नाशिक के डोंगराले गांव में 3 साल की मासूम यादना के साथ हुई दर्दनाक घटना: समाज को झकझोर देने वाली कहानी

प्रस्तावना

महाराष्ट्र के नाशिक जिले के मालेगांव तालुका का डोंगराले गांव, जहां लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में हमेशा साथ रहते हैं, अचानक एक शाम ऐसी घटना का गवाह बना जिसने न सिर्फ गांव की शांति को हिला दिया, बल्कि पूरे समाज को इंसानियत के असली मायने सोचने पर मजबूर कर दिया। यह कहानी है सिर्फ 3 साल की मासूम बच्ची यादना की, जिसके साथ हुई दर्दनाक घटना ने हर किसी को भीतर तक झकझोर दिया।

गांव की सामान्य शाम और मासूम की गायब होने की शुरुआत

16 नवंबर 2025 की शाम थी। गांव में सब कुछ हमेशा की तरह चल रहा था। बच्चे खेल-कूद में मग्न थे, बड़े लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त थे, और हर कोई अपने घर लौटने की तैयारी में था। यादना भी रोज़ की तरह अपने आंगन और गली में मोहल्ले के बच्चों के साथ खेल रही थी। उस उम्र में किसी चीज़ का डर नहीं होता, हर बड़ा इंसान अच्छा लगता है, खासकर वो जो टॉफी-चॉकलेट देने की बात करे।

जैसे-जैसे अंधेरा गहराता गया, यादना के घर वालों को चिंता होने लगी क्योंकि वह अभी तक घर नहीं लौटी थी। शुरू में परिवार ने सोचा कि शायद वह किसी पड़ोसी या दोस्त के घर खेल रही होगी, लेकिन जब काफी समय बीत गया और बच्ची का कोई पता नहीं चला तो घरवालों की बेचैनी बढ़ गई। पूरे गांव में हलचल मच गई, लोग इधर-उधर दौड़ने-फिरने लगे, सब जगह उसकी तलाश शुरू हो गई।

गांव की खोज और सन्नाटा

गांव की गलियों, खेतों, झाड़ियों और आसपास के हर हिस्से को टॉर्च की रोशनी से छाना जाने लगा। लोग बार-बार उसका नाम पुकार रहे थे, इस उम्मीद में कि कहीं से उसकी आवाज आ जाए। लेकिन दो घंटे की पूरी खोज में कुछ भी हाथ नहीं लगा। हर तरफ सिर्फ सन्नाटा और बढ़ती डर की लहर थी। गांव के लोगों के चेहरे पर निराशा, चिंता और बेचैनी साफ दिख रही थी। औरतें रो-रो कर पूछ रही थी – “बालगी कुट्ठे गेली?” यानी बच्ची कहां गई?

युवा लोग बाइक और पैदल हर तरफ दौड़ रहे थे कि बस वह मिल जाए। इतने छोटे से गांव में जहां हर इंसान दूसरे को जानता है, वहां एक 3 साल की बच्ची का अचानक गायब हो जाना किसी सदमे से कम नहीं था।

पुलिस की जांच और दिल दहला देने वाला सच

जब सारी कोशिशें नाकाम होने लगीं, तो आखिरकार परिवार ने पुलिस को फोन किया और गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। रिपोर्ट मिलते ही पुलिस भी पूरी तरह हरकत में आ गई और गांव की तरफ रवाना हो गई। गांव के लोग पहले से ही खोज में लगे थे। तभी कुछ लोग गांव की सीमा पर बने मोबाइल टावर के पास पहुंचे। यह जगह थोड़ी सुनसान थी, चारों तरफ झाड़ियां ही झाड़ियां थीं।

वहीं झाड़ियों के बीच उन्हें कुछ ऐसा दिखा जिसने सबको अंदर तक हिला कर रख दिया – वहां यादना का शव मिला। मासूम की हालत देखकर किसी को कुछ कहने की ताकत ही नहीं बची। यह बिल्कुल भी किसी हादसे जैसा नहीं था। यह साफ नजर आ रहा था कि उसके साथ कुछ बहुत गलत हुआ है। लोगों ने तुरंत पुलिस को बुलाया। पुलिस ने फौरन जगह को सील किया और किसी को भी अंदर जाने नहीं दिया ताकि कोई सबूत खराब ना हो।

फॉरेंसिक जांच और सबूतों की तलाश

उसी रात फॉरेंसिक टीम मौके पर पहुंची और पूरी जगह की वैज्ञानिक तरीके से जांच शुरू की। कपड़ों से नमूने लिए, मिट्टी इकट्ठी की, पैरों के निशान ढूंढे, उनके फोटो लिए, आसपास पड़े हर छोटे-बड़े चीज को इकट्ठा किया ताकि बाद में जांच में मदद मिल सके। सारे सबूत सील करके लैब भेज दिए गए और यादना के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।

उस समय तक गांव का माहौल पूरी तरह सदमे और गुस्से में बदल चुका था। बच्चे चुप हो गए थे, औरतें रो रही थी, मर्द अपना सिर पकड़ कर बैठे थे। सबके मन में सिर्फ एक ही सवाल था – आखिर इस बच्ची के साथ क्या हुआ और किसने किया?

जांच की दिशा और आरोपी की पहचान

पुलिस ने सबसे पहले उन बच्चों से बात की जो उस शाम यादना के साथ खेल रहे थे। पुलिस ने बहुत धीरे और प्यार से उनसे पूछा कि उन्होंने क्या देखा था। बच्चों ने बताया कि खेलते समय एक आदमी आया था जिसने यादना को चॉकलेट देने की बात कही और उसे अपने साथ आने को बोला। बच्चों ने बताया कि वह आदमी उन्हें नया नहीं था, वे उसे रोज गांव में देखते थे और भैया कहकर बुलाते थे। यही वजह थी कि यादना उसके साथ चली गई, उसे कोई डर या शक नहीं हुआ।

इस बात ने पुलिस के लिए जांच की दिशा पूरी तरह बदल दी। अब पुलिस ने गांव में रहने वाले संदिग्ध लोगों पर नजर डाली और आखिर में उनकी नजर 24 साल के विजय खैरनार पर आकर टिक गई, जो बच्ची के घर से सिर्फ 200 मीटर दूर रहता था। वह अविवाहित था और मजदूरी का काम करता था। गांव में अक्सर घूमते-फिरते लोग उसे देखते थे।

आरोपी की गिरफ्तारी और कबूलनाम

रात को करीब 8:30 बजे पुलिस ने विजय को पकड़ कर थाने ले आई और पूछताछ शुरू की। पहले तो उसने बातों को टालने की कोशिश की, लेकिन सख्ती और लगातार सवाल पूछे जाने पर वह टूट गया और उसने पूरा मामला कबूल कर लिया। पूछताछ के अनुसार, एक महीने पहले उसका बच्ची के पिता से किसी बात पर झगड़ा हो गया था और उसी छोटी सी बात को दिल में रखकर उसने ऐसा कदम उठाने की सोची।

उसने यादना को चॉकलेट देने का लालच देकर बुलाया और टावर की तरफ ले गया, जहां सुनसान था। वहीं उसने उसके साथ गलत हरकत की और फिर उसकी जान चली गई। उसकी यह बात पुलिस के लिए सबसे बड़ा सबूत साबित हुई।

गांव में आक्रोश और न्याय की मांग

जिस रात यह सब सामने आया, उसी रात गांव में हालात काबू के बाहर हो गए। लोग गुस्से में भरकर चौक पर जमा होने लगे। महिलाओं ने मोमबत्तियां और बच्ची की फोटो लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। गांव के युवाओं ने मांग की कि आरोपी को तुरंत और कड़ी सजा मिले। लोग नारे लगा रहे थे – “हमें न्याय चाहिए, आरोपी को सजा दो।” गांव की सड़कें जाम हो गई थी।

इसके बाद पुलिस ने विजय को कोर्ट में पेश किया और कोर्ट ने उसे पुलिस हिरासत में भेज दिया ताकि ज्यादा से ज्यादा जानकारी निकाली जा सके। लेकिन असली उथल-पुथल 20 नवंबर को हुई जब आरोपी को फिर से कोर्ट में लाना था। खबर फैलते ही हजारों की भीड़ कोर्ट के बाहर जमा हो गई। लोग गुस्से में नारे लगा रहे थे, कुछ ने तो गेट की तरफ पत्थर और जूते तक फेंक दिए। पुलिस को मजबूरन लाठीचार्ज करना पड़ा।

स्थिति बिगड़ती देख कोर्ट ने आगे की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से करने का फैसला किया। इसके बाद जब आरोपी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश किया गया तो यह खबर भी गांव में तेजी से फैल गई। गांव के लोग कोर्ट के बाहर नहीं जा सके, लेकिन फिर भी सभी लोग अपने घरों या चौक में बैठकर इस मामले की हर अपडेट सुन रहे थे।

अदालत की प्रक्रिया और चार्जशीट दाखिल

अदालत ने पुलिस से सबूत और जांच की प्रगति मांगी और कहा कि यह मामला बहुत संवेदनशील है, इसलिए इसे जल्दी से जल्दी आगे बढ़ाया जाएगा। अदालत ने यह भी कहा कि मासूमों के साथ होने वाली घटनाओं पर समाज की नजर बनी रहती है, इसलिए इस केस में देरी नहीं होनी चाहिए।

आखिरकार वह दिन आया जब पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी। चार्जशीट में पूरी घटना का विवरण था, सबूत थे, आरोपी का बयान था, फॉरेंसिक रिपोर्ट थी और गवाहों के बयान थे। अदालत ने चार्जशीट स्वीकार करते ही कहा कि केस को फास्ट ट्रैक में चलाया जाएगा ताकि देरी ना हो। यह सुनकर गांव के लोग खुशी से रो पड़े। उन्हें लगा कि उनकी आवाज सुनी जा रही है।

केस की सुनवाई और सबूतों की ताकत

इसके बाद अदालत में केस की पहली सुनवाई हुई, जहां आरोपी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया। कोर्ट में जज ने पुलिस से पूछा कि मामले में सबूत कितने मजबूत हैं। पुलिस ने कहा कि हमें पूरा भरोसा है कि हमारे पास मौजूद सबूत आरोपी को दोषी साबित करने में काफी हैं।

अदालत ने कहा कि यह मामला बहुत ही संवेदनशील है, इसलिए इसकी सुनवाई लगातार की जाएगी और जल्द से जल्द फैसला दिया जाएगा। यह खबर जैसे ही गांव पहुंची, लोग एक दूसरे को गले लगाने लगे और कहने लगे कि अब इंसाफ जरूर मिलेगा। कुछ बुजुर्ग रोते हुए कह रहे थे कि इस बच्ची की पीड़ा बेकार नहीं जाएगी।

इस केस का फैसला आने वाला समय बताएगा कि समाज में ऐसी हरकतों की कोई जगह नहीं है। इस बीच अदालत की अगली तारीखें आती गईं। पुलिस हर बार नए सबूत और गवाह पेश करती गई। फॉरेंसिक एक्सपर्ट ने कोर्ट को समझाया कि सबूत आरोपी को घटना से जोड़ते हैं। गवाहों ने बताया कि किस तरह उन्होंने आरोपी को बच्ची के आसपास देखा था। बच्चों ने कोर्ट में बताया कि वह आदमी वही था जो यादना को ले गया था। इन सब बातों ने केस को पूरी तरह मजबूत कर दिया।

समाज पर असर और संदेश

अंत में अदालत ने कहा कि अगले सप्ताह फैसला सुनाया जाएगा। लोगों का दर्द, गुस्सा, डर और उम्मीद सब कुछ मिलकर एक ही बात पर टिक गया था कि इस मासूम को इंसाफ मिलना चाहिए और इस केस का फैसला पूरे समाज के लिए एक संदेश बनना चाहिए कि बच्चों के साथ गलत करने वाले बच नहीं पाएंगे।

गांव के लोग उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब अदालत अपना फैसला सुनाएगी और इस बच्ची की रूह को सुकून मिलेगा। आज हर इंसान यही चाहता है कि यादना की आवाज दबे नहीं, उसे इंसाफ मिले और पूरे समाज में यह संदेश जाए कि मासूमों के साथ गलत करने वालों का अंजाम कितना सख्त और साफ होता है।

परिवार की हालत और समाज की जिम्मेदारी

यादना का परिवार इस सदमे से अभी भी उभर नहीं पा रहा था। मां हर वक्त दरवाजे की तरफ देख रही थी, जैसे वह अभी बाहर से दौड़ती हुई आएगी। पिता बार-बार फोटो देख रहे थे और जमीन पर बैठे रहते थे। घर पर आने वाला हर इंसान रो कर जाता था। गांव की औरतें खाना बनाकर परिवार को खिलाने के लिए घर पर ला रही थी ताकि वह लोग खुद खाना बना पाने की हालत में नहीं थे।

जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे, केस का दबाव बढ़ता जा रहा था। मीडिया के लोग भी गांव आने लगे थे। कई रिपोर्टर गांव के चौक में खड़े होकर खबरें बना रहे थे, कुछ लोग परिवार से बात कर रहे थे, कुछ पुलिस से। लेकिन परिवार की हालत ऐसी थी कि वे किसी से ज्यादा बात नहीं कर पा रहे थे। पुलिस ने मीडिया को भी कहा कि परिवार की प्राइवेसी का ध्यान रखा जाए और कोई भी झूठी बात फैलाने से बचा जाए।

निष्कर्ष

यादना के साथ हुई इस घटना ने पूरे समाज को झकझोर दिया है। यह केस सिर्फ एक गांव या एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि बच्चों की सुरक्षा सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। अदालत का फैसला आने वाला है, लेकिन समाज को भी अपनी सोच बदलनी होगी कि ऐसी घटनाएं दोबारा ना हो।

हमारी यही प्रार्थना है कि यादना को जल्द से जल्द न्याय मिले, उसकी आवाज दबे नहीं और पूरे समाज में यह संदेश जाए कि मासूमों के साथ गलत करने वालों का अंजाम बहुत सख्त और साफ होता है।