बीमार धर्मेंद्र को आखिरी वक्त में, क्यों अकेला छोड़ गई हेमा मालिनी ने! Dharmendra Sad News

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आख़िरी वक्त में क्यों अकेले रह गए धर्मेंद्र? ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी ने क्यों छोड़ा साथ, लौटी पहली पत्नी प्रकाश कौर

बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र का नाम सुनते ही एक मजबूत, जिंदादिल और मोहब्बत के लिए लड़ जाने वाले इंसान की छवि उभरती है। लेकिन 90 साल की उम्र में, जब जीवन के सबसे नाजुक मोड़ पर इंसान को सबसे ज्यादा अपने अपनों की जरूरत होती है, तब धर्मेंद्र के साथ कौन है? क्या उनका सच्चा प्यार हेमा मालिनी आज उनके पास है, या फिर वक्त ने उन्हें उसी रिश्ते की गोद में लौटा दिया जिसे कभी उन्होंने पीछे छोड़ दिया था? यह कहानी सिर्फ ग्लैमर, मोहब्बत या धोखे की नहीं, बल्कि उस हकीकत की है जो वक्त के साथ हर किसी के सामने आती है।

पंजाब के खेतों से मुंबई की चमक तक

8 दिसंबर 1935 को पंजाब के फगवाड़ा जिले के नसराली गाँव में जन्मे धर्म सिंह देओल, एक सरकारी स्कूल के हेडमास्टर के बेटे थे। बचपन खेतों की मिट्टी, स्कूल की घंटी और गाँव के मेलों में बीता। किताबों से ज्यादा सिनेमा के पर्दे और चौपाल पर बजते फिल्मी गानों ने उनके दिल में जगह बना ली थी। लेकिन किस्मत ने जल्दी ही जिम्मेदारियों का बोझ डाल दिया, पढ़ाई अधूरी रह गई और 19 साल की उम्र में परिवार ने प्रकाश कौर से उनकी शादी तय कर दी। यह अरेंज्ड मैरिज थी, जिसमें मोहब्बत नहीं, परंपरा थी।

प्रकाश कौर एक साधारण, घरेलू महिला थीं—ना फिल्मी दुनिया से कोई लेना-देना, ना कोई दिखावा। वह घंटों रसोई में खाना बनातीं, घर संभालतीं और बिना किसी शिकायत के पति का इंतजार करतीं। धर्मेंद्र खेतीबाड़ी में हाथ बंटाते, लेकिन दिल फिल्मों में ही रहता। 1958 में फिल्मफेयर टैलेंट हंट में हिस्सा लिया और हजारों में चुने गए। मुंबई का सफर शुरू हुआ, लेकिन प्रकाश कौर अमृतसर में ही रहीं। संघर्ष के दिनों में धर्मेंद्र ने निजी जीवन को छुपाकर, छोटे-मोटे रोल्स और भूखे दिन अकेले झेले। जब भी गाँव लौटते, प्रकाश बिना सवाल किए उनका स्वागत करतीं—यही वो भरोसा था जिसने धर्मेंद्र को हिम्मत दी।

फिल्मी दुनिया में सितारा और निजी जीवन में तूफान

1960 में ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ से धर्मेंद्र को पहला लीड रोल मिला। फिल्म बड़ी हिट नहीं थी, लेकिन उनकी मासूमियत और स्क्रीन प्रेजेंस ने डायरेक्टर्स का ध्यान खींचा। जल्द ही वे एक्शन हीरो और रोमांटिक स्टार के तौर पर छा गए। 1960 के दशक के मध्य में सनी और बॉबी का जन्म हुआ, लेकिन काम के दबाव के चलते पारिवारिक जीवन पीछे छूटता गया।

इसी दौरान, धर्मेंद्र की जिंदगी में तूफान आया—हेमा मालिनी। तमिलनाडु की ब्राह्मण लड़की, जिसे मीडिया ने ‘ड्रीम गर्ल’ का ताज दिया। दोनों की पहली मुलाकात ‘शराफत’ के सेट पर हुई। शुरुआत में रिश्ता प्रोफेशनल था, लेकिन ‘सीता और गीता’ जैसी फिल्मों की शूटिंग के दौरान दोनों करीब आ गए। कैमरे के सामने उनकी केमिस्ट्री इतनी नेचुरल थी कि दर्शक ही नहीं, डायरेक्टर्स तक हैरान थे।

धर्मेंद्र, जो पहले से शादीशुदा और दो बच्चों के पिता थे, हेमा के मोह में बंधते चले गए। वे बहाने से सीन दोहराते, गुलाबों के गुलदस्ते भेजते, शूटिंग के बाद कार में इंतजार करते। धीरे-धीरे हेमा भी पिघल गईं। लेकिन सबसे बड़ी दीवार थी—पहली पत्नी प्रकाश कौर। प्रकाश ने कभी तलाक नहीं दिया, जिससे यह प्रेम कहानी और जटिल हो गई।

मोहब्बत के लिए धर्म बदलना और दोहरी ज़िंदगी

आखिरकार, 1979 में धर्मेंद्र और हेमा ने इस्लाम कबूल कर निकाह किया। धर्मेंद्र बने दिलावर खान और हेमा बनीं आयशा। उन्होंने कुछ सालों तक इस शादी को छुपाए रखा। हेमा ने बाद में कहा कि धर्म बदलना सिर्फ कानूनी औपचारिकता थी, असली धर्म तो प्यार है। शादी के बाद धर्मेंद्र की जिंदगी दो हिस्सों में बंट गई—एक तरफ हेमा और उनकी बेटियाँ ईशा और अहाना, दूसरी तरफ प्रकाश कौर और बेटे सनी-बॉबी। धर्मेंद्र इन दोनों घरों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते रहे।

सनी और बॉबी के करियर की शुरुआत में उन्होंने पिता और प्रोड्यूसर दोनों का फर्ज निभाया। वहीं हेमा ने भी बेटियों की परवरिश को प्राथमिकता दी। मीडिया हमेशा सवाल करता रहा—कौन सा घर असली है, किसे ज्यादा वक्त मिलता है? लेकिन दोनों परिवारों के बच्चों ने कभी कटुता नहीं दिखाई। ईशा और अहाना ने सनी-बॉबी को बड़े भाई की तरह माना, सनी ने भी पिता के फैसलों का सम्मान किया।

बुढ़ापे में लौटा वही पुराना रिश्ता

समय के साथ धर्मेंद्र की उम्र बढ़ी, बीमारियाँ आईं। 2025 की शुरुआत में आंख की गंभीर समस्या के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। सर्जरी हुई, आंख पर पट्टी बंधी। मीडिया ने देखा—उनके साथ हैं पहली पत्नी प्रकाश कौर, बेटे सनी और बॉबी। हेमा मालिनी सिर्फ औपचारिक मुलाकात के लिए आईं और जल्दी लौट गईं। इलाज के लिए अमेरिका ले जाने पर भी साथ गया पहला परिवार, ड्रीम गर्ल नहीं दिखीं।

सनी देओल ने कहा, “मां प्रकाश कौर हमेशा पापा के लिए रही हैं, चाहे हालात कैसे भी हों।” यह बयान उस रिश्ते की सच्चाई था, जो बिना प्रचार, बिना तमाशे के, चुपचाप हमेशा खड़ा रहा। प्रकाश कौर, जिन्होंने कभी दर्द का इजहार नहीं किया, अब दिन-रात धर्मेंद्र की देखभाल कर रही हैं—दवाइयाँ देना, आंख में ड्रॉप डालना, हाथ पकड़कर पुराने किस्से सुनाना। यह सिर्फ देखभाल नहीं, बल्कि अधूरे रिश्ते में फिर से जान डालना है।

क्या हेमा मालिनी और धर्मेंद्र का प्यार अब बीते जमाने की बात है?

सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल्स पर सवाल उठते हैं—क्या जवानी का प्यार बुढ़ापे में ठहर नहीं पाता? क्या वही साथी असली होता है, जो मुश्किल वक्त में आपके पास खड़ा हो? धर्मेंद्र की आंख की सर्जरी सिर्फ मेडिकल इवेंट नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी का आईना थी। उन्होंने मोहब्बत के लिए समाज से बगावत की, धर्म बदला, लेकिन आखिर में साथ वही है जिसे कभी अतीत मानकर छोड़ दिया था।

शायद उम्र यही सिखाती है—असली घर वो है, जहाँ आपको बिना शर्त अपनाया जाए। शोहरत और रिश्तों की चमक फीकी पड़ जाती है, लेकिन मुश्किल घड़ी में जो हाथ आपके माथे पर ठंडा स्पर्श रखे, वही आपकी आखिरी पनाह है। आज धर्मेंद्र के लिए वह हाथ है प्रकाश कौर का।

निष्कर्ष: वक्त, मोहब्बत और सच्चे रिश्ते

यह सिर्फ एक पति-पत्नी की कहानी नहीं, बल्कि उस सच्चाई का आईना है जिससे हम सब कभी न कभी रूबरू होते हैं। वक्त मोहब्बत, शोहरत और रिश्तों से भी ताकतवर है। वही तय करता है कि अंत में आपके पास कौन खड़ा रहेगा—और अक्सर वो वही होता है, जिसे आपने कभी हल्के में लिया था।

धर्मेंद्र की कहानी सिखाती है—सच्चा साथी वही है, जो बुढ़ापे की कमजोरी, बीमारी और अकेलेपन में बिना शोर-शराबे के, बिना शिकायत के, बस आपके साथ खड़ा हो। और यही है रिश्तों की असली खूबसूरती।

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