पिता, बेटी और स्वाभिमान का घर: एक भावुक कहानी
आगरा की विद्यनगर गली में एक पुराना सा एक मंजिला घर था, जिसके दरवाजे के ऊपर संगमरमर की तख्ती पर लिखा था “आंचल”। यह घर रिटायर्ड पोस्टमास्टर श्री कैलाश कुमार ने अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद में बनवाया था। उनके लिए ये सिर्फ दीवारें और छत नहीं, बल्कि उनकी यादों, मेहनत और स्वाभिमान की जीती-जागती निशानी थी।
कैलाश जी की दुनिया बहुत छोटी थी—बस उनकी इकलौती बेटी “खुशी” ही उनका सबकुछ थी। पत्नी के जाने के बाद उन्होंने खुशी को मां और पिता दोनों बनकर पाला, अपनी हर जरूरत को मारकर उसकी हर इच्छा पूरी की। घर की हर ईंट में उनका पसीना, हर कोने में उनकी उम्मीदें थीं। आंगन में लगा अमरूद का पेड़ खुशी के पांचवें जन्मदिन पर लगाया था, जो अब घना दरख्त बन चुका था।
खुशी अब 25 साल की थी, एमकॉम कर चुकी थी और एक प्राइवेट बैंक में नौकरी करती थी। वो समझदार, संस्कारी और अपने पिता की परछाई थी। अपनी तनख्वाह का हर पैसा पिता के हाथ में रख देती थी और कहती, “पापा, अब आराम कीजिए। अब मेरी बारी है।” लेकिन कैलाश जी को बस एक चिंता थी—खुशी की शादी।
वे चाहते थे कि बेटी की शादी इतनी धूमधाम से हो कि उनकी पत्नी की आत्मा भी खुश हो जाए।
एक दिन उनके पुराने दोस्त ने दिल्ली के प्रतिष्ठित परिवार से रिश्ता सुझाया। लड़का मोहित, सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, परिवार को दहेज की कोई चाह नहीं थी।
रिश्ता पक्का हो गया। शादी तीन महीने बाद तय हुई।
शादी का खर्च कैलाश जी की पहुंच से बहुत दूर था। उन्होंने अपनी सारी बचत, पेंशन और प्रोविडेंट फंड जोड़ लिया, लेकिन फिर भी रकम कम पड़ रही थी।
उन्होंने फैसला किया—अपना घर “आंचल” बेच देंगे।
यह फैसला उनके लिए आत्मा को बेचने जैसा था, लेकिन बेटी की खुशी के आगे सब छोटा था।
उन्होंने चुपचाप प्रॉपर्टी डीलर से सौदा किया, शादी के बाद घर खाली करने की शर्त रखी।
घर बिकने के कागजों पर दस्तखत करते वक्त वे बहुत रोए, हर दीवार को छूकर माफी मांगी।
खुशी को इस सौदे का पता तहसील में प्रॉपर्टी डीलर की बातों से चला।
वो रोती-बिलखती मोहित को बताती है।
मोहित ने अपने वकील दोस्त से मिलकर एक योजना बनाई।
खुशी ने पिता के कमरे से घर के सौदे के कागजों की तस्वीरें खींच लीं।
मोहित ने अपने पिता अवधेश चौहान को भरोसे में लिया।
अवधेश जी ने खरीदार से बात की, उसे बेहतर प्रॉपर्टी देने का वादा किया और सौदा रद्द करवा दिया।
फिर एक गुप्त शुभचिंतक के नाम से घर का नया एग्रीमेंट बना, जिसमें लिखा था कि कैलाश जी और उनका परिवार आजीवन घर में रह सकते हैं।
असल में मोहित ने अपने पैसों से अपने ससुर का ही घर उनके लिए वापस खरीद लिया।
शादी से ठीक एक दिन पहले प्रॉपर्टी डीलर कैलाश जी को बताता है कि पुराने खरीदार ने सौदा रद्द कर दिया, लेकिन अब एक नया खरीदार है जो चाहता है कि आप आजीवन इसी घर में रहें।
कैलाश जी हैरान थे, उन्हें लगा भगवान का चमत्कार है।
उन्होंने नए कागजों पर दस्तखत कर दिए।
अब उन्हें सुकून था कि वे अपनी पत्नी की निशानी में रह सकेंगे।
शादी का दिन आया।
कैलाश जी ने हर रस्म, हर रिवाज पूरे दिल से निभाया।
विदाई की घड़ी आई।
खुशी लाल जोड़े में रोती हुई अपने पिता से लिपट गई।
उसने अपने पर्स से एक लिफाफा निकाला और पिता के हाथ में थमा दिया, “पापा, यह आपके लिए है। कृपया मेरे जाने के बाद खोलिएगा।”
घर खाली हो गया।
कैलाश जी आंगन में अमरूद के पेड़ के नीचे बैठे, रोते हुए लिफाफा खोला।
अंदर शगुन के पैसे नहीं थे, बल्कि घर की नई रजिस्ट्री के कागजात थे—मालिक के नाम पर लिखा था “श्री कैलाश जी कुमार”।
साथ में खुशी का खत था—
_”मेरे प्यारे पापा, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने और मोहित ने आपकी पीठ पीछे यह सब किया।
हम आपके स्वाभिमान को बिकते नहीं देख सकते थे।
यह घर सिर्फ आपका नहीं, मेरी मां की याद है, मेरा बचपन है और आपकी इज्जत है।
एक बेटी अपनी इज्जत की नीलामी कैसे देख सकती है?
मोहित ने यह घर आपके लिए एक तोहफे के रूप में खरीदा है।
यह आपकी बेटी और आपके दामाद की तरफ से आपकी जिंदगी भर की मेहनत और त्याग के लिए एक छोटा सा सलाम है।
आज से आंचल आपका ही रहेगा।
आपकी खुशी।”_
कैलाश जी फूट-फूट कर रो पड़े।
ये आंसू दुख के नहीं, गर्व और सम्मान के थे।
उन्हें लगा वे दुनिया के सबसे अमीर और भाग्यशाली पिता हैं।
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