ताकत, अपमान और इंसाफ: आरती की कहानी

गुरुग्राम शहर की चमक-धमक में ओबेरॉय बिल्डर्स के सीईओ विक्रम सिंह का नाम रुतबे और घमंड का दूसरा नाम था। 40 साल की उम्र में ही विक्रम सिंह ने अपनी मेहनत और चालाकी से एक बड़ा बिजनेस साम्राज्य खड़ा कर लिया था, लेकिन उसके लिए इंसान की कोई कीमत नहीं थी—सिर्फ प्रोजेक्ट और पैसा मायने रखते थे।
वह अपने कर्मचारियों, खासकर छोटे मजदूरों और गार्ड्स को तुच्छ समझता था।

इसी कंपनी की एक निर्माणाधीन साइट पर राम सिंह नामक एक ईमानदार, मेहनती और स्वाभिमानी चौकीदार काम करता था। राम सिंह की पत्नी का देहांत हो चुका था, उसकी दुनिया उसकी इकलौती बेटी आरती में ही सिमट गई थी।
आरती पढ़ने में तेज थी, लॉ की पढ़ाई कर रही थी और उसका सपना था कि वह एक दिन जज बने, ताकि गरीबों को इंसाफ दिला सके।
राम सिंह अपनी छोटी सी तनख्वाह से पाई-पाई जोड़कर आरती की पढ़ाई का खर्च उठाता था।

एक रात विक्रम सिंह अपनी नई मर्सिडीज से साइट का अचानक निरीक्षण करने आया। किसी डील के खराब हो जाने के कारण वह गुस्से में था।
गेट पर पहुंचकर उसने जोर-जोर से हॉर्न बजाया। राम सिंह को अपनी झोपड़ी से गेट तक आने में कुछ पल की देर हो गई।
बस इतनी सी बात पर विक्रम सिंह भड़क गया।
गाड़ी से उतरकर राम सिंह को गालियां दीं, और गुस्से में एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया।
राम सिंह लड़खड़ाकर गिर पड़ा, उसकी पगड़ी खुल गई।
दूर खड़ी आरती ने यह सब देखा। उसके दिल में आग सी जल उठी, लेकिन वह बेबस थी।

उस रात आरती ने कसम खाई—वह इतनी ताकतवर बनेगी कि विक्रम सिंह जैसे लोगों को कानून का असली मतलब समझा सके।
राम सिंह अपमानित होकर नौकरी छोड़ बैठा, बीमार रहने लगा।
आरती ने पढ़ाई के साथ-साथ छोटी-मोटी नौकरी शुरू की, और दिन-रात मेहनत करके लॉ की पढ़ाई गोल्ड मेडल के साथ पूरी की।
फिर उसने देश की सबसे कठिन न्यायिक सेवा परीक्षा दी और पास कर ली।
अब वह एक जज बन चुकी थी।
उस दिन राम सिंह की आंखों में वर्षों बाद गर्व और खुशी के आंसू थे।

समय बीता।
जज आरती सिंह की पोस्टिंग गुरुग्राम में ही हुई।
एक दिन उसके कोर्ट में ओबेरॉय बिल्डर्स के खिलाफ केस आया।
कंपनी पर आरोप था कि उसने गरीब किसानों की जमीन अवैध रूप से कब्जा कर ली।
मुख्य आरोपी थे—सीईओ विक्रम सिंह।
पहली सुनवाई के दिन विक्रम सिंह अपने वकीलों के साथ पूरे आत्मविश्वास से कोर्ट में आया।
उसने जज की कुर्सी पर बैठी नौजवान महिला को देखा और मन ही मन मुस्कुराया—यह तो नई जज है, इसे तो आसानी से मैनेज कर लूंगा।

केस की सुनवाई शुरू हुई।
विक्रम सिंह के वकील बड़ी-बड़ी दलीलें दे रहे थे, किसानों को झूठा साबित करने की कोशिश कर रहे थे।
आरती चुपचाप दोनों पक्षों को सुनती रही।
हर सबूत, हर गवाह को बारीकी से परखा।
फिर फैसला सुनाने का दिन आया।
कोर्ट रूम खचाखच भरा था।
जज आरती सिंह ने विक्रम सिंह को कटघरे में बुलाया।

उन्होंने विक्रम सिंह से पूछा—
“आपकी कंपनी किन उसूलों पर चलती है?”
विक्रम सिंह ने घमंड से कहा—”मेहनत, ईमानदारी, क्वालिटी।”
“आपके लिए एक गरीब कर्मचारी की इज्जत की क्या कीमत है?”
विक्रम सिंह बोला—”मैं सभी कर्मचारियों की इज्जत करता हूं।”

फिर आरती ने सवाल किया—
“क्या आपको राम सिंह नाम का चौकीदार याद है, जो पांच साल पहले आपकी साइट पर काम करता था?”
विक्रम सिंह का चेहरा सफेद पड़ गया।
“क्या आपको याद है कि आपने उसे सबके सामने बिना किसी बड़ी गलती के थप्पड़ मारा था?”
विक्रम सिंह चौंक गया।
“आप… आप कौन हैं?”

जज आरती सिंह ने कहा—
“जिस स्वाभिमानी इंसान की पगड़ी आपने अपने थप्पड़ से उछाली थी, वह मेरे पिता थे।”

कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया।
विक्रम सिंह का घमंड एक पल में टूट गया।
अब वह इंसाफ के कटघरे में था, उसकी दौलत और रुतबा किसी काम के नहीं थे।

जज आरती ने ओबेरॉय बिल्डर्स को किसानों की जमीन लौटाने और भारी मुआवजा देने का आदेश दिया।
कंपनी पर बड़ा जुर्माना लगाया।
उनका फैसला कानून और सबूतों पर आधारित था—न्याय किया, बदला नहीं लिया।

फैसला सुनकर विक्रम सिंह वहीं ढह गया।
उसकी सल्तनत एक दिन में हिल गई।
कोर्ट के पीछे की बेंच पर बैठे राम सिंह ने देखा कि उनकी बेटी ने उनका अपमान कानून के सम्मान के साथ दूर कर दिया।
कोर्ट खत्म होने के बाद आरती अपने जज के भारी चौगे को उतारकर एक आम बेटी की तरह अपने पिता से लिपट गई।

“पापा, आज मैंने उस थप्पड़ का कर्ज चुका दिया।”
राम सिंह बोले—”नहीं बेटी, आज तूने मुझे दुनिया का सबसे अमीर बाप बना दिया।”

उस दिन सबने देखा कि गरीब चौकीदार की बेटी ने अपनी मेहनत से साबित कर दिया कि इंसाफ की कलम दौलत की तिजोरी से कहीं ज्यादा ताकतवर होती है।