सुपरमार्केट की नेक दिल कैशियर – रिया वर्मा की कहानी
कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ ऐसा होता है, जो हमें सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या सच में इस दुनिया में अच्छाई की कोई कदर नहीं है। लेकिन किस्मत का खेल भी बड़ा अजीब होता है।
सुबह के 10 बजे थे। रिया वर्मा अपने काम पर पहुंच चुकी थी। दिल्ली के एक बड़े सुपरमार्केट में वह कैशियर थी। अपनी मुस्कान के साथ ग्राहकों का स्वागत करना, बिलिंग करना और खुद को सबसे तेज़ और सटीक कैशियर साबित करना – यही उसकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी थी। रिया को यह नौकरी बहुत पसंद थी। वह साधारण परिवार से थी और यह नौकरी उसके घर के लिए बहुत जरूरी थी। उसकी मां बीमार रहती थी और छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च भी उसी के कंधों पर था।
लेकिन उसे क्या पता था कि आज की यह शिफ्ट उसकी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल देगी।
दोपहर के समय एक बूढ़े आदमी ने कांपते हुए हाथों से सामान की टोकरी काउंटर पर रखी। रिया ने मुस्कान के साथ उनका स्वागत किया, बिलिंग करने लगी –
“नमस्ते बाबा, कैसे हैं आप?”
बूढ़े आदमी ने हल्की मुस्कान दी, “बेटा, बस किसी तरह गुजर-बसर कर रहा हूं। दवाई भी लेनी थी, पर पहले राशन लेना जरूरी है।”
रिया ने स्कैन करना शुरू किया – चावल, दाल, तेल, ब्रेड, सब्जियां। बिल कुल 870 रुपये हुआ।
बाबा ने जेब से सिक्के और मुड़े-तड़े नोट निकाले, लेकिन कुल 100 रुपये ही निकले।
बाबा घबरा गए – “लगता है पैसे कम पड़ गए, शायद कुछ सामान वापस करना पड़ेगा।”
उन्होंने तेल और ब्रेड वापस रखने की कोशिश की, लेकिन रिया के दिल में हलचल मच गई।
एक बुजुर्ग आदमी, जो खुद के लिए दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रहा, क्या उसे खाली हाथ भेजना सही रहेगा?
रिया ने इधर-उधर देखा, सुपरवाइजर दूर खड़ा था, सीसीटीवी कैमरा भी ठीक ऊपर था।
लेकिन उसका दिल इस बूढ़े आदमी को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहता था।
रिया ने अपनी जेब से 770 रुपये निकाले और चुपचाप काउंटर में डाल दिए।
“बाबा, चिंता मत करिए, आपका बिल पूरा हो गया। सामान ले जाइए।”
बाबा की आंखें भर आईं –
“बेटा, तुम बहुत नेक दिल हो। मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा।”
रिया ने हंसते हुए कहा –
“कोई एहसान नहीं बाबा, बस यह समझिए कि आपकी पोती ने आपको उपहार दिया।”
बाबा ने उसे ढेर सारी दुआएं दी और बाहर चले गए।
रिया को लगा कि उसने दिन का सबसे अच्छा काम किया है।
लेकिन उसे नहीं पता था कि यही उसकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल दिन बनने वाला है।
—
जैसे ही बाबा चले गए, सुपरवाइजर की गूंजती आवाज़ आई –
“रिया, तुमने अभी क्या किया?”
रिया घबरा गई – “सर, मैंने बस…”
“तुमने किसी ग्राहक का बिल अपनी जेब से चुकाया? क्या तुम्हें कंपनी की पॉलिसी का कोई अंदाजा भी है?”
रिया हड़बड़ा गई –
“सर, वह बाबा बहुत परेशान थे। सिर्फ 770 ही तो थे, मैंने अपने पैसे दिए, कंपनी के नहीं।”
सुपरवाइजर गुस्से में –
“यह प्रोफेशनल जगह है, कोई चैरिटी सेंटर नहीं। हम यहां बिज़नेस करने आए हैं, दान देने नहीं।”
रिया ने समझाने की कोशिश की, लेकिन सुपरवाइजर ने हाथ उठा दिया –
“कोई बहस नहीं। तुम अब और इस सुपरमार्केट में काम नहीं कर सकती। तुम्हें अभी और इसी वक्त नौकरी से निकाल दिया जाता है।”
रिया के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
इतनी छोटी सी मदद, इतनी बड़ी सजा!
उसकी आंखें छलक आईं, लेकिन वह खुद को संभालती रही –
“ठीक है सर, अगर इंसानियत की कोई जगह नहीं है, तो मैं भी यहां काम नहीं करना चाहती।”
सिक्योरिटी गार्ड को बुलाया गया –
“इसका बैज और यूनिफॉर्म ले लो, और इसे बाहर निकालो।”
रिया ने अपना बैज उतारा, गार्ड को दिया, और बिना कुछ बोले बाहर निकल गई।
बाहर आते ही उसकी आंखों से आंसू गिर पड़े।
अब आगे क्या होगा?
क्या उसने जो किया वह गलत था?
क्या अब उसे कोई और नौकरी मिलेगी?
लेकिन उसे क्या पता था कि यह सिर्फ एक नई शुरुआत थी।
—
शाम के 6 बजे थे। रिया एक पार्क की बेंच पर अकेली बैठी थी। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वह उन्हें गिरने नहीं दे रही थी।
“एक छोटी सी मदद के बदले मेरी पूरी नौकरी चली गई…”
वह सोच रही थी अब आगे क्या करे, घर जाकर मां को क्या बताएगी, भाई की पढ़ाई का खर्च कैसे उठाएगी।
तभी उसके फोन की घंटी बजी – स्क्रीन पर मां का नाम।
रिया ने कांपते हुए फोन उठाया –
“हेलो मां।”
मां की आवाज़ – “बेटा, तू ठीक तो है? तेरा चेहरा बहुत बुझा हुआ लग रहा था सुबह। सब ठीक तो है?”
रिया ने गहरी सांस ली –
“हां मां, सब ठीक है। बस आज का दिन थोड़ा अजीब था।”
वह मां को सच बताना चाहती थी, लेकिन नहीं चाहती थी कि मां चिंता करे।
“ठीक है बेटा, जल्दी घर आ जाना। मैंने तेरा पसंदीदा खाना बनाया है।”
फोन काटने के बाद उसकी आंखों से एक और आंसू टपक पड़ा।
क्या सच में सब ठीक था?
—
अचानक एक गाड़ी उसके सामने रुकी।
रिया अभी भी अपने ख्यालों में गुम थी।
गाड़ी से उतरते ही एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा – वही बाबा, जिन्हें उसने सुबह मदद की थी।
बाबा ने पूछा –
“बेटा, तू यहां इस तरह क्यों बैठी है? क्या हुआ?”
रिया हिचकिचाई –
“कुछ नहीं बाबा, बस यूं ही…”
बाबा ने गहरी सांस ली –
“बेटा, मुझे सच-सच बता। मैं सुबह से तुझे ढूंढ रहा हूं।”
रिया ने सिर झुका लिया –
“बाबा, आज मुझे मेरी नौकरी से निकाल दिया गया। सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने आपकी मदद की थी।”
बाबा के चेहरे पर चिंता की लकीरें –
“क्या सिर्फ 770 रुपये की मदद करने के लिए?”
रिया ने सिर हिलाया –
“हां बाबा, मेरे सुपरवाइजर को यह पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा कि सुपरमार्केट बिज़नेस के लिए है, चैरिटी के लिए नहीं।”
बाबा कुछ देर चुप रहे, फिर हल्की मुस्कान आई –
“बेटा, तुझे क्या लगता है, तूने जो किया वह गलत था?”
रिया ने तुरंत जवाब दिया –
“नहीं बाबा, मुझे लगता है मैंने सही किया। लेकिन इस दुनिया में शायद अच्छाई की कोई कदर नहीं।”
बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा –
“बेटा, अच्छाई की कदर देर से होती है, पर होती जरूर है।”
तभी बाबा ने एक ऐसा खुलासा किया, जिसे सुनकर रिया के पैरों तले ज़मीन खि
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