जिसने मुझे गरीबी देख ठुकरा दिया… सालों बाद अमीर बनकर जब मैं उससे मिला, उसकी दुनिया ही बदल गई!
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पहला भाग: एक नई सुबह
एक करोड़पति नौजवान लड़का, आशीष, सुबह-सुबह अपनी कंपनी जाने के लिए घर से बाहर निकला। गाड़ी पहले से तैयार खड़ी थी। ड्राइवर ने दरवाजा खोला और पूछा, “सर, क्या सीधे ऑफिस चलना है?” आशीष ने बाहर सड़क पर भागती भीड़ को देखा। हर कोई अपने काम में दौड़ रहा था। लेकिन उसके मन में अचानक एक आवाज उठी। पहले ऊपर वाले को धन्यवाद देना जरूरी है। उसने ड्राइवर से कहा, “नहीं, पहले मंदिर चलो।”
कुछ देर बाद कार मंदिर के सामने आकर रुकी। सुबह की हल्की धूप मंदिर की सीढ़ियों पर पड़ रही थी। घंटियों की मधुर गूंज और अगरबत्ती की खुशबू पूरे माहौल को भक्ति से भर रही थी। आशीष ने कार से उतरा और धीरे-धीरे मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगा। हर कदम के साथ अतीत की यादें उसे घेरने लगीं।
वह दिन जब जेब में फीस भरने तक के पैसे नहीं होते थे। वह रातें जब मां चुपचाप भूखी रह जाती थी ताकि उसका बेटा पढ़ सके। वो लम्हे जब पिता ने अपने खुरदुरे हाथों से मजदूरी करके उसके सपनों को सहारा दिया था। और वह अपमान जब किसी ने कहा था, “तेरी औकात नहीं है अमीर लोगों के साथ चलने की।” आज जब वह करोड़पति बन चुका था, तब भी उस दर्द की यादें उसकी रगों में बसी हुई थीं।
दूसरा भाग: अतीत की यादें
आशीष ने मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उन सभी यादों को महसूस किया। उसके मन में एक सवाल उठ रहा था, “क्या मैंने अपने अतीत को भुला दिया है?” लेकिन किस्मत ने उस दिन उसके लिए एक और इम्तिहान रख छोड़ा था। जैसे ही वह ऊपर चढ़ रहा था, उसी समय मंदिर के भीतर से एक महिला पूजा करके नीचे उतर रही थी।

वह साधारण कपड़ों में थी। चेहरे पर थकान, आंखों में गहरी उदासी और चाल में भारीपन। ऐसा लग रहा था मानो जिंदगी ने उसे बार-बार चोट पहुंचाई हो। उसके हाथों में पूजा की थाली थी, लेकिन चेहरा बता रहा था कि उसके मन में सिर्फ शांति नहीं बल्कि टूटी हुई उम्मीदें भी हैं। जैसे ही उसने चेहरा ऊपर उठाया और उसकी नजर उस नौजवान लड़के से मिली, वक्त ठहर गया।
महिला की आंखें भर आईं। आंसू उसके गालों पर ढलक पड़े। आशीष भी वहीं रुक गया। उसकी सांसें तेज हो गईं। लेकिन शब्द उसके होठों तक नहीं पहुंच पाए। यह कोई अनजानी मुलाकात नहीं थी। यह बरसों पुराने रिश्ते का टकराव था। वह रिश्ता जो समय और हालात की आग में जल चुका था। लेकिन दिल की गहराई में अब भी जिंदा था।
तीसरा भाग: एक अनजानी मुलाकात
लोग मंदिर में आते जाते रहे। घंटियों की आवाज गूंजती रही। लेकिन दोनों की नजरें एक-दूसरे से हट नहीं सकी। बरसों बाद अचानक हुई इस मुलाकात ने उनके दिलों के जख्म ताजा कर दिए। मंदिर की सीढ़ियों पर ठहरे उस पल ने जैसे दोनों की सांसें रोक दी थीं।
महिला ने थाली को संभाला लेकिन उसके हाथ कांप रहे थे। आशीष ने भी एक कदम आगे बढ़ाना चाहा पर पैर मानो जमीन से चिपक गए हों। भीड़भाड़ के बीच वे दोनों एक-दूसरे को देखते रह गए। कुछ सेकंड ऐसे बीते जैसे एक उम्र निकल गई हो। फिर महिला ने नजर झुका ली और धीरे-धीरे सीढ़ियां उतरने लगी।
आशीष ने उसके जाते कदमों को देखा और उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वो चेहरा, वही आंखें, वही चाल, सब कुछ तो वही था। वो यादें जिन्हें उसने मजबूरी में अपने दिल के सबसे गहरे कोने में दबा दिया था। अचानक सामने आंख खड़ी हुई। लड़का वही सीढ़ियों पर खड़ा रहा। उसकी आंखें नम थीं और गला भारी।
चौथा भाग: पहचान का एहसास
उसके मन में सवालों का तूफान उमड़ रहा था। “क्या यह वही है? क्या यह वही राधिका है? जिसने कभी उसके साथ सपने देखे थे? क्या किस्मत उसे बरसों बाद यहीं इसी जगह पर ले आई है?” महिला धीरे-धीरे नीचे तक पहुंच चुकी थी। वह सीढ़ियों से उतर कर मंदिर के बाहर खड़ी थी। पर उसके चेहरे पर वही बेचैनी थी। उसके आंसू साफ बता रहे थे कि उसने भी उस नजर को पहचाना है।
कदम आगे बढ़ते लेकिन दिल पीछे मुड़-मुड़कर उस नौजवान की तरफ खींच रहा था। आशीष का दिल अब और चुप रहने को तैयार नहीं था। उसने तेज कदमों से नीचे उतरते हुए पुकारा, “राधिका!” महिला के कदम अचानक रुक गए। उसने पलट कर देखा और उस एक आवाज ने उसके दिल में दबे बरसों पुराने घाव फिर से खोल दिए।
आशीष उसके करीब पहुंचा लेकिन शब्द अभी भी साथ नहीं दे रहे थे। दोनों आमने-सामने खड़े थे। दोनों की आंखें भीगी थीं। बरसों का दर्द, बरसों की दूरी सब एक ही नजर में छलक उठा था। आशीष ने कांपते हुए स्वर में कहा, “यह सच है ना, तुम राधिका ही हो?”
राधिका ने नजरें झुका ली। उसकी पलकों से आंसू गिरे और थाली की पूजा की बूंदों में मिल गए। उसने धीमे से सिर हिलाया। आशीष की आंखों में चमक और दर्द दोनों थे। उसका दिल भर आया। उसे याद आया वो कॉलेज, वो लाइब्रेरी, वो छोटी-छोटी बातें जब राधिका उसके साथ होती थी और उसे वो दिन भी याद आया जब सब कुछ अचानक छीन गया था।
पांचवां भाग: अतीत की परछाई
वो यादें जैसे किसी फिल्म की तरह उसके सामने चलने लगीं। वो गरीब बस्ती जहां से उसने सफर शुरू किया था। जहां पिता दिनरा मजदूरी करते और मां भूखे पेट सोकर उसे पढ़ाई के लिए तैयार करती। वो दिन जब अच्छे अंकों से उसने शहर के बड़े कॉलेज में दाखिला लिया। और वही पहली बार राधिका से मुलाकात हुई।
राधिका जो अमीर घराने की बेटी थी। जिसके पास सब कुछ था। शोहरत, पैसे, गाड़ी। लेकिन फिर भी उसके दिल में जरा भी घमंड नहीं था। उसकी मुस्कुराहट सच्ची थी और उसका दिल सबके लिए साफ। आशीष ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो उससे इतनी जल्दी दोस्ती कर लेगी और दोस्ती से आगे।
वो रिश्ता धीरे-धीरे प्यार में बदल गया। उसके दिल में एक कसक उठी। “काश वो दिन कभी खत्म न होते। काश हालात ने उन्हें जुदा न किया होता।” मंदिर के बाहर अब भीड़ बढ़ती जा रही थी। लोग आ जा रहे थे। लेकिन उनकी आंखों में सिर्फ एक-दूसरे की तस्वीर थी। समय जैसे रुक गया था।
आशीष ने गहरी सांस ली और बोला, “राधिका, इतने सालों बाद आज फिर से भगवान के घर में मिलना कोई संयोग नहीं हो सकता। तुम कहां चली गई थी? क्यों हमें अलग होना पड़ा? और तुम्हारी यह हालत। क्यों?” राधिका ने आंखें पिचकी। उसकी आवाज भारी हो चुकी थी।
छठा भाग: दर्द का खुलासा
“आशीष, बहुत कुछ बदल गया है। बहुत कुछ खो चुका हूं। मेरी जिंदगी वैसी नहीं रही जैसी तुम छोड़कर गए दिन तक थी।” इतना कहकर वह चुप हो गई। लेकिन उसकी चुप्पी ही सब कुछ बयां कर रही थी। आशीष ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। “आओ, कहीं बैठकर बात करते हैं। बरसों का दर्द अब और दिल में दबा नहीं सकते।”
राधिका ने उसकी तरफ देखा। कुछ पल के लिए उसकी आंखों में डर था। लेकिन आशीष की सच्ची नजर देखकर उसने सिर हिलाया। दोनों मंदिर के पास बने पत्थर के चबूतरे पर जाकर बैठ गए। बरसों की दूरी के बाद यह पहला मौका था जब वे आमने-सामने बैठकर अपने दिल का बोझ हल्का करने वाले थे।
पत्थर के चबूतरे पर बैठे दोनों कुछ पल तक चुप रहे। मंदिर की घंटियां अब दूर से हल्की सुनाई दे रही थीं। पर उनके दिलों में बरसों का शोर उठ रहा था। आशीष राधिका को देखता रहा। मानो बरसों बाद भी उसकी आंखों में वही मासूमियत ढूंढ रहा हो। लेकिन आज उन आंखों में चमक की जगह दर्द भरा हुआ था।
सातवां भाग: संघर्ष की दास्तान
राधिका ने गहरी सांस ली और बोली, “आशीष, तुम सोच भी नहीं सकते कि इन सालों में मैंने क्या-क्या झेला है।” उसकी आवाज कांप रही थी लेकिन हर शब्द दिल से निकल रहा था। उसकी आंखें फिर से भीग गईं और उसने अपना चेहरा झुका लिया।
“जिस दिन तुम्हें मेरे पिता ने अपमानित किया था। उसी दिन मेरी जिंदगी ने करवट ले ली थी। मैंने बहुत रोकर पापा से कहा कि तुम सच्चे हो। तुम्हारा दिल साफ है, लेकिन उन्होंने मेरी एक ना सुनी। उन्होंने मेरे लिए रिश्ता पक्का कर दिया और मैं चाहकर भी तुम्हें खोज न सकी क्योंकि तुमने खुद को गायब कर लिया था।”
आशीष की आंखों में पीड़ा तैरने लगी। उसने चाहा कि बीच में बोल पड़े, पर राधिका के होठों से टूटे शब्द उसे रोकते रहे। “शादी के दिन मैं हजारों लोगों के बीच थी। लेकिन मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारा चेहरा था। मैंने खुद से पूछा, ‘क्या यही मेरी किस्मत है?’ और हां, वही किस्मत थी। आशीष, उस घर में जहां मैं दुल्हन बनकर गई थी, वहां कभी सुकून नहीं मिला।”
आठवां भाग: एक दर्दनाक सच
“जिस पति के साथ मेरा नाम जोड़ा गया, उसकी आदतें जहरीली थीं। शराब, गलत संगत और गुस्सा यही सब था उसकी जिंदगी में। मैंने बहुत समझाया। बहुत सहा। लेकिन हर कोशिश बेकार गई। कई बार मुझे लगा कि शायद मैं ही गलत हूं। पर जब उसने पहली बार हाथ उठाया, तब समझ आया कि गलती मेरी नहीं थी।”
राधिका के शब्द आशीष के दिल पर चोट कर रहे थे। वो अपनी मुट्ठियां भी कर बैठा रहा। उसकी आंखें कह रही थीं, “काश मैं उस वक्त तुम्हारे साथ होता।” राधिका ने आंसू पोंछे और आगे बोली, “चार साल तक मैंने वह नर्क सहा। और फिर एक दिन नशे में गाड़ी चलाते हुए उसका एक्सीडेंट हो गया और सब खत्म हो गया। मैं अकेली रह गई। आशीष, बिलकुल अकेली।”
उसकी आवाज टूटी लेकिन वह बोलती रही। “पति की मौत के बाद भी मेरा दुख खत्म नहीं हुआ। ससुराल वालों ने मुझे बोझ समझा। घर से निकाल दिया। मैंने पापा का दरवाजा खटखटाया तो उन्होंने मुझे गले तो लगाया। पर पड़ोसियों की बातें सुनकर वह भी टूटने लगे। लोग कहते विधवा बेटी को घर पर क्यों रखा है? आशीष, मैं जिंदा रही लेकिन अंदर से रोज-रोज मरती रही।”
आशीष के गालों पर भी आंसू ब निकले। उसने हाथ बढ़ाकर राधिका की आंखों के आंसू पोंछ दिए। उसकी आवाज भारी थी। “राधिका, मुझे नहीं पता कि भगवान ने यह सब क्यों होने दिया। लेकिन एक बात आज कहूंगा। तुम अकेली नहीं हो। आज मैं हूं और हमेशा रहूंगा।”
नौवां भाग: एक नई शुरुआत
राधिका ने उसकी तरफ देखा। बरसों बाद उसके चेहरे पर हल्की सी राहत आई। लेकिन दिल के कोने में अब भी डर था। “क्या यह सच में मुमकिन है? क्या बीते हुए कल की जंजीरें कभी टूट पाएंगी?” दोनों वही चुपचाप बैठे रहे और मंदिर की सीढ़ियां उनके आंसुओं की गवाह बन गईं।
राधिका ने तो अपना दर्द खोल कर रख दिया था। अब बारी आशीष की थी। उसने गहरी सांस ली। आसमान की ओर देखा और धीमी आवाज में बोला, “राधिका, उस दिन जब तुम्हारे पापा ने मुझे अपमानित किया था। उस पल ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर की सारी ताकत खत्म हो गई। मैंने चाहा था कि तुम्हें सब बता दूं। लेकिन उन्होंने कहा अगर सच्चा हूं तो खुद पीछे हट जाऊं। मैंने वही किया। तुम्हारे सामने कठोर बनने का नाटक किया। ताकि तुम्हारी जिंदगी मेरे कारण और मुश्किल न हो।”
उसकी आंखें भर आईं। “उस दिन जब मैं तुम्हारे घर से निकला तो सीधा अपने कमरे में बंद हो गया। दिनों तक किसी से नहीं मिला। कई बार तो सोचा कि इस दुनिया से चला जाऊं। लेकिन फिर मां-बाप का चेहरा सामने आ जाता। उनकी मेहनत, उनका त्याग। मुझे हिम्मत देता रहा कि नहीं? आशीष, तू ऐसे हार नहीं सकता।”
राधिका ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी। हर शब्द उसके दिल पर दस्तक दे रहा था। आशीष ने आगे कहा, “मैंने ठान लिया कि गरीबी मेरी पहचान नहीं बनेगी। मैंने पढ़ाई के साथ-साथ छोटे-छोटे काम शुरू किए। रात को ट्यूशन पढ़ाता, दिन में पार्ट टाइम काम करता। कई बार भूखा सोया लेकिन मेहनत नहीं छोड़ी। धीरे-धीरे इतना कमा लिया कि एक छोटा सा बिजनेस शुरू कर सकूं।”
दसवां भाग: सफलता की कहानी
उसकी आंखों में चमक आ गई। “वो बिजनेस शुरू में बहुत छोटा था। लोग मजाक उड़ाते थे। कहते यह क्या करेगा? लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। दिन-रात काम किया, सोना भूल गया। और जब पहला ऑर्डर पूरा हुआ तो लगा कि जिंदगी ने मुझे नया रास्ता दिखा दिया है।”
राधिका के चेहरे पर हैरानी और गर्व दोनों थे। उसने हल्की आवाज में कहा, “आशीष, तुमने यह सब अकेले किया?” आशीष मुस्कुराया। “हां, अकेले। लेकिन हर कदम पर तुम्हारी याद थी। जब थक जाता तो सोचा करता, ‘अगर राधिका साथ होती तो कहती हार मत मानना।’ तुम्हारी वह हंसी, वो बातें मेरी ताकत बन गई। और धीरे-धीरे वही छोटा सा काम बड़ी कंपनी में बदल गया।”
उसकी आवाज और गहरी हो गई। “आज मेरे पास सब कुछ है—पैसा, शोहरत, नाम। लेकिन जब भी रात को अकेला होता हूं तो दिल पूछता है, ‘आशीष, किसके लिए मेहनत कर रहा है?’ और हर बार तुम्हारा चेहरा सामने आ जाता है।”
राधिका की आंखों से आंसू फिर ब निकले। उसने कांपते हुए कहा, “आशीष, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि तुमने इतना कुछ सहा होगा और यह सब मेरी वजह से।” आशीष ने उसका हाथ थाम लिया। “नहीं, राधिका, यह सब तुम्हारी वजह से नहीं बल्कि तुम्हारे लिए था। अगर उस दिन तुम्हारे पापा मुझे नीचा ना दिखाते, तो शायद मैं कभी इतनी ऊंचाई पर नहीं पहुंचता। मेरे अंदर की आग उसी अपमान से जली थी और उसी ने मुझे आज यहां खड़ा किया है।”
ग्यारहवां भाग: एक नई पहचान
दोनों की आंखों में आंसू थे। लेकिन उन आंसुओं के पीछे अब एक नई चमक थी। एक उम्मीद की किरण। मंदिर की घंटियों की आवाज तेज हो गई थी। जैसे भगवान भी गवाह बन रहे हों कि दो बिछड़े दिल फिर से पास आ रहे हैं। बरसों की दूरी मिटाने वाली उस बातचीत ने दोनों के दिलों का बोझ हल्का कर दिया था।
राधिका ने अपने दर्द का समंदर बाहर बहा दिया था और आशीष ने अपनी मेहनत की दास्तान सुनाई थी। अब दोनों के बीच एक सन्नाटा था। लेकिन वो सन्नाटा डर का नहीं बल्कि उम्मीद का था। आशीष ने राधिका की आंखों में गहराई से देखा और कहा, “राधिका, मैंने जिंदगी भर सिर्फ एक लड़की से प्यार किया है और वह तुम हो। तुम्हारा अतीत चाहे जैसा भी रहा हो। मेरे लिए तुम वही हो जो कॉलेज की लाइब्रेरी में मेरी किताबें संभालती थी। जो मेरी सादगी पर मुस्कुराती थी और जो मुझे बिना बोले समझ जाती थी।”
राधिका कांप गई। उसके होंठ हिले लेकिन आशीष, “मैं अब वैसी नहीं रही। समाज मुझे विधवा कहता है। लोग ताने मारते हैं। मैं तुम्हारे लायक कैसे हो सकती हूं?” आशीष ने उसका हाथ कसकर थाम लिया। “यह समाज कुछ भी कहे लेकिन मेरे लिए तुम वही राधिका हो। अगर उस वक्त तुमने मुझे गरीब जानकर ठुकराया नहीं, तो आज मैं तुम्हें अकेली जानकर कैसे ठुकरा दूं? प्यार कभी परिस्थितियों से छोटा नहीं होता।”
बारहवां भाग: एक नई शुरुआत
राधिका की आंखें भर आईं। बरसों से दबा हुआ दर्द पिघल कर राहत में बदलने लगा। उसने धीरे से सिर झुका दिया। जैसे कह रही हो, “अब मैं भागना नहीं चाहती।” आशीष ने मुस्कुरा कर कहा, “चलो, तुम्हारे पापा के पास चलते हैं। इस बार मैं झुकने नहीं आया। इस बार मैं तुम्हें अपनाने आया हूं। और अगर वह मुझे फिर से ठुकराएंगे तो मैं भी अब चुप नहीं बैठूंगा।”
उस शाम जब दोनों राधिका के पिता के घर पहुंचे तो दरवाजे पर खड़े होकर आशीष ने विनम्र आवाज में कहा, “अंकल, मैं आशीष हूं। वही गरीब लड़का जिसे आपने कभी अपनी बेटी के लायक नहीं समझा था। आज मैं करोड़पति हूं। लेकिन मुझे अपनी हैसियत साबित नहीं करनी। मैं बस यह कहना चाहता हूं कि आपकी बेटी अकेली है और मैं उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता।”
राधिका के पिता की आंखों में शर्म और पछतावे के आंसू उमड़ आए। वो कांपते हुए बोले, “बेटा, उस दिन मैंने बहुत बड़ी गलती की थी। अगर तू मेरी बेटी को अपना ले तो यह मेरे लिए सबसे बड़ा वरदान होगा।”
आशीष ने आगे बढ़कर उनका हाथ पकड़ लिया। “अंकल, यह वरदान नहीं। मेरा सौभाग्य है।” कुछ ही समय बाद आशीष और राधिका का विवाह पूरे रीति-रिवाज से हुआ। मंदिर की वही घंटियां अब उनके नए जीवन की गवाह बनीं।
तेरहवां भाग: प्यार की जीत
राधिका ने बरसों का अकेलापन भुलाकर नए सिरे से जीना शुरू किया और आशीष ने भी समझ लिया कि असली जीत पैसे की नहीं, प्यार की होती है। दोस्तों, इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि सच्चा प्यार कभी परिस्थितियों का मोहताज नहीं होता।
अगर दिल साफ हो और भावनाएं सच्ची हों तो समाज की हर दीवार गिराई जा सकती है। प्यार का रास्ता कठिन हो सकता है। लेकिन अंत में वही सबसे बड़ी ताकत बनता है।
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