इंसानियत का रिश्ता – अर्जुन, नंदिनी और आर्यन की कहानी

ऋषिकेश के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल के बाहर सुबह-सुबह भीड़ लगी थी। कोई मरीज व्हीलचेयर पर, कोई एंबुलेंस से, सब अपने-अपने दर्द के साथ। उसी भीड़ के किनारे फटी चादर पर बैठा था अर्जुन। उसके सामने एक पुराना कटोरा रखा था, जिसमें कुछ सिक्के पड़े थे। पास ही उसका बेटा आर्यन लेटा था, जिसकी साँसें तेज-तेज चल रही थीं, चेहरा पीला पड़ चुका था। अर्जुन की आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। हर आते-जाते इंसान से वह हाथ जोड़कर कहता,
“मेरे बच्चे का इलाज करवा दो, भगवान तुम्हारा भला करेगा।”
कुछ लोग दया से देखते, कोई सिक्का डाल देता, तो कोई ताना मारता – “यहाँ भीख क्यों मांग रहे हो, काम क्यों नहीं करते?”

अर्जुन का बेटा मौत से जूझ रहा था, लेकिन उसके पास इलाज के पैसे नहीं थे। तभी एक चमचमाती काली कार अस्पताल के गेट पर आकर रुकी। उसमें से उतरीं डॉक्टर नंदिनी – सफेद कोट, गले में स्टेथोस्कोप, चेहरे पर आत्मविश्वास। उनकी चाल में सख्ती थी, लेकिन जैसे ही उनकी नजर फटी चादर पर लेटे बच्चे और उसके पास बैठे अर्जुन पर पड़ी, वह ठिठक गईं।
अर्जुन को देखते ही उनका चेहरा बदल गया – वही अर्जुन, जिससे कभी सात फेरे लिए थे।
“अर्जुन?” उनके मुँह से नाम अपने आप निकल पड़ा।

अर्जुन ने सिर उठाया, थके हुए चेहरे और आँसू भरी आँखों से देखा – सामने थी उसकी तलाकशुदा पत्नी, नंदिनी। नंदिनी के चेहरे पर सख्ती थी, पर आँखों में तूफान। अगले ही पल उन्होंने खुद को डॉक्टर की भूमिका में संभाला और बच्चे की तरफ झुक गईं।
“यह बच्चा?”
अर्जुन की आवाज भर आई – “मेरा बेटा है, दूसरी शादी से। उसकी माँ अब इस दुनिया में नहीं है। डॉक्टर साहिबा, प्लीज इसे बचा लो। यह मेरा सब कुछ है।”

नंदिनी का दिल काँप उठा। सामने वही आदमी था जिसने कभी उन्हें अपना सब कुछ कहा था, आज वही अपने बेटे के लिए भीख माँग रहा था। गुस्सा, तकरारें, पुरानी यादें – सब मन में उमड़ आईं, लेकिन सबसे ऊपर थी एक मासूम की साँसें।
नंदिनी ने तुरंत नर्स को बुलाया – “इमरजेंसी स्ट्रेचर लाओ!”
बच्चे को स्ट्रेचर पर लेटाकर अंदर ले जाया गया। अर्जुन भी भागा, लेकिन रिसेप्शन पर क्लर्क ने रोक लिया – “पहले एडवांस जमा करो, वरना इलाज शुरू नहीं होगा।”
अर्जुन गिड़गिड़ाया, “भाई साहब, मेरे पास कुछ नहीं है, जो था दवा में चला गया। प्लीज मेरे बेटे को मरने मत दो।”

नंदिनी ने सख्त लहजे में कहा, “यह मेरा केस है। पेमेंट बाद में देखेंगे, पहले बच्चे का इलाज शुरू करो।”
उनकी आवाज में ऐसा विश्वास था कि क्लर्क चुप हो गया।
नंदिनी ने खुद बच्चे की जाँच शुरू की – ऑक्सीजन लेवल खतरनाक रूप से गिरा था, छाती में संक्रमण था।
“नेबुलाइज़र लगाओ, खून की जाँच करो, एक्स-रे करो, आईसीयू में शिफ्ट करो,” उन्होंने आदेश दिए।

अर्जुन दूर खड़ा देख रहा था – राहत भी थी, शर्म भी। राहत इसलिए कि बेटा सुरक्षित हाथों में है, शर्म इसलिए कि जिस औरत को कभी छोड़ दिया, वही आज उसके बेटे की जान बचा रही थी।

भीतर इमरजेंसी वार्ड में नंदिनी ने मास्क पहना, बच्चे के पास खड़ी रहीं। उनकी आँखों में बस यही ख्वाहिश थी – इस मासूम की साँसें नहीं थमनी चाहिए।
करीब एक घंटे तक इलाज चलता रहा। बाहर अर्जुन भगवान से प्रार्थना करता रहा – “क्या मेरा बेटा बच जाएगा?”

एक घंटे बाद नंदिनी बाहर आईं – चेहरे पर थकान, लेकिन हल्की मुस्कान।
“अभी खतरे से बाहर है, लेकिन अगले 24 घंटे बहुत नाजुक हैं।”
अर्जुन ने उनके पैर छूने की कोशिश की, नंदिनी ने रोक दिया –
“यह सब मत करो अर्जुन। मैं यह सब किसी रिश्ते के लिए नहीं, अपने फर्ज और इंसानियत के लिए कर रही हूँ।”
अर्जुन की आवाज भर आई –
“आज तुमने साबित कर दिया कि इंसानियत सबसे बड़ा रिश्ता होती है।”

रात गहरा चुकी थी, अस्पताल में सन्नाटा था। अर्जुन बेंच पर बैठा भगवान से प्रार्थना कर रहा था।
तभी आईसीयू से मशीन की बीप सुनाई दी, नर्स घबराकर बाहर निकली –
“डॉक्टर मैम, बच्चे की हालत बिगड़ रही है।”
नंदिनी दौड़ती हुई आईसीयू में पहुँचीं –
“नेबुलाइज़र ऑन करो, ऑक्सीजन सिलेंडर बदलो, वेंटिलेटर तैयार रखो!”
तीन घंटे तक संघर्ष चलता रहा।
आखिरकार सुबह 4 बजे बच्चे की साँसें सामान्य हो गईं।
नंदिनी ने राहत की साँस ली – “अब खतरा टल गया।”

अर्जुन ने दरवाजा खुलते ही नंदिनी का चेहरा देखा – उनकी मुस्कान देखकर उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
“कैसा है मेरा बेटा?”
“अब खतरे से बाहर है, अगले 24 घंटे निगरानी रखनी होगी।”
अर्जुन ने हाथ जोड़कर कहा –
“धन्यवाद प्रभु, धन्यवाद नंदिनी। तुमने मेरे बेटे को नया जीवन दिया। यह एहसान मैं जिंदगी भर नहीं चुका पाऊँगा।”
नंदिनी बोलीं –
“इसे एहसान मत कहो। यह मेरा फर्ज है – एक डॉक्टर का और एक इंसान का। लेकिन याद रखो, बच्चा सिर्फ दवाओं से नहीं जिएगा, उसे तुम्हारे प्यार और जिम्मेदारी की भी जरूरत है।”

अर्जुन ने सिर झुका लिया – “हाँ नंदिनी, अब मैं समझ गया हूँ। यही मेरी आखिरी दौलत है।”

कुछ दिन बाद आर्यन की तबीयत पूरी तरह ठीक हो गई। छुट्टी के दिन नंदिनी ने अर्जुन को अपने चेंबर में बुलाया। अर्जुन ने रुंधे गले से कहा –
“नंदिनी, मैंने तुम्हें जितना दुख दिया, उतना कोई पति अपनी पत्नी को नहीं देता। तुम्हारे सपनों को बोझ समझा, तुम्हें रोका, टोका और फिर छोड़ दिया। आज तुम्हारी वजह से मेरा बेटा जिंदा है। अगर तुम ना होती, तो मैं उसे खो देता। तुम चाहो तो सजा दो, लेकिन मुझे माफ कर दो।”

नंदिनी की आँखें भीग गईं –
“अर्जुन, सबसे बड़ी गलती वही होती है जब इंसान वक्त रहते रिश्तों की कद्र नहीं करता। हाँ, तुमने मुझे बहुत दर्द दिया, लेकिन अब तुम्हें पछताते देखकर लगता है कि शायद जिंदगी ने तुम्हें सिखा दिया – प्यार और सम्मान ही सबसे बड़ी पूँजी है।”

अर्जुन बोला –
“अगर तुम चाहो तो हम फिर से…”
नंदिनी ने बीच में ही बात रोक दी –
“नहीं अर्जुन, जो रिश्ता एक बार टूट जाता है, उसे जोड़ने की कोशिश और दर्द ही देती है। मैं अब अपनी दुनिया में खुश हूँ, अपने मरीजों और फर्ज के साथ। लेकिन इंसानियत का रिश्ता हमारे बीच हमेशा रहेगा। मैंने तुम्हारे बेटे को बचाया क्योंकि इंसानियत किसी तलाक की मोहर से नहीं टूटती।”

अर्जुन का सिर और झुक गया – आँखों में पछतावा, दिल में सम्मान और कृतज्ञता।
नंदिनी बोलीं –
“अब तुम्हें अपने बेटे के लिए जीना होगा। याद रखना, वह तुम्हारे अतीत का बोझ नहीं, तुम्हारे भविष्य की उम्मीद है। उसे सँभालना ही तुम्हारी सबसे बड़ी परीक्षा और सच्चा प्रायश्चित है।”

अर्जुन ने सिर उठाकर कहा –
“हाँ नंदिनी, अब यही मेरी दुनिया है। मैं वादा करता हूँ, उसे कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
नंदिनी की आँखों में हल्की मुस्कान थी –
“यही सही फैसला है। और याद रखो, इंसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा होता है।”

कुछ देर बाद अर्जुन अपने बेटे को लेकर अस्पताल से बाहर निकला। ठंडी सुबह की हवा में उसे सालों बाद सुकून मिला। बेटे की नन्ही उंगली उसकी हथेली में थी और दिल में एक संकल्प – अब वही उसका सब कुछ है।
खिड़की से यह दृश्य देखती नंदिनी के चेहरे पर संतोष था। अतीत की कसक अब भी थी, लेकिन सुकून भी था कि उन्होंने इंसानियत का सबसे बड़ा फर्ज निभाया।