अमीर बाप ने घमंडी बेटी की शादी मज़दूर से करवा दी | फिर आगे जो हुआ

दौलत, घमंड और इंसानियत: एक पिता का अनोखा फैसला
एक करोड़पति पिता, राजनाथ वर्मा, जिसकी बेटी परी को उसने राजकुमारी की तरह पाला था। हीरे-जवाहरात, महंगे कपड़े, शानो-शौकत, सब कुछ उसके पास था। पूरे शहर में उसकी बेटी के नाम का रुतबा था, लोग सिर झुकाते थे। लेकिन एक दिन राजनाथ ने ऐसा फैसला लिया, जिसने सबको हैरान कर दिया—अपनी इकलौती बेटी की शादी एक मामूली मजदूर अर्जुन से करवा दी।
क्यों? मजबूरी थी या कोई बड़ा इरादा?
शुरुआत: अमीरी और घमंड
बिहार के समस्तीपुर जिले के सबसे बड़े बिजनेसमैन राजनाथ वर्मा का नाम ही पहचान था। एक फोन कॉल पर अधिकारी लाइन में लग जाते थे, बैंक मैनेजर कुर्सी छोड़ देते थे। उसकी बेटी परी की हर छोटी जीत पर पूरे शहर में मिठाइयां बांटी जाती थीं।
लेकिन आज राजनाथ की आंखों में उदासी थी। आधी बनी बिल्डिंग की छत पर बैठा वो सोच रहा था—सब कुछ पा लिया, पर शायद कुछ जरूरी खो दिया।
छत से नीचे मजदूरों की आवाजें आ रही थीं। कहीं ईंटें गिर रही थीं, कहीं सीमेंट का गारा घोला जा रहा था। राजनाथ की नजर एक युवक अर्जुन पर गई—चुपचाप मेहनत करता, सिर झुका नहीं, सीना तान कर जीता।
राजनाथ उसके पास पहुंचे, “बेटा, नाम क्या है?”
“जी अर्जुन।”
“कब से कर रहे हो ये काम?”
“जबसे पापा गए, मां का सहारा हूं। सुबह काम, शाम कोचिंग।”
राजनाथ थोड़ी देर चुप रहे, फिर बोले, “बेटा, क्या तुम मेरी बेटी से शादी करोगे?”
अर्जुन हक्का-बक्का, “मालिक, मैं तो मजदूर हूं।”
“हां, तुम मजदूर हो, पर तुममें शराफत है जो करोड़ों में नहीं मिलती। मेरी बेटी को अब किसी जहाज की नहीं, इंसान की जरूरत है।”
अर्जुन ने कहा, “अगर आपको करना है तो मेरी मां से पूछिए।”
राजनाथ मुस्कुराए, “अभी चलते हैं तुम्हारे घर।”
परी का घमंड
परी को बचपन से पालकर इतना बड़ा किया गया कि कभी ना सुन ही नहीं पाई। स्कूल में टीचर ने डांटा तो बोली, “मेरे पापा चाहे तो इस स्कूल को खरीद सकते हैं!” कॉलेज में महंगी गाड़ी, ब्रांडेड बैग, महंगा फोन, चाल में एंठन। क्लास में कोई लड़का सवाल पूछे तो जवाब देती, “तुम्हारे जैसे लोग मेरे आसपास भी खड़े नहीं हो सकते।”
राजनाथ कोचिंग से रोज फोन आते—”सर, आपकी बेटी घमंड करती है, बाकी बच्चों को नीचा दिखाती है।”
राजनाथ ने कई बार समझाया, “पैसा इंसान को बड़ा नहीं बनाता, सोच बनाती है।”
परी हंसकर कहती, “पापा, लोग पैसा देखकर ही इज्जत देते हैं।”
घर की नौकरानी बबली, जो बचपन से परी के साथ पली थी, एक दिन परफ्यूम देख रही थी। परी चिल्लाई, “तूने इसे छुआ कैसे? चोरी कर रही है क्या?”
बबली बोली, “दीदी, खुशबू प्यारी थी, एक दिन मैं भी खरीदूंगी।”
परी फिर भड़की, “तुझे दीदी कहने की हिम्मत कैसे हुई तुझसे? तेरी तनख्वाह में ये नहीं आएगा, सपना देखना छोड़।”
राजनाथ ने गुस्से में कहा, “परी, इस परफ्यूम की शीशी इसे दे दो, और सुन लो, ये लड़की इस घर की भी उतनी ही इज्जतदार है जितनी तुम।”
फैसला: असलियत की राह
उस रात राजनाथ ने फैसला लिया। परी का बैंक अकाउंट फ्रीज, कार की चाबी ले ली, घर के खर्चे पर पाबंदी।
“कॉलेज जाना है, ये लो ऑटो का किराया, बाकी कुछ नहीं मिलेगा।”
परी चिल्लाई, “इस घर में मेरा भी हक है!”
राजनाथ बोले, “नहीं बेटी, ये दौलत तुम्हारे भाई के नाम है। बेटियों को हम सिर्फ सम्मान देते हैं, संपत्ति नहीं। और जब घमंड हो, तो और कुछ नहीं बचता।”
परी गुस्से से कमरे में चली गई। मां समझाने आई, “पापा तुम्हारे लिए ही ऐसा कर रहे हैं।”
परी बोली, “मुझे किसी से सीख नहीं लेनी।”
राजनाथ कई रातों तक जागते रहे। अंत में उन्होंने अपनी बेटी को जिंदगी की असलियत सिखाने के लिए उसे उस रास्ते पर भेजने का निर्णय लिया, जहां ना शानो-शौकत थी, ना ऐशो-आराम—बस एक सच्चा इंसान था अर्जुन।
शादी और नई जिंदगी
राजनाथ अर्जुन को लेकर उसके छोटे से घर पहुंचे। एक टूटी दीवार के उस पार मां चूल्हे पर रोटी सेक रही थी।
राजनाथ बोले, “बहन जी, मैं चाहता हूं आपके बेटे की शादी मेरी बेटी से हो।”
अर्जुन की मां पहले तो चौंकी, फिर बोली, “अगर आप इज्जत देंगे तो मैं अपनी संतान आपको सौंपने को तैयार हूं।”
शादी सादगी से मंदिर में हुई। परी अब भी चुप थी, सोच रही थी—शायद ये सब एक्टिंग है।
लेकिन जैसे ही अर्जुन उसे अपने घर ले गया, पुरानी खड़खड़ाती वैन, टूटा दरवाजा, दो कमरे, एक में सिलाई मशीन, दूसरे में लकड़ी का पलंग, दीवारों पर पंखे से कराहती आवाज।
परी का महल चूर-चूर हो गया। “क्या ये मेरा ससुराल है?”
अर्जुन मुस्कुराया, “परी, अब यही तुम्हारा घर है।”
परी तमतमा गई, “तुमने धोखा दिया, मैं एक पल नहीं रुकूंगी!”
अर्जुन बोला, “अगर जाना चाहो तो मैं रोकूंगा नहीं, लेकिन जब तक हो, इस घर को घर समझो।”
अर्जुन की मां बोली, “बेटी, घर छोटा है पर हम कभी तुम्हारे साथ गलत नहीं करेंगे।”
परी किसी की नहीं सुन रही थी। शादी के पहले ही दिन उसने अर्जुन को खरी-खोटी सुना दी।
“तुम्हारे पास देने को क्या है? ना गाड़ी, ना घर, ना पैसा, ना स्टैंडर्ड!”
अर्जुन बोला, “मेरे पास सम्मान है, प्यार है, तुम्हारे लिए जगह है। अगर नहीं चाहिए तो जोर नहीं डालूंगा।”
परिवर्तन की शुरुआत
परी के लिए दिन सजा बन गए। छत से टपकती धूप, ना एसी, ना गीजर, रसोई में मिट्टी का चूल्हा।
अर्जुन की मां कहती, “बेटी, चलो सब्जी लेने चलो,” परी जवाब देती, “मैं बाजार नहीं जाती, मेरे ब्रांडेड स्टोर्स होते थे।”
अर्जुन ऑफिस जाता, घर लौटते हुए हंसकर कहता, “कुछ लाऊं तुम्हारे लिए?”
परी कहती, “मेरी पुरानी जिंदगी ला सकते हो?”
रात को खाना बनता, परी खुद अपने कमरे में खाती। अर्जुन सब चुपचाप सहता रहा।
एक दिन मां बोली, “बेटा, क्या तुझसे कोई गलती हो गई?”
अर्जुन बोला, “मां, मैंने प्यार दिया है, शायद बहुत ज्यादा दिया है, इसलिए उसे अब उसकी अहमियत समझ नहीं आ रही।”
मां ने सिर पर हाथ रखा, “प्यार जितना चुप होता है, उतना ही गहरा असर करता है। आज नहीं कल सही, तुम्हारा प्यार जरूर उसकी सोच को छुएगा।”
बदलाव का पल
एक दिन अर्जुन और मां बोले, “पास में मेला लगा है, चलो घूमने चलते हैं।”
परी बोली, “तुम लोग जाओ, मुझे ऐसे मेलों में कोई शौक नहीं।”
अर्जुन बोला, “ठीक है, हम चल रहे हैं, घर का ध्यान रखना।”
ये शब्द परी के सीने में चुभ गए। डरने लगी, “अगर बिजली चली गई, कोई आ गया, मैं क्या करूंगी?”
फिर झट से बोली, “ठीक है, मैं भी चल रही हूं, लेकिन मेरे हिसाब से चलना।”
अर्जुन मुस्कुराया, “तुम्हारे हिसाब से तो मेरी जिंदगी भी चल रही है।”
सच्चाई का एहसास
मेला में भीड़, खिलौने, गोलगप्पे, मिठाइयों की खुशबू। परी का मन खाली था।
वह झूले की लाइन में खड़ी थी, तभी उसकी नजर पड़ी संगीता पर—कॉलेज की वही दोस्त, जिसकी करोड़पति से शादी हुई थी।
संगीता का चेहरा बुझा हुआ था। “रानी नहीं परी, मैं तो बस नाम की रानी हूं। शादी करोड़पति से हुई है, लेकिन हर रात आत्मा को कुचला जाता है। पैसे से गहने खरीद सकती हूं, सुकून नहीं। कार ले सकती हूं, लेकिन वो बाहें नहीं जो दुख में थाम लें। पति शराबी है, गाली-ताने, मारपीट। सास-ससुर सब जानते हैं, लेकिन चुप रहते हैं। काश किसी सीधे-सच्चे लड़के से शादी की होती।”
परी को अर्जुन का चेहरा याद आया—थका हुआ घर आता, मुस्कुराता, कभी ऊंची आवाज नहीं करता, प्यार से हारता ताकि रिश्ता जीत सके। उसी मेले में परी के भीतर कुछ टूट गया।
घर लौटी तो अपनी आदतें बदलनी शुरू कर दी।
सुबह सबसे पहले उठती, पहली बार बर्तन धोए, झाड़ू लगाई, चूल्हे पर रोटी से पहली जलन सीखी। अर्जुन को ऑफिस जाते वक्त मुस्कुराकर टिफिन दिया।
अर्जुन बोला, “नमक नहीं, आज तो स्वाद जिंदगी जैसा है।”
परी की आंखों में संतोष के आंसू थे।
नया जीवन, नया रिश्ता
परी ने पुराने कपड़े समेटे, पड़ोस की लड़की को दिए।
सास बोली, “अब तू सिर्फ बहू नहीं, मेरी बेटी बन गई है।”
छह महीने बीत गए, परी के हाथों में अब झाड़ू नहीं, बच्चों की किताबें थीं। वह घर की छोटी लाइब्रेरी में पास के बच्चों को पढ़ाने लगी। रोज पैसे बचाती, “एक दिन इस घर को सुंदर बनाऊंगी, लेकिन प्यार से, कर्ज से नहीं।”
पिता का गर्व
एक दिन दरवाजे पर दस्तक हुई—सामने खड़े थे राजनाथ वर्मा और उनकी पत्नी।
परी ने दरवाजा खोला, सादी साड़ी, मांग में सिंदूर, माथे पर पसीने की बूंदें, चेहरे पर शांति।
“पापा, मां, आइए ना,” वह मुस्कुराई।
राजनाथ की आंखें भर आईं।
“बेटी, कैसी है? अगर पैसे चाहिए तो बता देना, घर को सुधार लो।”
परी ने सिर झुका कर कहा, “पापा, अब मैं पैसा नहीं मांगती, क्योंकि अब मुझे पता है कि दौलत वो नहीं जो दिखे, दौलत वो है जो रिश्तों में झलके। आपने मुझे एक ऐसा सबक दिया जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। अब मैं समझती हूं, अगर पति अच्छा हो, सास मां जैसी हो, तो छोटा घर भी महल लगता है।”
राजनाथ ने पहली बार गर्व से बेटी को देखा, “बेटी, मैं तुझसे कभी नफरत नहीं करता था। मैं चाहता था कि तू खुद को जान ले। आज तू वही बन गई है जिसकी कल्पना मैंने की थी।”
अर्जुन की मेहनत और परी का योगदान
राजनाथ ने अर्जुन को अपनी कंपनी में काम पर लगाया। कुछ ही समय में अर्जुन ने मेहनत, ईमानदारी और व्यवहार से सबका दिल जीत लिया।
आज वह एक छोटी टीम का लीडर है, और परी मोहल्ले की लड़कियों को यही सिखाती है—अगर पति तुम्हारा सम्मान करता है, तो तुम करोड़ों की रानी हो।
कहानी का संदेश
कभी-कभी अपनों का दिया हुआ दर्द ही जिंदगी की सबसे बड़ी दवा बनता है।
जो पिता अपने बच्चों को सिर्फ लाड नहीं, सीख भी देते हैं, वो उन्हें सिर्फ दुनिया के लिए नहीं, खुद के लिए भी काबिल बनाते हैं।
आपका जवाब क्या है?
क्या आपने कभी अपने किसी अपने को सही राह पर लाने के लिए तकलीफ दी, जो आज कड़वा हो, लेकिन कल वही सबसे बड़ी दौलत बन जाए?
समाप्त
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