मजबूर लड़के और करोड़पति लड़की की इंसानियत भरी कहानी

दिल्ली के चांदनी चौक की भीड़भाड़ वाली शाम थी। 21 साल का विक्रांत अपनी 7 साल की बहन आरुषि को सीने से लगाए मेडिकल स्टोर की तरफ भागता जा रहा था। आरुषि की तबीयत बहुत खराब थी, उसकी सांसें टूट रही थीं। विक्रांत ने मेडिकल स्टोर में जाकर कांपते हाथों से दवा की पर्ची दी। दवा की कीमत ₹7275 थी, लेकिन उसकी जेब में सिर्फ ₹170 थे। उसने काउंटर वाले से विनती की, “मेरी बहन की जान बचा लो, मैं जीवनभर कर्जदार रहूंगा।” लेकिन काउंटर वाला हंस पड़ा, “यह दुकान है, धर्मशाला नहीं।”

विक्रांत फर्श पर बैठ गया, अंदर ही अंदर टूट चुका था। उसी समय पीछे से एक आवाज आई, “कितने पैसे कम हैं?” यह आवाज थी अवनी सिंघानिया की, 25 साल की करोड़पति लड़की, जिसने बिना किसी सवाल के दवा का पूरा बिल कार्ड से भर दिया। विक्रांत की आंखों से आंसू बह निकले। अवनी ने कहा, “किसी की जान बचाने के लिए कोई रिश्ता नहीं चाहिए।”

अस्पताल में डॉक्टर ने कहा, सही समय पर दवा मिल गई, एक घंटा देर होती तो जान को खतरा था। इलाज लंबा चलेगा। विक्रांत परेशान था, पैसे कहां से लाएगा? अवनी ने कहा, “तुम्हें पैसों की चिंता नहीं करनी, इलाज मैं करवाऊंगी।” विक्रांत हैरान था, इतना बड़ा एहसान! अवनी बोली, “यह एहसान नहीं, इंसानियत है।”

इलाज 6 महीने चला, दवाइयां, इंजेक्शन सब महंगे थे। अवनी ने विक्रांत और उसकी बहन को अस्पताल के पास एक सुरक्षित कमरे में जगह दिलाई, सारा इंतजाम किया। विक्रांत ने कहा, “मैं आपका कर्ज कैसे चुकाऊंगा?” अवनी बोली, “तुम्हें कुछ चुकाना नहीं है, बस अपनी बहन को ठीक कर लो।”

धीरे-धीरे आरुषि की तबीयत बेहतर होने लगी। विक्रांत ने पहली बार राहत की सांस ली। अवनी ने पूछा, “पढ़ाई क्यों छोड़ दी थी?” विक्रांत ने बताया, हालात खराब थे, मां चली गई, पिता शराब पीते थे। अवनी ने कॉलेज एडमिशन करवाया। विक्रांत को यकीन नहीं हुआ, लेकिन अवनी ने कहा, “तुम पढ़ो, बस यही चाहती हूं।”

विक्रांत की जिंदगी बदलने लगी। वह कॉलेज जाने लगा, पार्ट टाइम अवनी की कंपनी में इंटर्नशिप करने लगा। मेहनत और लगन से उसने सबका दिल जीत लिया। एक मीटिंग में उसके काम की तारीफ हुई, क्लाइंट ने कहा, “इसे आगे बढ़ाओ।” धीरे-धीरे उसकी मेहनत सबको नजर आने लगी।

विक्रांत ने कंपनी के लिए गरीब बच्चों की मदद के लिए ट्रस्ट शुरू करने का सुझाव दिया। ट्रस्ट का नाम रखा गया “सिंघानिया होप फाउंडेशन”। कंपनी की छवि बदल गई, पत्रिकाओं में खबरें छपने लगीं।

एक दिन अवनी ने अपने पिता से कहा, “पापा, मैं विक्रांत से शादी करना चाहती हूं।” पिता ने पहले मना किया था, लेकिन अब बोले, “अगर वह लड़का आज इस घर की इज्जत बढ़ा रहा है और तुम्हारी जिंदगी सवार रहा है तो मुझे कोई ऐतराज नहीं।”

कुछ दिनों बाद सादा सी शादी हुई। विक्रांत और अवनी ने मिलकर नई जिंदगी शुरू की। विक्रांत ने अपने दर्द, मेहनत और इंसानियत से सबका दिल जीत लिया। अब उसकी जिंदगी में मुस्कुराहटें थीं।

कभी किसी की हालत देखकर उसका मूल्य मत आंको। किस्मत छोटी होती है, इंसान का दिल और मेहनत सबसे बड़ी होती है। जिसे दुनिया ठुकरा देती है, वही किसी की पूरी जिंदगी बन जाता है। छोटा कोई नहीं होता, छोटी सिर्फ सोच होती है।

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