गाँव से आई बूढ़ी मां के साथ शहर में बेटे बहू ने किया ऐसा सलूक… इंसानियत भी रो पड़ी

“कोमल जी की नई दुनिया: अकेलेपन से आत्मसम्मान तक”
भाग 1: गांव से शहर तक का सफर
कोमल जी, एक साधारण गांव की महिला थीं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी दूसरों के लिए समर्पित कर दी थी। सरकारी स्कूल में अध्यापिका रहते हुए उन्होंने चालीस साल तक बच्चों को पढ़ाया, उन्हें इंसानियत और संस्कार का पाठ पढ़ाया। पति के साथ उनका जीवन सुख और शांति से गुजर रहा था। लेकिन एक दिन महामारी ने उनका सब कुछ बदल दिया—पति की अचानक मृत्यु ने उनके जीवन को सूना कर दिया।
अब घर में सिर्फ सन्नाटा था। आंखों में आंसू, दिल में खालीपन और जीवन में अकेलापन। ऐसे समय में उनका बेटा अमित और बहू उन्हें मुंबई ले आए, यह सोचकर कि मां अकेली कैसे रह पाएंगी। मां का दिल अपने गांव, अपनी गली, अपने पड़ोस से जुड़ा था, लेकिन बेटे के कहने पर वह सब छोड़कर मुंबई चली आईं।
भाग 2: शहर की तन्हाई और नई शुरुआत
मुंबई में कोमल जी का जीवन बिलकुल बदल गया। यहां ना कोई पड़ोसी था, ना कोई जान पहचान। बेटा-बहू दोनों ऑफिस के काम में व्यस्त रहते, पोता ऑनलाइन पढ़ाई में लगा रहता। कोमल जी बस चार दीवारों के बीच समय बितातीं।
एक दिन पार्क में टहलते हुए उनकी मुलाकात मदन लाल जी से हुई। मदन लाल जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुस्कुराइए, जिंदगी बहुत खूबसूरत है।” धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो गई। मदन लाल जी ने उन्हें बुजुर्गों के ग्रुप से मिलवाया। वहां सभी लोग उम्रदराज थे, लेकिन चेहरों पर रौनक थी। कोमल जी को पहली बार लगा कि जिंदगी खत्म नहीं हुई है। पति के जाने के बाद जो खालीपन था, वह अब थोड़ा-थोड़ा भरने लगा।
भाग 3: आत्मसम्मान की लड़ाई
एक दिन कोमल जी ने खुद को आईने में देखा और सोचा, “मैंने खुद को वक्त से पहले बूढ़ा मान लिया है।” उन्होंने बाल रंगे, खूबसूरत साड़ी पहनी और मुस्कुराईं। लेकिन जैसे ही पार्क जाने लगीं, बहू ने ताने मारना शुरू कर दिया—”इस उम्र में सजने-संवरने की क्या जरूरत है?” बेटा भी मां का मजाक उड़ाने लगा। कोमल जी का दिल टूट गया।
लेकिन उन्होंने ठान लिया कि अब वह अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जिएंगी। अपनी पेंशन खुद खर्च करने लगीं, कपड़े, किताबें, पसंद की चीजें खरीदीं। बहू को यह सब खटकने लगा। बेटे ने भी शिकायत की, लेकिन कोमल जी ने साफ कह दिया, “मेरी पेंशन मेरी है, और उसका इस्तेमाल मैं तय करूंगी।”
भाग 4: दोस्ती, समाज और संघर्ष
कोमल जी और मदन लाल जी की दोस्ती पूरे सोसाइटी में चर्चा का विषय बन गई। पार्क में उनकी हंसी-मजाक, चाय पर बातें सबकी निगाहों में आ गईं। बहू ने मोबाइल चेक किया, ग्रुप के मैसेज और मदन लाल जी के साथ तस्वीरें देखीं और बेटे को दिखाया।
एक दिन मीडिया भी पहुंच गई—सवालों की बौछार होने लगी। “क्या सच है कि इस उम्र में आप और मदन लाल जी शादी करने जा रहे हैं?” कोमल जी अब चुपचाप अपमान सहने वाली मां नहीं थी। उन्होंने सबके सामने कहा, “अगर कोई इंसान किसी और का सहारा बन जाए, उसके अकेलेपन को हल्का कर दे, तो उसे गलत नजर से क्यों देखा जाए?”
उन्होंने बताया कि उनका असली सपना उन गरीब बच्चों के लिए एक छोटा सा स्कूल खोलना है, जिनके पास पढ़ने के लिए किताबें नहीं हैं। मीडिया वाले चुप हो गए, पीछे से तालियों की गूंज उठी। बच्चों ने उन्हें “कोमल दादी” और “मदन दादा” कहना शुरू कर दिया।
भाग 5: नई दुनिया, नया मकसद
कोमल जी और मदन लाल जी ने पार्क में ही बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे उनका छोटा सा स्कूल बच्चों से भरने लगा। एक एनजीओ ने मदद की और एक बड़ा स्कूल खुलवा दिया। कोमल जी ने निर्णय लिया कि वह इसी स्कूल के छोटे क्वार्टर में रहेंगी। उनका मन अब इन्हीं मासूम बच्चों में रच-बच गया था।
मदन लाल जी रोज अपने फ्लैट से आते-जाते और बच्चों को पढ़ाते। कोमल जी उनके लिए खाना बनातीं, गरम-गरम रोटियां, दाल-सब्जी और कभी-कभार गाजर का हलवा भी। बच्चों के शोरगुल और हंसी के बीच वे दोनों एक कोने में बैठकर खाना खाते—यही उन्हें सबसे ज्यादा सुकून देता।
भाग 6: बेटे-बहू का सामना और अंत
एक दिन बेटा और बहू मिलने आए। बहू ने ताने मारते हुए कहा, “मां जी, अब तो आप बिल्कुल आजाद हो गई हैं। बुजुर्ग उम्र में भी दूसरों के साथ रहकर मजे कर रही हैं।” कोमल जी ने शांत लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “अब मैं अपनी मर्जी से जी रही हूं। तुम्हारे लिए मैं सिर्फ पेंशन और जिम्मेदारी थी। लेकिन उन गरीब बच्चों के लिए मैं मां हूं और मदन लाल जी के लिए साथी। अगर यह सब गलत है तो मुझे खुशी है कि मैं गलत हूं।”
बेटा कुछ कहना चाहता था लेकिन उसकी आंखें झुक गईं। वह समझ गया कि मां अब पहले जैसी नहीं है। अब उन्होंने अपनी जिंदगी का मकसद खुद चुन लिया है।
भाग 7: संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि उम्र सिर्फ शरीर की होती है, दिल की नहीं। बुढ़ापे में इंसान को भी हक है खुश रहने का, अपनी मर्जी से जीने का और दूसरों के जीवन को संवारने का। कोमल जी की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो अकेलेपन से जूझ रहा है। असली जीत नए मकसद के साथ जीना है।
समाप्त
आपकी राय क्या है? क्या बुढ़ापे में इंसान को अकेलेपन से टूट जाना चाहिए या फिर नए मकसद के साथ जीना ही असली जीत है?
अगर कहानी अच्छी लगी हो तो लाइक और शेयर जरूर करें, और अपने माता-पिता का हमेशा सम्मान करें क्योंकि उनकी दुआएं ही असली पूंजी हैं।
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