एक अनजाना रिश्ता
कहते हैं जब दुनिया साथ छोड़ देती है, तब ऊपर वाला किसी अनजान को अपना बना देता है। लखनऊ के मशहूर कारोबारी संजीव राठौर की जिंदगी एक हादसे में उजड़ गई थी। उसका बड़ा सा बंगला, करोड़ों की संपत्ति, लेकिन दिल एकदम खाली। परिवार की हंसी, बच्चों की आवाज़, पत्नी की मुस्कान—सब खो गया था।
एक सुबह, संजीव ने देखा कि उसकी कार रोज़ चमचमाती रहती है। हैरान होकर एक दिन बाहर निकले तो देखा, एक 10-11 साल का बच्चा, फटे पुराने कपड़े, घिसी हुई चप्पलें, मासूम चेहरा लिए कार साफ कर रहा था। संजीव ने पूछा, “क्यों करते हो ये सब?” बच्चा बोला, “साहब, मन करता है। ये गाड़ी मेरे पापा की गाड़ी जैसी है। जब वो जिंदा थे तो हम दोनों साथ में गाड़ी साफ करते थे।”
संजीव का दिल भर आया। पूछने पर बच्चा बोला, “अब मेरे पापा नहीं रहे, मां भी चली गई। अब मैं अकेला हूँ।” संजीव को अपने पुराने दिन याद आ गए। उस रात वो सो नहीं पाए, बस उस मासूम चेहरे को सोचते रहे।

अगली सुबह संजीव ने उस बच्चे—सागर—को फिर बुलाया। उससे पूछा, “कहां रहते हो?” सागर बोला, “जहां जगह मिल जाती है, वहीं सो जाता हूँ।” पढ़ाई? “अब नहीं, साहब। पेट भर जाए, वही बहुत है।”
संजीव ने फैसला किया, “अगर मैं कहूं कि तुम मेरे साथ रहो, इसी घर में, स्कूल भी जाओ?” सागर ने सहमे हुए पूछा, “साहब, आप मज़ाक तो नहीं कर रहे?” संजीव ने उसे गले लगा लिया, “नहीं बेटा, आज से ये घर तुम्हारा है।”
संजय ने सागर को अपने बेटे की तरह रखा। नए कपड़े पहनाए, पढ़ाई का इंतज़ाम किया, स्कूल में दाखिला दिलवाया। सागर अब हर दिन स्कूल जाता, शाम को घर लौटता, रात को संजीव के साथ खाना खाता। दोनों मिलकर कहानियाँ सुनते, हँसते, रोते, और एक-दूसरे को अपनाते।
कुछ महीनों बाद संजीव ने सागर को कानूनी तौर पर गोद ले लिया। अब सागर राठौर, संजीव का बेटा था। सागर ने मेहनत की, पढ़ाई में अव्वल रहा। धीरे-धीरे वह संजीव के कारोबार को संभालने लगा। अब वह बच्चा, जो कभी टूटी चप्पलों में गाड़ी साफ करता था, करोड़ों की कंपनी का मालिक बन गया।
एक दिन सागर ने कहा, “पापा, अगर आप मुझे नहीं अपनाते तो शायद मैं कहीं बर्तन धो रहा होता। आपने मुझे नाम, घर और प्यार दिया।” संजीव बोले, “बेटा, तू मेरी जिंदगी में रोशनी बनकर आया था।”
समय बीता, संजीव अब सुकून में थे। सागर सिर्फ उनका बेटा ही नहीं, उनका घर, उनकी दुनिया बन गया था। वह गाड़ी, जो कभी सागर अपने पापा की याद में साफ करता था, अब उसी की ऑफिस की पार्किंग में खड़ी थी।
कभी-कभी रिश्ते खून से नहीं, आत्मा से जुड़ते हैं। जो बिना कहे भी दिल से जुड़ जाते हैं। अगर आप संजीव होते, तो क्या करते?
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