सत्यम कुमार: बिहार के गाँव से एप्पल तक का सफर
सुबह की हल्की ठंड थी, आईआईटी कानपुर का विशाल परिसर और इंटरव्यू हॉल के बाहर खड़ा एक दुबला-पतला किशोर, सत्यम कुमार। उसकी आंखों में आत्मविश्वास झलक रहा था, मगर कदमों में विनम्रता थी। चारों ओर उसके जैसे दर्जनों विद्यार्थी थे, सबके चेहरे पर तनाव और घबराहट थी, लेकिन सत्यम सबसे अलग था। वो शांत था, जैसे उसे पता हो कि आज जो होने वाला है, वो सिर्फ एक परीक्षा नहीं, बल्कि इतिहास बनने वाला क्षण है।
“नेक्स्ट कैंडिडेट प्लीज!” अंदर से आवाज आई। सत्यम ने गहरी सांस ली और कमरे में कदम रखा। सामने पाँच प्रोफेसर बैठे थे—गणित, भौतिकी, कंप्यूटर साइंस और ह्यूमैनिटीज के विशेषज्ञ। सबके चेहरों पर एक ही सवाल था—इतना छोटा? प्रोफेसर सिन्हा मुस्कुराए, “बेटा, तुम्हारी उम्र क्या है?”
“सर, 17,” सत्यम ने जवाब दिया।
“और आईआईटी इंटरव्यू?”
“जी सर, लेकिन मैंने पहली बार आईआईटीजेईई 12 साल की उम्र में क्वालीफाई किया था।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। फिर किसी ने पूछा, “तुम्हें यह सब कैसे आता है—कैल्कुलस, एल्गोरिदम्स, डेटा स्ट्रक्चर्स इतनी छोटी उम्र में?”
सत्यम मुस्कुराया, “सर, मुझे खेतों में बीज बोना पसंद है। फर्क बस इतना है कि अब मैं मिट्टी में नहीं, कंप्यूटर की स्क्रीन पर बोता हूं।”

पूरे इंटरव्यू पैनल के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई। यहीं से सत्यम की कहानी शुरू होती है—एक ऐसी कहानी जो आईआईटी के गलियारों से होते हुए एप्पल के हेडक्वार्टर तक पहुंचेगी।
बिहार के भोजपुर जिले के एक छोटे से गांव सोनपुरवा में सुबह की पहली किरण जब धान के खेतों पर गिरती थी, तो ओस की बूंदों में चमक उठता था भविष्य। यह सत्यम कुमार के सपनों का भविष्य था। उसके पिता रामनिवास कुमार एक साधारण किसान थे, जिनके हाथों में मिट्टी थी, लेकिन दिल में ईमानदारी और मेहनत का खजाना। मां गीता देवी घर की रसोई और बच्चों की पढ़ाई दोनों संभालती थीं। गांव में सिर्फ एक प्राइमरी स्कूल था—टूटी खिड़कियां, धूल से भरी ब्लैकबोर्ड और एक टीचर जो हर तीसरे दिन आता था। लेकिन सत्यम के लिए वही स्कूल हार्वर्ड था।
जब बाकी बच्चे किताबें फाड़कर पतंग बनाते, वो उन्हें सीने से लगाकर सोता था। रात को लालटेन की रोशनी में जब गांव सो जाता, सत्यम खिड़की से आसमान की ओर देखता और सोचता—कभी तो मैं उन तारों को छू लूंगा जो आज बस दूर से चमकते हैं।
उसका पिता कहता, “बेटा, हमारे जैसे लोगों के लिए आसमान तक पहुंचना मुश्किल है।”
सत्यम मुस्कुराता, “बाबा, मुश्किल है, नामुमकिन नहीं।”
वो दिन में खेतों में पिता की मदद करता और रात को अपनी किताबों के खेत में भविष्य बोता। हर सवाल उसके लिए एक बीज था, हर उत्तर एक फसल।
गांव में बिजली आती-जाती थी, पर सत्यम की पढ़ाई नहीं रुकती थी। वो लालटेन की रोशनी में रात 2 बजे तक बैठकर गणित के सवाल हल करता और सुबह 5 बजे उठकर खेत में पानी देता।
एक दिन उसकी मां ने कहा, “बेटा, इतना क्यों पढ़ता है तू? शरीर कमजोर हो जाएगा।”
सत्यम बोला, “मां, मैं भूखा हूं—रोटी के लिए नहीं, ज्ञान के लिए।”
गांव के बच्चे जब क्रिकेट खेलते, सत्यम मिट्टी पर अंकों से ग्राफ बनाता। जब उसकी नोटबुक खत्म हो जाती, वह पुराने अखबारों के खाली हिस्से पर गणित के फार्मूले लिख देता।
उसके पिता को गांव वालों ने कई बार टोका, “इतना पढ़ा रहे हो, क्या करेगा यह? खेती जोतना है ना?”
रामनिवास ने बस एक बार कहा, “अगर बीज में दम है तो मिट्टी उसे रोक नहीं सकती।”
12 साल की उम्र में जब देश के लाखों बच्चे आईआईटीजेईई का नाम भी नहीं जानते थे, सत्यम ने परीक्षा फॉर्म भर दिया। लोग हंसे, “अरे बच्चा है यह, आईआईटीजेईई मजाक नहीं है।”
लेकिन जब परिणाम आया, पूरे गांव की हंसी थम गई।
सत्यम कुमार, उम्र 12 वर्ष, आईआईटीजेईई क्वालिफाइड।
खबर अखबारों और टीवी तक पहुंची—बिहार का चमत्कार बालक, भारत का सबसे छोटा आईआईटियन।
पर सत्यम के लिए यह बस शुरुआत थी।
वो बोला, “मैं आईआईटी पहुंचा नहीं हूं, बस दरवाजा देखा है। अब असली सफर शुरू होगा।”
2016, आईआईटी कानपुर का विशाल परिसर। पहली बार गांव का वो लड़का इतने बड़े शहर, इतने बड़े कैंपस में कदम रखता है। चारों तरफ अंग्रेजी, लैपटॉप्स, साइकिलें, प्रोजेक्ट्स और लेक्चर्स। और बीच में वो किसान का बेटा, जो अब दुनिया को दिखाना चाहता था कि प्रतिभा जात या जगह से नहीं, जिद से तय होती है।
पहले दिन क्लास में जब उसने बोलना शुरू किया तो सब ने सोचा—यह तो बिहारी है।
पर जब उसने क्वांटम कंप्यूटिंग पर सवाल पूछा तो पूरा क्लासरूम खामोश हो गया।
प्रोफेसर बोले, “मिस्टर कुमार, यू शुड बी इन अ रिसर्च लैब, नॉट इन अ क्लासरूम।”
सत्यम का जुनून अब प्रोजेक्ट्स की ओर बढ़ गया। वो दिन-रात लैब में रहता।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर उसका पहला मिनी प्रोजेक्ट था—एआई फॉर रूरल क्रॉप प्रेडिक्शन, यानी ऐसा सिस्टम जो किसानों को बताए कि कौन सी मिट्टी में कौन सी फसल सबसे ज्यादा उपज देगी।
प्रोफेसर और छात्र सब हैरान रह गए। उसकी कोडिंग स्किल्स इतनी तेज थी कि कई सीनियर छात्र उससे मदद लेने लगे।
एक रात, जब सब सो गए थे, सत्यम लैब में अकेला था।
उसकी स्क्रीन पर Apple का लोगो चमका।
उसने एक एआई एल्गोरिदम Apple के न्यूरल इंजन से बेहतर बनाकर दिखाया था।
वो मुस्कुराया, “अब यह कोड सिर्फ लैब तक नहीं रहेगा, दुनिया तक जाएगा।”
आईआईटी कानपुर का हर कोना अब उसे पहचानने लगा था।
वो लड़का जो कभी मिट्टी में पेंसिल से एबीसी लिखता था, अब Python, Swift और C++ की भाषाओं में भविष्य गढ़ रहा था।
और फिर एक सुबह उसके ईमेल में वो लाइन आई जिसने उसकी जिंदगी बदल दी—
“We’d like to invite you for an interview at Apple Headquarters, Cupertino, California.”
सत्यम ने ईमेल पढ़ा, दिल धड़कने लगा, आंखों में आंसू आ गए।
मां को फोन लगाया, “मां, मुझे अमेरिका बुलाया है एप्पल वालों ने।”
मां ने कहा, “कौन से सेब वाले?”
सत्यम हंस पड़ा, “मां, यह वही सेब है जिससे दुनिया चलती है।”
सुबह की धूप आईआईटी कानपुर के हॉस्टल की खिड़की से झांक रही थी। सत्यम के लैपटॉप पर वो ईमेल अब भी खुला था।
कुछ देर तक वह ईमेल को बस देखता रहा। उसके चेहरे पर कोई दिखावटी मुस्कान नहीं थी, बस आंखों में चमक थी जो कह रही थी—मेहनत का वक्त आ गया है।
उसके दोस्तों ने दौड़कर पूछा, “भाई, तू एप्पल जा रहा है सच में? यार, यह तो सपना है।”
सत्यम ने धीरे से कहा, “सपने देखे नहीं जाते, बनाए जाते हैं।”
कुछ हफ्तों बाद कानपुर के स्टेशन से दिल्ली होते हुए वो अमेरिका के लिए निकला। पहली बार विमान में बैठा। उसके दिल में डर भी था, पर उत्साह उससे बड़ा था।
कैलिफोर्निया की धरती पर कदम रखते ही उसे लगा, जैसे किसी नई दुनिया में आ गया हो—सड़कें, इमारतें, तकनीक सब कुछ अलग था। लेकिन उसके अंदर की सादगी वैसी ही थी।
एप्पल के क्यूपर्टिनो कैंपस के बाहर जब उसने पहली बार वो विशाल कांच की बिल्डिंग देखी, जहां बीच में सफेद चमकता हुआ एप्पल का लोगो था, उसका दिल जोरों से धड़कने लगा। यही है वह जगह, जहां मैं अपने सपनों का इंटरव्यू देने आया हूं।
रिसेप्शन पर बैठी महिला ने मुस्कुरा कर पूछा, “Name please?”
“सत्यम कुमार from India,”
वो चौंक गई, “You look so young, are you really here for interview?”
सत्यम मुस्कुराया, “Yes ma’am, I just turned 17.”
थोड़ी देर बाद उसे एक ग्लास कॉन्फ्रेंस रूम में ले जाया गया।
टेबल पर तीन लोग बैठे थे—एक HR मैनेजर, एक सीनियर इंजीनियर और एक वाइस प्रेसिडेंट ऑफ AI रिसर्च।
सबके चेहरों पर हैरानी थी—इतना छोटा लड़का, इतना आत्मविश्वासी चेहरा।
HR ने पहला सवाल पूछा, “Tell us about yourself.”
सत्यम ने सीधी नजर में देखते हुए जवाब दिया, “I am from a small village in Bihar, India. My father is a farmer. I grew up without electricity most of the time, but I had one light—the fire of learning.”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
फिर उन्होंने पूछा, “Why Apple? Why not Google or Microsoft?”
सत्यम ने मुस्कुराते हुए कहा, “Because Apple doesn’t just make devices, it designs experiences. I don’t want to code for a company, I want to create for humanity.”
सीनियर इंजीनियर ने हंसते हुए कहा, “Okay, show us what you have got.”
Whiteboard पर सवाल लिखा गया—”Design an AI model that predicts user behavior with limited data.”
सत्यम ने बिना किसी घबराहट के बोर्ड उठाया। सिर्फ 10 मिनट में उसने एक नई logic लिखी—Adaptive Neural Prediction Model, जो Apple के AI एल्गोरिदम से भी तेज और हल्का था।
इंटरव्यू पैनल के लोग एक दूसरे को देखने लगे।
फिर उसने अपना लैपटॉप खोला और कहा, “Sir, I can show you the simulation I built for Indian farmers using similar logic.”
उसने कोड रन किया, स्क्रीन पर खेतों के डेटा, मिट्टी की नमी और फसल की भविष्यवाणी दिखने लगी। AI real time में analysis कर रहा था।
सीनियर इंजीनियर आगे झुक कर बोला, “Wait, this is your code?”
“Yes sir, wrote it in a small lab at IIT Kanpur.”
HR ने फुसफुसाया, “He is a genius.”
अगला राउंड था Logical IQ Test, जहां उम्मीदवार 45 मिनट लेते थे।
सत्यम ने उसे 9 मिनट 40 सेकंड में पूरा कर दिया और स्कोर आया—99.8%।
Vice President ने आश्चर्य से पूछा, “You’ve broken our internal record. How did you do that?”
सत्यम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “Sir, when you grow up solving problems without electricity, you learn to think faster than machines.”
कमरे में एक क्षण का सन्नाटा।
फिर Vice President ने खड़े होकर कहा, “Welcome to Apple!”
सत्यम का इंटरव्यू खत्म हुआ। HR टीम ने बाहर आकर पूरी बिल्डिंग में खबर फैला दी—17 year old Indian boy just cracked the toughest Apple interview.
दोपहर में ही उसे ऑफर लेटर मिला—AI Research Engineer, Apple Cupertino।
वो बिल्डिंग से बाहर निकला, आसमान की ओर देखा। सूरज चमक रहा था, जैसे कह रहा हो—तू मिट्टी से आया था, पर अब पूरी दुनिया तेरी रोशनी में नहा रही है।
उसने मां को कॉल किया, “मां, मुझे नौकरी मिल गई।”
“कहां बेटा?”
“Apple में।”
“अच्छा, अब तू सेब बेचने वाला बनेगा?”
सत्यम मुस्कुरा गया, “नहीं मां, मैं दुनिया बदलने वाला बन गया हूं।”
आज वह बिहार का लड़का Apple कंपनी पर सीनियर पोस्ट पर भारत का गर्व बढ़ा रहा है।
दोस्तों, यही थी सत्यम कुमार की कहानी—मिट्टी से निकलकर आसमान तक पहुंचने की।
ऐसी प्रेरणादायक कहानियां सुनने के लिए चैनल सब्सक्राइब करें और अपने दोस्तों को शेयर करें।
News
Fake IAS Officer Saurabh Tripathi Arrested in Lucknow: A Tale of Deception
Fake IAS Officer Saurabh Tripathi Arrested in Lucknow: A Tale of Deception Lucknow, Uttar Pradesh – In a shocking revelation,…
शहर का डीएम और पानी पूरी वाला: इंसाफ की मिसाल
शहर का डीएम और पानी पूरी वाला: इंसाफ की मिसाल सुबह का वक्त था। शहर की हल्की धूप में सड़क…
रमेश की आवाज: एक ऑटोवाले की सच्ची लड़ाई
रमेश की आवाज: एक ऑटोवाले की सच्ची लड़ाई कभी-कभी इस दुनिया में सबसे बड़ा जुर्म गरीब होना होता है। कानून…
In a shocking incident reported on the 17th of this month, Geeta Devi filed a missing person’s report about her brother-in-law, Raju Paswan
Wife and Her Accomplices Confess to Husband’s Murder in Shocking Case from Bihar In a shocking incident reported on the…
Unexpected Twist in Nimisha Priya Case in Yemen: Activist Accused of Financial Irregularities
Unexpected Twist in Nimisha Priya Case in Yemen: Activist Accused of Financial Irregularities Welcome to the digital platform of News…
गांव के मेले में बुजुर्ग ने एक छोटी गुड़िया खरीदी लोगों ने मज़ाक उड़ाया लेकिन उसकी वजह
गांव के मेले में बुजुर्ग ने एक छोटी गुड़िया खरीदी लोगों ने मज़ाक उड़ाया लेकिन उसकी वजह गांव का मेला…
End of content
No more pages to load






