एक साधारण आदमी, एक ईमानदार एसपी और संगीता की लड़ाई
रात के करीब साढ़े आठ बजे पटना शहर की सड़कें सुनसान थीं। एक आदमी, साधारण कुर्ता, नीचे लुंगी, चेहरे पर मास्क लगाए, धीमे-धीमे थाने की ओर बढ़ रहा था। उसकी चाल में न कोई अकड़ थी, न आंखों में कोई डर। वह थाने के गेट पर पहुंचा और वहां खड़े हवलदार से बोला, “मैं संगीता का चाचा हूं, उससे बात करनी है।” हवलदार ने ऊपर से नीचे तक देखा, और बिना ज्यादा पूछे उसे अंदर जाने दिया। किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह आदमी कौन है। ना उसकी पोशाक में कोई खासियत थी, ना उसके बोलने में कोई घमंड। मगर यही आदमी पूरे जिले का सिटी एसपी था।
कुछ घंटे पहले की बात है। पटना के एक बड़े शॉपिंग मॉल की पार्किंग में संगीता बतौर इंचार्ज काम करती थी। उसके पिता और भाई स्टेशन पर फलों का ठेला लगाते थे। गरीबी थी, संघर्ष था, लेकिन संगीता ने हार नहीं मानी थी। वह अपने काम में ईमानदार थी और जिम्मेदारी से पार्किंग संभालती थी। एक दिन एक महंगी कार में एक लड़का आता है और गाड़ी को गलत तरीके से पार्क करने की कोशिश करता है। संगीता ने विनम्रता से टोका, “सर, यहां पार्किंग नहीं कर सकते। बाकी गाड़ियों को दिक्कत होगी।” लड़का घमंड से मुस्कुराया, “तू मुझे रोकेगी?” संगीता ने फिर समझाया, “काम मेरा है, जिम्मेदारी भी मेरी है। अगर मैं नहीं रोकूंगी तो कौन रोकेगा?”
लड़के को यह बात बुरी लग गई। उसने अपने एक जान-पहचान वाले दरोगा को फोन मिलाया। दरोगा साहब खुद उसी मॉल में शॉपिंग कर रहे थे। दो मिनट के भीतर पुलिस की गाड़ी मॉल के बाहर आकर रुकी। दरोगा और दो सिपाही सीधे संगीता के पास पहुंचे। चेहरा गुस्से से भरा, आवाज में हुकुम, “तुम्हें नहीं पता किससे पंगा ले रही हो। यह लड़का नेताजी का बेटा है।” संगीता डरी नहीं। वह डटकर बोली, “मैं बस अपना काम कर रही हूं। गलत पार्किंग से बाकी लोगों को दिक्कत होती है। आपका रुतबा मेरे नियम नहीं बदल सकता।”
दरोगा भड़क गया। उसने गाड़ी की पिछली खिड़की का शीशा खुद तोड़ दिया और नेता के बेटे के साथ मिलकर संगीता पर आरोप लगा दिया—इस लड़की ने गहने चोरी किए हैं। बिना किसी सबूत, बिना कोई कंप्लेंट दर्ज किए, सिर्फ एक फोन कॉल के दम पर संगीता को गिरफ्तार कर लिया गया। थाने लाया गया और सीधे हवालात में बंद कर दिया गया। ना कोई महिला कांस्टेबल, ना कोई पूछताछ, ना कोई एफआईआर।
जब यह खबर संगीता के पिता सुरेश और भाई रोशन को मिली तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। दोनों दौड़ते हुए थाने पहुंचे। संगीता को देखने की इजाजत मांगी। पुलिस वालों ने उन्हें डांटा धमकाया, “तुम्हारी बहन चोर है। नेता के बेटे की कार से गहने चुराए हैं।” रोशन और सुरेश हाथ जोड़कर कहने लगे, “साहब, हमारी बहन चोर नहीं है। वह ईमानदारी से काम करती है। कोई गलती हो गई होगी।” लेकिन दरोगा ने गुस्से में उन्हें थाने से बाहर भगा दिया।
थक-हारकर रोशन और उसके पिता वकील के पास गए, लेकिन वकील ने केस लेने से मना कर दिया। मंत्री के बेटे से पंगा नहीं लेना चाहता था। मदद कहीं नहीं मिली। तभी रोशन को याद आया कि कुछ दिन पहले उसने एक वीडियो देखा था जिसमें पटना के सिटी एसपी ने कहा था, “अगर कभी कोई अन्याय हो तो इस नंबर पर कॉल करना। मैं खुद सुनूंगा।” रोशन ने सोशल मीडिया खोला, वीडियो ढूंढा, करीब एक घंटे की मेहनत के बाद वह नंबर मिल गया। उसने तुरंत कॉल मिलाया। दूसरी तरफ से आवाज आई, “हाँ, मैं सिटी एसपी बोल रहा हूँ।” बस यह सुनते ही रोशन फोन पर ही रोने लगा। एसपी बोले, “भाई, शांत हो जाओ। रोओगे तो मैं समझ नहीं पाऊंगा कि मामला क्या है।” रोशन ने खुद को संभाला और पूरी बात बताई।
साहब, मेरी बहन संगीता मॉल में पार्किंग इंचार्ज है। एक लड़के ने गाड़ी गलत पार्क की। बहन ने टोका, तो उसने दरोगा को फोन कर दिया। दरोगा उसका दोस्त है। उसने बहन को चोरी के झूठे इल्जाम में थाने में बंद कर दिया। एसपी साहब चुपचाप सुनते रहे। फिर पूछा, “वह लड़का कौन है?” रोशन बोला, “साहब, वह एक पूर्व मंत्री का बेटा है।” एसपी बोले, “तुम चिंता मत करो। अभी कहां हो?” “साहब, हम थाने के बाहर हैं।” “ठीक है। वहीं रुको। मैं 7:30 तक वहां पहुंचता हूं।”
एसपी साहब ने थाने के इंचार्ज को बुलाया और पूरी बात बताई। इंचार्ज बोला, “अगर ऐसा हुआ है साहब तो गलत है। मैं आपके साथ हूं।” एसपी बोले, “नहीं। मैं साधारण कपड़ों में वहां जाऊंगा। देखूंगा एक आम आदमी के साथ पुलिस कैसा बर्ताव करती है।” उन्होंने सादा कुर्ता पहना, नीचे लुंगी बांधी, चेहरे पर मास्क लगाया। थोड़ी दूरी पर अपनी टीम को रोक दिया और कहा, “अगर मैं मिस कॉल दूं तो तुरंत अंदर आ जाना।” अकेले पैदल चलते हुए एसपी साहब थाने पहुंचे।
थाने के पास पहुंचते ही एसपी साहब ने देखा दो लोग जमीन पर बैठे हैं—थके हुए, डरे हुए, लेकिन उम्मीद से भरे। वे थे संगीता के पिता सुरेश और भाई रोशन। एसपी साहब उनके पास पहुंचे, “बेटा, क्या तुम ही रोशन हो?” रोशन ने देखा, एक अजनबी आदमी लुंगी-कुर्ते में खड़ा था। “हाँ, आप कौन?” “मैं संगीता का चाचा हूं।” एसपी बोले, “मुझे पूरी बात बताओ।” रोशन और उसके पिता ने रोते हुए पूरी कहानी दोहराई। एसपी साहब ने उनकी आंखों में दर्द और बेबसी देखी। उन्होंने हाथ थामे और कहा, “मैं आ गया हूं। अब चिंता मत करो।”
एसपी साहब थाने के अंदर गए। हवलदार ने टोका, “कौन हो भाई?” “मैं संगीता का चाचा हूं। दरोगा साहब से बात करनी है।” दरोगा के कमरे में पहुंचते ही बोले, “साहब, जिस लड़की को आपने पकड़ा है वह निर्दोष है।” दरोगा कुर्सी से उठा, “तो कौन होता है तय करने वाला?” “वो मेरी भतीजी है। मैं सब्जी का ठेला लगाता हूं। लेकिन जानता हूं कि वह चोरी नहीं कर सकती।” दरोगा हंसा, “अब ठेले वाले हमें कानून सिखाएंगे? तू अभी गया नहीं तो तुझे भी बंद कर दूंगा।” एसपी बोले, “साहब, महिला को रात में हवालात में नहीं रखा जा सकता। यह गैरकानूनी है। महिला कांस्टेबल की मौजूदगी के बिना अरेस्ट नहीं हो सकता।” दरोगा गरजा, “बहुत कानून झाड़ रहा है। तुझे अंदर कर दूंगा।”
जैसे ही उसने हाथ उठाया, एसपी साहब ने उसका हाथ पकड़ लिया। जेब से आईडी कार्ड निकाला और दरोगा के सामने कर दिया। आईडी कार्ड सामने आते ही दरोगा साहब के चेहरे का रंग उड़ गया। जिसे वह सब्जी वाला समझ रहा था, वह खुद सिटी एसपी निकला। दरोगा लड़खड़ाई आवाज में बोला, “साहब, मुझे नहीं पता था कि आप…” लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। एसपी साहब ने जेब से फोन निकाला और अपनी टीम को मिस कॉल दे दी। दो मिनट में तीन गाड़ियों के साथ पुलिस की टीम थाने में दाखिल हो गई। पूरे थाने में हड़कंप मच गया।
एसपी साहब दरोगा की कुर्सी पर बैठे और बोले, “तो बताओ दरोगा जी, इस लड़की को किस जुर्म में गिरफ्तार किया है?” दरोगा सिर झुकाए खड़ा था, कुछ बोल नहीं पा रहा था। एसपी साहब की आवाज सख्त हो गई, “किसकी गाड़ी? पूर्व मंत्री के बेटे की।” एसपी साहब ने रजिस्टर मंगवाया और कंप्लेंट ढूंढने लगे। रजिस्टर के पन्ने पलटते गए, लेकिन संगीता के खिलाफ कोई लिखित शिकायत नहीं थी। “12 साल से ड्यूटी कर रहे हो? 12 साल में यह नहीं सीखा कि महिला को रात में हवालात में नहीं रखा जाता?” दरोगा चुप। कोई महिला कांस्टेबल नहीं, कोई एफआईआर नहीं, कोई लिखित कंप्लेंट नहीं। फिर भी तुमने लड़की को बंद कर दिया।
एसपी साहब ने सख्ती से कहा, “सबसे पहले इस लड़की को छोड़ो।” संगीता हवालात से निकली, आंसुओं से भरी आंखों से उस आदमी को देखती रही जिसने उसे छुड़ाया था। उसे अब तक नहीं पता था कि यह साधारण कपड़ों में खड़ा आदमी असल में कौन है। जब उसके पिता सुरेश और भाई रोशन ने बताया, “यही है सिटी एसपी साहब। इन्हीं की वजह से तू आजाद है।” तो संगीता की आंखों से आंसू थम ही नहीं रहे थे। वह बस एकटक एसपी साहब को देखती रही और जमीन पर झुककर उनके पैर छूने लगी। एसपी साहब ने झट उसे ऊपर उठाया, “बेटी, पुलिस का काम यही है—सच के साथ खड़े होना।”
इसके बाद एसपी साहब ने दरोगा की तरफ देखा, “तुम्हें सस्पेंड किया जाता है। तुरंत प्रभाव से।” दरोगा हाथ जोड़ता है, “साहब, माफ कर दीजिए।” लेकिन एसपी साहब बोले, “तुम जैसे चंद लोग पूरे विभाग को बदनाम कर देते हो। पुलिस को देखकर जनता को भरोसा होना चाहिए, डर नहीं। आज जो तुमने किया वह सिर्फ एक लड़की के साथ नहीं बल्कि पूरे सिस्टम के भरोसे के साथ धोखा है।” दरोगा का नाम थाने की दीवार से उतार लिया गया, लाइन हाजिर कर दिया गया।
वहीं संगीता अपने पिता और भाई के साथ थाने से बाहर निकली। सिर उठाकर, आंखों में आत्मसम्मान लिए। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। अगली सुबह एसपी साहब ने संगीता और उसके परिवार को फिर से बुलवाया। तीनों थोड़े घबराए हुए थाने पहुंचे। सामने एसपी साहब खड़े थे। उन्होंने कहा, “अब एक और काम करना है। जिस नेता के बेटे ने तुम्हारी बेटी को झूठे केस में फंसाया उसके खिलाफ हमें मानहानि का केस दर्ज करना होगा।” संगीता के पिता बोले, “साहब, हम गरीब लोग हैं। उन बड़े लोगों से पंगा कैसे लेंगे?” एसपी साहब मुस्कुराए, “पंगा तुम नहीं ले रहे, सिस्टम लेगा। और जब सिस्टम साथ हो तो कोई बड़ा नहीं होता। अगर आज तुम चुप रह गए तो कल कोई और संगीता फंसाई जाएगी।”
संगीता ने अपने पिता का हाथ थामा, “बाबूजी, अब डरना नहीं है। आज नहीं बोले तो पूरी जिंदगी पछताना पड़ेगा।” तीनों ने हां कर दी। मंत्री के बेटे के खिलाफ केस दर्ज हुआ। कोर्ट ने इसे गंभीर मामला माना। जांच में सिद्ध हुआ कि कोई गहना चोरी नहीं हुआ था, सारा आरोप बनाया गया था। अदालत ने संगीता को निर्दोष घोषित किया और मंत्री के बेटे को सख्त चेतावनी दी।
मीडिया में यह मामला खूब उछला। एक ईमानदार एसपी ने गरीब की बेटी को न्याय दिलाया। अब संगीता दोबारा उसी मॉल की पार्किंग में काम करती है। लेकिन इस बार लोग उसे सम्मान से देखते हैं। क्योंकि अब वह सिर्फ एक गरीब लड़की नहीं बल्कि सिस्टम को झुका देने वाली मिसाल बन चुकी है। और उस थाने की दीवार पर अब एक नया बोर्ड टंगा है—”यहां कानून बिकता नहीं, यहां न्याय बोला जाता है।”
यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर सिस्टम में इंसानियत जिंदा है, तो सच और न्याय की जीत संभव है। क्या आपको लगता है अगर एसपी साहब ना आते तो संगीता को इंसाफ मिलता? क्या ऐसे दरोगा आज भी सिस्टम में हैं? अपनी राय जरूर बताइए।
जय हिंद!
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