पति दो साल बाद विदेश से लौटा तो पत्नी ट्रेन में भीख माँग रही थी… पति को देख रोने लगी फिर जो हुआ…

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पति दो साल बाद विदेश से लौटा तो पत्नी ट्रेन में भीख माँग रही थी… पति को देख रोने लगी, फिर जो हुआ…

उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के एक छोटे से गांव में अजय नाम का युवक अपने माता-पिता और छोटे भाई योगेश के साथ रहता था। परिवार साधारण था, लेकिन आपसी प्यार और भरोसे से भरा हुआ। अजय पढ़ा-लिखा था और परिवार के लिए कुछ बड़ा करना चाहता था। शादी के बाद उसकी पत्नी ज्योति घर आई—सीधी-सादी, संस्कारी और अपने ससुराल को अपना मानने वाली लड़की।

समय बीतता गया। योगेश की शादी पहले हो गई थी। उसकी पत्नी, यानी अजय की भाभी, स्वभाव से तेज-तर्रार और चालाक थी। धीरे-धीरे घर में उसका दबदबा बढ़ता गया। भाभी ने अपने मीठे बोलों और चालाकी से अजय को अपने पक्ष में कर लिया। अजय भी धीरे-धीरे अपनी पत्नी ज्योति से दूर होता गया। वह न तो उससे प्यार से बात करता, न ही उसकी भावनाओं को समझता। ज्योति अपने ससुराल में अकेली पड़ गई थी। भाभी के इशारों पर अजय अपनी पत्नी को डाँटता, ताने देता, कभी-कभी मारपीट भी कर देता।

एक दिन भाभी ने अजय को विदेश जाकर पैसा कमाने के लिए उकसाया—”देवर जी, आजकल लोग सऊदी अरब जाते हैं, बहुत पैसा कमाते हैं। आप भी जाइए, खूब पैसे भेजिए, फिर हम सब मजे करेंगे।” अजय को भाभी की हर बात पत्थर की लकीर लगती थी। उसने पासपोर्ट और वीज़ा बनवाया और माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी भाई-भाभी को सौंपकर विदेश चला गया। जाते-जाते उसने अपने खाते में जमा पैसे भी भाभी के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए ताकि जरूरत पड़ने पर मां-बाप और पत्नी को कोई दिक्कत न हो।

विदेश में अजय दिन-रात मेहनत करता रहा, लेकिन भारत में उसके पीछे परिवार की तस्वीर बदल चुकी थी। भाभी ने योगेश को लालच दिया—”देखो, जब तक अजय वापस आए, मां-बाप की सारी जमीन-जायदाद अपने नाम करवा लो।” योगेश ने मां-बाप को सरकारी योजना का झांसा देकर तहसील ले जाकर सब कुछ अपने नाम करवा लिया। फिर दोनों ने बूढ़े मां-बाप को घर से निकाल दिया। घर बेचकर दोनों कहीं और चले गए।

ज्योति के साथ भी यही हुआ। मायके में कुछ दिन तो भाई-भाभी ने रखा, लेकिन जल्द ही ताने मिलने लगे। तंग आकर ज्योति भी घर छोड़कर रेलवे स्टेशन के पास रहने लगी। कभी भीख मांगती, कभी चना-चना बेचती, कभी छोटे-मोटे काम करती—बस किसी तरह पेट भरती। एक दिन स्टेशन पर उसने अपने सास-ससुर को भीख मांगते देखा, तो रो पड़ी। तीनों ने मिलकर एक पुराना त्रिपाल खरीदा और स्टेशन के पास फुटपाथ पर रहने लगे। ज्योति ने सास-ससुर की सेवा को ही अपनी जिंदगी बना लिया।

दो साल बीत गए। अजय को अचानक घर की याद सताई। उसने भाई-भाभी को फोन किया, पर नम्बर बंद मिला। वह भारत लौटा, घर पहुंचा तो ताला लगा मिला। पड़ोसियों ने बताया कि भाई-भाभी संपत्ति बेचकर गायब हो गए, मां-बाप और पत्नी को घर से निकाल दिया। अजय का सिर चकरा गया। वह स्टेशन पहुंचा, तो देखा बूढ़े मां-बाप भीख मांग रहे हैं, पत्नी ज्योति पास ही बैठी है। मां-बाप ने बेटे को देखा तो आंखें भर आईं। ज्योति अपने पति के पैरों से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी।

अजय को अपनी गलती का अहसास हुआ। मां-बाप ने कहा, “बेटा, तुम्हारे भैया-भाभी ने सब कुछ हड़प लिया, हमें घर से निकाल दिया। लेकिन तुम्हारी पत्नी ज्योति ने हमें कभी अकेला नहीं छोड़ा। अगर यह नहीं होती, तो हम कब के मर चुके होते।” अजय ने ज्योति से माफी मांगी, “मुझसे जो गलतियां हुईं, उसके लिए मुझे माफ कर दो।” ज्योति बोली, “आपकी कोई गलती नहीं थी, भाभी ने सब कुछ अपने वश में कर लिया था। अब सब ठीक हो जाएगा।”

अब उनके पास रहने को घर नहीं था, पैसे भी नहीं थे। अजय ने ठान लिया कि अब मेहनत करके ही सब कुछ वापस पाना है। वह परिवार को लेकर एक दूसरे शहर गया, मंडी के पास छोटा कमरा किराए पर लिया। मंडी में पल्लेदारी करने लगा—गाड़ियों में सब्जी लोड-उतारने का काम। ज्योति ने कहा, “मुझे एक छोटी सी सब्जी की दुकान खोल दो, मैं बेचूंगी।” सास-ससुर दुकान पर बैठने लगे। धीरे-धीरे दुकान चल निकली, पैसे बचने लगे। किराए का मकान, फिर छोटा प्लॉट, फिर खुद का घर। अजय ने मंडी में आढ़त खोल ली—अब वह खुद मालिक था।

इधर योगेश और उसकी पत्नी, जिन्होंने घर-परिवार को धोखा दिया था, जब पैसा खत्म हुआ तो ससुराल वालों ने भी घर से निकाल दिया। दोनों दर-दर की ठोकरें खाने लगे। एक दिन भटकते-भटकते उसी मंडी में पहुंचे, जहां अजय की दुकान थी। वहां अजय को मालिक की तरह बैठा देखा, कई लोग उसके नीचे काम कर रहे थे। योगेश और उसकी पत्नी शर्मिंदा होकर सास-ससुर के पैरों पर गिरने लगे। अजय ने गुस्से में कहा, “अब हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं। तुम लोगों ने सिर्फ पैसों के लिए हमें बेघर कर दिया।”

मगर बूढ़े मां-बाप ने कहा, “बेटा, गलती इंसान से ही होती है। जैसे तुमसे हुई, वैसे इनसे भी हो गई। आखिर ये तुम्हारा भाई है। माफ कर दो।” ज्योति ने भी कहा, “इन्हें छोटा-मोटा काम दिलवा दीजिए, ये भी परिवार का हिस्सा हैं।” अजय का गुस्सा शांत हुआ। उसने भाई के लिए भी काम शुरू करवा दिया। दोनों परिवार फिर से एक हो गए।

अब अजय और ज्योति की मेहनत रंग लाई। जितनी संपत्ति भाई-भाभी ने छीनी थी, उससे दुगुनी उन्होंने मेहनत से कमा ली। परिवार में फिर से खुशियां लौट आईं। अजय ने सबक सीखा—भरोसा, प्यार और मेहनत से बड़ी कोई दौलत नहीं। ज्योति जैसी पत्नी और माता-पिता का साथ हो तो जीवन की हर मुश्किल आसान हो जाती है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि लालच, धोखा और झूठ की उम्र बहुत छोटी होती है, लेकिन सच्चाई, मेहनत और रिश्तों की ताकत हमेशा जीतती है। कभी भी अपनों का दिल मत दुखाओ, क्योंकि वक्त बदलता है और वही लोग एक दिन तुम्हारा सहारा बन सकते हैं।

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