मुंबई की एक पॉश बिल्डिंग संध्या टावर्स में सुबह के 10:00 बजे थे। रोज़ की तरह वहां हलचल थी—कहीं मेड सफाई कर रही थी, कहीं लोग ऑफिस जाने की जल्दी में लिफ्ट का बटन बार-बार दबा रहे थे। इसी भागती-दौड़ती जिंदगी के बीच एक बुजुर्ग महिला, करीब 92 साल की, हल्की गुलाबी साड़ी में, हाथ में स्टील की मिठाई की डिब्बी लिए, धीमे कदमों से बिल्डिंग में दाखिल हुई। उसकी चाल में थकान थी, लेकिन चेहरे पर शांति थी। साड़ी सलीके से पहनी थी, बालों में हल्का तेल, माथे पर छोटी सी बिंदी थी।
गार्ड ने उसे देखा, फिर दूसरी तरफ देखने लगा। उसके लिए वह कोई आम कामवाली या रिश्तेदार थी—ना कोई पहचान, ना कोई सम्मान। महिला ने धीरे से कहा, “बेटा, 12वीं फ्लोर पर मेरा बेटा रहता है, मैं उसे मिठाई देने आई हूं।” गार्ड ने बिना ध्यान दिए इशारा किया, “लिफ्ट सीधी सामने है, आंटी।”
वह लिफ्ट में चढ़ गई, डिब्बी को कसकर पकड़े हुए जैसे किसी बच्चे की हथेली हो। लिफ्ट ऊपर चढ़ने लगी। अचानक एक झटका लगा, लाइट्स फड़फड़ाईं और फिर बुझ गईं। लिफ्ट रुक गई। बुजुर्ग महिला दीवार से टिक गई, संतुलन बिगड़ गया। उसने इमरजेंसी बटन दबाया, कोई आवाज़ नहीं आई। फिर दो-तीन बार दबाया। नीचे रिसेप्शन पर लिफ्ट की ब्लिंकिंग लाइट देखकर गार्ड बोला, “शायद पावर फ्लक्चुएशन है, आ जाएगा। कौन होगा? कोई डिलीवरी वाला ही होगा।” किसी ने सीसीटीवी फुटेज नहीं देखा।
ऊपर-नीचे लोग आते-जाते रहे। किसी ने ध्यान नहीं दिया कि लिफ्ट के अंदर से कभी-कभी बहुत हल्की सी आवाज आ रही है—शायद कोई “सुनिए” कह रहा था। मगर शहर की मशीनों में इंसानी आवाजें बहुत हल्की हो जाती हैं।
लिफ्ट के अंदर एक घंटा बीत गया। महिला अब जमीन पर बैठ चुकी थी। पानी की बोतल खत्म हो चुकी थी। गर्मी और बंद हवा से सांसें भारी लगने लगी थीं। उसने मिठाई की डिब्बी खोली, एक पीस निकाला और धीरे से अपने थरथराते होठों से लगाया—शायद शुगर गिर रही थी। फिर बैग से एक पुरानी फैमिली फोटो निकाली—जिसमें एक जवान आदमी, एक महिला (शायद वह खुद) और एक छोटा बच्चा था। उसने उस फोटो को देखा और धीमे से मुस्कुराई। खुद से कहा, “बस थोड़ी देर और।”
बिल्डिंग में शाम होने लगी। लोग ऑफिस से लौट रहे थे, बच्चे खेल रहे थे। किसी ने फिर लिफ्ट का बटन दबाया, लाइट नहीं जली। शिकायत हुई, तब जाकर किसी ने सीसीटीवी देखा। धुंधली तस्वीर दिखी, फिर ज़ूम किया—सबके चेहरे पर सन्नाटा छा गया। लिफ्ट के अंदर बैठी एक बूढ़ी महिला, साड़ी बिखरी हुई, चेहरा पीला, हाथ में फोटो, आंखें आधी बंद।
फौरन फायर डिपार्टमेंट और टेक्नीशियन को बुलाया गया। 15 मिनट बाद जब लिफ्ट का दरवाजा खुला, महिला वहीं बैठी थी—जिंदा, मगर बेहद कमजोर। उसके हाथ अब भी फोटो पकड़े हुए थे। कोई बोल नहीं पाया, बस खड़ा रहा। तभी किसी ने पहचान लिया, “ये तो सरला मैम हैं ना? मेरी मां को इन्होंने पढ़ाया था।”
कहानी अब मोड़ पर आ चुकी थी। सरला जी को धीरे-धीरे बाहर लाया गया। कुर्सी मंगवाई गई, पानी और नमक-छनी घोल दिया गया। वह बेहोश नहीं थीं, लेकिन बेहद थकी हुई थीं। शरीर टूट चुका था, पर आत्मा शांत थी। एक महिला सहम गई, “मम्मी, ये वही हैं जिन्होंने मुझे छठी क्लास में मैथ्स पास करवाई थी।” एक बुजुर्ग बोले, “मेरी बेटी की शादी में इनका आशीर्वाद लिया था। ये तो हमारे स्कूल की प्रिंसिपल थीं।”
धीरे-धीरे सबको याद आने लगा—यह कोई अजनबी नहीं थीं, ये थीं सरला मिश्रा, जिन्होंने पूरी कॉलोनी की दो पीढ़ियों को पढ़ाया था। सवाल था, अब वह यहां क्यों थीं? अकेली लिफ्ट में घंटों फंसी रहीं और किसी ने नहीं पहचाना। इतनी बड़ी बिल्डिंग, इतने लोग, और एक भी इंसान नहीं जो उनकी मध्यम आवाज़ को पहचानता।
बिल्डिंग के चेयरमैन और सेक्रेटरी भी आ पहुंचे। शर्मिंदगी उनके चेहरे पर थी। “मैम, आप कब आईं? क्यों नहीं बताया? हम खुद लेने आते।” सरला जी ने शांत स्वर में कहा, “बस मिठाई देने आई थी। पोता पहली नौकरी पर लगा है, उसी की खुशी थी। सोचा खुद हाथों से दूं।” पूरी भीड़ की आंखें नम हो गईं।
एक महिला ने पूछा, “मैम, आप कहां रह रही हैं आजकल?” सरला जी ने कहा, “पुराने घर में अकेली हूं। बेटा-बहू दोनों बाहर हैं, पर ठीक हूं।” उनके चेहरे पर मुस्कान थी—कोई शिकायत नहीं, बस थकान, इंतजार और ढेर सारा सम्मान का सुना हुआ कोना जो आज फिर भर उठा।
चेयरमैन ने माइक उठाया, “आज हमारी बिल्डिंग ने एक मां, एक गुरु, एक सम्मान को शर्मिंदा कर दिया। हम सब माफी मांगते हैं।” लोगों ने तालियां नहीं बजाईं, सिर झुका दिए। आज कोई जश्न नहीं था, सिर्फ पछतावा था।
इसी समय पोता भी आया। आंसुओं के साथ बोला, “दादी, मैं कॉल पर था, लिफ्ट में आप थीं, मुझे नहीं पता था। दादी, प्लीज माफ कर दो।” उसने उनके पैर छुए। सरला जी ने माथा सहलाया, कुछ नहीं कहा।
अब सवाल था—क्या ये सिर्फ एक बुजुर्ग महिला की कहानी थी या आईना जिसमें पूरा समाज खुद को देख रहा था? जहां एक आवाज को अनसुना किया गया क्योंकि वह धीमी थी, जहां किसी को अनदेखा कर दिया गया क्योंकि वह बुजुर्ग थी और उनकी पोशाक ब्रांडेड नहीं थी।
सरला जी की लिफ्ट से निकलती तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। लोग लिखने लगे—”हमने इतिहास को लिफ्ट में बंद कर दिया था।” उस दिन कोई फंसा नहीं था, हम सब खो गए थे।
अगली सुबह संध्या टावर्स की हवा बदल गई थी। सीढ़ियों पर रंगोली बनी थी, मुख्य द्वार पर फूल लगे थे, लिफ्ट के बाहर बोर्ड टंगा था—”आज लिफ्ट सेवा स्थगित है, आइए एक दिन सीढ़ियों से चलकर जीवन के सबक दोहराएं।”
नीचे लॉबी में लोग जुटने लगे। चेयरमैन ने सभी से कहा, “आज हम सब मिलकर अपनी गुरु, अपनी मां और बचपन की यादों को धन्यवाद देंगे।” सरला जी को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। वह फिर वही गुलाबी साड़ी पहनकर आईं, हाथ में वही डिब्बी, लेकिन इस बार उसमें मिठाई नहीं, एक पुराना शंख था।
उन्होंने कहा, “मुझे कभी लगा नहीं था कि मेरा जीवन फिर किसी मंच पर खड़ा होगा।” फिर लोग सामने आने लगे—”मैम, आपने मुझे मेरे पहले इंटरव्यू की तैयारी करवाई थी।” “आपने मेरी बेटी की जर्नल एंट्री ठीक की थी, उसी से उसका करियर बना।” “आपने हमें सिर्फ अक्षर नहीं सिखाए, जिंदगी समझाई।” हर आंख नम थी, हर दिल भारी।
बिल्डिंग कमेटी ने प्रस्ताव पास किया—”सरला मिश्रा कम्युनिटी रूम”। भवन के हॉल का नाम सरला जी के नाम पर रखा जाएगा। वहीं किताबों की लाइब्रेरी बनेगी, छात्र किताबें दान करेंगे, हर महीने बच्चों को कहानी सत्र होंगे।
सरला जी ने मंच से कुछ नहीं कहा, बस शंख बजाया। आवाज गूंज गई—शांत, फिर भी शक्तिशाली, जैसे उनकी आत्मा कह रही हो, “अब सब सुन रहे हैं, यही मेरी जीत है।”
पोता आया, बोला, “मैं नहीं समझ पाया कि मेरी दादी सिर्फ मेरी नहीं थीं, वो समाज की भी मां थीं।” उस रात लिफ्ट के बगल में एक फ्रेम लगाया गया—”अगर कोई धीमी आवाज सुनाई दे, तो रुक जाइए, क्योंकि वह आवाज सिर्फ मदद की नहीं, कभी इतिहास की भी हो सकती है।”
अब बिल्डिंग की पहचान फ्लोर या रेट से नहीं थी, लोग कहते थे, “वहीं जहां सरला मैम रहती है।” कुछ हफ्ते बीत गए, सरला जी हर रविवार को कम्युनिटी रूम में बैठती थीं—बच्चों को कहानियां सुनाने, युवाओं को जीवन के अनुभव समझाने, कभी-कभी बस शांत बैठने। वही साड़ी, वही सादगी, लेकिन अब चारों ओर सम्मान, संवेदना।
एक दिन एक छोटी बच्ची परी किताबें दान करने आई। बोली, “मैं भी टीचर बनना चाहती हूं, आपकी तरह।” सरला जी मुस्कुराईं, “टीचर वह नहीं जो सिर्फ किताबें पढ़ाए, टीचर वह होता है जो इंसान बनाना सिखाए।”
सीसीटीवी फुटेज वायरल हो गया। देखा गया—लोग पास से निकल गए, आवाजें सुनते हुए भी रुकना जरूरी नहीं समझा। दरवाजा खुला, झुर्रियों वाला चेहरा, सूखी पानी की बोतल, थकी मुस्कान। देश भर में बहस छिड़ गई—क्या हमारी संवेदना मर रही है? क्या हम सिर्फ चेहरों को पहचानते हैं, आत्मा को नहीं?
एक चैनल ने इंटरव्यू किया। पूछा, “मैम, उस दिन लिफ्ट में बंद थीं, डर लगा?” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “डर नहीं लगा बेटा, दुख हुआ। मैंने वह दिन जरूर देखा जब एक फटी आवाज के पीछे कोई नहीं था, लेकिन उसी दिन देखा कि समाज बदल भी सकता है—अगर शर्म महसूस करे।”
कुछ दिन बाद बिल्डिंग कमेटी ने सरला जी के नाम पर इमरजेंसी ह्यूमन हेल्प सिस्टम लॉन्च किया। अब कोई भी एलिवेटर की आवाज हर फ्लोर पर अलर्ट भेजती थी—कहीं फिर कोई सरला जी ना छूट जाए।
फिर एक दिन सरला जी की तबीयत बिगड़ी। पोते ने अस्पताल ले जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कहा, “जहां मेरा सम्मान लौटा, वहीं मेरी विदाई हो।” उन्हें बिल्डिंग की लॉबी में लाया गया, जहां कभी बेहोश पड़ी थीं। आज वहीं पूरी कॉलोनी उन्हें घेरे खड़ी थी। बच्चों, महिलाओं, ऑफिस से लौटे पुरुष—हर चेहरा गंभीर।
सरला जी ने धीरे से हाथ उठाया, अंतिम शब्द बोले, “कभी किसी की धीमी आवाज को अनसुना मत करना, शायद वही तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी सीख हो।” उनकी आंखें धीरे-धीरे बंद हो गईं।
अगले दिन पूरा शहर अंतिम दर्शन को आया। पत्रकार, नेता, पुराने छात्र, शिक्षा मंत्री तक। सरला मिश्रा पब्लिक स्कूल के मैदान में, जहां कभी उन्होंने कक्षाएं ली थीं। बच्चों ने मिलकर एक किताब बनाई—”सरला दादी की कहानियां”—जिसमें उनकी कहानियां, जीवन के सबक और वह दिन था, जब समाज ने खुद को आईने में देखा।
उनकी तस्वीर, लिफ्ट से बाहर निकलती हुई, आज भी बिल्डिंग की लॉबी में टंगी है। हर कोई रुक कर देखता है। उसके नीचे लिखा है—”हमने जिसे अनसुना किया, वह इतिहास थी। अब हम सीख गए हैं, सुनना सिर्फ कानों से नहीं होता, दिल से होता है।”
News
जिस बुजुर्ग को मामूली समझकर टिकट फाड़ दी गई..उसी ने एक कॉल में पूरी एयरलाइंस बंद करवा दी
सर्दियों की सुबह थी। दिल्ली एयरपोर्ट पर भीड़ अपने चरम पर थी। हर कोई अपनी-अपनी उड़ान के लिए भाग-दौड़ कर…
ठेलेवाले ने मुफ्त में खिलाया खाना – बाद में पता चला ग्राहक कौन था, देखकर सब हक्का-बक्का
रामनिवास की इंसानियत का ठेला जुलाई की झुलसती दोपहर थी। वाराणसी के चौक नंबर पांच पर हमेशा की तरह दुकानों…
रात में एक रिक्शावाला बूढ़े आदमी को मुफ्त घर छोड़ आया… अगली सुबह जब थाने से फोन आया
इंसानियत का इम्तिहान जिंदगी कभी-कभी ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहाँ इंसानियत और इज्जत का असली इम्तिहान होता है।…
Karishma Kapoor got Angry at Paparazzi after taking her Video without Makeup and Hide her Face!
Karishma Kapoor Remains Low-Profile After Ex-Husband Sanjay Kapoor’s Death Amid Inheritance Dispute Karishma Kapoor, sister of Bollywood star Kareena Kapoor,…
बुजुर्ग की झोंपड़ी जल गई… लेकिन जब उसने जमीन के कागज़ दिखाए, तो MLA तक उसके पास माफ़ी
छोटे से कस्बे के एक कोने में, जहां बड़े-बड़े अपार्टमेंट्स बन रहे थे, सड़कें चौड़ी की जा रही थीं और…
मैनेजर ने बुर्जुग वेटर को गलत टेबल पर खाना रखने पर जब निकाल दिया लेकिन अगले दिन होटल के
मुंबई के एक प्रसिद्ध पांच सितारा होटल की चमचमाती लॉबी रात के वक्त मेहमानों से भरी हुई थी। रोशनी, सजी…
End of content
No more pages to load