फुटपाथ से फ़र्ज़ की मिसाल तक: डीजीपी सूर्य प्रकाश वर्मा की कहानी

सुबह का वक्त था। सड़क के किनारे एक टूटा-फूटा फुटपाथ। हल्की धूप फैल रही थी, ट्रैफिक अपनी रफ्तार में, पास ही पुलिस चेक पोस्ट पर चाय की चुस्कियां। इन्हीं सब के बीच, एक 75 साल का बुजुर्ग अपनी मिट्टी सनी सफेद धोती और फटे कुर्ते में फुटपाथ के कोने में लेटा था। सिर के पास सिर्फ एक छोटा सा थैला, पुराना फीचर फोन, कुछ कागज और पानी की बोतल। उनके चेहरे पर झुर्रियां ढेर थी, लेकिन आंखों में अद्भुत शांति थी।

आते-जाते लोग उसे हिकारत से देखकर हंस देते—”ये पगला फिर कहां से आ गया?” किसी ने नहीं सोचा कि इस बूढ़े के पीछे भी कोई अनसुनी दास्तां छुपी है। तभी अचानक एक दबंग सा युवा कांस्टेबल आया और चिल्लाया—”उठ, यह सोने की जगह है क्या? फुटपाथ से हट!” जब बुजुर्ग ने कोशिश की तो कांस्टेबल ने झुंझलाकर उसकी कमर पर डंडा भी मारा। आस-पास के लोग तमाशा देख रहे थे, किसी ने मोबाइल से वीडियो बनाना शुरू कर दिया।

सड़क किनारे सो रहे बुजुर्ग को पुलिस ने डंडे से उठाया कहा, चल हट लेकिन एक  कॉल में उसने #storytales

बुजुर्ग शांत रहा, बिना शिकायत। उसने अपना पुराना मोबाइल निकाला, किसी को कॉल किया—”लोकेशन भेज रहा हूं, आ जाओ।” कुछ ही मिनट में पुलिस की कई गाड़ियां आईं। उनमें से सीनियर इंस्पेक्टर, एसपी और दूसरे अधिकारी निकले। सबने कांस्टेबल से सवाल किया—”पता है किस पर डंडा चलाया?”

एसपी खुद बुजुर्ग के पास गया और झुककर सलाम किया, “सर, यह हमारे सेवानिवृत्त डीजीपी सूर्य प्रकाश वर्मा हैं—पद्मश्री सम्मानित। आज यह अलग रूप में निरीक्षण पर आए थे!” पूरी भीड़ स्तब्ध रह गई। कांस्टेबल की घमंड उतर गया, उसका चेहरा सफेद पड़ गया।

फिर, पहली बार सूर्य प्रकाश वर्मा बोले—”बेटा! वर्दी का मतलब सेवा है, ताकत नहीं। जब घमंड आ जाए, तो वर्दी सिर्फ डराती है, इंसान नहीं बनाती।” कांस्टेबल की आंखें नम हो गईं, बाकी भीड़ पर सन्नाटा छा गया।

अफसर अंदर बुलाने लगे लेकिन सूर्य प्रकाश वहीं फुटपाथ पर बैठे रहे—”यही मेरी असली पहचान है। यहीं सीख मिलेगी।” एसपी ने रवि (कांस्टेबल) को समझाया, “पुलिस की ड्यूटी सिर्फ कानून लागू करने की नहीं, बल्कि इंसानियत समझने की भी है।”

वहीं, भीड़ में खड़ा एक चायवाला बोला—”माफ करिएगा बाबूजी। हमें नहीं पता था आप कौन हैं।” सूर्य प्रकाश मुस्कुराए, “बेटा, बड़ा वो है जो छोटों का सम्मान करे।” इतने में मीडिया भी आ गई, सवाल उड़ने लगे—”सर, नाटक क्यों किया?” — “मेरा इरादा सिर्फ याद दिलाने का था कि वर्दी के भीतर भी एक इंसान होता है, और इंसान की असली पहचान उसका इंसाफ है।”

कांस्टेबल रवि अब भी शर्मिंदा था। सूर्य प्रकाश ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “बेटा, आज तुमसे गलती ज़रूर हुई, लेकिन तुम्हारे भीतर सुधार की भूख है। याद रखना, जिस इंसान को तुम छोटा समझ रहे हो, कल वही कभी तुम्हारा सहारा भी बन सकता है।”

पूरी घटना शहर में फैल गई, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया—”भिखारी निकला पद्मश्री डीजीपी!” अगले दिन थाने में सम्मान समारोह हुआ। सूर्य प्रकाश बोले, “सिर्फ डांट से सिस्टम नहीं सुधरता, जमीनी बदलाव ज़रूरी है।”

जल्द ही, पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में “सम्मान” नाम से नई पहल शुरू की गई, जिसमें हर नए अफसर को मैदान में इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाने लगा। और रवि—जिसे कल तक घमंड था—वह आज नए पुलिसवालों को सिखाता है, “जो बुजुर्ग फुटपाथ पर मिलता है, वह सिर्फ भिखारी नहीं, वो तुम्हारा आईना भी हो सकता है… कल शायद वही मैं/तुम हों।”

यही है असली पुलिस—जहाँ वर्दी के नीचे इंसान और दिल दोनों जिंदा रहते हैं।