बस स्टॉप पर मिली तलाकशुदा पत्नी, छलक पड़ा सालों का दर्द | लेकिन फिर जो हुआ

जिस औरत को गोविंद ने कभी तलाक देकर छोड़ दिया था, किस्मत ने सालों बाद उसे फिर उसी बस स्टैंड पर लाकर खड़ा कर दिया। वही जगह, जहां कभी दोनों ने जिंदगी साथ शुरू की थी।

रवीना को देखते ही जैसे वक्त थम गया। आंखों में सवाल तो थे, पर लबों पर खामोशी। गोविंद के दिल में पुराने पन्नों की टीसें खुलने लगीं। वह डायरी, जिसमें उसने अपनी गलतियां छुपा रखी थीं, मानो अब खुद ही उससे सवाल कर रही थी।

धीरे-धीरे दोनों फिर पास आए। एक कप चाय से शुरू हुई बातचीत पुराने जख्मों को कुरेदती रही। कभी यादें हंसातीं, कभी आंखें भिगो देतीं। रवीना का दर्द साफ था—उसे प्यार से ज्यादा इज्जत और भरोसे की कमी ने तोड़ा था।

गोविंद पछतावे से भरा था। वह बदल चुका था और हर लम्हा रवीना को यह एहसास दिलाना चाहता था कि अब वह वही इंसान नहीं है। पर रवीना ने साफ कहा—पछतावे से ज्यादा रिश्ते में बदलाव चाहिए, वक्त चाहिए।

दोनों ने धीरे-धीरे फिर मुलाकातें शुरू कीं। पुराने मंदिर, चाय की दुकानों और पार्कों ने उनकी चुपचाप बातें सुनीं। इस बार वे पति-पत्नी नहीं, बल्कि दोस्त बने। एक-दूसरे को समझने और सम्मान देने का नया सफर शुरू हुआ।

गोविंद ने रवीना से कहा—“अब मुझे नाम से फर्क नहीं पड़ता, मुझे सिर्फ फर्क पड़ता है कि तुम मेरी जिंदगी से कभी जाओ मत।”
रवीना ने मुस्कुराकर जवाब दिया—“तो चलो शुरुआत करते हैं, बिना किसी लेबल के।”

वक्त बीतने के साथ उनकी दूरियां कम होती गईं। वे फिर से करीब आए, पर इस बार बराबरी के साथ। आखिरकार किस्मत ने उन्हें एक नया तोहफा दिया—रवीना मां बनने वाली थी।

जब बेटी का जन्म हुआ, दोनों ने उसका नाम रखा—आशा। क्योंकि वही उम्मीद थी जिसने उनके टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ दिया था।

आज, सालों बाद, गोविंद, रवीना और छोटी आशा की हंसी में वो सब कुछ समा गया, जिसे उन्होंने कभी खो दिया था। यह रिश्ता अब कागजों का नहीं, दिलों का था।

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