भिखारी महिला को करोड़पति आदमी ने कहा — पाँच लाख दूँगा… मेरे साथ होटल चलो, फिर जो हुआ

एक छोटे से गाँव में राधा नाम की एक महिला रहती थी, जिसकी जिंदगी ने अचानक एक ऐसा मोड़ लिया जिसने उसे अंदर तक हिला दिया। राधा की शादी राम से हुई थी, जो एक समझदार और मेहनती युवक था। शुरुआत के कुछ सालों में दोनों का जीवन खुशियों से भरा था, लेकिन शादी के पांच साल बीत जाने के बाद भी उनके घर में बच्चे की किलकारी नहीं गूंज सकी।

यही बात धीरे-धीरे उनके रिश्तों में जहर घोलने लगी। गाँव और परिवार के लोग ताने मारने लगे। राम की माँ सावित्री देवी समझदारी दिखातीं और कहतीं कि बच्चा भगवान की देन है, समय आने पर सब होगा। लेकिन घर की बड़ी बहू किरण हर मौके पर आग लगाने का काम करती। किरण राम के बड़े भाई राघव की पत्नी थी, जो चालाक और हुक्म चलाने वाली थी।

किरण हमेशा राम को उकसाती, “तुम्हारी पत्नी निसंतान है। ऐसी औरत से घर का वंश कैसे चलेगा? छोड़ो इसे और मेरी बहन मीना से शादी कर लो। बच्चा भी होगा और घर भी संभल जाएगा।” राम पर रिश्तों और समाज का दबाव पड़ता गया और उसका व्यवहार बदलने लगा। वह राधा से पहले की तरह बातें नहीं करता, उसकी आंखों में प्यार की जगह ठंडापन उतर आया।

राधा को हर बदलाव महसूस हो रहा था। वह रातों को जाग-जाग कर सोचती, “क्या सचमुच मेरी ही गलती है? क्या मैं ही इस घर की दुश्मन हूं?” उसकी आंखें आंसुओं से भीग जातीं। लेकिन वह उम्मीद नहीं छोड़ती, उसे विश्वास था कि राम उसे समझेगा, उसका साथ देगा।

पर वह दिन भी आया जब किरण की साजिश पूरी हो गई। एक रात घर के बीचोंबिच राम ने सबके सामने ठंडी आवाज में कहा, “राधा, मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूं। हमारे बीच अब कोई रिश्ता नहीं रहा।” यह सुनकर राधा के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसकी आंखें स्तब्ध रह गईं, होठ कांपते रहे। वह चाहकर भी कुछ नहीं बोल पाई।

तलाक के बाद राधा की जिंदगी जैसे रुक सी गई। वह जिस घर में बहू बनकर आई थी, उसी घर से वह अजनबी की तरह निकाली गई। सावित्री देवी ने बहुत कोशिश की कि बहू को कोई सहारा मिल जाए, पर किरण ने साफ कह दिया, “अब इसका इस घर से कोई रिश्ता नहीं है।”

राधा के पास थोड़े बहुत गहने थे जिन्हें बेचकर उसने किराए का एक कमरा लिया और किसी तरह दिन काटने लगी। लेकिन तलाक के बाद लोग उसे शक की नजर से देखने लगे। मकान मालिक की बीवी ने उसे बार-बार टोका, “अकेली औरत रह रही है, मोहल्ले का माहौल खराब होगा।”

धीरे-धीरे राधा को एहसास हुआ कि उसके भीतर एक और जिंदगी पल रही है। वह गर्भवती थी। यह खबर उसके लिए नई ताकत बन गई। उसने सोचा, “अब मुझे अपने बच्चे के लिए जीना है।” काम की तलाश में वह इधर-उधर भटकी, लेकिन हर जगह नाकामी मिली। कोई कहता, “तुम गर्भवती हो, तुम्हें काम नहीं देंगे।”

एक दिन राधा ने हिम्मत जुटाकर शहर के एक बड़े ऑफिस का दरवाजा खटखटाया। वह नौकरी चाहती थी, कोई छोटा-मोटा काम भी कर लेगी। दरवाजा खुला और सामने जो चेहरा था, उसे देखकर वह पत्थर की तरह जम गई – वह राम था, उसका तलाकशुदा पति।

राम भी उसे देखते ही ठिठक गया। उसकी आंखें फैल गईं। कुछ पल के लिए दोनों के बीच समय जैसे थम गया। “राधा तुम?” राम की आवाज में हैरानी थी। राधा ने अपनी नजरें झुका लीं। “मैं नौकरी चाहती हूं, कोई छोटा-मोटा काम दे दीजिए।”

राम का चेहरा पढ़ पाना मुश्किल था। वह उसे ऊपर से नीचे तक देख रहा था। फिर उसकी नजर राधा के पेट पर पड़ी। उसका चेहरा नरम पड़ गया। “राधा, तुम… तुम गर्भ
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