फुटपाथ से इज्जत तक: मीरा की कहानी
कस्बे में एक गरीब लड़की मीरा रहती थी, जो रोज पटना जंक्शन के फुटपाथ पर भीख मांगकर अपना गुजारा करती थी। उसका चेहरा धूप और धूल से मुरझाया हुआ था, आंखों में भूख और बेबसी झलकती थी। लोग उसे देखकर नजरें फेर लेते, कोई सिक्का फेंक देता, कोई ताना मार देता, लेकिन ज्यादातर ऐसे गुजर जाते जैसे वह वहां है ही नहीं।
एक दिन, भीड़भाड़ के बीच एक चमचमाती कार आकर रुकी। उसमें से उतरा सिद्धार्थ, करीब 25 साल का युवक। उसके चेहरे पर गंभीरता और आंखों में आत्मविश्वास था। वह सीधे मीरा के पास गया और बोला, “तुम्हें पैसों की जरूरत है, है ना? भीख से पेट तो भर सकता है, लेकिन जिंदगी नहीं बदल सकती। अगर सच में जीना है तो मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें ऐसा काम दूंगा जिसमें इज्जत भी होगी और रोटी भी।”
मीरा के दिल में डर भी था और उम्मीद भी। उसने हिम्मत जुटाई और सिद्धार्थ के साथ कार में बैठ गई। गाड़ी एक साधारण मोहल्ले में रुक गई। सिद्धार्थ ने मीरा को अपने घर ले जाकर बताया कि उसका छोटा सा टिफिन सर्विस का बिजनेस है। वह सुबह खाना बनाता है और ऑफिसों व हॉस्टलों में टिफिन पहुंचाता है। सिद्धार्थ ने मीरा को बर्तन धोने और सफाई का काम सिखाना शुरू किया। धीरे-धीरे मीरा ने सब्जी काटना, आटा गूंथना और टिफिन बनाना भी सीख लिया।
मोहल्ले के लोग ताने मारते, “अरे यही तो वही भिखारिन है जो जंक्शन पर बैठती थी। देखो अब लड़के के नीचे काम कर रही है।” मीरा का दिल टूटता, लेकिन सिद्धार्थ हमेशा हौसला देता, “भीख आसान है, मेहनत मुश्किल, लेकिन इज्जत हमेशा मेहनत से ही मिलती है।”
समय के साथ मीरा की जिंदगी बदलने लगी। छह महीने में वह आत्मविश्वास से भर गई। अब वह काम बांटती, नए हेल्परों को सिखाती और कस्टमर से बात भी करती। एक दिन अखबार में उनके बारे में लेख छपा—”फुटपाथ से टिफिन साम्राज्य तक, मीरा और सिद्धार्थ की मिसाल।” अब लोग सम्मान से देखने लगे।
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