जब चार कंपनियों का मालिक ऑफिस में गार्ड बनकर गया, कर्मचारी ने धक्के मारकर अपमान किया, फिर जो हुआ…
कहानी की शुरुआत एक बड़े शहर में होती है, जहाँ एक रहस्यमयी टेक कंपनी, वेदांत एंटरप्राइजेस, अपने सीनियर वाइस प्रेसिडेंट के लिए इंटरव्यू आयोजित कर रही थी। इस कंपनी के संस्थापक, वेदांत अग्रवाल, एक अरबपति थे, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान को सालों तक छिपा कर रखा। आज वह अपने ऑफिस के बाहर साधारण गार्ड की वर्दी में खड़े थे, जबकि अंदर अमीर और घमंडी उम्मीदवार अपने आपको साबित करने के लिए तैयार थे।
इंटरव्यू का दिन:
ऑफिस के बाहर महंगी गाड़ियों की कतार लगी थी। Mercedes, BMW, और Audi जैसी गाड़ियाँ वहाँ खड़ी थीं। सभी उम्मीदवार अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनकर आए थे, जैसे किसी शो में भाग लेने जा रहे हों। वेदांत ने जानबूझकर गार्ड की वर्दी पहनी थी ताकि वह देख सके कि लोग बिना किसी पहचान के एक दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
पहला सामना:
जैसे ही उम्मीदवार ऑफिस में दाखिल हो रहे थे, एक लड़की, मेहिका अरोड़ा, वहाँ आई। उसने गेट पर खड़े गार्ड से टकराते हुए नफरत भरी आवाज में कहा, “क्या अंधा है? हट! मुझे देर हो रही है।” मेहिका का घमंड उसके चाल-ढाल से साफ झलक रहा था। गार्ड ने बस मुस्कुराते हुए उसकी बात सुनी और सिर झुका लिया। उसे पता था कि आज का दिन उसके लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन उसने किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी।
इंटरव्यू राउंड:
अंदर, मेहिका ने अपने आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू में प्रवेश किया। उसने कहा, “मुझे लगता है कि आप मेरी योग्यता देख चुके होंगे।” पहले सवाल पर उसने कहा, “मैं चाहती हूं कि चीजें मेरे कंट्रोल में रहें।” उसका जवाब सुनकर पैनल के सदस्य हैरान रह गए। वह अपने से नीचे के लोगों के साथ काम नहीं करना चाहती थी और रिश्तों को महत्व नहीं देती थी।
वेदांत का असली रूप:
इस बीच, वेदांत अपने ऑफिस में सीसीटीवी स्क्रीन के सामने बैठा सब कुछ देख रहा था। वह जानना चाहता था कि लोग उसके बिना किसी पहचान के साथ कैसे व्यवहार करते हैं। जैसे ही मेहिका का इंटरव्यू खत्म हुआ, उसने रिसेप्शन को फोन किया और कहा, “जिन उम्मीदवारों को पैनल ने शॉर्टलिस्ट किया है, उन्हें मेरे ऑफिस भेजिए।”
मेहिका की उम्मीदें:
मेहिका को पूरा विश्वास था कि उसे नौकरी मिल जाएगी। वह सोच रही थी कि उसकी योग्यता और अनुभव उसे सबसे आगे ले जाएगा। लेकिन जब उसका नाम पुकारा गया और वह वेदांत के ऑफिस में गई, तो उसका चेहरा सफेद पड़ गया। सामने वही गार्ड था, जिसे उसने सुबह अपमानित किया था।
वेदांत का फैसला:
वेदांत ने मेहिका के सामने फाइलें रखीं और कहा, “आपकी योग्यता अच्छी है, लेकिन सबसे जरूरी चीज, इंसानियत, आपमें नहीं है।” मेहिका कांपने लगी। उसने कहा, “मुझे माफी मांगने का मौका दें।” लेकिन वेदांत ने कहा, “माफी मांगना आसान होता है। लेकिन आपको यह जानना चाहिए कि क्या आप माफी के लायक हैं या नहीं।”
सीखने का समय:
वेदांत ने उसे बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी को देखकर उसकी हैसियत तय करता है, तो वह कभी भी बड़ी पोस्ट के काबिल नहीं हो सकता। मेहिका की आँखों में आंसू थे। वह खुद को कमजोर महसूस कर रही थी। वेदांत ने कहा, “आप जा सकती हैं।”

मेहिका की शर्मिंदगी:
मेहिका बाहर निकली, लेकिन अब उसकी चाल में आत्मविश्वास नहीं था। वह सोच रही थी कि कैसे उसने उस गार्ड को नीचा दिखाया। ऑफिस के बाहर डिजिटल स्क्रीन पर लिखा था, “हम योग्यता से पहले विचार देखते हैं। कभी किसी की सादगी को उसकी औकात मत समझो।”
अंतिम फैसला:
वेदांत ने उस दिन किसी को भी उस पद के लिए नहीं चुना। उसने कंपनी के एक पुराने कर्मचारी को प्रमोट किया, जिसने सालों से मेहनत की थी। मेहिका को यह समझ में आ गया कि असली मूल्य क्या होता है। उसने एक महत्वपूर्ण सबक सीखा, जो उसे कभी भी नहीं भूलने वाला था।
निष्कर्ष:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि असली मूल्य इंसानियत में है। जो लोग सादगी में रहते हैं, वे अक्सर सबसे बड़े होते हैं। हमें हमेशा दूसरों के प्रति सम्मान और विनम्रता से पेश आना चाहिए, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो।
संदेश:
इस कहानी का संदेश है कि हमें किसी की बाहरी पहचान से नहीं, बल्कि उसके अंदर की अच्छाई से उसे आंकना चाहिए। असली ताकत सादगी और इंसानियत में होती है।
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