाब – ‘‘मैं भारतीय जवान हूं, देश की रक्षा मेरा फर्ज है। जान ले सकते हो, पर जुबान से देशद्रोह नहीं कहलवा सकते।’’ वह हर यातना सहता रहा, मगर टूटा नहीं। शरीर लहूलुहान हो जाता, लेकिन मन में हमेशा मां की तस्वीर और सीता की मुस्कान थी। यही उसे जिंदा रखती थी।
20 साल तक उसने अपने देश का नाम सीने से लगाकर रखा। और इधर भारत में उसकी मां हर रोज मंदिर में घंटियां बजाती, आरती उतारती और आसमान की ओर देखकर कहती – ‘‘हे प्रभु, मेरा बेटा लौटा दो।’’ सरकारें आई और चली गईं। अर्जुन का बेटा, जो उसके जाते वक्त मां के गर्भ में था, अब जवान हो चुका था। उसने पिता को सिर्फ तस्वीरों में देखा था। बचपन से ही लोग उसे ‘‘शहीद का बेटा’’ कहकर पुकारते थे। पर मां हर बार कहती – ‘‘तेरे पापा जिंदा हैं।’’
बेटा यही सोचकर बड़ा हुआ कि एक दिन दरवाजा खुलेगा और पापा लौट आएंगे। आखिरकार वह दिन आ ही गया। भारत सरकार को गुप्त सूचना मिली कि पाकिस्तान की एक जेल में भारतीय सैनिक जिंदा बंद हैं। जांच हुई, सबूत मिले और अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया गया। जब पाकिस्तान को मानना पड़ा तो उन कैदियों में सबसे आगे था अर्जुन यादव। 20 साल बाद जब उसकी तस्वीर मीडिया पर आई तो पूरा गांव रो पड़ा। मां ने तस्वीर देखी और चिल्लाई – ‘‘यही है मेरा अर्जुन, मैंने कहा था ना, वह जिंदा है!’’ बेटा रोते-रोते बोला – ‘‘मां, मेरे पापा लौट आए!’’ सीता की आंखों से आंसू झरनों की तरह बह निकले।
20 साल का इंतजार, हर पल मौत जैसा था। और अचानक खबर आई कि अपना लौट रहा है। पूरा गांव जैसे किसी मेले में बदल गया। हर घर में दिए जलने लगे, गलियों में ढोल-नगाड़े बजने लगे। मंदिर की घंटियां लगातार बज रही थीं, हर कोई यही प्रार्थना कर रहा था – ‘‘भगवान, अब उसे सकुशल घर पहुंचा दो।’’
बॉर्डर पर ऐसा नजारा था, जैसा शायद ही कभी देखा गया हो। दोनों देशों के झंडे हवा में लहरा रहे थे, लेकिन भीड़ की निगाहें सिर्फ एक शख्स पर थी – अर्जुन यादव। पाकिस्तान की जेल से छोड़े जाने के बाद वह थका हुआ था, चेहरा झुर्रियों से भरा, बाल सफेद, मगर आंखों में वही चमक। सलाखों और जंजीरों ने शरीर को झुका दिया था, मगर हौसले को नहीं।
भारत की धरती पर पहला कदम रखते ही उसने जमीन को छुआ, माथे से लगाया और रोते हुए कहा – ‘‘जय हिंद!’’ उस आवाज ने वहां मौजूद हर भारतीय को रुला दिया। सैनिकों ने सैल्यूट किया, भीड़ ने ‘‘भारत माता की जय’’ और ‘‘वंदे मातरम’’ के नारे लगाए। अर्जुन की आंखें भर आईं। उसने सिर उठाकर आसमान देखा और जैसे अपनी मां से कहा – ‘‘मां, तेरा बेटा लौट आया।’’
मां वहीं मौजूद थी, उम्र अब 70 से ऊपर हो चुकी थी। कांपते कदमों से आगे बढ़ी, बेटे को गले लगाया – पूरा बॉर्डर रो पड़ा। 20 साल की जुदाई का हिसाब था। मां के आंसू उसके कंधे पर गिर रहे थे, अर्जुन कह रहा था – ‘‘मां, मुझे माफ कर दो, देर हो गई।’’
सीता भी आगे आई, सफेद कपड़ों में आंखों में बरसों का दर्द और हाथ में टूटी चूड़ियों का निशान। उसने अर्जुन को देखा तो बस रो पड़ी। अर्जुन ने उसका चेहरा थामा और कहा – ‘‘मैं जानता था, तूने मेरा इंतजार किया होगा।’’ सीता ने बस उसकी छाती से लगकर सब कह दिया।
भीड़ में एक और चेहरा था – उसका बेटा। अर्जुन ने उसे देखा, उसकी आंखों में आश्चर्य और गर्व दोनों थे। ‘‘तू मेरा बेटा?’’ बेटा रोते हुए बोला – ‘‘हां पापा, मैं वही हूं जिसे आपने कभी गोद में नहीं लिया, जिसका खून आपकी रगों से बहता है।’’ पिता-पुत्र का वो मिलन इतना भावुक था कि सैनिक भी आंसू पोंछते दिखे।
गांव में जब अर्जुन पहुंचा तो पूरा इलाका सज चुका था। हर घर में रंगोली, छतों पर फूल बरसाए जा रहे थे, बच्चे ‘‘अर्जुन अंकल आ गए’’ चिल्ला रहे थे। जिस चौपाल पर उसकी तस्वीर लगी थी, वहां अब उसे जीवित देखकर लोग माथा टेक रहे थे। पंडित ने आरती उतारी, महिलाएं गीत गा रही थीं, बुजुर्ग कह रहे थे – ‘‘आज हमारे गांव का इतिहास लिखा गया है।’’
अर्जुन ने गांव के मंदिर में जाकर झंडा फहराया। उसने कहा – ‘‘यह जीत मेरी नहीं, मेरे देश की है। मैं सिर्फ अपना फर्ज निभा रहा था।’’ लोगों ने तालियां बजाई, लेकिन हर किसी की आंखें गीली थीं। मीडिया कैमरे लगातार उस दृश्य को कैद कर रहे थे। हर न्यूज़ चैनल पर सिर्फ एक ही हेडलाइन थी – ‘‘20 साल बाद लौटे भारतीय जवान अर्जुन यादव।’’
सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे थे – ‘‘यह है असली हीरो!’’ बच्चे उसकी तस्वीर शेयर कर रहे थे, सलाम कर रहे थे। लेकिन अर्जुन के दिल में एक और तूफान था। 20 साल जेल में बिताने के बाद वह जानता था कि कई साथी अब भी बंदी हैं। उसने सरकार से गुहार लगाई – ‘‘मेरे भाइयों को भी वापस लाओ।’’
अर्जुन अब सिर्फ एक जवान नहीं रहा, बल्कि एक आंदोलन की आवाज बन गया। उसने टीवी चैनलों पर जाकर कहा – ‘‘अगर मैं 20 साल बाद जिंदा लौट सकता हूं तो और भी भाई लौट सकते हैं।’’ उसके शब्दों ने करोड़ों भारतीयों को जगा दिया।
गांव में उसकी वापसी के बाद बड़ा परिवर्तन हुआ। पहले लोग राजनीति, जाति और छोटे-छोटे झगड़ों में बंटे रहते थे। लेकिन अर्जुन ने उन्हें एक सूत्र में बांध दिया। उसने कहा – ‘‘देश के लिए एकजुट रहना ही सबसे बड़ा धर्म है।’’ नौजवानों ने उसकी बातों से प्रेरणा लेकर शराब छोड़ दी, झगड़े खत्म कर दिए और शिक्षा की ओर ध्यान देना शुरू किया।
उसका बेटा, जो अब ऑफिसर बन चुका था, अर्जुन से कहता – ‘‘पापा, आपने मुझे जीवन का सबसे बड़ा सबक दिया है। मैं भी देश के लिए काम करूंगा।’’ अर्जुन की आंखों में गर्व भर जाता।
सबसे भावुक पल तब आया जब अर्जुन अपने पुराने सैनिक साथियों की विधवाओं और उनके बच्चों से मिलने गया। वे औरतें, जो बरसों से ‘‘शहीद की पत्नी’’ कहलाकर जी रही थीं, जब अर्जुन को सामने देखा तो फूट-फूट कर रो पड़ीं। बच्चों ने अर्जुन के पैर छुए और कहा – ‘‘आप हमारे पापा जैसे हैं।’’ अर्जुन ने उन्हें गले लगाया और बोला – ‘‘हां, मैं तुम्हारा पापा हूं।’’
धीरे-धीरे अर्जुन का नाम पूरे देश में फैल गया। उसकी कहानी पर किताबें लिखी गईं, फिल्में बनने लगीं, सोशल मीडिया पर हर कोई उसकी तस्वीर अपने प्रोफाइल पर लगाने लगा। लेकिन अर्जुन हर चमक-दमक से दूर बस अपने गांव में साधारण किसान की तरह जीता रहा। उसका कहना था – ‘‘मैंने कैद में रहकर सीखा है कि असली आज़ादी सादगी में है।’’
एक दिन राजधानी में उसे एक बड़े कार्यक्रम में बुलाया गया। हजारों की भीड़ थी। मंच पर नेता, मंत्री और बड़े अफसर बैठे थे। सब अर्जुन के आने का इंतजार कर रहे थे। जब वह मंच पर पहुंचा तो पूरे हाल में खड़े होकर लोग तालियां बजाने लगे। अर्जुन ने माइक उठाया और कहा – ‘‘दोस्तों, मैं हीरो नहीं हूं। हीरो वो मां है जिसने 20 साल इंतजार किया। हीरो वो पत्नी है जिसने सफेद कपड़ों में जिंदगी गुजारी। और हीरो वो बेटा है जिसने पिता के बिना भी सीना तानकर बड़ा हुआ। असली हीरो तो वह परिवार हैं जो हर रोज किसी ना किसी जवान की वापसी का सपना देखते हैं।’’
उसकी बातें सुनकर पूरा हाल रो पड़ा। लोग खड़े होकर भारत माता की जय के नारे लगाने लगे। समय के साथ अर्जुन बूढ़ा होता गया, लेकिन उसकी आत्मा जवान ही रही। वह हर दिन गांव के बच्चों को देशभक्ति की कहानियां सुनाता, उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित करता और कहता – ‘‘अगर देश बदलना है तो पहले खुद को बदलो।’’
आखिरकार एक दिन ऐसा आया जब अर्जुन ने अपनी आखिरी सांस ली। उस दिन पूरा गांव उसके घर पर उमड़ा। उसकी अर्थी को तिरंगे में लपेटा गया और पूरा गांव ‘‘अर्जुन अमर रहे’’ के नारे लगा रहा था। लोग रो रहे थे लेकिन गर्व से, क्योंकि उन्होंने देखा था कि अर्जुन सिर्फ एक इंसान नहीं, बल्कि एक युग था – त्याग, धैर्य और देशभक्ति का प्रतीक।
उसकी राख को गंगा में प्रवाहित किया गया और वहीं उसके नाम पर एक स्मारक बना दिया गया। बच्चे वहां हर साल फूल चढ़ाने जाते और कहते – ‘‘यह हैं हमारे गांव के अर्जुन अंकल।’’
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