रहस्य का बुजुर्ग: एक सदी पुरानी पहचान की वापसी
शहर की गलियों में गहरी खामोशी थी, मानो हर ईंट कोई दबी हुई कहानी कहने को तैयार बैठी हो। सुबह के 4 बजे, जब न दूध वाले निकलते हैं, न अखबार फेंका जाता है, एक बुजुर्ग झुकी पीठ, सफेद दाढ़ी और कांपते हाथों में थैला लिए एक पतली गली के मोड़ पर दिखाई पड़े। उनके कपड़े मैले थे, चाल में कोई घबराहट नहीं थी। एक कुत्ता भौंका तो उन्होंने बस एक नजर डाली। वे जैसे खुद को या किसी को ढूंढ रहे थे।
इतने में पास के मकान की खिड़की से एक महिला चिल्लाई – “अब कौन है सुबह-सुबह?” कुछ ही देर में गली में सरसराहट होने लगी, चार-पांच लोग बाहर आ गए। किसी ने वीडियो बनाना शुरू किया, किसी ने पुलिस को फोन कर दिया – “वही आदमी आ गया जो कल बच्चों को घूर रहा था!”
कुछ ही मिनट में पुलिस आ गयी। इंस्पेक्टर राठौर ने सधे कदमों में उतरते हुए पूछा, “कहाँ है वो?” लोगों ने दिखाया – “यही साहब, नाली के पास बैठा है।” बुजुर्ग ने पुलिस को देखा, लेकिन उनके चेहरे पर न हैरानी थी, न विरोध। नाम पूछा गया, जवाब नहीं मिला। “सुबह-सुबह गली में क्या कर रहे थे?” राठौर ने पूछा – बस एक गहरी, थकी हुई नजर मिली। आदेश पर पुलिसवालों ने उन्हें जीप में बैठा लिया।
गली के लोग वीडियो बना रहे थे, कमेंट कर रहे थे – भिखारी है या चोर? जब पुलिस जीप में बैठा के बुजुर्ग को ले गई, तो कोई वीडियो में कह रहा था, “भाई, रिकॉर्ड कर, वायरल होगा।”
थाने में बुजुर्ग को बेंच पर बैठा दिया गया। वे चुपचाप सलाखों के बाहर की हलचल को देखते रहे। पुलिस ने नाम, आईडी पूछी – कोई जवाब नहीं। जेब से सिर्फ एक पुराना ताबीज और एक फटा हुआ परिवार का फोटो मिला। इंस्पेक्टर ने लगातार पूछताछ की, धमकी दी – बुजुर्ग चुप रहे। सिर्फ एक बार कहा – “रास्ता भूल गया था… जहाँ से कभी लौटा नहीं।”
रात में बुजुर्ग को लॉकअप में डाल दिया गया। एक कोने में बैठे, पुरानी तस्वीर देखी – एक औरत और दो बच्चे। एक बार आंखें बंद की, अतीत की लहरों में खो गए। वही रात, सोशल मीडिया पर उनकी गिरफ्तारी वायरल हो गयी। मीडिया ने सवाल उठाए – “भिखारी है या साजिशकर्ता?”, “मोस्ट मिस्टिरियस ओल्ड मैन” तक कह डाला।
अगली शाम एक युवा वकील अर्जुन जोशी थाने पहुँचे – “मैं इनका केस लूंगा।” राठौर ने चौंक कर पूछा, “किसने भेजा?” अर्जुन बोले, “कोई नहीं, इंसानियत के लिए खुद आया हूँ।” आकर बुजुर्ग से बोले, “मैं वकील हूँ, आपकी मदद करना चाहता हूँ।” बुजुर्ग की निगाह में पहली बार हलचल हुई – “नाम नहीं पूछोगे?” अर्जुन बोले, “आप जब चाहें तब बता देना।”
कोर्ट में पूरा शहर इकठ्ठा था। जज, पुलिस, मीडिया सबकी नजर उस रहस्यमयी बुढ़े पर। “नाम बताइए?” बुजुर्ग धीरे से बोले, “जिस जगह पहुँचा हूँ, वहाँ से लौटना आसान नहीं…” सुनवाई आगे बढ़ी। पुलिस के पास कोई ठोस सबूत नहीं था। जज ने एक हफ्ते में पूरी पहचान जानने का आदेश दिया।
इसी दौरान अर्जुन ने तस्वीर और ताबीज के आधार पर ग्रामीण क्षेत्र से खोजबीन शुरू की। एक गांव के बुजुर्ग ने फोटो देखते ही कहा – “इंद्रवीर… वह तो हीरो था, पर सबको लगा था मर गया।“ गांव के मंदिर के पीछे दबा एक पुराना ट्रंक मिला – जिसमें सेना का बैज, पत्र और परिवार की धुंधली फोटो थी।
अगली सुनवाई में अर्जुन ने सबूत और एक गवाह (सेवानिवृत्त फौजी) को पेश किया जिसने कहा, “यह इंद्रवीर सिंह है, मेरा ट्रेनिंग साथी।” अर्जुन ने गांव में एक महिला की रिकॉर्डिंग भी कोर्ट में सुनाई, “इंद्रवीर लौट आया है!”
कोर्ट ने पुष्टि की – यह वही व्यक्ति है, नाम – इंद्रवीर सिंह, पूर्व सैनिक। जज की आंखें नम थीं। कोर्टरूम में आंसू थे, तालियाँ नहीं। सरकार ने माफी मांगी, पुलिस ने सार्वजनिक बयान दिया। मीडिया ने नया हैशटैग चलाया – #इंसाफ_मिला_इन्द्रवीर_को
शहर ने समझा – शक की बुनियाद पर किसी का सच मत छीनो। हर कहानी के पीछे कोई न कोई अधूरी सदी छिपी हो सकती है।
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