2 साल बाद जब पति लौटा… पत्नी को ट्रेन में भीख माँगते देखा, फिर जो हुआ

टूटे सपनों से नई उम्मीद तक
भाग 1: बिछड़ना और इंतजार
दो साल बाद, रवि अपने गांव लौट रहा था। उसके पास कुछ नहीं था—ना पैसा, ना सामान, बस आंखों में पत्नी सिया को देखने की बेचैनी और दिल में डर कि पता नहीं वह कैसी होगी। ट्रेन के डिब्बे में बैठा रवि यही सोच रहा था—कहीं सिया ने उसका इंतजार करना छोड़ तो नहीं दिया?
तभी डिब्बे में एक आवाज आई, “बाबू, भगवान के नाम पर कुछ दे दो। बच्चे के लिए दूध नहीं है।”
रवि ने मुड़कर देखा, उसकी सांस रुक गई। फटे आंचल में एक औरत, गोद में बच्चा, चेहरा आंसुओं से भरा—वह कोई और नहीं, उसकी अपनी पत्नी सिया थी। रवि उसके पैरों में गिर पड़ा, “सिया, यह क्या हाल बना लिया तुमने?”
सिया फूट-फूटकर रो पड़ी, “रवि, मैंने तुम्हारा इंतजार किया, लेकिन जिंदगी ने हमें भीख मांगने पर मजबूर कर दिया।”
भाग 2: अतीत की यादें
सड़क के किनारे खड़ा रवि, धूल भरी हवा को चुपचाप महसूस कर रहा था। हाथ में पुराना बैग, आंखों में थकान, दिल में बेचैनी। दो साल पहले जब वह नौकरी की तलाश में शहर गया था, उसने सोचा था कि वहां नौकरी मिलेगी, पैसा आएगा, घर ठीक होगा और सिया को खुशियां दूंगा। लेकिन किस्मत ने धोखा दिया। फैक्ट्री में दुर्घटना हुई, काम बंद हो गया। वह छोटे-मोटे काम करके किसी तरह जिंदा रहा। उसके पास ना मोबाइल था, ना किसी से संपर्क का तरीका। दो साल तक वह अपने ही घर वालों से दूरी में कैद रहा।
ट्रेन की सीटी बजी, रवि जल्दी से अंदर चढ़ गया। खिड़की के पास जगह मिल गई। दिल की धड़कनों में घबराहट थी—सिया कैसी होगी? खुश होगी या गुस्सा? क्या वह अब भी इंतजार कर रही होगी?
भाग 3: शादी और संघर्ष
दो साल पहले गांव में उसकी शादी बहुत साधारण थी, लेकिन प्यार से भरी। सिया मधुर स्वभाव की लड़की थी, जिसने हर मुश्किल में साथ रहने का वादा किया था। शादी के बाद धीरे-धीरे घर की हालत और खराब होने लगी। पिता बीमार, मां की दवाओं का खर्च, काम-धंधा लगभग बंद। रवि ने गांव की चाय दुकान में काम किया, फिर ईंट भट्ठे में, लेकिन कमाई बस गुजारे जितनी थी।
एक रात जब घर में चूल्हा भी नहीं जला, सिया चुपचाप उसकी बगल में बैठ गई, “रवि, तुम शहर जाओ। काम ढूंढो। मैं सब संभाल लूंगी यहां।”
रवि ने उसकी आंखों में विश्वास देखा, प्यार और उम्मीद। उसी रात उसने फैसला किया—वह शहर जाएगा और अपनी दुनिया को बेहतर बनाकर लौटेगा।
भाग 4: शहर में संघर्ष
शहर में कदम रखते ही उसे समझ आ गया कि जिंदगी कितनी कठोर है। काम के लिए लाइनें, लोगों की धक्कामुक्की, भूख, नींद रहित रातें। एक फैक्ट्री में काम मिला, लेकिन कुछ ही महीनों बाद बड़ा हादसा हो गया। वह जख्मी हुआ और फैक्ट्री बंद। मालिक पैसे देकर भाग गया। अस्पताल से ठीक होकर निकला, लेकिन जेब खाली। उधार मांगते-मांगते थक गया, धीरे-धीरे चुप हो गया, टूट गया। दो साल में उसने खुद को ऐसे बदल लिया जैसे वह इंसान ही नहीं, बस एक शरीर था जो सांस ले रहा था।
भाग 5: ट्रेन में पुनर्मिलन
ट्रेन आधी दूरी तय कर चुकी थी। अचानक डिब्बे में एक महिला की आवाज सुनाई दी, “बाबू भैया, भगवान भला करेगा, कुछ दे दो, बहुत भूख लगी है।”
रवि ने गर्दन घुमाई—फटे आंचल में लिपटी, बाल बिखरे, चेहरा धूप और दर्द से जला हुआ, गोद में बच्चा लिए महिला डिब्बे से गुजर रही थी। रवि की सांस रुक गई, दिल धकधक करने लगा। वह महिला सिया थी। दुनिया जैसे थम गई।
रवि अविश्वास में खड़ा रह गया, “सिया!”
सिया ने उसकी ओर देखा, पहले तो समझ नहीं आया, लेकिन ध्यान से देखा तो कटोरा गिर गया, बच्चा रोने लगा और सिया फूट-फूटकर जमीन पर बैठ गई, “रवि, तुम जिंदा हो?”
रवि उसके पास दौड़ा, फर्श पर बैठकर उसका चेहरा पकड़ लिया, “सिया, यह क्या हाल बना लिया तुमने? तुम यहां भीख क्यों मांग रही हो? घरवाले कहां हैं?”
सिया रोते-रोते बोल ही नहीं पा रही थी, उसके आंसू रवि के हाथों पर गिर रहे थे।
डिब्बे में सन्नाटा था, लोग चुपचाप दृश्य देख रहे थे। कुछ पल बाद सिया ने टूटी आवाज में कहा, “चलो, यहां नहीं, सब बताऊंगी।”
भाग 6: प्लेटफार्म पर सच्चाई
रवि ने बच्चे को गोद में लिया, सिया को संभालते हुए सीट पर बैठाया। ट्रेन की आवाज अब कानों में बम की तरह फट रही थी। रवि के दिल में हजारों सवाल थे—दो साल में क्या हो गया? सिया भीख क्यों मांग रही है? बच्चा किसका है? परिवार कहां है?
ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी। रवि ने सिया का हाथ मजबूती से पकड़ा, उसे नीचे उतारा। प्लेटफार्म पर एक बेंच थी, वहीं दोनों बैठ गए। बच्चा सिया की गोद में शांत था। कुछ देर चुप्पी रही, फिर रवि ने पूछा, “अब बताओ, सिया, यह सब कैसे हुआ?”
सिया ने गहरी सांस ली, नजर जमीन पर टिकाई और टूटी आवाज में शुरुआत की, “तुम्हारे जाने के बाद शुरू में सब ठीक था। मुझे यकीन था तुम लौटोगे, लेकिन छह महीने बीत गए, फिर एक साल—तुम्हारा कोई पता नहीं।”
रवि ने कहा, “सिया, मेरे पास मोबाइल नहीं था, काम से निकाल दिया गया, मैं खुद सड़कों पर था।”
सिया ने सिर हिलाया, “मुझे पता है, पर उस समय हमें कुछ नहीं पता था। गांव में लोग तरह-तरह की बातें करने लगे—कहते थे कि तुम हमें छोड़कर चले गए।”
“तुम्हारे जाने के कुछ ही महीनों बाद बाबूजी चल बसे। मां की तबीयत और खराब हो गई। दवाइयों के लिए पैसे नहीं थे। मैंने खेत बेचने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने फायदा उठाना चाहा, कोई मदद नहीं की।”
रवि की मुट्ठियां कस गईं, “मां अब कहां है?”
सिया रो पड़ी, “नहीं बची, रवि। दवा के बिना एक रात चली गई।”
रवि पत्थर सा बैठ गया, उसकी आंखों से आंसू खुद-ब-खुद गिरने लगे। उसके भीतर पछतावे का तूफान था।
भाग 7: सिया की लड़ाई
“मां के बाद मैंने घर-घर काम किया, पर यहां के लोग भी इंसानियत भूल जाते हैं। कुछ मर्द गंदी नजर से देखते थे, कई बार गंदी बातें भी की। फिर एक दिन मकान मालिक ने घर से निकाल दिया, कहा—किराया दो, वरना निकल जाओ।”
रवि कांप गया, “तुम दो साल से अकेली सब झेल रही थी, और मैं कहां था?”
सिया ने बच्चे की तरफ देखा, “यही मेरे पेट में था तब—तुम्हारा बच्चा।”
रवि की आंखें भर आईं, “फिर तुम भीख मांगने कैसे?”
“जब कहीं काम नहीं मिला, बच्चा छोटा था, दूध तक नहीं मिलता था, तब मजबूरी ने हाथ जोड़ दिए। प्लेटफार्म पर बैठी एक वृद्धा मिली, उसी ने कहा—खाने को मिलेगा, कम से कम बच्चा जिंदा रहेगा। और मैं उसकी बात मान गई।”
रवि का दिल दर्द से भर गया, उसे लगा जैसे वह दुनिया का सबसे बड़ा गुनहगार है। वह घुटनों पर बैठ गया, सिया के पैरों को छूकर बोला, “सिया, मैं माफी के लायक नहीं, पर एक मौका दो। अब तुम्हें कभी दर्द नहीं दूंगा, मैं सब ठीक करूंगा।”
सिया ने उसे उठाया, बच्चे को उसकी गोद में दे दिया, “मौका तुम्हें नहीं, हमें मिला है, रवि। हमारा परिवार फिर से पूरा हो गया।”
रवि ने बच्चे को सीने से लगाया, उसका माथा चूमा, “अब हम भीख नहीं मांगेंगे, अब जिंदगी के लिए लड़ेंगे।”
सिया ने सिर उसके कंधे पर रख दिया। ट्रेन की आवाज फिर से गूंजी, लेकिन अब वह शोर नहीं, एक नई शुरुआत जैसा महसूस हुआ।
भाग 8: संघर्ष की नई शुरुआत
स्टेशन से बाहर निकलते हुए रवि बार-बार सिया और बच्चे की ओर देख रहा था। उसके मन में पछतावे की आग जल रही थी। अगर उस दिन वह घर ना छोड़ता तो शायद आज यह हालत ना होती। लेकिन अब वह टूटना नहीं चाहता था। वह जानता था कि अब वक्त रोने का नहीं, बल्कि खड़े होने का है।
स्टेशन के बाहर एक चाय की दुकान थी। रवि ने सिया को वहां बैठाया, दुकानदार से गर्म दूध मंगाया। बच्चा तुरंत दूध पीने लगा, जैसे कई दिनों से पेट नहीं भरा था। सिया उसे देखती रही, आंखों में गहरी थकावट, लेकिन हल्की सी मुस्कान। रवि चुपचाप बैठकर सिया के चेहरे को पढ़ता रहा—चेहरे पर संघर्ष की गहरी लकीरें, भूख, दर्द, अपमान और अकेलेपन की कहानियां दर्ज थीं।
कुछ पल बाद उसने धीरे आवाज में कहा, “सिया, अब हम कहां चलेंगे?”
सिया ने झिझकते हुए जवाब दिया, “वहीं प्लेटफार्म के पास वाली झोपड़ी में, जहां मैं इन दो महीनों से रह रही हूं।”
रवि के लिए यह सुनना भी पीड़ा था। लेकिन उसने सिर झुकाया, “चलो।”
भाग 9: झोपड़ी में उम्मीद
प्लेटफार्म के पास की झोपड़ी—एक टूटा हुआ चबूतरा, जिस पर पॉलिथीन और गत्ते बांधकर किसी तरह छत बनाई थी। हवा की हर तेज लहर उसे हिला देती थी। अंदर कुछ पुराने कपड़े, टूटा लोटा और एक फटा कंबल पड़ा था।
रवि ने यह दृश्य देखा, उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह जमीन पर बैठ गया, “सिया, मैं इंसान कहलाने लायक भी नहीं रहा।”
सिया ने हल्के से उसका हाथ थाम लिया, “नहीं रवि, इंसान वही है जो वापस लौटने की हिम्मत रखे। जीवन में गिरना अपराध नहीं, हार मान लेना अपराध है।”
रवि ने गहरी सांस ली, “कल सुबह से मैं काम ढूंढना शुरू करूंगा, जो मिलेगा करूंगा।”
सिया ने मुस्कुराकर कहा, “हम दोनों करेंगे।”
रात लंबी थी, लेकिन बहुत समय बाद दोनों की आंखों में उम्मीद थी। रवि ने बच्चे को सीने से लगाया और पहली बार महसूस किया कि शायद जिंदगी उसे दूसरा मौका दे रही है।
भाग 10: मेहनत और सम्मान की वापसी
अगली सुबह सूरज उगने से पहले ही रवि उठ गया। ठंडे पानी से मुंह धोया, बच्चे के सिर पर हाथ फेरा, “दुआ करना सिया, आज काम मिल जाए।”
सिया ने कहा, “भगवान हमारे साथ है, रवि।”
रवि शहर के औद्योगिक क्षेत्र की ओर निकल पड़ा, काम की तलाश में। एक कारखाने से दूसरे कारखाने, एक दुकान से दूसरी दुकान भटकता रहा—”काम चाहिए भाई”, “नई जगह खाली नहीं है”, “पहचान लाओ”, “अभी आदमी नहीं चाहिए।” दोपहर हो गई, सूरज सिर पर आग बनकर गिर रहा था, पेट में कुछ भी नहीं था, लेकिन वह हार नहीं मान रहा था।
करीब चार घंटे बाद वो एक छोटे फर्नीचर वर्कशॉप पर पहुंचा। मालिक लकड़ी काट रहा था। रवि ने हाथ जोड़कर कहा, “भाई साहब, कोई भी काम दे दो—मजदूरी, सफाई, उठाने-ढोने वाला काम, कुछ भी।”
मालिक ने ऊपर से नीचे तक देखा, “काम आता है?”
“सब सीख लूंगा, मेहनत करूंगा।”
मालिक कुछ देर सोचता रहा, शायद उसने रवि की आंखों में सच्चाई देख ली, “ठीक है, आज से काम कर लो, मजदूरी रोज की ₹350।”
रवि की आंखों में चमक आ गई, “धन्यवाद भाई, भगवान भला करे।”
पहले ही दिन रवि ने इतनी मेहनत की कि वर्कशॉप का हर आदमी उसकी ताकत और लगन देखता रह गया। शाम को जब उसे ₹350 मिले तो उसकी आंखें भर आईं। पैसे हाथ में लिए स्टेशन के उस चबूतरे की तरफ दौड़ने लगा।
घर लौटना। सिया बच्चा गोद में लिए बैठी थी, जैसे उसका इंतजार कर रही थी। रवि ने आते ही पैसे उसके हाथ में रख दिए, “आज मैं कमा कर लाया हूं, सिया। यह शुरुआत है।”
सिया की आंखें चमक उठीं, “यह सिर्फ पैसे नहीं, यह सम्मान है, रवि।” उसने पास से रोटी और थोड़ी सब्जी निकाली, जो शायद किसी ने दान में दी थी, लेकिन आज वह दान नहीं लगा—मेहनत की कमाई का स्वाद था।
रात में रवि ने बच्चे के सिर पर हाथ रखकर कहा, “मैं वादा करता हूं, अब तुम्हारी मां को कभी हाथ फैलाने नहीं दूंगा।”
सिया मुस्कुराई, “रवि, जिंदगी ने हमें फिर से साथ लाया है, अब इसे हाथ से जाने मत देना।”
भाग 11: नई पहचान और परीक्षा
कुछ ही दिनों में रवि सबसे भरोसेमंद कर्मी बन गया। मालिक भी उसके काम से खुश रहने लगा, धीरे-धीरे ज्यादा जिम्मेदारी देना शुरू कर दी—मशीनें चलाने का काम, कटाई का, डिजाइन का। सिया ने भी स्टेशन के पास एक छोटी चाय और नाश्ते की ठेली पर काम करना शुरू कर दिया।
लोग अब कहने लगे, “यह वही औरत है जो भीख मांगती थी, देखो कैसे खड़ी हो गई।” सिया हर ताने पर मुस्कुराती, सोचती—ताने हमेशा उन्हीं को मिलते हैं जो जीतने वाले होते हैं।
धीरे-धीरे रवि और सिया ने एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया। बच्चा अब स्वस्थ था, हंसने लगा था, घर में खुशियां लौटने लगी थीं। लेकिन संघर्ष यही खत्म नहीं हुआ था।
भाग 12: बड़ी परीक्षा और जीत
एक दिन वर्कशॉप का मालिक रवि के पास आया, “रवि, फैक्ट्री बड़े प्रोजेक्ट के लिए कुछ भरोसेमंद लोगों की तलाश में है। मैं तुम्हारा नाम देना चाहता हूं, मेहनत ज्यादा है पर कमाई भी अच्छी होगी।”
रवि चुप हो गया, बड़ी नौकरी उसके लिए नया मौका थी, लेकिन डर भी था कि कहीं फिर भाग्य ना टूट जाए। मालिक ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “डरना मत रवि, तुम्हारी मेहनत तुम्हारी पहचान है।”
रवि ने सिर झुकाया, “मुझे कोशिश करनी होगी, मेरे परिवार के लिए।”
उसने सिया को सब बताया, सिया ने कहा, “जाओ रवि, भाग्य मदद उसी की करता है जो भागता नहीं, लड़ता है।”
रवि ने नए काम में कदम रख दिया। काम कठिन था—दिन भर मशीनों की आवाज, लकड़ी और लोहे की धूल, हाथों में कटने-छिलने की दर्दनाक चोटें। लेकिन रवि पीछे नहीं हटा। कुछ ही महीनों में वो उस प्रोजेक्ट का सबसे महत्वपूर्ण कर्मचारी बन गया। उसे अच्छी तनख्वाह मिलने लगी, मालिक ने उसकी ईमानदारी से खुश होकर कहा, “रवि, तुम चाहो तो मैं तुम्हें इस वर्कशॉप का पार्टनर बना सकता हूं।”
रवि स्तब्ध रह गया, जिस इंसान को दो साल पहले रोटी तक की भीख मांगनी पड़ी, आज उसे व्यवसाय का साझेदार बनने का प्रस्ताव मिल रहा था। उसने रोते हुए मालिक के पैर छू लिए, “आपने मुझे नया जन्म दिया है।”
मालिक ने मुस्कुराकर कहा, “नहीं रवि, तुम्हें तुम्हारी पत्नी ने बचाया है।”
भाग 13: सम्मान की वापसी
कुछ दिनों बाद रवि ने खुद कारखाने में बने फर्नीचर की एक छोटी दुकान खोल ली। दुकान के ऊपर बड़ा सा बोर्ड लगा—”सिया फर्नीचर क्राफ्ट्स”। सिया को देखकर गांव और शहर के कई लोग हैरान रह गए—जो कभी उसे दुत्कारते थे, वही अब उसके दुकान पर आकर बोले, “हमें माफ कर दो, हम गलत थे।”
सिया मुस्कुराती, “गलतियां इंसानों से ही होती हैं, पर सीख उन्हीं को मिलती है जो झेलते हैं।”
धीरे-धीरे काम इतना बढ़ गया कि दुकान पर कई मजदूर काम करने लगे। जो मजदूर पहले गरीबी से टूटे थे, उन्हीं को रवि और सिया ने नौकरी देकर खड़ा किया।
भाग 14: इंसानियत की मिसाल
एक दिन स्टेशन पर भीख मांगती एक बूढ़ी औरत मिली, वही जिसने सिया को मदद देकर जिंदा रहने का तरीका दिखाया था। रवि और सिया उसके पास गए, उसके पैरों में बैठ गए। सिया रोते हुए बोली, “मां, आपने उस दिन मुझे सहारा दिया था, आज मैं आपको सहारा देने आई हूं।”
रवि ने उसे उठाया, “अब आप हमारे साथ रहेंगी, हमारे घर में मां बनकर।”
बूढ़ी औरत फूट-फूटकर रो पड़ी, “बेटा, मैंने जिंदगी में बहुत अपमान देखा है, पर आज पहली बार गर्व महसूस हो रहा है।”
वे उसे घर ले आए—उस घर में जहां अब रोशनी थी, प्यार था, परिवार था।
भाग 15: समापन—सम्मान की जीत
एक साल बाद दुकान का उद्घाटन हुआ। अब वह छोटी दुकान नहीं, बल्कि बड़ा शोरूम था। चारों ओर फूलों की मालाएं, भीड़ और शुभकामनाएं। मंच पर रवि, सिया और उनका बच्चा खड़े थे। रवि ने माइक पर कहा—
“दो साल पहले मेरी पत्नी ट्रेन में भीख मांग रही थी और मैं कई सड़कों पर टूट चुका था। पर मेरी पत्नी ने हार नहीं मानी। उसने मुझे उठाया, सहारा दिया, विश्वास दिया। आज अगर मैं कुछ हूं तो सिर्फ उसी की वजह से।”
सिया की आंखों में आंसू चमक रहे थे। रवि ने सिया का हाथ पकड़कर कहा, “जो लोग कहते हैं कि औरतें कमजोर होती हैं, वह झूठ है। औरतें टूटकर भी पहाड़ की तरह खड़ी हो जाती हैं। मेरी पत्नी मेरी ताकत है, मेरी प्रेरणा है।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। सिया ने बेटे को गोद में लिया, “भगवान ने हमें गिराया इसलिए नहीं, उठाने के लिए गिराया। आज हम पहले से ज्यादा मजबूत हैं।”
तीनों ने आकाश की ओर देखा, जहां शायद माता-पिता मुस्कुरा रहे होंगे।
अंतिम संदेश
हार मत मानो। जिंदगी कितनी भी मुश्किल हो, बस एक विश्वास सब कुछ बदल सकता है। रवि और सिया टूटे थे, बिखरे थे, पर उन्होंने हार नहीं मानी। आज वे सिर्फ एक परिवार नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए उम्मीद हैं जो समझते हैं कि अंधेरा आखिरी नहीं। रोशनी उसका इंतजार कर रही होती है।
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