रेस्टोरेंट के मालिक की सच्चाई – इंसानियत की मिसाल
शहर के मशहूर भोजन रेस्टोरेंट के मैनेजर रोहन शर्मा एक दिन गुस्से में चिल्लाते हैं, “ओए, कौन है तू? अंदर कैसे आ गया?”
जिससे वह डांट रहा था, वह कोई आम आदमी नहीं, बल्कि उसी रेस्टोरेंट का मालिक था – राजेंद्र यादव, जो गरीब फकीर का भेष बदलकर आए थे।
राजा साहब, यानी राजेंद्र यादव, कभी शहर की गलियों में भूख से बिलखते थे, कचरे से रोटी चुनते थे। अपनी मेहनत और किस्मत से अरबपति बने और लोगों ने उन्हें राजा साहब कहना शुरू किया। उनका सपना था कि हर गरीब को सस्ता, अच्छा खाना और इज्जत मिले। इसलिए उन्होंने ‘भोजन’ रेस्टोरेंट की शुरुआत की।
हाल ही में उनकी रेस्टोरेंट की नई ब्रांच से शिकायतें आनी शुरू हो गईं – गरीबों की बेइज्जती, ओवरचार्जिंग, मैनेजर रोहन शर्मा का बदतमीज रवैया। राजा साहब को यकीन नहीं हुआ कि उनके नेक मकसद को कोई इस तरह नुकसान पहुंचा सकता है।
उन्होंने खुद सच्चाई जानने का फैसला किया। अपने महंगे कपड़े उतार दिए, फटे पुराने कपड़े पहने, चेहरे पर मेकअप से दाग-धब्बे लगाए, बाल बिखेरे, कीमती पर्स और फोन घर पर छोड़ दिए। अब वह गरीब रहीम चाचा बन चुके थे।
वही पुरानी बस में बैठे जिसमें कभी सफर किया करते थे। लोग उन्हें देखकर नजरें फेर रहे थे, यह वही नजरें थीं जो उनके अतीत को जिंदा कर रही थीं।
दोपहर को भोजन रेस्टोरेंट पहुंचे। अंदर का माहौल बाकी ब्रांचों से अलग था – चमक-दमक तो थी लेकिन अपनापन नहीं।
काउंटर पर पहुंचे, धीरे से पूछा, “बेटा, क्या यहां गरीबों को सही दाम पर खाना मिलता है?”
उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि रोहन शर्मा ने चिल्लाया, “ओए, कौन है तू? अंदर कैसे आ गया?”
रहीम चाचा ने कांपती आवाज में कहा, “मैं खाना खाने आया हूं।”
रोहन ने हंसते हुए कहा, “यहां कोई खैराती लंगर नहीं चलता। तुम जैसे भिखारियों के लिए कोई जगह नहीं है।”
रहीम चाचा की आंखों में आंसू आ गए।
पीछे खड़े वेटर फरहान ने नरमी से कहा, “चाचा, आइए इधर बैठिए।”
उसने एक गिलास पानी दिया, फिर स्टाफ के खाने में से थोड़ा सा खाना भी मुफ्त में दिया।
रहीम चाचा ने फरहान की हमदर्दी देखी – वही इंसानियत, जिसके लिए राजा साहब ने यह रेस्टोरेंट बनाए थे।
खाना खाकर रहीम चाचा ने फरहान से राजा साहब का नंबर मांगा। फरहान ने हेड ऑफिस का ईमेल एड्रेस दिया – “अगर आपको शिकायत करनी है तो यहां लिख सकते हैं।”
रहीम चाचा ने फरहान का शुक्रिया अदा किया और बाहर निकल आए। दिल में दुख था, लेकिन उम्मीद भी थी – फरहान जैसे ईमानदार लोगों की।
अब राजा साहब अपने असली रूप में दफ्तर में थे। सीसीटीवी फुटेज देख रहे थे – रोहन शर्मा की बदतमीजी, ओवरचार्जिंग, गरीबों की बेइज्जती और फरहान की इंसानियत।
राजा साहब ने रोहन और उसके साथी कर्मचारियों को बुलाया।
“रोहन, क्या हाल है? सुना है भोजन रेस्टोरेंट को अच्छे से चला रहे हो?”
रोहन चापलूसी करने लगा।
राजा साहब ने फुटेज दिखाया – “यह सब क्या है?”
रोहन का रंग पीला पड़ गया।
राजा साहब ने दहाड़ते हुए कहा, “यह रहीम चाचा कोई और नहीं, मैं था!”
रोहन के पैरों तले जमीन निकल गई।
राजा साहब ने सख्ती से कहा, “मैंने यह भोजन गरीबों के लिए खोला था। तुमने मेरे ख्वाब को अपने लालच और घमंड से कुचल डाला।”
सचिन, उनके साथी, को आदेश दिया – “रोहन और सभी दोषी कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त करो और कानूनी कार्रवाई करो।”
फिर फरहान को बुलाया।
“फरहान, क्या तुम मुझे पहचानते हो?”
फरहान ने हैरान होकर देखा – “आप वही चाचा थे!”
राजा साहब मुस्कुराए, “तुमने मुझे खाना खिलाया, पानी पिलाया, इज्जत दी।”
फरहान की आंखों में आंसू आ गए।
राजा साहब ने कहा, “आज से तुम भोजन रेस्टोरेंट के नए मैनेजर हो।”
फरहान सन्न रह गया, “मैं तो सिर्फ वेटर हूं!”
राजा साहब बोले, “तुम सिर्फ वेटर नहीं, एक ईमानदार इंसान हो। तुम्हारे अंदर वही नेकी और हमदर्दी है, जिसकी भोजन रेस्टोरेंट को जरूरत है।”
फरहान ने सर झुकाकर शुक्रिया अदा किया। राजा साहब को सुकून मिला – भोजन को फिर अपना रास्ता मिल गया।
यह कहानी मिसाल बनी – कि पैसा सब कुछ नहीं, इंसानियत, ईमानदारी और हमदर्दी ही सच्ची दौलत है।
और कभी-कभी सच जानने के लिए खुद को उसी जगह रखना पड़ता है, जहां सच छिपा हो।
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