कहानी: एक गुमनाम मैकेनिक और देश के रखवाले
क्या देशभक्ति सिर्फ वर्दी पहनने वालों तक सीमित होती है? नहीं! कभी-कभी एक आम इंसान की छोटी सी निस्वार्थ सेवा भी देश के रक्षकों के दिलों को छू जाती है। यह कहानी है रफीक अहमद की, एक गुमनाम मैकेनिक, जिसकी छोटी सी दुकान बर्फीले पहाड़ों के बीच जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर थी।
और यह कहानी उन जांबाज फौजियों की भी है, जिनके लिए ड्यूटी उनकी जान से बढ़कर थी।
एक तूफानी रात सेना का एक जरूरी ट्रक खराब हो गया। रफीक ने अपनी जान की परवाह किए बिना 24 घंटे लगातार मेहनत कर ट्रक को ठीक किया और बदले में एक रुपया भी लेने से इंकार कर दिया। उसे क्या पता था उसकी यह छोटी सी सेवा जवानों के दिल में हमेशा के लिए जगह बना लेगी।
कुछ महीनों बाद जब वही फौजी लौटे तो उन्होंने रफीक को ऐसा तोहफा दिया जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने साबित किया कि भारतीय सेना सिर्फ सरहदों की ही नहीं, अपने लोगों के दिलों की भी रक्षा करती है।
जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग भारत की जीवनरेखा है। ऊंचे-ऊंचे बर्फीले पहाड़, गहरी खाइयाँ, बदलता मौसम—यह सड़क दुनिया की सबसे खूबसूरत और खतरनाक सड़कों में से एक है।
रामबन और बनिहाल के बीच एक वीरान इलाका पड़ता है। वहीं एक मोड़ पर टिन की चादरों से बनी रफीक ऑटो वर्क्स नाम की छोटी सी दुकान थी।
रफीक अहमद, उम्र 40, पिछले 15 सालों से यहाँ दुकान चला रहा था। उसकी दुनिया थी—दुकान, पीछे एक छोटा सा कमरा जिसमें उसकी पत्नी जरीना और 12 साल का बेटा इरफान रहते थे।
इरफान का सपना था—एक दिन भारतीय सेना में भर्ती होना। जब भी सेना के ट्रक गुजरते, उसकी आँखों में चमक आ जाती।
रफीक चाहता था कि उसका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा अफसर बने, लेकिन गरीबी और इलाके की कमी उसे चिंता देती थी।
रफीक की दुकान मुसाफिरों के लिए वरदान थी। कोई ट्रक ड्राइवर, पर्यटक या फौजी—अगर किसी की गाड़ी खराब हो जाती, तो रफीक मदद के लिए हमेशा तैयार रहता।
खासकर सेना के जवानों के लिए उसकी दुकान का दरवाजा कभी बंद नहीं होता था। वह उन्हें देश का रक्षक मानता था।
जब भी कोई फौजी आता, रफीक सबसे पहले उनके लिए चाय बनाता, हालचाल पूछता और काम के पैसे लेने में हिचकिचाता।
एक दिसंबर की बर्फीली रात, शाम के सात बजे, रफीक दुकान बंद करने ही वाला था कि एक जवान दौड़ता हुआ आया—”उस्ताद जी, हमारी गाड़ी खराब हो गई है, दो किलोमीटर आगे मोड़ पर खड़ी है।”
रफीक ने बिना देर किए औजार उठाए और जवान के साथ बर्फ में पैदल चल पड़ा।
वहाँ देखा—सेना का बड़ा ट्रक, आसपास जवान ठंड से कांप रहे थे। उनके लीडर थे सूबेदार बलविंदर सिंह।
सूबेदार ने पूछा—”क्या नाम है तुम्हारा?”
“रफीक,” उसने जवाब दिया।
“देखो, ट्रक में यूनिट के लिए जरूरी सामान है, सुबह श्रीनगर पहुँचना है। क्या ठीक कर सकते हो?”
रफीक ने ट्रक का बोनट खोला, टॉर्च की रोशनी में देखा—क्लच प्रेशर पाइप फटा है, गियर बॉक्स का ऑयल सील लीक है।
काम बड़ा था, सामान दुकान में नहीं था।
“कितना वक्त लगेगा?”
“कम से कम 7-8 घंटे, लेकिन बर्फबारी में कुछ कह नहीं सकता। कोशिश करूंगा कि सुबह से पहले ठीक कर दूं।”
सूबेदार ने जवानों को मदद के लिए कहा। बर्फीली जमीन पर लेटकर रफीक ने काम शुरू किया।
जवान टॉर्च लेकर खड़े थे, जरीना गरम-गरम चाय और रोटियाँ लेकर आई।
जवान बारी-बारी से दुकान में आग तापते और बाहर आकर रफीक की मदद करते।
रफीक बिना रुके काम करता रहा—”साहब, आप लोग देश के लिए 24 घंटे जागते हैं, क्या मैं एक रात नहीं जाग सकता?”
सूबेदार के दिल को छू गई उसकी बात।
रात भर मेहनत के बाद, सुबह 5 बजे ट्रक ठीक हो गया।
रफीक ने चाबी दी—”हो गया साहब, एक बार स्टार्ट करके देखिए।”
ट्रक स्टार्ट हुआ, जवानों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई।
भारत माता की जय के नारे लगे।
सूबेदार ने पैसे देने चाहे, रफीक ने हाथ जोड़ लिए—”मैंने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है, आपकी दुआएं ही मेरी कमाई है।”
जवानों ने रफीक को गले लगाया—”तुम सिर्फ मैकेनिक नहीं, सच्चे हिंदुस्तानी हो। हम तुम्हारा एहसान जिंदगीभर नहीं भूलेंगे।”
जवान मिशन पर आगे बढ़ गए, रफीक उन्हें तब तक देखता रहा जब तक ट्रक आँखों से ओझल नहीं हो गया।
चार महीने बीते।
एक दिन सेना का वही ट्रक दुकान पर रुका।
सूबेदार बलविंदर सिंह और साथी उतरे।
रफीक दौड़कर गले मिला।
सूबेदार बोले—”आज हम चाय का कर्ज उतारने आए हैं।”
उन्होंने इरफान को पास बुलाया—”क्या बनना चाहता है?”
“फौजी!” इरफान ने गर्व से कहा।
सूबेदार ने रफीक से कहा—”उस रात तुम्हारे बेटे की आँखों में सपना देखा था और तुम्हारी आँखों में चिंता। तुमने हमारे लिए बड़ा एहसान किया। आज हम उसका एक छोटा सा हिस्सा चुकाने आए हैं।”
उन्होंने इरफान का एडमिशन फॉर्म दिया—”जम्मू के आर्मी पब्लिक स्कूल में दाखिला। उसकी पढ़ाई, रहना, खाना, सबका खर्च आज से भारतीय सेना उठाएगी। जब वह बड़ा होगा, सेना में भर्ती होने का हर मौका मिलेगा। हम उसे अफसर बनाएंगे, जिस पर तुम और देश दोनों गर्व करेंगे।”
रफीक और जरीना की आँखों में आँसू थे।
इरफान सूबेदार के गले लग गया।
सूबेदार बोले—”उस रात तुमने अपना फर्ज निभाया, आज हम अपना फर्ज निभा रहे हैं। तुम हमारे लिए किसी फौजी से कम नहीं।”
अब इरफान जम्मू के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ने लगा।
सूबेदार और साथी जब भी गुजरते, रफीक की दुकान पर रुकते।
वह अब सिर्फ ग्राहक नहीं, परिवार बन चुके थे।
समय बीता, इरफान ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की, एनडीए में चयन हुआ।
जिस दिन इरफान ने पहली बार सेना की वर्दी पहनी, रफीक और जरीना की खुशी का ठिकाना नहीं था।
सूबेदार बलविंदर सिंह, अब सूबेदार मेजर, समारोह में आए।
उन्होंने लेफ्टिनेंट इरफान अहमद को सलाम किया—”जय हिंद सर।”
इरफान ने अपने अब्बू और सूबेदार मेजर दोनों के पैर छुए।
आज लेफ्टिनेंट इरफान अहमद भारतीय सेना की प्रतिष्ठित रेजीमेंट में देश की सेवा कर रहा है।
रफीक अहमद आज भी उसी वीरान सड़क पर अपनी छोटी सी दुकान में देश के जवानों की गाड़ियाँ ठीक करता है।
अब उसकी आँखों में चिंता नहीं, संतोष और गर्व है।
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