कहानी: हुनर की असली पहचान
जब घर का मालिक ही अपनी दीवारों को समझ न पाए, तो चौखट पर बैठा गरीब ही सच्ची नजर रखता है।
यह कहानी है इज्जत, हुनर और एक ऐसे आदमी की जिसे लोग हमेशा नजरअंदाज करते थे।
मुंबई की बड़ी कंपनी विराट टेक सॉल्यूशंस, 40 मंजिल की बिल्डिंग, सबकुछ मॉडर्न। CEO प्रिया शर्मा, उम्र 35, सख्त और डराने वाली। कंपनी का सबसे कीमती प्रोजेक्ट—AI गाइडेड इंजन—छह हफ्तों से खराब पड़ा था। 1.5 करोड़ खर्च, तीन साल की मेहनत, लेकिन हर बार 14 मिनट 36 सेकंड बाद इंजन बंद हो जाता। हार्मोनिक डिसरप्शन की गलती थी, लेकिन MIT, Harvard, Stanford के इंजीनियर भी फेल हो गए। प्रिया की टेंशन बढ़ती जा रही थी; कंपनी को 500 करोड़ का नुकसान हो सकता था।
इसी कंपनी में पिछले तीन साल से सफाई कर्मचारी रोहन सिंह काम करता था। उसका ऑफिशियल नाम “टेक्निकल कंसल्टेंट” था, लेकिन सब उसे सिर्फ सफाई वाला मानते थे। रोहन के पास छोटे कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री थी, पर हालात ने उसे यहां ला दिया। मां का कैंसर, इलाज महंगा, इसलिए उसने अपनी डिग्री और सपने छोड़ दिए।
ऑफिस में सफाई करते हुए रोहन अक्सर इंजन के ब्लूप्रिंट्स पढ़ता था। उसे दादाजी की सीख याद थी—इंजन को उसकी धड़कन, आवाज, कंपन और बदबू से समझो। किताबों से नहीं, अनुभव से असली ज्ञान मिलता है। दादाजी हमेशा कहते थे, “गरीब को दो गुना ज्यादा साबित करना पड़ता है।”

एक दिन कंपनी में जर्मनी से बड़े इन्वेस्टर आए, 800 करोड़ की फंडिंग थी। डॉक्टर लेखा, मशहूर इंजीनियर भी आईं। इंजन का टेस्ट फिर फेल हो गया। प्रिया ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई—कई कर्मचारियों को निकालने का ऐलान। रोहन पीछे खड़ा था, उसने धीरे से हाथ उठाया—“मैम, गलती सॉफ्टवेयर में नहीं, इंजन के हार्मोनिक फ्रीक्वेंसी सेटिंग में है।”
पूरा हॉल चौंक गया। प्रिया ने उसका मजाक उड़ाया, सबके सामने चैलेंज दिया—“दो घंटे में इंजन ठीक करो, वरना नौकरी से बाहर।” डॉक्टर लेखा ने कहा, टेस्ट ईमानदारी से होगा।
रोहन ने इंजन की बॉडी पर हाथ रखा, आंखें बंद कीं, दादाजी की आवाज सुनी। उसने बताया, जर्मनी के यूनिट्स और अमेरिका के AI सिस्टम में बहुत छोटा फर्क था, जिससे इंजन बंद हो रहा था। उसने एक छोटी सी मेटल डिस्क—हार्मोनिक डैंपनर—निकाली। यही कंपन का फर्क जोड़ सकती थी। सब हैरान थे।
रोहन ने 12 मिनट में डैंपनर लगा दिया। इंजन चालू हुआ—पहली बार बिना रुके, स्मूथ आवाज के साथ चला। 97.3% परफॉर्मेंस, ट्रक भी 37 मिनट तक चला। मिस्टर शिमिट ने 20% इन्वेस्टमेंट बढ़ा दिया, शर्त रखी—रोहन ही यूरोपियन टीम लीड करेगा। डॉक्टर लेखा ने उसे सीनियर इंजीनियर बना दिया, तनख्वाह तीन गुना, कंपनी शेयर्स भी मिले। सभी इंजीनियरों ने उससे माफी मांगी, सीखने को तैयार हुए।
प्रिया शर्मा का घमंड टूट गया। बोर्ड ने उसकी लीडरशिप पर सवाल उठाए, CEO पद से हटा दिया गया। अब उसे टीम वर्क की ट्रेनिंग लेनी पड़ी। रोहन की जिंदगी बदल गई—नया ऑफिस, नई कार, सबसे ज्यादा इज्जत। कंपनी ने नियम बनाया—अब हर कर्मचारी की बात सुनी जाएगी। कंपनी का स्टॉक 15% बढ़ गया।
छह महीने बाद, रोहन जर्मन इंजीनियरों के साथ काम कर रहा था। मां का इलाज पूरा हो चुका था। घर में दादाजी की तस्वीर, डिप्लोमा और नए अवॉर्ड्स थे। एक दिन प्रिया शर्मा आई, बोली—“मुझे माफ कर दो, मैं तुम्हारी तरह लीडर बनना चाहती हूं।” रोहन ने दादाजी की सीख याद रखी—“सबको एक मौका मिलना चाहिए। मशीन की धड़कन ही नहीं, लोगों की बात भी सुनना सीखो।”
हुनर ने घमंड को हरा दिया।
इस कहानी से सीख मिलती है—सच्चा ज्ञान बड़ी डिग्री में नहीं, दिल और दिमाग की समझ में होता है।
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हुनर अपनी जगह बना ही लेता है, चाहे उसे कितना भी छुपाया जाए।
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