Ips मैडम को आम लड़की समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा और फिर इंस्पेक्टर के साथ जों हुवा…

जिला शिवनगर की शाम कुछ उदास थी। बादलों की मोटी चादर ने आसमान को ढक रखा था, और सड़कों पर हलचल थी, लेकिन हवा में एक बेचैनी थी। नई एसपी अवनी सिंह, 27 साल की तेजतर्रार आईपीएस अफसर, ने तीन दिन पहले ही चार्ज संभाला था। फाइलों के बीच काम करते हुए उसने पुलिस सिस्टम की जमी हुई गंदगी को महसूस कर लिया था। हर मीटिंग में अफसर उसे भरोसा दिला रहे थे कि सब कुछ ठीक है, लेकिन अवनी जानती थी कि फाइलों की चमक में असली सच्चाई छिपी रहती है।

अवनी के पिता एक रिटायर्ड हवलदार थे, जिन्होंने उसे सिखाया था कि वर्दी की असली इज्जत तब है जब वह डर नहीं, बल्कि भरोसा पैदा करे। उस शाम, अवनी ने फैसला किया कि अब वक्त है सच्चाई को अपनी आंखों से देखने का। उसने अपनी खाकी उतारी और एक सादा सफेद सलवार कुर्ता पहना। बालों को रबर बैंड से बांधकर, बिना गाड़ी लिए पैदल ही निकल गई। सदर बाजार की गलियां भीगी थीं, मिट्टी की खुशबू और बारिश की बूंदों में शहर की धड़कन थी।

अवनी ने एक ऑटो पकड़ा और कहा, “भैया, सदर बाजार चलना।” ऑटो वाला बोला, “बैठ जाइए दीदी।” रास्ते भर वह खिड़की से बाहर देखती रही। सड़कें, भीड़, शोर—उसे लगा जैसे वह फिर से उसी दुनिया में लौट आई है, जहां कभी उसके पिता ट्रैफिक में घंटों खड़े रहते थे। सदर बाजार में उतरकर, उसने पानी पूरी के ठेले की खुशबू महसूस की। एक अधेड़ उम्र का आदमी, नाम रामलाल, बड़ी मेहनत से ग्राहकों को पानी पूरी परोस रहा था।

अवनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “एक प्लेट लगाओ भैया।” रामलाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “अभी देता हूं बिटिया।” अवनी ने पहला गोलगप्पा खाया, जिसका स्वाद अद्भुत था। वह दूसरा खाने ही वाली थी कि अचानक एक जीप के ब्रेक की चीख ने माहौल तोड़ दिया। जीप रुकी, दरवाजा खुला और चार पुलिस वाले उतरे। उनके बीच में था सब इंस्पेक्टर विक्रम चौहान—28 साल का लंबा, हैंडसम, लेकिन आंखों में घमंड का धुंध।

विक्रम ने ठेले के पास पहुंचकर लाठी से ठकठकाया। “ओए रामलाल, निकाल हफ्ते के पैसे।” रामलाल घबरा गया। “साहब, आज बारिश थी। दुकान देर से लगी। कमाई नहीं हुई।” विक्रम हंसा, उसकी हंसी शिकारी की थी। “कमाई नहीं हुई, पर पुलिस का हफ्ता तो फिक्स है ना। निकाल जल्दी।” रामलाल के कांपते हाथों से ₹200 निकले, लेकिन विक्रम ने ठेला धक्का देकर पानी, मसाला, आलू सब जमीन पर गिरा दिए। लोग चुपचाप देखने लगे। अवनी के भीतर कुछ टूट गया।

उसने विक्रम के सामने जाकर बोला, “ऑफिसर, किस कानून के तहत आप इस गरीब से पैसे वसूल रहे हैं?” विक्रम ने बिना देखे कहा, “तू कौन होती है बीच में बोलने वाली? तेरे बाप का ठेला है क्या?” अवनी की आवाज सख्त थी, “मैं इस देश की नागरिक हूं और एक नागरिक होने के नाते पूछने का हक रखती हूं कि पुलिस जनता की मदद करेगी या लूटेगी?” विक्रम तिलमिला उठा।

उसने बिना सोचे अपना हाथ घुमाया और एक जोरदार थप्पड़ अवनी के गाल पर दे मारा। बाजार में सन्नाटा छा गया। गोलगप्पे का पानी सड़क पर बह रहा था और अवनी का चेहरा झुक गया। कुछ सेकंड बाद उसने सिर उठाया। उसकी आंखों में अब कोई दर्द नहीं था, सिर्फ एक ठंडी दृढ़ता थी। उसने धीरे से पर्स से एक कार्ड निकाला और विक्रम के सामने रखा। कार्ड पर सुनहरी मोहर थी: “अवनी सिंह, आईपीएस, सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस, शिवनगर।”

विक्रम के चेहरे का रंग उड़ गया। उसकी लाठी जमीन पर गिर गई। अवनी की आवाज गूंज उठी, “तुम्हें पता है तुमने अभी क्या किया है? कानून की रखवाली करने वाली वर्दी ने ही कानून की हत्या की है। अब इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।” कुछ मिनटों में दो जीपें आ गईं। एसएओ खुद आया और सैल्यूट किया। अवनी ने आदेश दिया, “इन चारों को लाइन हाजिर करो। सब इंस्पेक्टर विक्रम चौहान पर विभागीय जांच शुरू करो। चार्ज शीट तुरंत तैयार की जाए।”

बाजार में जो सन्नाटा था, अब तालियों में बदल गया। लोगों ने राहत की सांस ली। अवनी रामलाल के पास गई। “आपका नुकसान सरकार पूरा करेगी। डरिए मत। अब कोई आपसे हफ्ता नहीं मांगेगा।” रामलाल की आंखों से आंसू बह निकले। उसने हाथ जोड़ दिए। अवनी ने कहा, “याद रखिए, पुलिस जनता की ढाल है, तलवार नहीं।”

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी। अगले दिन सुबह जैसे ही अखबार निकले, हेडलाइन थी: “एसपी अवनी सिंह ने बाजार में एसआई को किया सस्पेंड। थप्पड़ कांड बना सुर्खी।” पूरा जिला हिल गया। कुछ ने अवनी की तारीफ की, कुछ ने उसे ओवरएक्टिंग अफसर कहा। शाम तक उसके ऑफिस में फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ आवाज थी, “मैं विधायक राघव तिवारी बोल रहा हूं। मैडम, आप नहीं हैं। सिस्टम को समझिए। विक्रम हमारा लड़का है। थोड़ी सख्ती कम कीजिए वरना मुश्किल बढ़ जाएगी।”

अवनी ने ठंडे स्वर में कहा, “विधायक जी, कानून सबके लिए बराबर है और डरिए नहीं। मैं भी उसी सिस्टम की हूं। फर्क बस इतना है कि मैं इसे ठीक करने आई हूं।” उसने फोन रख दिया। लेकिन अब असली खेल शुरू हुआ। रात को कंट्रोल रूम से रिपोर्ट आई कि एसपी ऑफिस के बाहर कुछ अज्ञात लोग मंडरा रहे हैं। अवनी ने नाइट पेट्रोल बढ़ा दी। इसी बीच विक्रम की सस्पेंशन के बाद उसके कुछ समर्थक पुलिसकर्मी भड़क गए।

अवनी को खबर मिली कि बाजार के उसी इलाके में आगजनी हुई। एक गरीब का ठेला जलाया गया—रामलाल का ठेला। अवनी खुद मौके पर पहुंची। चारों ओर अफरातफरी थी। रामलाल घायल था। लोगों ने बताया कि दो नकाबपश बाइक सवारों ने पेट्रोल डालकर आग लगाई। अवनी ने पास खड़े सिपाहियों से पूछा, “किसकी ड्यूटी थी यहां?” किसी ने जवाब नहीं दिया।

वह चिल्लाई, “मैं पूछ रही हूं, जवाब दो!” एक जवान बोला, “मैम, हमने देखा नहीं। हेलमेट पहने थे दोनों।” अवनी ने उस वक्त कोई बात नहीं की। बस बोली, “सबकी लोकेशन रिपोर्ट चाहिए। सीसीटीवी फुटेज मंगवाओ।” रात में उसने अपने ऑफिस में बैठकर सारे फुटेज देखे। एक फ्रेम में उसे एक छवि दिखी—बाइक सवार के कंधे पर वही पुलिस लाइन का जैकेट, जो सिर्फ ऑन ड्यूटी स्टाफ को मिलता है।

अवनी ने अगली सुबह एक ट्रैप लगाया। उसने अपने भरोसेमंद इंस्पेक्टर अर्जुन को भेजा, जो रामलाल के रिश्तेदार बनकर विक्रम के पास पहुंचा। विक्रम ने कहा, “एसपी बहुत सीधी है। 2 दिन में ठंडी पड़ जाएगी। मैंने ऊपर बात कर ली है। बयान बदलवा देंगे। रामलाल बोल देगा कि उस दिन उसने पहले बदतमीजी की थी।” अर्जुन ने वह सारी बात रिकॉर्ड कर ली।

अगले दिन जिला मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। सभी कैमरे ऑन थे। विधायक राघव तिवारी भी पहुंचे। माहौल भारी था। अवनी मंच पर आई। गाल पर हल्का निशान अब भी था, लेकिन चेहरे पर आग थी। उसने माइक्रोफोन पकड़ा और कहा, “कल मेरे जिले में एक पुलिस वाले ने एक गरीब से हफ्ता मांगा। मैंने उसे सस्पेंड किया। उसके बाद उसी गरीब पर हमला हुआ। यह हमला एक व्यक्ति पर नहीं, कानून पर था और आज मैं सबूत पेश कर रही हूं।”

उसने स्क्रीन पर विक्रम और विधायक की बातचीत का क्लिप चलाया। कमरे में सन्नाटा छा गया। विधायक का चेहरा उतर गया। अवनी ने कहा, “अब सबको समझ आ जाएगा कि यह सिर्फ हफ्ते की बात नहीं थी। यह सिस्टम की सड़ंध थी। अब यह गंदगी साफ होगी, चाहे कितनी भी ऊंची कुर्सी पर बैठी हो।”

अगले ही दिन विधायक की गिरफ्तारी की खबर आई। विक्रम और उसके साथी जेल भेजे गए। रामलाल अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ तो एसपी ऑफिस आया। वह रोते हुए बोला, “मैडम, अगर आप नहीं होतीं तो शायद मैं अब जिंदा नहीं होता।” अवनी मुस्कुराई। “रामलाल जी, अगर आप जैसे लोग डरना छोड़ दें तो इस देश में कोई विक्रम पैदा नहीं होगा।”

उस शाम जब अवनी अपने बंगले में लौटी, आसमान साफ था। वही पुराना आईना उसके सामने था। गाल पर अब भी हल्का निशान था, लेकिन इस बार उसे दर्द नहीं हुआ। उस निशान में उसे अपना फर्ज दिखावा देता। वह थप्पड़ जिसने ना सिर्फ एक पुलिस वाले को सबक सिखाया, बल्कि पूरे जिले को याद दिलाया कि वर्दी का मतलब डर नहीं, न्याय होता है।

इस प्रकार, अवनी ने अपने कार्यकाल में न्याय की एक नई परिभाषा स्थापित की, जो न केवल शिवनगर, बल्कि पूरे जिले के लिए एक प्रेरणा बन गई। उसकी कहानी ने यह साबित कर दिया कि सच्चाई और न्याय के लिए खड़ा होना हमेशा सही होता है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।

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