हकीकी इज्जत: कोलकाता की एक ज्वेलरी शोरूम में मिला जिंदगी का सबक
कोलकाता के ग्रीन एवेन्यू मार्केट में अलग ही रौनक थी। बड़े-बड़े ब्रांडेड शोरूम, चमचमाते शीशे और पार्किंग में खड़ी महंगी गाड़ियाँ यहाँ की अमीरी की पहचान थीं। दोपहर करीब 2 बजे, एक उम्रदराज़ महिला धीरे-धीरे चलते हुए एक ज्वेलरी शोरूम के सामने रुकी। करीब 65 साल की, चेहरे पर झुर्रियाँ, सिर पर सफेद दुपट्टा, हाथ में एक पुराना-सा बैग। उनकी सादगी देखकर किसी को अंदाजा नहीं था कि वह वहाँ क्यों आई हैं।
वह महिला हल्के गुलाबी सलवार-सूट और घिसी हुई चप्पल में बड़ी शांति के साथ भीतर चली गई। शोरूम अंदर से पूरी तरह ठंडा और झिलमिल मार्बल से सजा था। वहां मौजूद दो सेल्समैन और एक रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें ऊपर-से-नीचे तक ऐसे देखा जैसे उनकी मौजूदगी से वहाँ की रौनक कम हो गई हो। एक सेल्समैन ने व्यंग्य में पूछा, “अम्मा जी, यहाँ चाय नहीं मिलती, यह ज्वेलरी स्टोर है।”
महिला ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, “बेटा, मुझे एक तोहफा खरीदना है।” उनकी बात सुनकर तीनों कर्मचारियों के चेहरे पर मजाकिया मुस्कान फैल गई। रिसेप्शनिस्ट ने गम चबाते हुए कहा, “मैम, यहाँ के रेट आपकी पेंशन से ज्यादा होंगे, हमारी कस्टमर क्लास थोड़ी अलग है।” दूसरा सेल्समैन भी हँसते हुए बोला, “आप चाहें तो पास की गली में 150 रुपये के लॉकेट मिल जाएंगे।”
महिला कुछ पल खड़ी रहीं, बिना गुस्से के, उनके चेहरे पर सिर्फ गहराई और तजुर्बा था। उन्होंने फिर दोहराया, “मुझे एक तोहफा खरीदना है।” सेल्समैन झुंझलाया और बोला, “अगर खरीदना है तो खरीदिए, वरना बाहर जाइए। हमारे पास टाइम नहीं है।” इतना कहकर उसने महिला का हाथ पकड़कर उन्हें शोरूम से बाहर निकाल दिया। महिला गिरते-गिरते संभली, सिर ऊंचा रखा और बिना एक शब्द बोले चुपचाप चली गईं।
भीतर तीनों कर्मचारी आपस में हँसने लगे और मजाक उड़ाया,”आजकल भिखारी भी एसी वाले शोरूम में चले आते हैं।” किसी को नहीं पता था कि उसी शाम वह औरत किस रूप में लौटेगी।
शाम 6 बजे के करीब, वही ज्वेलरी शोरूम ग्राहकों से भरा था। दरवाजा फिर खुला, इस बार वही बुजुर्ग महिला अंदर आई, लेकिन अकेली नहीं थी। उनके साथ थे एक सूट-बूट में तेज-तर्रार व्यक्ति, उम्र करीब 52 साल, जिनके पीछे दो बॉडीगार्ड भी थे। महिला अब भी उसी सादगी में थी पर उनकी चाल में नया आत्मविश्वास दिख रहा था।
स्टाफ एकदम सचेत हो गया, “सर, वेलकम सर! प्लीज आइए… मैम आप भी पधारिए।” अब वही लोग झुककर स्वागत कर रहे थे जो कुछ घंटे पहले उनका अपमान कर रहे थे।
महिला ने मुस्कराते हुए कहा, “अचानक बहुत इज्जत मिल रही है। सुबह तो मेरी शक्ल से भी आप परेशान थे…” तीनों कर्मचारियों के चेहरे फक्क पड़ गए। सूट-बूट वाले आदमी ने आगे बढ़कर कहा, “मैं आनंद दुबे, इस शोरूम का रीजनल डायरेक्टर हूँ — और ये मेरी मां श्रीमती गायत्री देवी हैं।”
पूरे शोरूम में सन्नाटा छा गया। आनंद ने कहा, “आज मेरी मां ने कहा कि आम इंसान बनकर आपकी सर्विस देखी जाए।” गायत्री देवी ने जोड़ते हुए कहा, “हम देखना चाहते थे कि कपड़ों से ही इज्जत मिलती है या इंसानियत से भी?”
आनंद ने तुरंत सीसीटीवी फुटेज चेक करवाई और तीनों कर्मचारियों को तत्काल सस्पेंड कर दिया। कंपनी के HR डिपार्टमेंट को विशेष ट्रेनिंग का आदेश मिला।
फिर गायत्री देवी काउंटर पर गईं, एक सिंपल सोने की चैन पकड़ी और बोलीं, “इसे पैक करिए। यह उस फूल बेचने वाली बच्ची के लिए है, जिसके लिए मैं सुबह तोहफा लेने आई थी।” रिसेप्शनिस्ट से बोलीं, “बिटिया, उस बच्ची का चेहरा भले ही धूल से सना था, उसकी आत्मा तुम सबसे साफ थी।”
पूरा शोरूम तालियों से गूंज उठा। आनंद ने घोषणा की, “आज की शोरूम की पूरी बिक्री उस एनजीओ को दान होगी जहाँ मां बच्चों को पढ़ाती हैं। मुझे भी आज सबक मिला – इज्जत खरीदी नहीं, कमाई जाती है।”
रेसेप्शनिस्ट, जो अब तक शर्मिंदगी में चुप थी, आगे बढ़कर गायत्री देवी के पैर छूने लगी। गायत्री देवी ने प्यार से उसे ऊपर उठाया, “बेटा, गलती पहचान की नहीं, नजर की थी। नजर साफ हो तो दुनिया खूबसूरत दिखती है।”
अगले दिन ये घटना सोशल मीडिया पर वायरल हुई—”शोरूम से निकाली गई वृद्ध औरत, निकली मालिक की मां!” हजारों लोगों ने लिखा—इंसान की असली पहचान कपड़े नहीं, सोच से होती है।
अंत में, गायत्री देवी उसी गली में गईं जहाँ फूल बेचने वाली बच्ची थी। चैन उसे दी और मुस्कुराकर बोलीं, “तेरा दिल इस दुनिया का सबसे कीमती गहना है। असली शानो-शौकत सादगी में छुपी होती है, कभी किसी को उसकी हैसियत, कपड़ों या रंग-रूप से मत आंकना।”
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