मुंबई के एलीगेंट सूट्सको स्टोर की कहानी – रतन टाटा का सबक

मुंबई की दोपहर हमेशा व्यस्त रहती थी। मरीन ड्राइव के पास एलीगेंट सूट्सको नामक एक लग्जरी स्टोर था, जहाँ हर चीज़ में परिष्कार और पैसे की चमक थी। वहाँ का मैनेजर आरव कपूर 29 साल का, महत्वाकांक्षी और स्मार्ट युवक था। उसके लिए ग्राहक की अहमियत उनके कपड़ों और पैसे से तय होती थी।

एक दिन उसकी असिस्टेंट मायरा ने बताया कि आज शाम एक बॉलीवुड एक्टर आने वाला है, मीडिया भी आएगी। आरव ने आदेश दिया कि सब कुछ परफेक्ट होना चाहिए और कोई रैंडम ग्राहक इधर-उधर ना भटके।

दोपहर के करीब तीन बजे एक बुजुर्ग व्यक्ति स्टोर में आए। उनके कपड़े साधारण थे, चाल धीमी लेकिन आत्मविश्वास से भरी थी। मायरा आगे बढ़ी और उनका स्वागत किया। बुजुर्ग ने कहा, “बेटी, मुझे एक सूट चाहिए, किसी खास अवसर के लिए।” मायरा उन्हें कई विकल्प दिखाने लगी। वे हर सूट को ध्यान से देखते, कपड़ा छूते, जैसे हर धागे की कहानी समझ रहे हों।

दूर से आरव ने देखा और अपने कर्मचारी से बोला, “यह रिटायर्ड आदमी है, कुछ खरीदेगा नहीं, बस टाइम पास कर रहा है।” लेकिन मायरा को यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने कहा, “हर ग्राहक को बराबर सम्मान मिलना चाहिए।” आरव ने मुस्कुराकर कहा, “यह बातें किताबों में अच्छी लगती हैं, बिजनेस में प्रैक्टिकल होना पड़ता है।”

बुजुर्ग व्यक्ति ने एक महंगा ग्रे-ब्लू सूट चुना और ट्राई करने की इच्छा जताई। मायरा ने उन्हें ट्रायल रूम ले गई। आरव ने बीच में टोका, “सर, यह सूट बहुत महंगा है, आप ट्रायल के लिए निश्चित हैं?” बुजुर्ग मुस्कुराए, “हां बेटा, एक बार पहन लूं तो समझ आ जाएगा।”

जब वे सूट पहनकर बाहर आए, पूरा स्टोर शांत हो गया। वो सूट उन पर जैसे बना ही था। मायरा बोली, “सर, आप बेहद शानदार लग रहे हैं।” बुजुर्ग मुस्कुराए, “असली सुंदरता कपड़ों में नहीं, इंसान के दिल में होती है।”

आरव ने फिर पूछा, “सर, पेमेंट कार्ड या कैश से ही स्वीकार है।” बुजुर्ग ने पूछा, “क्या मैं चेक से दे सकता हूँ?” आरव ने हँसते हुए कहा, “हम चेक नहीं लेते।” मायरा ने कोशिश की, लेकिन आरव ने पॉलिसी का हवाला देकर मना कर दिया। बुजुर्ग व्यक्ति ने सिर हिलाया, “ठीक है बेटा, कोई बात नहीं। मैं किसी और दिन आऊँगा।” उन्होंने सूट उतारा, बड़े ध्यान से मोड़ा और मुस्कुराकर धन्यवाद कहा।

मायरा की आंखें नम थीं। आरव ने बस नकली मुस्कान दी। बुजुर्ग व्यक्ति बाहर निकल गए, जाते-जाते एक बार मुड़कर मुस्कुराए। मायरा को लगा, उनकी मुस्कान कुछ कह रही है – असली ब्रांड क्या है, समय बताएगा।

शाम को सब कुछ चमकदार था, फिल्म एक्टर, मीडिया, लेकिन मायरा की आंखों में वही बुजुर्ग की मुस्कान बार-बार आ रही थी। बाहर बुजुर्ग व्यक्ति एक साधारण टाटा कार की ओर बढ़े। उनके हाथ में एक कार्ड था – उस पर लिखा था “रतन टाटा”। उन्होंने मुस्कुराते हुए कार्ड जेब में रखा और बोले, “कभी-कभी सच्चाई दिखाने के लिए अभिनय करना पड़ता है।”

अगले दिन स्टोर में फोन आया – “रतन एंड टाटा फाउंडेशन से कॉल है।” आरव को पता चला कि कल जो बुजुर्ग आए थे, वो रतन टाटा थे। फोन पर कहा गया, “मिस्टर टाटा ने कहा – व्यवहार, कीमत से ज्यादा मायने रखता है।” पूरा स्टाफ शर्मिंदा था। मायरा की आंखों में आंसू थे। आरव ने सिर झुका लिया – “मैंने उस महान आदमी को ठुकरा दिया, जो करोड़ों का मालिक होकर भी इतना विनम्र है।”

अगली सुबह आरव ने सबको मीटिंग के लिए बुलाया। उसने कहा, “हमने सबसे बड़ी गलती की, किसी के पैसे नहीं, दिल की कीमत आ गई। असली प्रीमियम इंसानियत है। अब हर ग्राहक को सम्मान मिलेगा।” सभी ने वादा किया – अब कोई फर्क नहीं करेंगे।

फिर मायरा की सलाह पर आरव ने रतन टाटा जी को दिल से माफी का पत्र लिखा। दो दिन बाद टाटा समूह से एक छोटा सा कूरियर आया – उसमें एक कार्ड था, जिस पर लिखा था, “गलती सुधारना कभी देर नहीं होती। आपने महसूस किया, यही आपको दूसरों से बेहतर बनाता है।” – रतन एन टाटा

सबकी आंखें नम थीं। मायरा बोली, “कुछ लोग दुनिया बदलते हैं, कुछ हमें इंसान बनना सिखाते हैं।”

शाम को आरव अकेला ट्रायल रूम के सामने खड़ा था। उसने आईने में अपनी परछाई में वही बुजुर्ग देखे, जिन्होंने उसे अनमोल शिक्षा दी थी। उसने आईने की ओर देखकर कहा, “थैंक यू सर, आपने मुझे इंसान बना दिया।”

**सीख:**
अच्छा इंसान होना सबसे बड़ी पहचान है। पैसे से नहीं, व्यवहार से इंसान की असली कीमत तय होती है।

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