DM मैडम को आम लड़की समझकर इंस्पेक्टर ने थप्पड़ मारा, फिर इंस्पेक्टर के साथ जो हुआ, सब दंग रह गए…

डीएम राधिका सिंह – सिस्टम की जंग
भाग 1: भेष बदलकर बाजार में
पुणे की एक भीड़-भाड़ वाली सुबह थी। जिले की डीएम राधिका सिंह ने आज कुछ अलग करने का फैसला किया। बिना किसी सिक्योरिटी, बिना सरकारी तामझाम, साधारण कपड़ों में, हाथ में झोला लिए, वे अकेली बाजार जा रही थीं।
उनका मकसद था – खुद अपनी आंखों से देखना कि आम आदमी के साथ सिस्टम कैसा व्यवहार करता है।
घूमते-घूमते उनकी नजर एक पानी पूरी के ठेले पर पड़ी।
ठेले वाला रामू, अधेड़ उम्र का आदमी, पसीने से तर-बतर, मगर आंखों में संतुष्टि लिए, ग्राहकों को तेजी से पानी पूरियां परोस रहा था।
राधिका सिंह ठेले के पास पहुंचीं –
“भैया, एक प्लेट पानी पूरी लगाना।”
रामू ने मुस्कुराकर पूछा – “मैडम, तीखा या मीठा?”
राधिका बोली – “एकदम तीखा बनाना, मजा आ जाए।”
रामू ने सफेद मटर, आलू का मसाला, पुदीना-इमली का पानी भरकर प्लेट बढ़ा दी।
राधिका ने जैसे ही पानी पूरी खानी शुरू की, तभी बाजार में हलचल मच गई।
भाग 2: पुलिस का आतंक
दो बुलेट मोटर बाइक पर तीन पुलिस वाले और एक रौबदार इंस्पेक्टर कैलाश राठौर आए।
ठेले के सामने बाइक रुकी।
कैलाश राठौर ने अपनी कड़क आवाज में कहा –
“बे रामू, तेरा ठेला फिर यहां लग गया? कितनी बार बोला है सड़क पर धंधा मत कर। सुधरता नहीं है तू!”
रामू घबराकर हाथ जोड़ता है –
“साहब, गरीब आदमी हूं, बच्चों को पालना है, थोड़ा साइड में लगाया है, किसी को तकलीफ नहीं…”
इंस्पेक्टर जोर से हंसता है –
“हफ्ते का हिस्सा कहां है? लगता है धंधा अच्छा चल रहा है…”
रामू बिलबिलाता है –
“साहब, अभी बोहनी भी ठीक से नहीं हुई, शाम तक जो भी बनेगा थाने में पहुंचा दूंगा…”
कैलाश राठौर गुस्से में –
“शाम तक इंतजार कराएगा? हमें बेवकूफ समझ रखा है?”
कांस्टेबल वर्मा ठेले पर रखे पानी के जग को उठाकर सड़क पर फेंक देता है।
इंस्पेक्टर कैलाश ठेले को लात मारता है –
पूरी मेहनत, आलू-मटर-चटनी, पानी पूरियां – सब सड़क पर बिखर जाती हैं।
रामू जमीन पर बैठकर अपनी बिखरी पूड़ियों को देखता है, आंखों से आंसू बहते हैं।
उसकी बेटी के डॉक्टर बनने का सपना भी उसी गंदी सड़क पर बिखर जाता है।
भाग 3: डीएम की सख्त आवाज
यह सब देख राधिका सिंह का खून खौल उठता है।
वह आगे बढ़कर सख्त आवाज में बोलती है –
“यह क्या तरीका है? किसी गरीब की रोजी-रोटी को लात मारते हुए आपको शर्म नहीं आती?”
इंस्पेक्टर कैलाश राठौर और उसके साथी चौंक जाते हैं।
कैलाश राठौर घूरता है –
“मैडम, तुम कौन हो? रिश्तेदार हो, अपना काम करो, ज्यादा नेतागिरी मत झाड़ो।”
कांस्टेबल वर्मा भी मजाक उड़ाता है –
“लगता है मैडम नई-नई आई हैं, इन्हें पता नहीं इंस्पेक्टर कैलाश राठौर साहब कौन हैं।”
राधिका सिंह गहरी सांस लेकर बोली –
“मैं कोई भी हूं, लेकिन इस देश की नागरिक हूं। किस कानून ने आपको यह हक दिया कि आप किसी की मेहनत बर्बाद करें? यह गरीबों पर जुल्म नहीं तो और क्या है?”
कैलाश राठौर गुस्से से तमतमा जाता है –
“रुक, तुझे अभी कानून सिखाता हूं।”
अगले ही पल, उसने गुस्से में आकर राधिका सिंह के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
पूरी भीड़ सन्न रह जाती है।
रामू सदमे में चला गया।
पुलिसवाले हंसते हैं –
“बड़ी कानून सिखाने आई थी।”
राधिका सिंह का गाल लाल, दर्द से ज्यादा बेइज्जती महसूस हो रही थी।
लेकिन उसके अंदर का गुस्सा अब एक गर्म संकल्प में बदल चुका था।
भाग 4: थाने की नर्क रात
एक सिपाही राधिका सिंह की कलाई पकड़ता है –
“साहब बोलिए, थाने ले चलते हैं।”
राधिका सिंह विरोध नहीं करती।
उसने तय किया –
अभी अपनी असली पहचान नहीं बताऊंगी, सिस्टम की गंदगी को आखिरी तक देखना है।
पुलिस उसे जबरदस्ती गाड़ी में बिठाकर थाने ले जाती है।
रास्ते भर बेहूदा मजाक, ताने, अपमान।
थाना पहुंचकर उसे महिला लॉकअप में डाल दिया जाता है।
लॉकअप में पहले से दो औरतें – सुमन और प्रिया – सहमी हुई बैठी हैं।
सुमन कहती है –
“गरीबों के लिए इस देश में कोई जगह नहीं है, यहां कानून सिर्फ अमीरों के लिए है।”
प्रिया रोते हुए –
“दीदी, मैंने बस अपनी पसंद के लड़के से शादी करने की सोची थी, मेरे घर वालों ने ही मुझे पुलिस से पकड़वा दिया…”
राधिका सिंह सोचती है –
यह थी सिस्टम की असली सच्चाई, जिसकी वह मुखिया थी।
भाग 5: पुलिसिया बर्बरता
कुछ देर बाद इंस्पेक्टर कैलाश राठौर लॉकअप के पास आता है –
“तो मैडम समाज सुधारक, कैसा लगा सरकारी मेहमान खाना?”
राधिका सिंह –
“तुमने अच्छा नहीं किया, वर्दी का अपमान किया है।”
कैलाश राठौर –
“चुपचाप इस कागज पर साइन कर दे, लिखा है तूने सरकारी काम में बाधा डाली और नशे में धुत होकर हंगामा किया।”
राधिका सिंह –
“मैं किसी झूठे कागज पर साइन नहीं करूंगी।”
कैलाश राठौर –
“ठीक है, यही सर मच्छर काटेंगे तब अकल ठिकाने आएगी।”
दो सिपाही उसे घसीटकर अंधेरे कमरे में ले जाते हैं।
इंस्पेक्टर कैलाश डंडा लेकर धमकाता है –
“साइन करती है या डंडा चलेगा?”
राधिका सिंह –
“मारो मुझे, लेकिन हर चोट का हिसाब देना होगा तुम्हें।”
कैलाश राठौर हंसता है –
“कौन लेगा हमसे हिसाब?”
तभी बाहर से तेज कदमों की आहट –
एक एसीपी रैंक का अफसर आता है।
“यह क्या हो रहा है? एक महिला को रात में प्रताड़ित करना गैरकानूनी है।”
राधिका सिंह कानून की जानकारी से एसीपी को प्रभावित करती है।
एसीपी आदेश देता है –
“इसे वापस लॉकअप में डालो, सुबह मजिस्ट्रेट के सामने पेश करो।”
भाग 6: सुबह की सच्चाई
रातभर राधिका सिंह को गंदी दाल, सूखी रोटियां, बदबूदार कंबल और मच्छरों की फौज मिली।
सुमन और प्रिया की सिसकियां सुनाई देती रहीं।
राधिका सिंह सो नहीं पाई, सोचती रही –
यह रात उसके डीएम होने का असली इम्तिहान थी।
सुबह गाल पर थप्पड़ का निशान नीला पड़ गया था।
इंस्पेक्टर कैलाश राठौर फिर आया –
“आज तेरी किस्मत अच्छी है, तेरी जमानत हो गई।”
राधिका सिंह चौंकी –
“मेरी जमानत किसने कराई?”
“कोई पत्रकार है, कल रात का तमाशा किसी ने उसे बता दिया होगा।”
बाहर वेटिंग एरिया में लोकल रिपोर्टर सोनिया कैमरा लिए खड़ी थी।
सोनिया ने सवाल पूछना चाहा, कांस्टेबल वर्मा ने धक्का देकर भगा दिया।
इंस्पेक्टर कैलाश राठौर ने राधिका सिंह को दफा होने को कहा।
भाग 7: असली पहचान का खुलासा
राधिका सिंह थाने में खड़ी रही।
उसकी नजरें पुलिस वालों पर घूमीं –
“कांस्टेबल वर्मा, कांस्टेबल तिवारी, कांस्टेबल यादव…”
अब सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
राधिका सिंह ने अपना पर्सनल फोन निकाला, कमिश्नर ऑफिस का नंबर डायल किया।
कमिश्नर साहब से बात कराई।
“मैं राधिका सिंह लाइन पर हूं, कोथरोड पुलिस स्टेशन में हूं, रातभर लॉकअप में रही।”
कमिश्नर सन्न –
“मैडम, आप लॉकअप में थीं?”
राधिका सिंह –
“इंस्पेक्टर कैलाश से पूछ लीजिए, उसने मुझ पर हाथ उठाया, मुझे हथकड़ी लगाकर लाया गया। मैं चाहती हूं आप तुरंत इंटरनल अफेयर्स की टीम के साथ यहां आएं, एसएसपी साहब को भी साथ लाएं।”
कमिश्नर –
“बस 5 मिनट में पहुंच रहा हूं मैडम।”
अब थाने में मौत जैसा सन्नाटा।
राधिका सिंह आगे बढ़ी –
“मैं राधिका सिंह हूं, इस जिले की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट।”
कैलाश राठौर के हाथ से डंडा छूट गया, कांस्टेबल पत्थर के बन गए।
पत्रकार सोनिया का कैमरा ऑन था –
“जिले की डीएम भेष बदलकर, पुलिस ने पीटा!”
भाग 8: सिस्टम का झटका
ठीक 5 मिनट बाद थाने के बाहर सायरन की आवाजें, आधा दर्जन गाड़ियां, पुलिस के बड़े अफसर, खुद कमिश्नर, एसएसपी, सब दौड़ते हुए अंदर आए।
राधिका सिंह के गाल पर थप्पड़ का नीला निशान, सूट पर धूल, बाल बिखरे हुए।
एसपी साहब ने सैल्यूट ठोका –
“मैडम, यह क्या हो गया?”
राधिका सिंह ने पूरी घटना बताई –
“आपकी पुलिस आम जनता के साथ कैसा सुलूक करती है। जब मैंने गरीब के हक में आवाज उठाई, इंस्पेक्टर कैलाश राठौर ने मुझ पर हाथ उठाया।”
एसपी का चेहरा शर्मिंदगी और गुस्से से लाल।
कैलाश राठौर घुटनों के बल गिरकर गिड़गिड़ाने लगा –
“मैडम, माफ कर दीजिए, मेरे बच्चों का वास्ता है…”
राधिका सिंह –
“बस यही तो दिक्कत है। तुमने मुझे इसलिए नहीं पीटा कि मैंने जुर्म किया था, बल्कि इसलिए कि मैं आम औरत दिख रही थी। अगर मैं डीएम नहीं होती तो क्या तुम मुझे झूठे केस में फंसाकर जेल भेज देते?”
कमिश्नर साहब –
“मैडम, अब आपके आदेश का इंतजार है।”
भाग 9: इंसाफ की सुबह
राधिका सिंह ने आदेश दिया –
“इंस्पेक्टर कैलाश राठौर, कांस्टेबल वर्मा, तिवारी, यादव – तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किए जाते हैं। इन सबके खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी – मुझ पर हाथ उठाने, सरकारी काम में बाधा, महिला को रात भर गैरकानूनी हिरासत में रखने, धमकाने, जबरदस्ती करने के लिए।
रामू चाट वाले को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई इन्हीं की तनख्वाह से की जाएगी।”
कैलाश राठौर जमीन पर लौटकर रोने लगा –
“मैडम, मैं बर्बाद हो जाऊंगा, मेरी मां बीमार है, मेरी बीवी का क्या होगा?”
राधिका सिंह –
“जब तुमने रामू के ठेले को लात मारी थी, तब उसकी बीमार मां या भूखे बच्चों का ख्याल आया था? जब तुमने मेरे गाल पर थप्पड़ मारा, तब अपनी बीवी की इज्जत याद आई थी?”
पूरा पुलिस स्टेशन सन्न।
आज पहली बार कानून ने अपनी असली ताकत दिखाई थी।
राधिका सिंह ने एएसपी को निर्देश दिया –
“सुमन और प्रिया को तुरंत रिहा किया जाए, उनके केस की फाइल मेरे ऑफिस भेजें। मैं खुद देखूंगी कि उन्हें इंसाफ मिले।”
भाग 10: नई सुबह, नई उम्मीद
राधिका सिंह थाने से बाहर आई।
अब तक मीडिया की कई गाड़ियां, आम लोगों की भारी भीड़ जमा थी।
रामू भी वहां खड़ा था, आंखों में आंसू लिए।
राधिका सिंह सीधा रामू के पास गई –
“रामू भैया, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए। मेरे सिस्टम के लोगों ने आपकी रोजीरोटी छीनी। मैं वादा करती हूं, आपका ठेला आपको वापस मिलेगा, पूरे सम्मान के साथ ऑफिशियल लाइसेंस भी दिलवाया जाएगा। आज से कोई हफ्ता नहीं मांगेगा।”
रामू रो पड़ा –
“मैडम, आप तो देवी हैं!”
राधिका सिंह –
“मैं देवी नहीं, बस अपना फर्ज निभा रही हूं।”
फिर वह मीडिया की तरफ मुड़ी –
“आज जो हुआ वह शर्मनाक है, लेकिन यह एक शुरुआत भी है। मैं इस शहर के हर नागरिक को भरोसा दिलाना चाहती हूं कि कानून से ऊपर कोई नहीं है – ना नेता, ना अफसर, ना कानून के रखवाले। अगर पुलिस जनता की रक्षक बनेगी तो सलाम करेंगे, अगर भक्षक बनेगी तो बख्शा नहीं जाएगा।
मैं चाहती हूं इस थाने के हर कोने में सीसीटीवी कैमरे लगे, हर हफ्ते उनकी फुटेज की जांच हो।”
कमिश्नर ने सिर झुका कर कहा –
“जी मैडम”
कैलाश राठौर और उसके साथी हथकड़ी लगाकर पुलिस जीप में बिठाए जा रहे थे।
कल तक जो वर्दी उनका घमंड थी, आज वही वर्दी उनकी बेइज्जती का सबक बन गई थी।
उनकी नौकरी, इज्जत – सब एक रात में खत्म हो गया।
राधिका सिंह अपनी सरकारी गाड़ी की तरफ बढ़ी।
वह थकी हुई थी, गाल पर दर्द था, लेकिन दिल में गहरा सुकून था।
आज उसने सिस्टम की एक बड़ी गंदगी को साफ किया था।
गाड़ी स्टार्ट हुई। लोग जयजयकार कर रहे थे।
रामू उसे हाथ जोड़कर विदा कर रहा था।
राधिका सिंह ने आंखें बंद कर ली।
यह लड़ाई लंबी थी – सिर्फ एक रात की नहीं, पूरे सिस्टम को बदलने की।
अब जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी, और वह इसे निभाने को तैयार थी।
कहानी का संदेश:
यह कहानी मनोरंजन और शिक्षा के उद्देश्य से बनाई गई है।
किसी भी व्यक्ति, संस्था या घटना से इसका कोई संबंध नहीं है।
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