कहानी: इंसानियत की असली पहचान
शहर की सबसे बड़ी और आलीशान बैंक शाखा सुबह के समय भीड़ से भरी थी। कांच के दरवाजे, चमकदार मार्बल की फर्श और दीवारों पर बड़े-बड़े डिजिटल बोर्ड, सब कुछ बैंक की शानो-शौकत दिखा रहा था। लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे—कोई पैसे निकालने आया था, कोई लोन के बारे में पूछ रहा था।
इसी भीड़ में धीरे-धीरे एक बुजुर्ग आदमी दाखिल हुआ। उम्र करीब 75 साल, सफेद बिखरे बाल, झुकी कमर, कांपते कदम। उसने पुरानी फटी हुई धोती-कुर्ता पहन रखा था, पैरों में टूटी-फूटी चप्पलें और कंधे पर एक छोटा सा झोला। उसकी चाल धीमी थी, मगर चेहरे पर शांति थी। जैसे जिंदगी की कठिनाइयों ने उसकी आत्मा को झुकाया नहीं था।
बैंक में मौजूद कुछ लोगों ने उसकी ओर तिरस्कार भरी नजरों से देखा। किसी ने कहा, “यह भिखारी इधर क्या करने आया?” दूसरा बोला, “शायद छाया में बैठने आया होगा।” कुछ ग्राहक हंसी दबाकर मोबाइल कैमरे निकालने लगे।
बुजुर्ग धीरे-धीरे काउंटर नंबर पांच की ओर बढ़ा। वहां एक मैनेजर बैठा था—चमचमाते सूट में, सिर पीछे झुका हुआ, खुद को किसी बड़ी हस्ती से कम नहीं समझता था। बुजुर्ग ने कांपते हाथों से अपनी पुरानी पासबुक काउंटर पर रखी और विनम्रता से बोला, “बेटा, मुझे थोड़े पैसे जमा कराने हैं, जरा मदद कर दो।”
मैनेजर ने उसकी तरफ देखा, आंखों में घमंड और चेहरे पर तिरस्कार साफ था। उसने अपने सहकर्मी से मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, ये लोग भी यहां आ जाते हैं। लगता है रास्ता भूल गए। यह बैंक भिखारियों के लिए नहीं है।” पास खड़े कर्मचारियों ने हल्की हंसी में उसका साथ दिया। ग्राहक भी कानाफूसी करने लगे।
बुजुर्ग आदमी शांत खड़ा रहा। उसके चेहरे पर अपमान का दर्द साफ झलक रहा था, मगर उसने अपनी जुबान नहीं खोली। उसकी आंखें गीली जरूर हुईं, लेकिन उसने सिर झुकाकर संयम बनाए रखा। मैनेजर ऊंची आवाज में बोला, “यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है। बाहर जाओ। गार्ड इन्हें दरवाजे तक छोड़ आओ।”
गार्ड ने बुजुर्ग को धक्का देकर बाहर की ओर इशारा किया। भीड़ में कुछ लोग हंस रहे थे, किसी ने वीडियो बनाना शुरू कर दिया। पूरा बैंक उस पल एक तमाशा बन चुका था।
बुजुर्ग ने धीरे-धीरे अपनी पासबुक उठाई, झोले में रखी और सिर झुकाकर बाहर चल पड़ा। उसकी चाल और धीमी हो गई थी, लेकिन चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था—सिर्फ एक अजीब सी गरिमा थी जो अपमान से भी नहीं टूटी।
उस पल पूरे बैंक में लोग सोच रहे थे कि शायद यह कोई गरीब बेसहारा आदमी है जो गलत जगह आ गया। मगर किसी को अंदाजा नहीं था कि यही बुजुर्ग अगले दिन बैंक का चेहरा बदल देगा।
अगली सुबह बैंक में फिर वही चहल-पहल थी। मैनेजर अपनी कुर्सी पर आराम से बैठा था, चेहरे पर वही घमंड और आत्मविश्वास। कर्मचारियों के बीच अब भी कल का किस्सा चर्चा का विषय था। एक ने कहा, “कल कैसे भिखारी सा आदमी पैसे जमा कराने आया था!” दूसरे ने हंसते हुए कहा, “मैनेजर ने तो मजा चखा दिया।”
पास खड़े गार्ड ने भी जोड़ा, “सही किया, वरना हर कोई अंदर आ जाता।”
कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि वही दृश्य दोबारा दोहराया जाएगा। दरवाजे से धीरे-धीरे वही बुजुर्ग फिर अंदर आया। आज भी वही साधारण फटे पुराने कपड़े, वही झोला, वही चप्पलें। ग्राहक उसे देखकर फिर कानाफूसी करने लगे, “अरे यह फिर आ गया। लगता है कल की बेइज्जती से भी इसे सीख नहीं मिली।”
कर्मचारियों ने एक दूसरे की ओर मुस्कुराते हुए देखा।
मैनेजर ने भौंहे चढ़ाकर कहा, “फिर से वही ड्रामा होगा क्या?”
बुजुर्ग आदमी बिना कुछ बोले धीरे-धीरे काउंटर की ओर बढ़ा। भीड़ एक बार फिर उसकी ओर देख रही थी। कुछ लोग हंस रहे थे, कुछ मोबाइल कैमरे ऑन कर रहे थे।
इस बार भी वह सीधे उसी काउंटर पर पहुंचा। उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन चेहरे पर पहले से कहीं ज्यादा शांति थी। उसने धीरे से झोले से एक कागज निकाला और काउंटर पर रख दिया।
मैनेजर ने खींचते हुए कागज उठाया, “अब क्या है? कल समझ नहीं आया था क्या?”
लेकिन जैसे ही उसने कागज को पलटा, उसकी आंखें फैल गईं। यह कोई साधारण कागज नहीं था—यह एक चेक था। उस पर लिखी राशि देखकर उसका दिल धक-धक करने लगा—₹5 करोड़।
मैनेजर के हाथ कांपने लगे, कर्मचारी जो अब तक हंस रहे थे, उनके चेहरे पर भी खामोशी छा गई।
भीड़ में खड़े ग्राहकों की सांसे थम गईं। पूरा बैंक हॉल अचानक सन्नाटे में बदल गया।
जो लोग बुजुर्ग को भिखारी कहकर हंसी उड़ा रहे थे, अब उनकी आंखें चौड़ी हो चुकी थीं।
मैनेजर ने हकलाते हुए पूछा, “सर, यह चेक आपका है?”
बुजुर्ग ने बहुत शांत स्वर में कहा, “हाँ बेटा, यह मेरा ही है। कल तो सिर्फ पासबुक लाई थी, आज चेक लाया हूँ।”
उसके स्वर में कोई घमंड नहीं था, बस एक गहराई थी। उसकी आंखों में वह ठहराव था जो सिर्फ बहुत कुछ देख चुके इंसान की आंखों में होता है।
भीड़ पूरी तरह चुप थी, लोग एक दूसरे को देख रहे थे जैसे यकीन न कर पा रहे हों।
कल तक जिसे सब भिखारी कह रहे थे, आज वही करोड़पति निकला।
सस्पेंस और बढ़ गया था—अब सवाल था, यह बुजुर्ग आखिर है कौन?
मैनेजर ने साहस जुटाकर धीरे-धीरे पूछा, “साहब, अगर बुरा न मानें तो आप कौन हैं?”
बुजुर्ग ने धीरे-धीरे झोले से एक पुराना कार्ड निकाला।
कार्ड पर साफ लिखा था:
**अरविंद नारायण शर्मा, रिटायर्ड बिजनेसमैन और निवेशक।**
भीड़ में से किसी ने मोबाइल पर तुरंत नाम सर्च किया।
पल भर में सबके सामने सच आ गया।
अरविंद शर्मा वही शख्स थे जिन्होंने दशकों तक कारोबार किया, कई कंपनियों में निवेश किया और हजारों लोगों को रोजगार दिया।
पूरा बैंक स्तब्ध था।
कल जिसे सबने भिखारी समझा था, वही आज एक सम्मानित और प्रतिष्ठित निवेशक निकला।
सस्पेंस अब भी बना था, क्योंकि असली झटका अभी बाकी था।
बुजुर्ग ने गहरी सांस ली और धीमी आवाज में कहा,
“मैं यहाँ पैसे जमा कराने नहीं, बल्कि तुम सबकी इंसानियत को परखने आया था।”
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