अंकल मेरी साइकल खरीद लीजिये , मेरा भाई भूखा है , लड़की की बात सुनकर करोड़पति चौंक पड़ा , फिर उसने

“ईमानदारी की नीली साइकिल: धारावी से मलाबार हिल तक”

प्रस्तावना

मुंबई, सपनों का शहर। यहां हर कोई अपनी किस्मत बदलने का सपना लेकर आता है, लेकिन कुछ की किस्मत इतनी बेरहम होती है कि बचपन ही बोझ बन जाता है। यह कहानी है अंजलि की, एक 15 साल की मासूम लड़की, जिसकी दुनिया तंग गलियों, बदबूदार झुग्गियों और लगातार संघर्ष से घिरी थी। लेकिन उसकी ईमानदारी, उसकी मासूमियत और उसकी मजबूरी ने उसे उस मोड़ पर ला खड़ा किया, जहां उसकी किस्मत बदल गई।

अंजलि का बचपन

तीन साल पहले तक अंजलि का जीवन साधारण था, पर खुशहाल था। उसके पिता रमेश धारावी की एक छोटी फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। मां सीमा घर संभालती थीं, और अंजलि स्कूल जाती थी। रमेश की कमाई ज्यादा नहीं थी, लेकिन घर में प्यार और सुकून था। हर शाम रमेश बच्चों के लिए मीठा लाते, और अंजलि को पढ़ाई का बहुत शौक था। रमेश का सपना था कि उसकी बेटी अफसर बने। राजू, अंजलि का छोटा भाई, घर का लाडला था। एक दिन रमेश ने अपनी जमा पूंजी से अंजलि के लिए एक नीली साइकिल खरीदी। वह साइकिल उनके परिवार के प्यार, उम्मीद और खुशियों की पहचान थी। अंजलि उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती थी।

कष्टों की शुरुआत

लेकिन किस्मत को उनकी खुशियों से जलन थी। एक शाम फैक्ट्री में भारी मशीन रमेश के ऊपर गिर गई। अस्पताल में इलाज के बाद भी रमेश बच नहीं सके। फैक्ट्री मालिक ने सिर्फ ₹1000 देकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। सीमा सदमे में टूट गई, बीमारी ने उसे घेर लिया। वह लोगों के घरों में काम करने लगी, लेकिन एक साल के अंदर ही टीबी की बीमारी ने उसे भी छीन लिया। अंजलि और राजू अनाथ हो गए।

रिश्तेदार, जो कभी-कभार आते थे, सहानुभूति दिखाने आए। उन्होंने लोगों से बच्चों के नाम पर मदद ली, घर का सामान बेचा, और एक रात चोल का घर बेचकर पैसे लेकर दोनों बच्चों को सड़क पर बेसहारा छोड़कर गायब हो गए।

संघर्ष की जिंदगी

अब 15 साल की अंजलि अपने 8 साल के भाई की मां बन चुकी थी। उसने पढ़ाई छोड़ दी और पास के ढाबे में बर्तन मांजने लगी। दिन भर की मेहनत के बाद उसे थोड़ा खाना और पैसे मिलते, जिससे वह राजू का पेट भरती। वे दोनों धारावी की झुग्गी में एक त्रिपाल के नीचे रहने लगे। अंजलि राजू को स्कूल नहीं भेज पाती थी। पिता की निशानी, नीली साइकिल, अब भी उसके पास थी। वह रोज उसे साफ करती, जैसे अपने पिता की यादों को संजो रही हो।

मुंबई में बारिश ने आफत मचा दी थी। ढाबा बंद था, दो दिन से खाना नहीं मिला। राजू बीमार हो गया, तेज बुखार में तप रहा था। अंजलि ने उसे झंझोरा, लेकिन राजू बेहोश पड़ा था। अंजलि को लगा कि अगर आज राजू को दवा और खाना नहीं मिला, तो वह भी मां-बाप की तरह उसे छोड़कर चला जाएगा। उसे पैसे चाहिए थे, अभी इसी वक्त। लेकिन किससे मांगती? आसपास सब गरीब थे। उसकी नजर नीली साइकिल पर पड़ी, जो उसके पिता का प्यार थी। दिल रो पड़ा, लेकिन उसने फैसला किया – वह साइकिल बेच देगी।

नीली साइकिल का सौदा

बारिश में कांपती हुई, राजू को फटी चादर से ढककर, अंजलि साइकिल को घसीटते हुए बाहर निकली। अमीरों के इलाके की ओर चल दी, जहां बड़ी दुकानें थी। एक-दो कबाड़ की दुकानों पर साइकिल दिखाने की कोशिश की, लेकिन किसी ने बात नहीं की। एक दुकानदार ने डांटकर भगा दिया। अंजलि की आंखों से आंसू बह रहे थे, बारिश में गुम हो रहे थे। थककर वह ट्रैफिक सिग्नल के पास खड़ी हो गई।

तभी एक काली Mercedes उसके सामने आकर रुकी। कार में बुजुर्ग धर्मजी, यानी इंद्रजीत सिंह, सफेद पगड़ी और दाढ़ी में बैठे थे। ड्राइवर ने शीशा चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन धर्मजी ने रोका। अंजलि कांपती आवाज में बोली, “अंकल, मेरी साइकिल खरीद लीजिए। मेरा भाई भूखा है, बहुत बीमार है। दो दिन से हमने कुछ नहीं खाया। मुझे उसके लिए दवा और खाना चाहिए।”

धर्मजी, जो खुद गरीबी देख चुके थे, अंजलि की आंखों में सिर्फ आंसू नहीं, बल्कि सच्चाई देख रहे थे। उन्होंने पूछा, “कितने में बेचोगी?” अंजलि ने कहा, “बस ₹100 दे दीजिए, उतने में मेरे भाई के लिए दवा और रोटी आ जाएगी।” धर्मजी हैरान रह गए। उन्होंने ₹5000 देने की कोशिश की, लेकिन अंजलि ने ईमानदारी से सिर्फ ₹100 लेने की जिद की। धर्मजी को उसमें अपनी मरी हुई बेटी की झलक दिखी। उन्होंने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी से उतरो।”

एक नई शुरुआत

बारिश धीमी हो चुकी थी। धर्मजी ने अंजलि की साइकिल खरीदी, उसे गाड़ी में बैठाया, और राजू के पास ले चलने को कहा। रास्ते में रेस्टोरेंट से खाना, मेडिकल स्टोर से दवाइयां ली। जब उनकी Mercedes धारावी की तंग गलियों में पहुंची, लोग हैरानी से देख रहे थे। राजू बेहोश पड़ा था, झुग्गी में सीलन और बदबू थी। धर्मजी ने राजू को अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टर ने बताया कि उसे निमोनिया हो गया था, अगर देर हो जाती तो बचाना मुश्किल था।

अंजलि अस्पताल के ठंडे फर्श पर बैठी थी, उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। धर्मजी ने सिर पर हाथ फेरा, “बेटी, आज से तुम दोनों की जिम्मेदारी मेरी है।” वह रात अंजलि और राजू की जिंदगी की आखिरी मुश्किल रात थी। अगली सुबह राजू ठीक हो गया।

धर्मजी ने बच्चों को अपने घर मलाबार हिल ले आए। उनका बड़ा बंगला, जिसमें अब रौनक लौट आई थी। धर्मजी की पत्नी की मौत हो चुकी थी, बेटा विदेश में बस गया था। अंजलि को अच्छे स्कूल में दाखिला मिला, राजू के लिए घर पर टीचर रखा गया। नीली साइकिल अब बंगले के गराज में Mercedes के बगल में खड़ी थी, नया पेंट करवाया गया था। धर्मजी रोज कहते, “यह साइकिल मुझे याद दिलाती है कि ईमानदारी की कीमत दौलत से कहीं ज्यादा होती है।”

अंजलि ने पापाजी कहना शुरू कर दिया। वह पढ़ाई में तेज थी, दिन-रात मेहनत करती। राजू भी पढ़ाई में अच्छा था। दोनों बच्चों ने धर्मजी का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।

15 साल बाद

मुंबई के द ग्रैंड ओबेरॉय होटल में Singh Foundation का जलसा था। स्टेज पर आत्मविश्वास से भरी अंजलि बोल रही थी – “15 साल पहले मैं अपनी साइकिल बेचने निकली थी, मुझे ₹100 चाहिए थे। लेकिन मुझे एक फरिश्ता मिला, जिसने मुझे नई जिंदगी दी।” आज अंजलि सिंह Transport Empire की CEO थी, राजू शहर का बड़ा डॉक्टर बन चुका था। उन्होंने ‘The Horizon’ नामक अनाथालय और स्कूल शुरू किया, ताकि हजारों बच्चों को बेहतर जिंदगी मिले।

हॉल में स्पॉटलाइट उस नीली साइकिल पर पड़ी, जो शीशे के केस में चमक रही थी। अंजलि ने कहा – “यह साइकिल मुझे याद दिलाती है कि जब 15 साल की बच्ची भूख से लड़ती हुई ईमानदारी नहीं छोड़ती, तो ऊपरवाला मदद के लिए फरिश्ता भेजता है।”

धर्मजीत सिंह मुस्कुरा रहे थे, उनकी आंखों में गर्व के आंसू थे। अंजलि और राजू उनके लिए दुनिया की सबसे बड़ी दौलत थे।

अंजलि की सोच और बदलाव

अंजलि ने अपने जीवन का हर पल संघर्ष से जिया था। उसने सीख लिया था कि दुनिया की सबसे बड़ी दौलत ईमानदारी है। उसने अपने पापाजी की सीख को जीवन में उतारा – “अगर आपके पास देने के लिए कुछ है, तो जरूर दीजिए। क्या पता आपका एक छोटा सा नेक काम किसी की पूरी दुनिया बदल दे।”

अंजलि ने अपने फाउंडेशन के जरिए हजारों बच्चों की जिंदगी बदल दी। उसने कई अनाथालय, स्कूल, हॉस्पिटल खोले, ताकि कोई बच्चा भूख, बीमारी और अकेलेपन से जूझता न रहे। राजू ने बच्चों के डॉक्टर बनकर हजारों बच्चों को नई जिंदगी दी।

समापन

आज, जब अंजलि और राजू उस नीली साइकिल को देखते हैं, तो उन्हें अपने संघर्ष, अपने माता-पिता की यादें, और अपने पापाजी की दी हुई नई जिंदगी याद आती है। धर्मजीत सिंह ने न सिर्फ उनकी किस्मत बदल दी, बल्कि इंसानियत की मिसाल कायम की।

यह कहानी हमें सिखाती है कि सबसे बड़ा धर्म ईमानदारी है। अगर अंजलि उस दिन अपनी ईमानदारी का सौदा कर लेती, तो शायद उसे ₹1200 मिल जाते, लेकिन वह अपनी पूरी जिंदगी खो देती। उसने ईमानदारी चुनी और किस्मत ने उसे वो सब कुछ दिया जिसकी वह हकदार थी।

अगर आपके पास देने के लिए कुछ है, तो जरूर दीजिए। क्या पता आपका एक छोटा सा नेक काम किसी की पूरी दुनिया बदल दे।

धन्यवाद।