सच्ची दोस्ती का कर्ज: किशोर और श्याम की कहानी

पहला भाग: टूटी किताबें और टूटा दिल
लखीमपुर के सरकारी स्कूल की एक पुरानी, टूटी बेंच पर दस साल का किशोर बैठा था। उसकी उंगलियाँ एक फटी हुई किताब के पन्नों पर कांप रही थीं। आँखों में शर्म के आँसू थे, और दिल में डर कि आज फिर मास्टर जी उसे डाँटेंगे। माँ रोज सुबह चार बजे उठती, घर का काम करती, फिर आसपास के घरों में झाड़ू-पोंछा करने जाती। बाबूजी, जो कभी रिक्शा चलाते थे, अब खाँसी की वजह से बिस्तर पर पड़े रहते। किशोर की किताबें पुरानी थीं, कई बार तो किताब ही नहीं होती थी।
आज फिर मास्टर जी ने पूछा, “किशोर, किताब कहाँ है?”
किशोर चुप रहा, उसका गला सूख गया। पूरी क्लास हँसने लगी। किसी ने चिल्लाया, “ये तो रोज का नाटक है, किताब नहीं तो स्कूल क्यों आता है भिखारी!”
किशोर की आँखें भर आईं। घर लौटकर उसने माँ से कहा, “मैं स्कूल नहीं जाऊँगा। सब हँसते हैं, किताबें नहीं हैं मेरे पास।”
माँ के हाथ से बर्तन गिर गए। “क्या बोल रहा है तू? तेरे बाबूजी की एक ही ख्वाहिश है कि तू पढ़-लिख जाए।”
“माँ, किताबें कहाँ से लाऊँ?” किशोर रो पड़ा। माँ ने उसे गले लगा लिया, लेकिन उसकी आँखों में भी आँसू थे।
दूसरा भाग: दोस्ती की पहली किरण
अगले दिन फिर वही बेंच, वही शर्मिंदगी। तभी एक लड़का, साफ वर्दी, चमकते जूते, महँगा बैग लेकर किशोर के पास आकर बैठ गया। वह श्याम था। किशोर हैरान रह गया। यह अमीर लड़का सरकारी स्कूल में क्या कर रहा है?
बाकी बच्चे फुसफुसाने लगे, “अरे, ये तो सेठ रामकिशन का बेटा है। यहाँ क्यों आया?”
ब्रेक में किशोर को पता चला, श्याम बहुत शरारती था। पहले सेंट जोसेफ स्कूल से निकाला गया, फिर डीपीएस से, फिर दो और प्राइवेट स्कूलों से। हर जगह मारपीट, शरारत, टीचर्स को परेशान करना। आखिर में उसके पिता ने कहा, “अब तुझे सरकारी स्कूल में डालूंगा, वहाँ अनुशासन सीखेगा।”
श्याम ने किशोर से पूछा, “तुम्हारे पास किताब नहीं है?”
किशोर सिर झुका कर चुप रहा। श्याम ने अपनी किताब दोनों के बीच रख दी, “चल, साथ में पढ़ते हैं। दोस्त होते हैं ना, बाँट के पढ़ते हैं।”
उस दिन से कुछ बदल गया। श्याम रोज अपना टिफिन भी बाँटता, किताबें शेयर करता। धीरे-धीरे किशोर की वजह से श्याम भी बदलने लगा। अब श्याम क्लास में शरारत कम करता, पढ़ाई पर ध्यान देता। टीचर्स और श्याम के माता-पिता भी हैरान थे। एक महीने में दोनों ऐसे दोस्त बन गए जैसे जन्मों का साथ हो।
तीसरा भाग: झोपड़ी की सादगी और दोस्ती की मिठास
स्कूल के बाद किशोर श्याम को अपनी झोपड़ी में ले जाता। श्याम वहाँ की सादगी में खो जाता। किशोर की माँ उसे प्यार से खाना खिलाती और श्याम कहता, “आंटी, आपके हाथ का खाना दुनिया में सबसे अच्छा है।”
लेकिन एक दिन सब बदल गया। किशोर घर पहुँचा तो बाबूजी फर्श पर बेहोश पड़े थे। मुँह से खून आ रहा था। माँ चीख-चीख कर रो रही थी। पड़ोसियों ने सरकारी अस्पताल पहुँचाया। डॉक्टर ने कहा, “टीबी का आखिरी स्टेज है, तुरंत इलाज शुरू करना होगा।”
₹50000 लगेंगे वरना… किशोर के कानों में घंटियाँ बजने लगीं। माँ ने अपने चाँदी के गहने बेच दिए, पड़ोसियों से माँगा, लेकिन सिर्फ ₹10000 जुटे। किशोर तीन दिन से अस्पताल में बैठा था। स्कूल नहीं गया। बाबूजी की हालत बिगड़ती जा रही थी। डॉक्टर बार-बार पैसों के लिए पूछ रहे थे। किशोर बस रो रहा था, बेबस और लाचार।
चौथा भाग: दोस्ती की असली परीक्षा
चौथे दिन श्याम अस्पताल पहुँचा। किशोर को देखा तो उसकी आँखें भर आईं। “यार, तू स्कूल क्यों नहीं आया?”
किशोर ने सब बताया, बोलते-बोलते फूट-फूट कर रो पड़ा। “श्याम, बाबूजी चले गए तो मैं और माँ क्या करेंगे? मेरे पास पैसे नहीं हैं, कोई नहीं है मेरा।”
श्याम की आँखों में भी आँसू आ गए। “तू रो मत। मैं अभी आता हूँ।”
श्याम घर भागा और पिता के पास गया। “पापा, मेरे दोस्त किशोर के पिता बहुत बीमार हैं, उनको ₹50000 चाहिए।”
पिता बोले, “बेटा, ऐसे ही किसी को रुपए नहीं दिए जाते।”
“नहीं पापा, अगर आप किशोर की मदद नहीं करेंगे तो मैं स्कूल नहीं जाऊँगा। पढ़ाई छोड़ दूँगा।” श्याम रोने लगा। “पापा, किशोर की वजह से ही मैं बदल रहा हूँ। वो मेरा सच्चा दोस्त है, उसके बिना मैं फिर से वही शरारती बन जाऊँगा।”
पिता परेशान हो गए। श्याम पहली बार किसी के लिए इतना रो रहा था। उन्होंने अपनी पत्नी से बात की। आखिरकार दोनों अस्पताल पहुँचे। जब श्याम के पिता ने वार्ड में किशोर के बाबूजी को देखा, माँ को रोते देखा, किशोर की लाल आँखें देखीं, उनका दिल पसीज गया।
“देखो बेटा,” उन्होंने किशोर के सिर पर हाथ रखा, “तुम्हारे पिता का पूरा इलाज हम करवाएँगे।”
श्याम ने मुझे बताया कि तुम उसके सच्चे दोस्त हो। इस उम्र में सच्चा दोस्त मिलना भगवान की देन है।
किशोर की माँ उनके पैरों पर गिर पड़ी। “भैया, आप भगवान हो। आपने मेरे बच्चे का बाप बचा लिया।”
श्याम के पिता ने तुरंत ₹50000 दिए। बाबूजी का इलाज शुरू हुआ।
पाँचवाँ भाग: वादा और जुदाई
उस रात किशोर ने श्याम का हाथ पकड़ा। “श्याम, यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगा। मैं कसम खाता हूँ, एक दिन बड़ा आदमी बनूँगा और यह पैसे लौटाऊँगा।”
श्याम मुस्कुराया, “पगले, दोस्तों में एहसान थोड़ी होता है।”
छह महीने बाद श्याम के पिता किसी दूसरे शहर में शिफ्ट हो रहे थे। विदाई के दिन दोनों दोस्त घंटों चुप बैठे रहे।
“यार, मैं नहीं जाना चाहता,” श्याम रोने लगा।
“तुझे जाना पड़ेगा श्याम। लेकिन मैं वादा करता हूँ, एक दिन तुझे ढूँढूँगा और तेरा कर्ज चुकाऊँगा।”
पंद्रह साल बीत गए। किशोर अब पच्चीस साल का हो चुका था। लेकिन ये पंद्रह साल आसान नहीं थे। श्याम के जाने के बाद किशोर ने दसवीं पास की, अच्छे नंबर आए। लेकिन आगे पढ़ने के पैसे कहाँ थे? बाबूजी अब ठीक थे, पर रिक्शा चलाने लायक नहीं रहे। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया।
“बेटा, तू पढ़ ले। मैं कहीं काम ढूँढ लूँगा,” बाबूजी ने कहा।
“नहीं बाबूजी, अब मेरी बारी है आपकी सेवा करने की,” किशोर ने जवाब दिया।
सोलह साल की उम्र में किशोर ने एक ढाबे पर बर्तन धोने का काम शुरू किया। सुबह पाँच बजे से रात दस बजे तक, महीने के ₹1000। हाथ छिल जाते, पीठ दुखती, लेकिन किशोर हार नहीं मानता। रात को झोपड़ी में लौटकर वो पुरानी किताबें पढ़ता।
माँ कहती, “बेटा, सो जा। सुबह जल्दी उठना है।”
“माँ, मुझे बड़ा आदमी बनना है। श्याम का कर्ज चुकाना है,” किशोर जवाब देता।
छठा भाग: संघर्ष की राह
दो साल बाद किशोर ने ढाबे का काम छोड़ दिया और एक छोटी दुकान पर सेल्समैन बन गया। अब ₹3000 महीना मिलने लगा। किशोर ने सोचा, अब कुछ अपना करना होगा। उसने ₹1600 जमा किए और एक साइकिल खरीदी। फिर थोक बाजार से सब्जियाँ लेकर घर-घर बेचने लगा।
सुबह चार बजे उठना, बाजार जाना, फिर पूरे दिन साइकिल चलाकर मोहल्लों में सब्जी बेचना। शाम तक थक कर चूर हो जाता, लेकिन ₹60 रोज की कमाई होने लगी।
“किशोर, तू ज्यादा मेहनत कर रहा है, बीमार पड़ जाएगा,” माँ परेशान रहती।
“नहीं माँ, यह तो कुछ भी नहीं। अभी बहुत कुछ करना है,” किशोर मुस्कुराता।
तीन साल में किशोर ने ₹50000 बचा लिए। उसने एक छोटी सी दुकान किराए पर ली और किराने का सामान रखना शुरू किया। अब वह खुद का मालिक था। दुकान छोटी थी, लेकिन किशोर की मेहनत और ईमानदारी से ग्राहक बढ़ने लगे।
“भैया, आपके यहाँ से लेने में भरोसा है। कभी तोल में कम नहीं करते,” लोग कहते।
किशोर हमेशा याद रखता, “श्याम ने मुझ पर भरोसा किया था। मैं किसी का भरोसा नहीं तोड़ूँगा।”
पाँच साल में किशोर की दुकान इलाके में मशहूर हो गई। अब वह सिर्फ किराना नहीं, बल्कि गल्ले अनाज का थोक भी करने लगा। दूसरे दुकानदार उससे माल लेते। पैसे आने लगे, लेकिन किशोर का रहन-सहन वैसा ही सादा रहा।
सातवाँ भाग: दिल का बोझ
बाबूजी ने एक दिन कहा, “बेटा, अब तू शादी कर ले।”
“बाबूजी, पहले एक काम पूरा करना है,” किशोर ने जवाब दिया।
माँ समझ गई, “तू अभी भी श्याम को याद करता है?”
“हर रोज माँ, हर रोज। उसने मेरे बाबूजी की जान बचाई थी। मैंने वादा किया था कि उसका कर्ज चुकाऊँगा,” किशोर की आँखें भर आईं।
लेकिन श्याम का पता कैसे लगे? कोई फोन नंबर नहीं था, कोई पता नहीं। सिर्फ इतना याद था कि उसके पिता का नाम रामकिशन सेठ था, और वो व्यापारी थे।
किशोर ने ढूँढना शुरू किया। जब भी किसी शहर जाता, व्यापारियों से पूछता, “क्या आप रामकिशन सेठ को जानते हैं?”
लखीमपुर के कई लोगों ने कहा हाँ, लेकिन वो कोई और रामकिशन निकले। कई बार उम्मीद जगी, फिर टूट गई।
दस साल बीत गए। किशोर अब एक बड़ा व्यापारी बन चुका था। लखीमपुर में उसके तीन गोदाम थे। पूरे जिले में उसका नाम था।
लोग कहते, “किशोर सेठ बहुत ईमानदार हैं। गरीबों की बहुत मदद करते हैं।”
किशोर ने माँ-बाबूजी के लिए एक पक्का मकान बनवाया, लेकिन खुद फिर भी सादगी से रहता। महंगी कारें, बड़े बंगले, इन सब में उसका मन नहीं लगता। बस एक चीज चैन नहीं लेने देती—श्याम का कर्ज।
“बेटा, तू इतना परेशान क्यों रहता है? भगवान ने सब दिया है तुझे,” माँ पूछती।
“माँ, मेरे पास करोड़ों रुपए हैं, लेकिन दिल में सुकून नहीं। श्याम को ढूँढना है मुझे, उसका वो ₹50000 चुकाना है।”
“पर बेटा, ₹50000 तो अब तेरे लिए कुछ भी नहीं।”
“नहीं माँ, वो ₹50000 नहीं। वो श्याम की दोस्ती का कर्ज है। उस वक्त उसने मुझे सब कुछ दिया था। आज मैं जो कुछ हूँ, उसकी वजह से हूँ। अगर बाबूजी उस दिन चले गए होते, तो मैं टूट गया होता।”
किशोर रोज रात को सोने से पहले प्रार्थना करता, “हे भगवान, मुझे एक बार श्याम से मिलवा दो। बस एक बार।”
आठवाँ भाग: इंतजार का अंत
एक दिन किशोर दिल्ली गया। वहाँ एक बड़ी डील के सिलसिले में मीटिंग खत्म होने के बाद वो एक पुराने बाजार से गुजर रहा था। अचानक एक दुकान पर नजर गई—”रामकिशन एंड संस”।
किशोर का दिल जोर से धड़का। क्या यह वही…? कितनी बार निराश हो चुका था, फिर भी उसने दुकान में कदम रखा।
अंदर एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा था। किशोर ने पूछा, “क्या आप रामकिशन जी हैं? लखीमपुर से?”
बुजुर्ग ने सिर हिलाया, “हाँ, लेकिन वो पंद्रह साल पुरानी बात है। अब यहाँ दिल्ली में हैं।”
किशोर के पैर काँपने लगे। “क्या आपके बेटे का नाम श्याम है?”
बुजुर्ग की आँखें चमक उठीं, “हाँ, तुम श्याम को कैसे जानते हो?”
“मैं उसका दोस्त हूँ, किशोर… लखीमपुर से…”
रामकिशन सेठ उठ खड़े हुए, “किशोर! वो किशोर जिसके लिए श्याम ने… अरे बेटा!”
उन्होंने किशोर को गले लगा लिया। किशोर रो पड़ा। पंद्रह साल की तलाश आखिरकार खत्म हुई।
“श्याम कहाँ है? मुझे उससे मिलना है,” किशोर ने पूछा।
रामकिशन सेठ की आँखें नम हो गईं, “बेटा, श्याम की हालत अच्छी नहीं है। व्यापार डूब गया। श्याम अब मजदूरी करता है एक फैक्ट्री में। उसकी दो बेटियाँ हैं। पत्नी बीमार रहती है। किराए के एक कमरे में रहते हैं सब।”
किशोर को विश्वास नहीं हो रहा था। “अंकल, मुझे श्याम का पता दीजिए। मुझे अभी उससे मिलना है।”
रामकिशन सेठ ने एक पुराना रजिस्टर निकाला और पता लिख दिया, “बेटा, शाम को छह बजे के बाद ही मिलेगा, फैक्ट्री से आता है तब।”
किशोर ने पता लिया और सीधे उस इलाके की तरफ निकल पड़ा।
दिल्ली के एक पुराने इलाके में, संकरी गलियों के बीच एक जर्जर इमारत। तीसरी मंजिल पर एक छोटा सा कमरा। किशोर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। हर कदम पर दिल तेज धड़क रहा था। पंद्रह साल बाद आज फिर से अपने दोस्त से मिलेगा।
दरवाजे पर दस्तक दी। एक छोटी सी बच्ची ने दरवाजा खोला, “आप कौन?”
“बेटा, श्याम है घर पर?” किशोर ने पूछा।
“पापा अभी फैक्ट्री से आएंगे,” बच्ची बोली।
तभी अंदर से एक कमजोर सी आवाज आई, “बिटिया, कौन है?”
किशोर ने अंदर झाँका। एक औरत बिस्तर पर लेटी थी, बहुत कमजोर। दूसरी बच्ची उसके पास बैठी पंखा लगा रही थी। कमरा बहुत छोटा था—एक चारपाई, एक पुरानी अलमारी, दीवार पर कुछ बर्तन। बस इतना ही।
किशोर का गला भर आया। वो श्याम जिसने अपनी बड़ी कोठी में किशोर को खाना खिलाया था, आज यहाँ…
“मैं श्याम का पुराना दोस्त हूँ। मैं यही इंतजार कर लूंगा,” किशोर ने कहा और सीढ़ियों पर बैठ गया।
आधे घंटे बाद सीढ़ियों पर किसी के आने की आवाज आई। किशोर ने देखा, एक थका हुआ आदमी। मैले-कुचैले कपड़े, झुके कंधे, चेहरे पर मेहनत की लकीरें। लेकिन वो चेहरा किशोर पहचान गया—श्याम था वो।
श्याम! किशोर उठ खड़ा हुआ। श्याम ने चौंक कर देखा, कुछ देर तक पहचान नहीं पाया। फिर अचानक उसकी आँखें फैल गईं।
“किशोर! तू… तू यहाँ कैसे?”
दोनों एक दूसरे को देखते रह गए। फिर श्याम आगे बढ़ा और किशोर को गले लगा लिया। दोनों रो पड़े। पंद्रह साल का दर्द, तड़प, यादें सब आँसुओं में बह निकलीं।
“यार, तू इतने सालों बाद कैसे आ गया?” श्याम रोते हुए बोला।
“मैं तुझे ढूँढ रहा था श्याम, दस साल से। आज तेरे पापा की दुकान पर तेरा पता मिला,” किशोर ने कहा।
श्याम ने किशोर को अंदर बुलाया। कमरे की हालत देखकर किशोर का दिल टूट गया।
“श्याम, यह सब कैसे हुआ?” किशोर ने पूछा।
श्याम ने सारी कहानी सुनाई—कैसे व्यापार में साझेदार ने धोखा दिया, कैसे सब कुछ बिक गया, कैसे पिता बीमार पड़ गए, कैसे अब वह फैक्ट्री में बारह घंटे काम करता है, फिर भी घर नहीं चल पाता। पत्नी को थायराइड है, दवाइयाँ महंगी हैं, बड़ी बेटी की पढ़ाई छुड़वानी पड़ी, छोटी अभी स्कूल जाती है, पर नहीं पता कब तक।
नौवाँ भाग: दोस्ती का असली कर्ज
किशोर के आँसू नहीं रुक रहे थे। जिस दोस्त ने उसकी जिंदगी बचाई थी, वो आज खुद इस हाल में था।
“श्याम, तूने मुझे पहचाना?” किशोर ने पूछा।
“क्यों नहीं पहचानूँगा यार? तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है,” श्याम मुस्कुराया।
“तो फिर दोस्त की मदद क्यों नहीं माँगी? तूने मेरे बाबूजी को बचाया था, मुझे बचाया था। आज मैं तेरे काम नहीं आ सकता?” किशोर ने गुस्से से कहा।
“यार, वो बचपन की बात थी। और फिर मैं भी तुझे बोझ नहीं बनाना चाहता था,” श्याम बोला।
किशोर ने अपने बैग से एक लिफाफा निकाला। “श्याम, पंद्रह साल पहले तूने मुझे ₹50000 दिए थे। मैंने वादा किया था कि लौट आऊँगा। यह ले…”
लिफाफे में ₹5 लाख थे। श्याम सन रह गया।
“किशोर, यह… यह क्या है?”
“तेरा कर्ज। ₹50000 पंद्रह साल पहले के बराबर आज ₹5 लाख है, और यह भी कम है,” किशोर बोला।
“नहीं यार, मैं यह नहीं ले सकता। यह बहुत ज्यादा है,” श्याम ने इंकार किया।
“बहुत ज्यादा? श्याम, तूने मेरे बाबूजी की जान बचाई थी। क्या उनकी जान की कोई कीमत है? तूने मुझे दोस्ती दी, इज्जत दी, मेरी हिम्मत बढ़ाई। आज मैं जो कुछ हूँ, तेरी वजह से हूँ। और तू कह रहा है यह ज्यादा है?” किशोर चीख पड़ा।
दोनों दोस्त फिर रो पड़े। श्याम की पत्नी और बच्चियाँ भी रोने लगीं।
“श्याम, कल से तू मेरे साथ काम करेगा, मेरे यहाँ। और यह घर छोड़ दे। मैं तेरे लिए एक अच्छा मकान लूंगा। तेरी पत्नी का पूरा इलाज करवाऊँगा। बच्चियों को अच्छे स्कूल में पढ़ाऊँगा।”
किशोर ने श्याम के कंधे पर हाथ रखा।
“किशोर, तू…” श्याम कुछ बोल नहीं पाया।
“हम दोस्त हैं श्याम। तूने मेरे बुरे वक्त में साथ दिया था। आज मेरी बारी है तेरे साथ खड़े होने की।”
उस रात दोनों दोस्त देर तक बातें करते रहे। पुरानी यादें, स्कूल के दिन, वो झूम पड़ी। वो किताबें, सब याद आ गया।
दसवाँ भाग: नई शुरुआत
तीन महीने बाद श्याम किशोर के साथ लखीमपुर आ गया, अपने परिवार के साथ। किशोर ने उसे अपने व्यापार में साझेदार बना लिया। श्याम की पत्नी का इलाज शुरू हुआ, बच्चियाँ अच्छे स्कूल में पढ़ने लगीं।
एक दिन श्याम और किशोर उसी पुराने स्कूल के सामने खड़े थे।
“यार, यहीं से शुरुआत हुई थी हमारी दोस्ती की,” श्याम ने कहा।
“और आज भी जारी है, हमेशा रहेगी,” किशोर मुस्कुराया।
“दोस्ती… सच्ची दोस्ती कभी कर्ज नहीं होती। लेकिन अगर दिल में प्यार हो तो कर्ज भी मोहब्बत बन जाता है। जीवन में अगर ऐसा दोस्त मिल जाए तो उसे कभी खोना नहीं चाहिए। वैसे भी यह दुनिया मतलबी लोगों से भरी पड़ी है।”
News
Aishwarya Rai’s Stunning Transformation at 52: Celebrating Her Birthday with a Bang
Aishwarya Rai’s Stunning Transformation at 52: Celebrating Her Birthday with a Bang On November 1, Bollywood’s original beauty queen, Aishwarya…
रणवीर कपूर की नई शुरुआत: पापा ऋषि कपूर का सपना पूरा करने की तैयारी
रणवीर कपूर की नई शुरुआत: पापा ऋषि कपूर का सपना पूरा करने की तैयारी रणवीर कपूर जल्द ही एक नई…
Rishi Kapoor का सपना पूरा करेंगे Ranbir Kapoor,बीवी Alia Bhatt को छोड़ थामा Deepika Padukone का हाथ!
रणवीर कपूर की नई शुरुआत: पापा ऋषि कपूर का सपना पूरा करने की तैयारी रणवीर कपूर जल्द ही एक नई…
पत्नी ने दिया ex के साथ मिलकर दिया अपने पति को धोख़ा। Wife Cheating Story Real Truth
राजेश एक साधारण इंसान था, जो सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी करता था। उसकी पत्नी नेहा एक निजी स्कूल…
Shilpa Shetty Rushes to Mumbai Hospital as Mother is Admitted Amid Legal Troubles
Shilpa Shetty Rushes to Mumbai Hospital as Mother is Admitted Amid Legal Troubles Bollywood actress Shilpa Shetty was recently spotted…
Sad News for Shilpa Shetty as Shilpa Shetty’s Mother admitted to Hospital in critical condition!
Shilpa Shetty Rushes to Mumbai Hospital as Mother is Admitted Amid Legal Troubles Bollywood actress Shilpa Shetty was recently spotted…
End of content
No more pages to load






