माघमा देवी और उसकी बेटियों की कहानी – हिम्मत, न्याय और सच्चाई की जीत

जयपुर के बाजार में रोज की तरह माघमा देवी अपनी छोटी सी टोकरी लेकर मीठे अमरूद बेच रही थी। उसके पास दो बेटियाँ थीं – बड़ी नंदिनी सिंह, जो देश की सरहद पर फौज में अफसर थी, और छोटी सावित्री सिंह, जो उसी शहर की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट यानी डीएम थी। माघमा देवी को अपनी बेटियों पर बहुत गर्व था। जब भी कोई पूछता, “अम्मा, आपकी बेटियाँ क्या करती हैं?” तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता। वे कहतीं, “एक देश की रक्षा करती है, दूसरी जिले की।”

लेकिन माघमा देवी आज भी कभी-कभी बाजार में अमरूद बेचने बैठ जाती थी, यह बात अपनी बेटियों को कभी नहीं बताती थी।
सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी एक दिन इंस्पेक्टर अरुण चौधरी अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर वहाँ आया। उसने बाइक सड़क किनारे रोकी और सीधे माघमा देवी की टोकरी के पास आकर खड़ा हो गया। अरुण ने टोकरी में से एक अमरूद उठाया और बिना कुछ कहे मुंह में डाल लिया। माघमा देवी थोड़ी सकुचाई और बोली, “साहब, अमरूद मीठे हैं, आप चाहे तो तोल दूं।”
अरुण चौधरी ने अकड़ते हुए कहा, “हाँ, दे 1 किलो।”
माघमा देवी ने कांपते हाथों से अमरूद तोलकर पॉलिथीन में दे दिए। अरुण ने पैकेट लिया, फिर से एक अमरूद निकाला और सामने ही काटकर खाने लगा। कुछ देर तक चबाने के बाद उसने मुंह बनाते हुए कहा, “ये क्या बेचा है तूने? एकदम बेस्वाद। अमरूद मीठा तो बिल्कुल भी नहीं है।”
माघमा देवी घबरा कर बोली, “नहीं साहब, बहुत मीठे हैं, आप चाहे तो दूसरा चखकर देख लीजिए।”
लेकिन अरुण चौधरी हंसते हुए बोला, “चुप! तेरे अमरूद का एक दाना भी मीठा नहीं। तूने मुझे बेवकूफ बनाया है। और सुन, मैं एक रुपया भी नहीं दूंगा, समझी?”

माघमा देवी ने हिम्मत करके हाथ जोड़ते हुए कहा, “साहब, मेहनत से लाए हैं, कुछ तो पैसे दे दीजिए।”
यह सुनते ही अरुण चौधरी का पारा चढ़ गया। उसने गुस्से में झुककर पूरी टोकरी उठाई और सड़क की दूसरी तरफ जोर से फेंक दी। टोकरी पलट गई और सारे अमरूद सड़क, गाड़ियों और नाली में बिखर गए।
माघमा देवी हक्कीबक्की रह गईं। उनकी आंखों में आंसू भर आए, होठ कांपने लगे। उनकी मेहनत और इज्जत दोनों ही सड़क पर कुचल गई थी।
आसपास भीड़ जमा हो गई थी, लोग तमाशा देख रहे थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उस वर्दी वाले से कुछ कहे।

पास के ही एक घर की छत पर खड़ा नौजवान लड़का रोहित यह सब अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड कर रहा था। वह माघमा अम्मा को बचपन से जानता था और उनका बहुत सम्मान करता था। उसने वीडियो रिकॉर्ड करना बंद किया और सोचने लगा कि इस वीडियो का क्या किया जाए।
उसे पता था कि माघमा अम्मा की एक बेटी फौज में है। उसने कहीं से उनका नंबर जुगाड़ किया और तुरंत वह वीडियो नंदिनी सिंह के WhatsApp पर भेज दिया।
नीचे एक छोटा सा मैसेज लिखा—”नंदनी दीदी, देखिए आज बाजार में आपकी मां के साथ क्या हुआ।”

हजारों किलोमीटर दूर, बॉर्डर की चौकी पर नंदिनी सिंह अपनी राइफल साफ कर रही थी। तभी उसके फोन पर WhatsApp का मैसेज टोन बजा। उसने वीडियो प्ले किया। जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ा, नंदिनी के चेहरे का रंग बदलता गया। उसकी शांत आंखें गुस्से से लाल हो गईं।
जब उसने इंस्पेक्टर अरुण चौधरी को अपनी मां की टोकरी उठाकर फेंकते देखा, तो उसके हाथ कांपने लगे। उसकी मां, जिसने उसे और उसकी बहन को पालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी थी, आज सड़क पर बेबस रो रही थी और लोग तमाशा देख रहे थे।
उसके अंदर का फौजी जाग उठा। उसका मन किया कि अभी वहाँ जाए और उस इंस्पेक्टर की वर्दी नोच ले। उसने तुरंत वह वीडियो अपनी छोटी बहन डीएम सावित्री सिंह को फॉरवर्ड किया और फोन लगाया।

सावित्री उस वक्त अपने ऑफिस में जरूरी मीटिंग में थी। उसने अपनी बड़ी बहन का फोन देखा, मीटिंग रोक कर फोन उठाया।
नंदिनी की आवाज़ में गुस्सा और दर्द था, “मैंने तुझे एक वीडियो भेजा है, उसे अभी देख!”
सावित्री ने वीडियो देखा, उसकी प्यारी मां सड़क पर बिखरे अमरूद के लिए रो रही थी। एक मामूली इंस्पेक्टर ने उसकी मां की इज्जत को सड़क पर रौंद दिया था।
सावित्री की आंखों में भी आंसू आ गए, लेकिन उसने खुद को संभाला। वह एक डीएम थी, उसे भावनाओं में बहने का हक नहीं था।

सावित्री ने कांपती आवाज में कहा, “दीदी, मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती यह सब।”
नंदिनी बोली, “मैं आ रही हूं, छुट्टी लेकर। उसको नहीं छोड़ूंगी।”
सावित्री ने कहा, “नहीं दीदी, आपकी जरूरत देश की सरहद पर है। यह मेरा इलाका है, यह लड़ाई मैं लूंगी। मां को इंसाफ मैं दिलाऊंगी, कानून के तरीके से।”
नंदिनी कुछ देर चुप रही, बोली, “ठीक है, लेकिन उसे ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि उसकी रूह कांप जाए।”
सावित्री ने कहा, “आप चिंता मत करो दीदी, अब यह मेरा काम है।”

उसने मीटिंग खत्म की और साधारण कपड़े पहनकर अपनी मां के पास गई।
माघमा देवी एक कोने में चुपचाप बैठी थी। सावित्री ने मां को गले लगा लिया, मां की गोद में सिर रखकर रो पड़ी।
“मां, आपने मुझे बताया क्यों नहीं?”
माघमा देवी ने सिसकते हुए कहा, “क्या बताती बेटी? मैं नहीं चाहती थी कि तुम लोगों को कोई परेशानी हो।”
सावित्री ने मां के आंसू पोंछे, उनका हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, “अब आप गरीब और अकेली नहीं हैं मां। आपकी बेटी इस जिले की मालिक है। मैं वादा करती हूं, जिसने भी आपके साथ दुर्व्यवहार किया है, उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।”

उस रात सावित्री ने पूरा प्लान बनाया।
अगली सुबह वह सिविल ड्रेस में कोतवाली थाने पहुंची।
थाने में इंस्पेक्टर अरुण चौधरी और एसएओ संदीप राणा चाय पीते हुए हंसी-मजाक कर रहे थे।
सावित्री डरते-डरते उनकी टेबल के पास गई और बोली, “मुझे एक शिकायत दर्ज करवानी है।”
एसएओ संदीप राणा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, पूछा, “क्या हुआ? किसने परेशान किया?”
“कल बाजार में इंस्पेक्टर साहब ने…”
अरुण चौधरी चौकन्ना हो गया, “किस इंस्पेक्टर की बात कर रही है?”
“आप ही थे। आपने कल बाजार में एक बुजुर्ग महिला के अमरूद की टोकरी सड़क पर फेंकी थी। मैं उनकी बेटी हूं।”
अरुण और संदीप जोर-जोर से हंसने लगे, “तो तू उस बुढ़िया की बेटी है?”
अरुण ने मजाक उड़ाते हुए कहा, “सड़क पर गंदगी फैलाएगी तो लाठी पड़ेगी ना। चल भाग यहां से, कोई एफआईआर नहीं लिखी जाएगी।”
सावित्री ने थोड़ा साहस दिखाते हुए कहा, “लेकिन यह गैरकानूनी है। आपने वर्दी का गलत इस्तेमाल किया है।”
संदीप बोला, “तू हमें कानून सिखाएगी? ज्यादा जुबान चलाई तो तुझे ही अंदर कर दूंगा। सरकारी काम में बाधा डालने के जुर्म में। निकल यहाँ से!”

तभी एक हवलदार भागता हुआ अंदर आया, “सर, गंगा प्रसाद यादव जी थाने में आ रहे हैं।”
गंगा प्रसाद यादव का नाम सुनते ही अरुण और संदीप के चेहरे का रंग बदल गया।
गंगा प्रसाद शहर का बहुत बड़ा नेता था।
सफेद सफारी गाड़ी थाने के अंदर आई।
गंगा प्रसाद यादव उतरा, अंदर आते ही मजाकिया अंदाज में बोला, “क्या हाल है चौधरी, कोई मुर्गा फंसाया कि नहीं?”
अरुण और संदीप हाथ जोड़कर मुस्कुराने लगे।
लेकिन तभी गंगा प्रसाद की नजर कोने में खड़ी सावित्री पर पड़ी।
उसने तुरंत सावित्री को पहचान लिया, हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, “नमस्ते मैडम, आप यहां? मुझे फोन कर लिया होता, मैं हाजिर हो जाता।”

अरुण और संदीप हैरान रह गए।
तभी थाने के बाहर गाड़ियों के रुकने की आवाज आई।
डीएसपी, एसपी, जिले के कई बड़े अफसर उतरे और सावित्री के पीछे लाइन बनाकर खड़े हो गए।
अब थाने में सन्नाटा था।
डीएसपी ने आगे बढ़कर गुस्से में अरुण चौधरी से कहा, “इंस्पेक्टर, तमीज से खड़े हो जाओ। तुम जिले की डीएम मैडम सावित्री सिंह के सामने खड़े हो।”

“डीएम मैडम” शब्द सुनते ही अरुण और संदीप के पैरों तले जमीन खिसक गई।
वे कांपते हुए सावित्री को देखने लगे, जिसे वे कुछ देर पहले अमरूद वाली की बेटी कहकर बेइज्जत कर रहे थे।
सावित्री की आंखों में अब आम लड़की की घबराहट नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट का रौब और गुस्सा था।
उसने ठंडी आवाज में कहा, “इंस्पेक्टर अरुण चौधरी और एसएओ संदीप राणा, यू आर सस्पेंडेड विद इमीडिएट इफेक्ट।”
एसपी साहब ने तुरंत दोनों की बेल्ट और टोपी उतरवा दी।
कल तक जो शेर बने घूम रहे थे, आज सिर झुकाए खड़े थे।

गंगा प्रसाद यादव ने कहा, “मैडम, नादान हैं, गलती हो जाती है, माफ कर दीजिए।”
सावित्री ने घूरकर देखा, “यह नादान नहीं, सरकारी वर्दी में छुपे गुंडे हैं। और अब इन्हें कानून समझाएगा। आप इस मामले से दूर रहें वरना जांच की आंच आप तक भी पहुंच सकती है।”
गंगा प्रसाद चुपचाप सिर झुकाकर वहां से चला गया।

कुछ दिन बाद, माघमा देवी पर नशीले पदार्थों की तस्करी का झूठा आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगी—”डीएम सावित्री सिंह की मां नशीले पदार्थ के आरोप में गिरफ्तार।”
यह गंगा प्रसाद यादव का मास्टर स्ट्रोक था।
अब सावित्री दुविधा में थी—अगर मां को छुड़ाती तो उस पर पद का दुरुपयोग होता, अगर चुप रहती तो मां जेल में सड़ती।

सावित्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर कहा, “मैं इस केस की जांच से खुद को अलग करती हूं ताकि जांच पर कोई असर ना पड़े। मुझे भारत के कानून पर पूरा भरोसा है। दूध का दूध, पानी का पानी होकर रहेगा।”

सावित्री ने रोहित को बुलाया, वही लड़का जिसने वीडियो बनाया था।
रोहित ने बाजार के दुकानदारों से पूछताछ की, सीसीटीवी फुटेज निकाली।
फुटेज में दिखा—एक आदमी माघमा देवी की टोकरी के पास कुछ रख रहा था, जो सस्पेंड इंस्पेक्टर अरुण चौधरी के साथ देखा गया था।
अब सबूत मिल चुका था।

सावित्री और एसपी ने जाल बिछाया।
झूठी खबर फैलाई कि पुलिस के पास सबूत है।
गंगा प्रसाद ने अरुण चौधरी को फोन किया, “वो आदमी पकड़ा नहीं जाना चाहिए।”
पुलिस पहले से ही फोन रिकॉर्डिंग कर रही थी।
अरुण चौधरी और संदीप राणा उस आदमी को ठिकाने लगाने गए, तभी पुलिस ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया।
दोनों ने गंगा प्रसाद यादव के खिलाफ मुंह खोल दिया।

अगली सुबह, डीएम सावित्री सिंह, एसपी और पुलिस फोर्स गंगा प्रसाद के घर पहुँचे।
अरेस्ट वारंट दिखाया, फोन रिकॉर्डिंग सुनाई।
गंगा प्रसाद यादव का साम्राज्य पल में ढह गया।
उसे हथकड़ी पहनाकर ले जाया गया।

माघमा देवी को बाइज्जत बरी कर दिया गया।
मां-बेटी गले लगकर खूब रोईं।
अब माघमा देवी को अमरूद बेचने की जरूरत नहीं थी।
सावित्री उन्हें अपनी पोस्टिंग पर लेकर चली गईं।
जब बड़ी बहन की छुट्टी मिलती, वे भी आ जातीं।
तीनों साथ में हंसी-खुशी रहने लगे।