शकुंतला देवी की कहानी – असली ताकत इरादों में
नमस्कार मेरे प्यारे दर्शकों, स्वागत है आप सभी का।
आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसने सबको यह सिखा दिया कि असली ताकत कपड़ों में नहीं, बल्कि इरादों में होती है।
शहर के सबसे बड़े बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सुबह 11 बजे एक साधारण साड़ी पहने, हाथ में पुराना थैला और छड़ी लिए, करीब 70 वर्ष की वृद्ध महिला बैंक में दाखिल होती हैं।
उनका नाम था – शकुंतला देवी।
जैसे ही वह बैंक में प्रवेश करती हैं, सभी ग्राहक और कर्मचारी उन्हें अजीब नजरों से देखने लगते हैं।
कोई उनकी गरीबी का मजाक उड़ाता है, कोई उन्हें अनदेखा करता है।
शकुंतला देवी धीरे-धीरे काउंटर की ओर बढ़ती हैं, जहाँ विनय नाम का कर्मचारी बैठा था।
वह बहुत विनम्रता से कहती हैं, “बेटा, मेरे अकाउंट में कुछ समस्या हो गई है। देख लो ना।”
विनय उनके कपड़ों से उन्हें आंकता है और कहता है, “दादी जी, आप गलत बैंक में आ गई हैं। मुझे नहीं लगता आपका अकाउंट यहाँ है।”
शकुंतला देवी फिर भी कहती हैं, “बेटा, एक बार देख तो लो। हो सकता है मेरा अकाउंट इसी बैंक में हो।”
विनय थैला लेता है, लेकिन उन्हें इंतजार करने को कहता है।
कुछ देर बाद शकुंतला देवी कहती हैं, “बेटा, अगर तुम व्यस्त हो तो मैनेजर को फोन कर दो, मुझे उनसे कुछ बात करनी है।”
विनय अनमने मन से मैनेजर रमेश को फोन करता है।
मैनेजर रमेश दूर से ही शकुंतला देवी को देख रहा था।
विनय पूछता है, “सर, क्या ये हमारी ग्राहक हैं?”
रमेश कहता है, “मेरे पास इनके लिए समय नहीं है, इन्हें बैठा दो, थोड़ी देर में चली जाएंगी।”
शकुंतला देवी वेटिंग एरिया में कोने की कुर्सी पर बैठ जाती हैं।
सभी उन्हें देख रहे थे, तरह-तरह की बातें कर रहे थे – कोई भिखारी कहता, कोई कहता यहाँ उनका अकाउंट नहीं हो सकता।
अविनाश नाम का एक कर्मचारी बाहर से आता है और देखता है कि सब शकुंतला देवी के बारे में बात कर रहे हैं।
उसे यह सब बहुत बुरा लगता है।
वह सीधे शकुंतला देवी के पास जाता है और सम्मान से पूछता है, “दादी जी, आप यहाँ क्यों आई हैं?”
शकुंतला देवी कहती हैं, “मुझे मैनेजर से मिलना है, कुछ जरूरी काम है।”
अविनाश कहता है, “ठीक है दादी जी, आप बैठिए, मैं मैनेजर से बात करता हूँ।”
अविनाश मैनेजर के पास जाता है, लेकिन मैनेजर रमेश कहता है, “मैं जानता हूँ, मैंने ही उन्हें वहाँ बैठाया है। तुम अपना काम करो।”
धीरे-धीरे एक घंटा बीत जाता है।
शकुंतला देवी धैर्य से बैठी रहती हैं, लेकिन फिर उठकर मैनेजर के केबिन की ओर बढ़ती हैं।
रमेश बाहर आकर गर्व से पूछता है, “हाँ दादी जी, बोलिए क्या समस्या है?”
शकुंतला देवी थैला आगे बढ़ाते हुए कहती हैं, “बेटा, इसमें मेरे अकाउंट की डिटेल्स हैं, देखो ना, लेनदेन नहीं हो रहा।”
रमेश कहता है, “जब अकाउंट में पैसे नहीं होते तो ऐसा ही होता है। आपके अकाउंट में पैसे नहीं हैं, इसलिए ट्रांजैक्शन बंद है।”
शकुंतला देवी विनम्रता से कहती हैं, “बेटा, पहले एक बार चेक तो कर लो।”
रमेश हँसते हुए कहता है, “दादी जी, यह सालों का अनुभव है। चेहरा देखकर समझ जाता हूँ किसके अकाउंट में क्या है। आपके अकाउंट में कुछ नहीं है, आप यहाँ से चली जाइए।”
शकुंतला देवी कहती हैं, “ठीक है बेटा, मैं जा रही हूँ। लेकिन थैले में जो जानकारी है, उसे एक बार अच्छे से देख लो।”
वह गेट तक जाती हैं और मुड़कर कहती हैं, “बेटा, तुम्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।”
शकुंतला देवी बैंक से चली जाती हैं।
अविनाश थैला उठाकर कंप्यूटर पर जानकारी खोजता है।
वह हैरान रह जाता है – शकुंतला देवी इस बैंक की 60% शेयर की मालिक हैं!
वह रिपोर्ट प्रिंट करता है और मैनेजर रमेश के पास जाता है।
रमेश एक धनी ग्राहक से बात कर रहा था।
अविनाश रिपोर्ट टेबल पर रखता है, लेकिन रमेश उसे देखता ही नहीं और कहता है, “मुझे ऐसे ग्राहकों में दिलचस्पी नहीं है।”
अविनाश वापस चला जाता है।
शाम हो जाती है।
अगले दिन शकुंतला देवी फिर बैंक आती हैं, इस बार एक सूट-बूट पहने व्यक्ति के साथ।
बैंक में हलचल मच जाती है।
शकुंतला देवी मैनेजर रमेश को बुलाती हैं और कहती हैं, “मैनेजर साहब, अब आप अपनी सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाइए। आपको मैनेजर के पद से हटाया जा रहा है और आपकी जगह अविनाश को मैनेजर बनाया जा रहा है।”
रमेश हैरान रह जाता है, “कौन है जो मुझे हटा सकता है?”
शकुंतला देवी कहती हैं, “मैं इस बैंक की मालिक हूँ। मैं चाहूँ तो किसी को भी हटा सकती हूँ। तुमने मेरे साथ जैसा व्यवहार किया, वह बैंक की नीति के खिलाफ है।”
सूट-बूट वाले व्यक्ति अविनाश की पदोन्नति का पत्र निकालते हैं और रमेश को फील्ड का काम देखने को कहते हैं।
रमेश माफी माँगने लगता है।
शकुंतला देवी कहती हैं, “माफी माँगने की जरूरत नहीं। तुमने ग्राहकों के कपड़ों से न्याय किया, जो गलत है। इस बैंक में गरीब-अमीर सब बराबर हैं। अगर कोई कर्मचारी ऐसा करेगा तो सख्त कार्रवाई होगी।”
शकुंतला देवी विनय को भी बुलाती हैं और समझाती हैं, “पहली गलती समझकर माफ कर रही हूँ, लेकिन कपड़ों से किसी का न्याय मत करो। अगर तुमने मुझे ठीक से देखा होता तो मुझे इतना अपमान नहीं सहना पड़ता।”
विनय हाथ जोड़कर माफी माँगता है।
शकुंतला देवी कहती हैं, “अविनाश से सीखो, वह असली योग्य व्यक्ति है। मैं यहाँ किसी को भेजती रहूँगी, ताकि रिपोर्ट मिलती रहे।”
शकुंतला देवी वहाँ से चली जाती हैं।
बैंक का पूरा स्टाफ सोचने लगता है कि अब अच्छे से काम करना होगा।
शकुंतला देवी की कहानी चारों ओर फैल जाती है।
लोग बैंक की प्रशंसा करने लगते हैं – ऐसी मालिक अगर हो तो बैंक का माहौल बदल जाता है।
शकुंतला देवी ने अपने मालिक होने की जिम्मेदारी निभाई और कर्मचारियों को इंसानियत और समानता का पाठ पढ़ाया।
तो दर्शकों, कैसी लगी आपको यह कहानी?
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मिलते हैं अगली रोचक कहानी के साथ।
धन्यवाद!
जय श्री राम!
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