सरहद के उस पार की मासूमियत – आयशा और भारतीय फौजियों की कहानी
क्या होता है जब नफरत की दीवारें एक मासूम की आंखों के आगे धुंधली पड़ जाती हैं? क्या इंसानियत किसी सीमा, किसी कंटीली तार या किसी देश की मोहताज होती है? ये कहानी है पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के कुंजला गांव की 16 साल की मासूम लड़की आयशा की, जो अपनी भेड़ों के पीछे-पीछे अनजाने में नियंत्रण रेखा पार कर भारत की सरहद में आ जाती है।
आयशा का परिवार गरीब था, मगर प्यार और अपनापन से भरा हुआ। उसके अब्बू रशीद खान मामूली किसान थे, अम्मी नसीमा स्वेटर बुनती थीं, और छोटा भाई आरिफ पूरे घर की रौनक था। आयशा स्कूल नहीं जाती थी, क्योंकि गांव में लड़कियों के लिए कोई स्कूल नहीं था। उसका दिन घर के काम और भेड़ों की देखभाल में बीतता था। उसकी सबसे प्यारी भेड़ थी झुमकी, जो अक्सर झुंड से अलग होकर भाग जाती थी। एक दिन झुमकी को खोजते-खोजते आयशा सरहद के उस पार चली गई, जहां उसके अब्बू ने जाने से हमेशा मना किया था।
धुंध और डर के बीच आयशा रास्ता भटक गई। भूख, प्यास और डर से बेहाल, वह एक पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगी। उधर, भारतीय सेना की सिंघक पोस्ट पर मेजर अर्जुन राठौड़, हवलदार मोहनलाल और सिपाही दीपक तैनात थे। सुबह गश्त के दौरान उन्होंने आयशा को देखा – फटी हुई कपड़ों में ठंड से कांपती एक लड़की। पहले तो वे सतर्क हुए, मगर जैसे ही आयशा ने उनकी वर्दी और तिरंगा देखा, डर से चीख उठी। उसे याद आईं वो कहानियां, जिसमें हिंदुस्तानी फौजियों को डरावना बताया जाता था।
मेजर अर्जुन ने उसकी आंखों में छुपा डर देख लिया। उन्होंने बंदूकें नीचे रख दीं और कश्मीरी भाषा में कहा, “डरो मत बेटी, हम तुम्हें कुछ नहीं करेंगे।” हवलदार मोहनलाल ने उसे कंबल ओढ़ाया, दीपक ने पानी की बोतल दी। आयशा ने कांपते हुए पानी पिया और रोते हुए बोली, “मैं रास्ता भटक गई, मुझे घर जाना है।” जवानों के दिल पिघल गए। वे जानते थे कि उसे वापस भेजना आसान नहीं है, क्योंकि सरहद पर हर कदम पर बंदूकें तनी रहती हैं।
आयशा को पोस्ट पर लाया गया। वहां उसे गरम चाय, रोटी-दाल दी गई। लेकिन उसका डर अभी बाकी था। अर्जुन ने उससे पूछा, “तुम्हारे गांव में कौन-कौन है?” आयशा ने बताया – अब्बू, अम्मी, छोटा भाई आरिफ और उसकी भेड़ें ही उसकी दुनिया हैं। उसकी मासूमियत ने जवानों का दिल छू लिया। अर्जुन ने महसूस किया कि यह बच्ची निर्दोष है।
मुख्यालय से आदेश आया – पाकिस्तानी लड़की को हिरासत में लेकर रिपोर्ट भेजी जाए। अर्जुन ने रिपोर्ट तैयार की, मगर मन में सवाल था – क्या हम इसे सिर्फ एक आंकड़ा बना देंगे? क्या यह मासूम दुश्मनी की राजनीति में कुचल जाएगी? मोहनलाल बोले, “अगर यह मेरी बेटी होती तो क्या करता?” दीपक ने भी कहा, “यह बच्ची निर्दोष है।” अर्जुन ने सोचा, कभी-कभी इंसानियत नियमों से बड़ी होती है।
आयशा जवानों के साथ खुलने लगी। उसने पूछा, “आप लोग यहां दिन-रात क्यों खड़े रहते हो? आपको घर की याद नहीं आती?” दीपक हंसा, “बहुत आती है, लेकिन यह सरहद ही हमारा घर है और तिरंगा हमारा परिवार।” आयशा की सोच बदलने लगी – ये फौजी भी इंसान हैं, बेटे हैं, पिता हैं, भाई हैं।
रात को अर्जुन ने फैसला किया – चाहे जो हो, वह आयशा को सुरक्षित उसके घर पहुंचाएंगे। उन्होंने मोहनलाल और दीपक को बुलाया, “हम आयशा को उसके गांव वापस पहुंचाएंगे, चाहे जान का जोखिम हो।” तीनों ने गुप्त योजना बनाई।
रात को जब पोस्ट पर बाकी जवान सो रहे थे, अर्जुन, मोहनलाल और दीपक आयशा को लेकर निकले। बर्फ, खाइयां, कंटीली तारें – हर जगह खतरा था। आयशा के छोटे कदम बर्फ में धंस रहे थे, कई बार गिर जाती, लेकिन जवान उसे संभालते रहे। आखिरकार वे उस जगह पहुंचे, जहां से कंटीली तार पार करनी थी। अर्जुन ने तारों को थोड़ा फैलाया, आयशा रेंगती हुई पार गई, उसका हाथ कट गया, लेकिन आवाज नहीं निकाली। अर्जुन ने उसका खून पोंछा, “बस थोड़ा और बेटी।”
आखिर वे पाकिस्तान अधिकृत इलाके में पहुंच गए। दूर गांव की रोशनी देख आयशा की आंखों में आंसू आ गए। अर्जुन बोले, “जाओ, तुम्हारा सफर यहीं खत्म होता है।” आयशा ने तीनों के पैर छुए, “आप लोग मेरे लिए फरिश्ते हो। अगर मैं जिंदा हूं तो सिर्फ आपकी वजह से।” जवानों की आंखें भीग गईं।
आयशा भागती हुई घर पहुंची। अम्मी ने उसे गले लगा लिया, अब्बू की आंखों से आंसू बह निकले, छोटा भाई आरिफ उससे लिपट गया। घर में खुशी का सैलाब उमड़ पड़ा। आयशा ने रोते हुए कहा, “अब्बू, हिंदुस्तानी फौजी वैसे नहीं हैं, जैसे हमें बताया जाता है। वे इंसानियत के रखवाले हैं। उन्होंने मुझे बचाया, घर पहुंचाया।”
उधर सिंघक पोस्ट लौटकर अर्जुन, मोहनलाल और दीपक ने बस इतना लिखा – “लड़की सुरक्षित है।” उनके दिलों में सुकून था – जैसे उन्होंने अपने फौजी जीवन की सबसे बड़ी जीत हासिल कर ली हो। यह जीत किसी इलाके या युद्ध पर नहीं, बल्कि इंसानियत पर थी। उन्होंने साबित कर दिया – सरहद दिलों को अलग नहीं कर सकती और इंसानियत सबसे बड़ी ताकत है।
**दोस्तों, यह कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं, बल्कि उस जज्बे की है जो हर भारतीय के दिल में बसा है। अगर आपको लगता है कि हमारे जवानों की कुर्बानी से बड़ी कोई ताकत नहीं, तो जय हिंद लिखिए और चैनल को सब्सक्राइब कीजिए।**
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