अमीर बाप ने बेटे को तीन अमीर औरतों में से माँ चुनने को कहा – बेटे ने गरीब नौकरानी को चुना!

असली दौलत – एक बेटे का चुनाव

शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन अजय मल्होत्रा के आलीशान घर में उस शाम कुछ अलग ही रौनक थी। सुनहरे झूमर की रोशनी पूरे हॉल को महल जैसा बना रही थी। हर तरफ ब्रांडेड वाइन के गिलास, महंगे कपड़े और नकली मुस्कानों का शोर था। इस चमक-धमक के बीच अजय का बेटा आदित्य चुपचाप एक कोने में बैठा सब देख रहा था।

सामने तीन उच्चवर्गीय महिलाएं – रत्ना, नेहा और करिश्मा – एक-एक करके अजय से बातें कर रही थीं। कभी हंस रही थीं, कभी अपने महंगे गहनों की झलक दिखा रही थीं। उनका हर अंदाज यही जताता था कि वे इस घर और दौलत का हिस्सा बनने को तैयार हैं।

अजय ने बेटे की ओर देखते हुए गहरी आवाज में कहा, “बेटा, अब तुम्हें अपनी मां चुननी होगी। तीनों में से जिसे चाहे वही तुम्हारी मां बनेगी। हमारी इज्जत और बिजनेस दोनों इसी पर टिके हैं।”

आदित्य ने धीरे से नजरें उठाकर एक-एक को देखा। फिर पिता के चेहरे को। उसके भीतर कई सवाल, कई भावनाएं एक साथ उमड़ पड़ीं। यह सब उसके लिए अजीब था – इंसानों के रिश्तों को पैसे और शोहरत से तोला जाना। कमरे में हंसी, शोर और झूठी चमक थी। लेकिन आदित्य के दिल में गहरा सन्नाटा था।

वह धीरे-धीरे उस शोरगुल और नकली मुस्कानों वाले हॉल से निकलकर पीछे के हिस्से की ओर चला गया। लंबा गलियारा, दीवारों पर महंगी पेंटिंग्स, फर्श पर नरम कालीन – हर चीज में अमीरी की गंध थी। लेकिन उसके दिल में खालीपन और बेचैनी थी।

जैसे ही वह किचन में पहुंचा, सामने वही परिचित दृश्य था – रीना। साधारण कपड़ों में, बाल बंधे हुए, हाथ में झाग भरा स्पोंज लिए बर्तन साफ कर रही थी। उसकी हथेलियां खुरदुरी थीं, लेकिन हर हरकत में अपनापन था। रीना ने आदित्य को देखते ही हल्की सी मुस्कान दी और बिना कुछ पूछे ठंडा पानी भरकर गिलास में उसे दिया।

आदित्य ने गिलास थामते हुए उसकी आंखों में देखा। वहां कोई दिखावा नहीं, कोई स्वार्थ नहीं। सिर्फ ममता और सादगी। उसी क्षण उसे लगा कि यही औरत है जिसने उसे बचपन में कहानियां सुनाई, बीमार होने पर दवा दी, स्कूल के पहले दिन जूते पॉलिश किए और बिना किसी बदले के उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत पूरी की।

किचन की हल्की सी रोशनी में आदित्य को तीन अमीर औरतों की चमक फीकी लगने लगी। उसके सामने रीना थी – थकी हुई, साधारण। लेकिन उसके दिल में वह ममता थी जो किसी भी दौलत से बड़ी थी।

आदित्य का मन वहीं शांत हो गया और उसने उसी पल तय कर लिया कि वह किसे चुनेगा। आदित्य हाथ में पानी का गिलास थामे कुछ देर तक किचन की खिड़की से बाहर देखता रहा। हल्की हवा उसके चेहरे को छू रही थी। लेकिन उसके मन में अब पूरी स्पष्टता आ चुकी थी।

वह धीरे-धीरे हॉल की ओर लौटा। हॉल अब और भी भव्य लग रहा था। तीनों औरतें अब भी एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में थीं। कोई महंगे गहनों का जिक्र कर रही थी, तो कोई अपने सोशल सर्कल की। अजय मल्होत्रा अपने बेटे को देखकर गर्व भरी मुस्कान के साथ बोले, “आओ आदित्य, हमें बताओ तुम्हारा फैसला क्या है?”

सबकी नजरें आदित्य पर टिक गईं। आदित्य ने गहरी सांस ली और बेहद शांत, लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “मैंने सोच लिया है पापा। मैं रीना को चुनता हूं।”

यह सुनते ही हॉल में एक पल के लिए सब थम गया। तीनों औरतें चौंककर उसकी ओर देखने लगीं। उनके चेहरे के भाव एक साथ बदल गए – किसी को गुस्सा आया, किसी को अपमान, किसी को अविश्वास।

अजय ने भौंहें चढ़ाते हुए पूछा, “क्या कहा तुमने?”

आदित्य ने बिना हिचक दोबारा कहा, “मैंने रीना को चुना है। वही मेरी मां है। वही जिसने मुझे पाला, सिखाया और बिना किसी स्वार्थ के मेरे साथ रही। दौलत से रिश्ता नहीं बनता पापा, दिल से बनता है।”

उसकी आवाज में इतनी गहराई थी कि पूरा हॉल कुछ पल के लिए बिल्कुल चुप हो गया। जैसे समय थम गया था।

अजय मल्होत्रा कुछ पलों तक बेटे की ओर देखते रहे। उनके चेहरे पर गुस्सा, हैरानी और एक अजीब सी बेचैनी सब एक साथ थी। तीनों औरतें अपमानित होकर कुर्सियों से उठ गईं। उनमें से एक ने तो यह तक कह दिया, “हमने इतना समय बर्बाद किया,” और भारी कदमों से बाहर निकल गई।

कमरे की चकाचौंध अब जैसे बेरंग हो गई थी। आदित्य बिना झिझक रीना के पास जाकर खड़ा हो गया। रीना की आंखों में आंसू थे – शायद डर के, शायद खुशी के। क्योंकि उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका नाम इस तरह लिया जाएगा।

अजय धीरे-धीरे उठे और कुछ कदम आगे बढ़े। उनका गुस्सा अब पिघल चुका था। चेहरे पर पश्चाताप और नरमी दोनों थे। उन्होंने रीना की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, “सच कहूं? मैंने हमेशा तुम्हारी इज्जत की है। लेकिन आज मेरे बेटे ने मुझे सिखाया कि असली दौलत क्या होती है। तुमने मेरे बेटे को इंसान बनाया और यह मेरे सारे बिजनेस से बड़ा काम है।”

रीना कांपते हाथों से नमस्ते करती रही। अजय ने पहली बार सबके सामने उसे सम्मान से गले लगाया। आदित्य के चेहरे पर संतोष था। उसके लिए यह सिर्फ चुनाव नहीं था, बल्कि अपने दिल की आवाज को मान देने का फैसला था। उस पल तीनों के बीच का रिश्ता पैसे और ओदे से ऊपर उठकर दिल और इंसानियत पर टिक गया।

सीख:
सच्चे रिश्ते पैसे और शोहरत से नहीं, दिल और ममता से बनते हैं। असली दौलत वही है जो इंसान को इंसान बनाए।

जय हिंद।