सड़क किनारे भीख मांगने वाले बच्चे की कहानी
हैदराबाद की भीड़भाड़ भरी गलियों में एक मासूम बच्चा आर्यन फुटपाथ पर बैठा था। उसकी उम्र मुश्किल से 8 साल थी, लेकिन उसके चेहरे पर बचपन की मासूमियत से ज्यादा भूख और बेबसी की लकीरें साफ नजर आती थीं। फटे कपड़े, नंगे पैर और खाली आंखों में हजारों सपने।
आर्यन कभी अपने माता-पिता के साथ एक छोटे से किराए के कमरे में रहता था। उसके पिता सत्यपाल मजदूरी करते थे और मां सुनीता सिलाई करती थीं। गरीब जरूर थे, लेकिन बेटे के लिए बड़े-बड़े सपने थे। सत्यपाल हमेशा कहते थे—”आर्यन पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा।”
लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। एक रात सड़क हादसे में उसके माता-पिता की मौत हो गई। आर्यन महज 5 साल का था। पड़ोसियों ने कुछ दिन साथ दिया, लेकिन धीरे-धीरे सब अपने-अपने काम में लग गए। कोई बोला—”कब तक इस बच्चे को संभालेंगे?” और एक दिन आर्यन अकेला रह गया।
अब उसकी जिंदगी फुटपाथ पर आ गई। वहीं सोना, जागना, भीख मांगना और पेट की आग बुझाने के लिए राहगीरों से उम्मीद करना। धीरे-धीरे वह दूसरे भिखारी बच्चों के साथ शामिल हो गया। मंदिरों के बाहर बैठना, कूड़े के ढेर से खाना तलाशना उसकी दिनचर्या बन गई।
तीन साल गुजर गए। अब आर्यन 8 साल का हो चुका था। एक दिन जब वह सड़क किनारे बैठा था, उसकी नजर एक आदमी पर पड़ी। वह अच्छे कपड़े पहने, फोन पर बात करता हुआ सड़क पर टहल रहा था। उसका नाम था अरविंद—शहर के नामी उद्योगपति। अरविंद अपने फोन में इतना व्यस्त था कि उसे सड़क पर आती तेज रफ्तार कार का ध्यान ही नहीं था।
आर्यन ने देखा कि कार सीधे अरविंद की ओर बढ़ रही है। उसके मन में अपने माता-पिता की मौत का दृश्य घूम गया। उसने जोर से आवाज लगाई—”साहब हट जाइए, गाड़ी आ रही है!” लेकिन अरविंद ने सुना ही नहीं। तभी आर्यन दौड़ा और अरविंद को जोर से धक्का दे दिया। अरविंद सड़क के किनारे गिर पड़ा, कार पास से निकल गई। अगर आर्यन ने देर की होती तो शायद अरविंद की जान चली जाती।
अरविंद ने पहले गुस्से में बच्चे को देखा, लेकिन तुरंत समझ गया कि उसकी जान बच गई है। उसने आर्यन को पास बुलाया, बेंच पर बैठाया और पूछा—”तुमने मुझे क्यों बचाया?” आर्यन की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा—”मेरे माता-पिता भी सड़क हादसे में मारे गए थे। मैं नहीं चाहता था कि आपके बच्चों को भी वही दर्द मिले जो मुझे मिला।”
अरविंद भावुक हो गया। उसने आर्यन को खाना खिलाया। आर्यन ने कांपते हाथों से खाना खाया, जैसे हर निवाला उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा हो। अरविंद सोचने लगा—क्या मैं इसे फिर से सड़क पर छोड़ दूं? नहीं, यह बच्चा अब मेरी जिम्मेदारी है।
अरविंद ने आर्यन को अपने घर ले जाने का फैसला किया। उसकी पत्नी अनामिका ने पहले सवाल किए, लेकिन जब पूरी घटना सुनी तो उसकी आंखें भी नम हो गईं। अरविंद ने कहा—”हमने 12 साल से संतान का इंतजार किया, शायद भगवान ने हमें यही बेटा दिया है।”
अनामिका ने आर्यन को गले लगाया—”अब तुम हमारे बेटे हो। तुम्हें पढ़ाई कराएंगे, अच्छे कपड़े देंगे, वही प्यार देंगे जो एक मां देती है।” आर्यन की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिल में उम्मीद थी।
अरविंद ने आर्यन का दाखिला शहर के सबसे अच्छे स्कूल में करवाया। पहली बार यूनिफार्म पहनकर स्कूल गया तो बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे। लेकिन आर्यन ने मेहनत नहीं छोड़ी। धीरे-धीरे पढ़ाई और खेल में आगे बढ़ा। उसकी मेहनत देखकर टीचर भी प्रभावित हुए।
अरविंद का छोटा भाई मनोहर और उसकी पत्नी को यह बात पसंद नहीं आई। उन्हें डर था कि अगर आर्यन अरविंद का बेटा बन गया तो सारी संपत्ति उसके नाम हो जाएगी। मनोहर का बेटा करण ऐशो-आराम में डूबा था, पढ़ाई में कमजोर, बिगड़े दोस्तों में समय बिताता था। दूसरी तरफ आर्यन मेहनत और ईमानदारी से आगे बढ़ता गया।
समय बीतता गया। आर्यन पढ़ाई में अव्वल आता गया, समाज में उसकी पहचान बनने लगी। लोग अरविंद के फैसले की तारीफ करने लगे। मनोहर का व्यापार डूबने लगा, कर्ज बढ़ गया, घर गिरवी रखना पड़ा। करण की हालत खराब होती गई। आखिर मनोहर मदद के लिए अरविंद के पास गया।
अरविंद ने भाई को गले लगाया—”तुम्हारी मदद करना मेरा फर्ज है। घर बेचने की बात छोड़ दो, मैं सारा कर्ज चुका दूंगा। तुम और भाभी मेरे घर आ जाओ।” मनोहर की आंखों में आंसू थे। उसने पहली बार महसूस किया कि सच्चा भाई वही है जो मुश्किल वक्त में साथ खड़ा हो।
आर्यन ने विनम्रता से चाचा के पैर छुए—”अब हम सब मिलकर एक परिवार की तरह रहेंगे।” धीरे-धीरे करण को भी अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने पिता से माफी मांगी, मेहनत करना शुरू किया। परिवार फिर से जुड़ गया।
**यह कहानी हमें सिखाती है कि खून का रिश्ता ही सबसे बड़ा नहीं होता, बल्कि इंसानियत और प्यार से बने रिश्ते ही असली होते हैं। एक भिखारी बच्चा, जिसे कोई नाम तक नहीं देना चाहता था, आज मेहनत और इंसानियत की वजह से पूरे परिवार की जान बन गया।**
**अब सवाल आपसे है—अगर आप अरविंद की जगह होते, तो क्या आर्यन जैसे अनाथ बच्चे को अपने घर में जगह देते? अगर आप मनोहर की जगह होते, तो क्या लालच छोड़कर भाई का साथ देते? अपनी राय कमेंट में जरूर लिखिए।**
**अगर कहानी पसंद आई हो तो शेयर करें, चैनल को सब्सक्राइब करें। मिलते हैं अगले वीडियो में। इंसानियत निभाइए, नेकी फैलाइए और दिलों में उम्मीद जगाइए।**
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