अधिकारी रिया मिश्रा का साहस

रिया मिश्रा एक तेजतर्रार और ईमानदार महिला अधिकारी थीं। एक दिन वह अपनी सहेली की शादी में जाने के लिए तैयार हो रही थीं। उन्होंने कोई सरकारी वर्दी नहीं पहनी थी, न कोई सुरक्षा घेरा था, न ही कोई चमचमाती गाड़ी थी। बस साधारण जींस और टी-शर्ट में, एक आम लड़की की तरह दिखती हुई, अपनी मोटरसाइकिल पर हवा से बातें करती शादी में पहुंचने की जल्दी में थीं।

जैसे ही वह सुंदरगढ़ शहर के पास पहुंचीं, उनकी नजर सड़क पर लगे पुलिस चेक पोस्ट पर पड़ी। वहां तीन-चार पुलिसकर्मी खड़े थे और उनके बीच इंस्पेक्टर रमेश सिंह अपनी वर्दी में पूरी अकड़ के साथ मौजूद था। उसकी नजर रिया मिश्रा पर पड़ी और उसने तुरंत उन्हें रोकने का इशारा किया।

रिया ने बिना किसी बहस के अपनी मोटरसाइकिल सड़क के किनारे लगा दी और शांत खड़ी हो गईं। रमेश ने सख्त आवाज में पूछा, “कहां जा रही हो?”
रिया ने बहुत ही शांत स्वर में जवाब दिया, “एक सहेली की शादी है, वहीं जा रही हूं।”
रमेश ने उन्हें सिर से पांव तक घूरा और हंसते हुए बोला, “अच्छा, सहेली की शादी में खाना खाने जा रही हो। लेकिन हेलमेट क्या तुम्हारे बाप ने पहनना था? क्यों नहीं पहना? और यह बाइक भी बहुत तेज चला रही थी। चलो अब चालान कटेगा।”

रिया समझ गई कि उसकी नियत ठीक नहीं है, यह सब एक बहाना है। उन्होंने कहा, “सर, मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा है।”
रमेश झल्लाकर बोला, “ओ मैडम, हमें कानून मत सिखाओ।”
फिर उसने एक कांस्टेबल से कहा, “इसे सबक सिखाना होगा।”
अचानक रमेश ने अपना हाथ उठाया और रिया के गाल पर जोर से थप्पड़ मार दिया।
रिया का सिर एक पल के लिए घूम गया, लेकिन उन्होंने खुद को संभाल लिया। उनकी आंखों में गुस्सा साफ झलक रहा था।

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रमेश ने एक कांस्टेबल से कहा, “इसे थाने ले चलते हैं। वहीं इसका इलाज होगा, तब समझेगी कि पुलिस से कैसे बात की जाती है।”
एक कांस्टेबल ने रिया का हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन रिया ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और गुस्से में बोली, “हाथ लगाने की कोशिश मत करना, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।”
इंस्पेक्टर रमेश और भड़क गया। एक और कांस्टेबल आगे बढ़ा और रिया के बाल पकड़कर खींचने लगा। रिया दर्द से कराह उठी, फिर भी उन्होंने अपनी असली पहचान नहीं बताई। वह देखना चाहती थीं कि ये लोग कितनी नीचता तक जा सकते हैं।

इसी बीच एक पुलिसकर्मी ने उनकी बाइक पर लाठी मार दी और ऊंची आवाज में बोला, “बड़ी आई साधु बनने वाली, अब तुझे खिलौना बनाकर खेलेंगे।”
रिया अब अच्छे से समझ चुकी थी कि उनके साथ क्या होने वाला है।

थाने में घुसते ही इंस्पेक्टर रमेश सिंह जोर से चिल्लाया, “ओए, कहां गए सब? चाय-पानी लगाओ जल्दी। आज एक खास माल आया है।”
रिया मिश्रा अब भी कुछ नहीं बोलीं। बस थाने की दीवारों को देखती रहीं। वह देख रही थीं कि ये लोग उन निरीह लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं जो कभी आवाज नहीं उठाते।

रमेश एक झूठी रिपोर्ट बना रहा था। उसने आदेश दिया, “इसके ऊपर चोरी और ब्लैकमेलिंग का केस ठोक दो।”
एक कांस्टेबल ने हिचकते हुए पूछा, “लेकिन सर, बिना सबूत?”
रमेश हंसते हुए बोला, “इस थाने में सबूत लाए नहीं जाते, बनाए जाते हैं।”

कुछ देर बाद एक कांस्टेबल कोठरी में आया और रिया के कंधे पर जोर से हाथ मारा। तभी इंस्पेक्टर रमेश सिंह ने भी हाथ उठाया ही था कि दरवाजे पर एक भारी आवाज गूंजी, “रुको!”
सभी लोग घूम कर दरवाजे की ओर देखने लगे। वहां सीनियर इंस्पेक्टर मुकेश सिंह खड़ा था। उसकी छवि बाकी अफसरों से बेहतर मानी जाती थी। उसने महिला की हालत देखकर सख्त स्वर में पूछा, “यह सब क्या हो रहा है?”
रमेश बोला, “सर, एक सड़क की औरत ज्यादा अकड़ दिखा रही थी। सबक सिखा रहा हूं।”
मुकेश सिंह को शक हुआ। उसने रिया से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
रिया चुप रहीं। रमेश बोला, “देखिए सर, नाम भी नहीं बता रही है।”
मुकेश ने आदेश दिया, “इसे अलग कोठरी में रखो अकेले। मैं खुद इसके पास रहूंगा।”
रिया को एक और अंधेरी कोठरी में ले जाया गया।

तभी एक कांस्टेबल दौड़ते हुए आया और बोला, “सर, बाहर एक बड़ी सरकारी गाड़ी खड़ी है।”
रमेश बाहर गया और देखा—कमिश्नर साहब आए हैं।
कमिश्नर साहब थाने में दाखिल हुए। उन्होंने रमेश से पूछा, “यह क्या तमाशा चल रहा है?”
रमेश घबरा गया और बोला, “कुछ नहीं सर, एक छोटा सा केस है बस।”
कमिश्नर साहब ने फाइल पढ़ी, माथे पर शिकन आ गई। फिर कोठरी की तरफ झांके और बोले, “यह कौन है?”
रमेश बोला, “सर, इस महिला पर 420 और धोखाधड़ी का केस है।”
कमिश्नर ने सीधा सवाल किया, “तुम्हारे पास सबूत है?”
रमेश फंस चुका था। कमिश्नर ने रिया से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
रिया ने हल्की मुस्कान दी और कहा, “अधिकारी रिया मिश्रा।”
थाने में सन्नाटा छा गया। रमेश के हाथ-पांव कांपने लगे। बाकी कांस्टेबल हैरान रह गए। जिस महिला को वह मामूली अपराधी समझ रहा था, वह उसी जिले की प्रशासनिक अधिकारी थी।

कमिश्नर साहब ने गुस्से में रमेश से कहा, “तुझमें इतनी हिम्मत कैसे आई कि तू एक सीनियर ऑफिसर पर झूठा आरोप लगाने की जुर्रत कर बैठा?”
रिया मिश्रा ने अपनी शांत लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “रमेश, अब तेरी नौकरी गई। तेरा सस्पेंशन पक्का है और तेरे खिलाफ केस भी चलेगा।”
मुकेश सिंह ने तुरंत आदेश दिया, “इसे पकड़ो और लॉकअप में डालो।”

रमेश ने अपनी जेब से एक मुड़ा हुआ कागज निकाला और बोला, “रुको मैडम, यह पहले देख लो। मेरा ट्रांसफर ऑर्डर है, तीन दिन पहले ही मेरा तबादला हो चुका है।”
कमिश्नर ने मुकेश सिंह से कहा, “जाओ, देखो यह कागज असली है या दिखावा।”
मुकेश ने जांच की और बोला, “यह असली है लेकिन अभी तक नए इंस्पेक्टर को चार्ज नहीं सौंपा है। यानी अभी तक यहां का आधिकारिक इंस्पेक्टर यही है और सारे कुकर्म इसी के कार्यकाल में हुए हैं। अब इसे कोई नहीं बचा सकता।”

रिया मिश्रा ने रमेश की आंखों में आंखें डालकर कहा, “अब तेरा नया ठिकाना वहीं होगा जहां तू दूसरों को डाला करता था।”
कमिश्नर ने भी सिर हिलाकर उनकी बात पर मोहर लगा दी। जैसे ही दो कांस्टेबल उसे पकड़ने आगे बढ़े, रमेश ने बोला, “रुको मैडम, मैं अकेला नहीं हूं। क्या आपको लगता है कि सारा दोष सिर्फ मेरा है? ये सब मेरे साथ थे। ऊपर तक सब शामिल हैं।”

अब कुछ पुलिसकर्मियों के चेहरे का रंग उड़ गया। मुकेश सिंह ने एक-एक करके सभी की ओर शक की नजरों से देखा।
रिया मिश्रा ने कमिश्नर की ओर देखते हुए कहा, “अब इस पूरे थाने को साफ करना होगा, कोई नहीं बचेगा।”
कमिश्नर ने भी सिर हिलाया, “जो हुकुम मैडम। अब एक-एक करके सबका हिसाब लिया जाएगा।”

थाने के बाहर पत्रकार खड़े थे। जैसे ही उन्हें खबर मिली कि पूरा थाना लाइन हाजिर किया गया है, उन्होंने ब्रेकिंग न्यूज़ वायरल कर दी। उसी वक्त एक चमचमाती गाड़ी थाने के सामने आकर रुकी। दरवाजा खुला और एसएसपी साहब बाहर आए। उन्होंने तीखे स्वर में पूछा, “यहां कब से तमाशा चल रहा है?”
रिया मिश्रा ने सीधे एसएसपी की आंखों में आंखें डालकर कहा, “क्या तुम्हें लगता है तुम बच जाओगे?”
मुकेश सिंह ने एक फाइल रिया को दी, जिसमें एसएसपी साहब के सारे काले कारनामों का पर्दाफाश था।
रिया ने वह फाइल एसएसपी साहब की ओर बढ़ाई, “लो देखो, इसमें तुम्हारे हर गुनाह का हिसाब लिखा है।”
कमिश्नर ने आदेश दिया, “पकड़ो इसे, तुरंत गिरफ्तार करो।”

एसएसपी की गिरफ्तारी के साथ ही जिले में तूफान आ गया। मामला दिल्ली तक पहुंच गया। मुख्यमंत्री तक खबर पहुंची और आदेश आया—जितने भी अफसर गड़बड़ कर रहे थे, सबको गिरफ्तार करो। अगले दो दिनों में जिले से 40 से ज्यादा पुलिस अफसर, 10 से ज्यादा बड़े अधिकारी और कुछ नेता भी गिरफ्तार हो गए। सुंदरगढ़ जिले की हवा बदल गई। अब हर जगह सिर्फ एक ही नाम था—रिया मिश्रा। उनकी ईमानदारी और साहस की चर्चा हर जुबान पर थी। वह महिला जिसने पूरे सड़े-गले सिस्टम को हिला दिया था।

अब प्रशासन में एक नई गति, एक नई सोच और सबसे अहम, एक नया डर आ गया था। अब कोई यह नहीं कह सकता था, “मुझे कुछ नहीं होगा।”
रिया मिश्रा का काम पूरा हो चुका था। उन्होंने साबित कर दिया कि अगर मन साफ हो, नियत सच्ची हो तो पूरा देश भी सुधारा जा सकता है।

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**जय हिंद!**