इंस्पेक्टर ने जब सब्जी वाली पर हाथ उठाया तो किसने सोचा था सब्जी वाली यह करेगी सब हैरान हो गए😬🫣❤️

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इंस्पेक्टर ने जब सब्जी वाली पर हाथ उठाया तो किसने सोचा था सब्जी वाली यह करेगी, सब हैरान हो गए

दिल्ली के एक छोटे से मोहल्ले में, रोज़ सुबह की तरह आज भी सब्जी मंडी में चहल-पहल थी। लोग ताज़ी सब्जियाँ खरीदने के लिए आ-जा रहे थे। मंडी के एक कोने में, एक महिला अपने ठेले पर सब्जियाँ बेच रही थी। उसका नाम था गीता। गीता की उम्र लगभग पैंतीस साल थी, लेकिन उसके चेहरे पर संघर्ष की लकीरें साफ़ दिखाई देती थीं। उसका पति कई साल पहले बीमारी के चलते गुजर गया था, और अब दो बच्चों की जिम्मेदारी गीता के कंधों पर थी। गीता रोज़ सुबह चार बजे उठती, मंडी जाती, सब्जियाँ खरीदती और फिर अपने ठेले पर बेचती। उसकी मेहनत और ईमानदारी के चर्चे पूरे मोहल्ले में थे।

गीता की मंडी में एक अलग ही पहचान थी। वह कभी किसी ग्राहक से झूठ नहीं बोलती, न ही घटिया माल बेचती। उसके पास आने वाले लोग जानते थे कि वे ताज़ी और सही सब्जियाँ ही पाएंगे। इसी वजह से उसके ठेले पर हमेशा भीड़ रहती थी। लेकिन मंडी में सब्जी वालों की अपनी-अपनी राजनीति थी। कई बार दूसरे सब्जी वाले गीता से जलते थे, क्योंकि उसकी बिक्री सबसे ज्यादा होती थी।

एक दिन सुबह-सुबह मंडी में अचानक अफरा-तफरी मच गई। पुलिस की जीप मंडी में आकर रुकी। इंस्पेक्टर राकेश अपने दो कांस्टेबल के साथ उतरा। उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था। उसने मंडी के अध्यक्ष से कहा, “यहाँ अवैध वसूली की शिकायत मिली है। आज सबकी जांच होगी।” सब्जी वाले डर के मारे अपने-अपने ठेलों के पास खड़े हो गए।

इंस्पेक्टर राकेश ने गीता के ठेले की ओर इशारा किया, “तुम, इधर आओ!” गीता कांपती हुई उसके सामने आई। इंस्पेक्टर ने पूछा, “तुम्हारा लाइसेंस दिखाओ।” गीता ने झोले से लाइसेंस निकालकर दे दिया। इंस्पेक्टर ने उसे गौर से देखा, फिर गीता से कहा, “तुम्हारे खिलाफ शिकायत है कि तुम मंडी में अवैध तरीके से सब्जी बेचती हो, और पुलिस को हफ्ता नहीं देती।”

गीता ने डरते हुए कहा, “साहब, मैं मेहनत से अपना घर चलाती हूँ। किसी से कोई गलत काम नहीं करती। हफ्ता देना गलत है, इसलिए नहीं देती।”

इंस्पेक्टर को गीता का जवाब नागवार गुज़रा। उसने गुस्से में गीता की ओर हाथ उठाया और जोर से चिल्लाया, “बहुत ज़्यादा बोलती है तू! देखता हूँ कैसे सब्जी बेचती है।” उसने गीता को धक्का देने की कोशिश की, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

गीता ने इंस्पेक्टर का हाथ पकड़ लिया। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उनमें डर नहीं था। उसने पूरे मंडी के सामने इंस्पेक्टर से कहा, “आपको हक नहीं है किसी गरीब की मेहनत का अपमान करने का। आप कानून के रखवाले हैं, ज़ुल्म के नहीं। मैं एक विधवा हूँ, दो बच्चों की मां हूँ। अगर हफ्ता नहीं देती तो क्या मेरा हक नहीं कि मैं ईमानदारी से अपना घर चला सकूं?”

मंडी के लोग हैरान रह गए। किसी ने नहीं सोचा था कि गीता इतनी हिम्मत दिखाएगी। इंस्पेक्टर भी चौंक गया। उसके पीछे खड़े कांस्टेबल भी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। गीता ने इंस्पेक्टर का हाथ छोड़ते हुए कहा, “अगर आपको लगता है कि मैंने कोई गलत काम किया है, तो मुझे गिरफ्तार कर लीजिए। लेकिन अगर आपने मुझे बिना वजह तंग किया, तो मैं आपके खिलाफ शिकायत करूंगी।”

इंस्पेक्टर को गीता की बातों ने झकझोर दिया। उसने पहली बार मंडी के लोगों की आँखों में डर के बजाय उम्मीद देखी। मंडी के बाकी सब्जी वाले भी आगे आए। एक बुजुर्ग सब्जी वाले ने कहा, “साहब, गीता ईमानदार है। हम सब उसकी मेहनत की कदर करते हैं। अगर आप उसे तंग करेंगे, तो हम सब मंडी बंद कर देंगे।”

इंस्पेक्टर राकेश को एहसास हुआ कि वह गलत कर रहा है। उसने गीता से माफी मांगी, “माफ़ करना बहन, मुझे गलत जानकारी दी गई थी। तुम अपना काम जारी रखो। अगर कोई तंग करे तो मुझे बताना।”

गीता की आँखों में आँसू थे, लेकिन अब वो खुशी के आँसू थे। उसने इंस्पेक्टर को धन्यवाद कहा। मंडी के लोग तालियाँ बजाने लगे। गीता का हौसला सबके लिए मिसाल बन गया।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। अगले दिन गीता के ठेले पर एक महिला आई, जिसने सब कुछ देखा था। उसने गीता से कहा, “तुमने बहुत हिम्मत दिखाई। मैं एक पत्रकार हूँ। मैं तुम्हारी कहानी अखबार में छापना चाहती हूँ।” गीता ने झिझकते हुए कहा, “मुझे अखबार में आने की जरूरत नहीं। बस मेरी मेहनत की इज्जत होनी चाहिए।”

पत्रकार ने गीता की कहानी लिखी। अगले ही दिन दिल्ली के कई अखबारों में हेडलाइन थी—“सब्जी वाली गीता ने पुलिस के जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई।” गीता की कहानी पढ़कर कई लोग मंडी आए, उससे सब्जी खरीदने लगे। उसकी बिक्री और बढ़ गई। मोहल्ले के लोग अब उसे सिर्फ सब्जी वाली नहीं, बल्कि ‘हिम्मत वाली गीता’ कहने लगे।

कुछ दिनों बाद गीता के पास एक सरकारी अधिकारी आया। उसने कहा, “सरकार ने फैसला किया है कि ईमानदार सब्जी वालों को अब मंडी में लाइसेंस मुफ्त मिलेगा। तुम्हारी वजह से यह बदलाव आया है।” गीता ने मुस्कुराते हुए कहा, “अगर मेरी हिम्मत से दूसरों का भला हो सके, तो इससे बड़ी खुशी कोई नहीं।”

गीता की जिंदगी बदल गई थी। उसके बच्चे अब अच्छे स्कूल में पढ़ने लगे। गीता ने मंडी के बाकी गरीब सब्जी वालों के लिए एक छोटा सा संगठन बना लिया, जिसमें सबकी मदद की जाती थी। वह अब सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे मोहल्ले के लिए लड़ती थी।

मंडी के लोग अब जानते थे कि गीता सिर्फ सब्जी वाली नहीं, बल्कि एक मिसाल है। उसकी हिम्मत ने सबको सिखा दिया कि अगर दिल में सच्चाई और मेहनत हो, तो किसी भी मुश्किल का सामना किया जा सकता है।

एक दिन इंस्पेक्टर राकेश फिर मंडी आया, लेकिन इस बार वह गीता के ठेले पर सब्जी खरीदने आया था। उसने कहा, “आज मेरे घर में तुम्हारी सब्जी से खाना बनेगा। तुम्हारी मेहनत को सलाम।”

गीता ने मुस्कुराते हुए सब्जी दी। आज उसकी आँखों में डर नहीं, बल्कि गर्व था। उसने साबित कर दिया था कि एक आम औरत भी असाधारण हिम्मत दिखा सकती है।

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