अरबपति ने अपनी गरीब नौकरानी को आजमाने के लिए तिजोरी खुली छोड़ दी, फिर उसने जो किया वो आप यकीन नहीं
खुली तिजोरी का इम्तिहान
क्या होता है जब इंसानियत की परीक्षा ली जाती है? क्या दौलत का पहाड़ किसी गरीब के जमीर की ऊंचाई नाप सकता है? क्या किसी की ईमानदारी को सोने-चांदी के सिक्कों से तोला जा सकता है?
यह कहानी है दिल्ली के सबसे अमीर और ताकतवर अरबपति राजवीर सिंह राठौर की, जिसके लिए दुनिया में हर इंसान बिकाऊ था, हर रिश्ता धोखा। और एक बेबस, गरीब विधवा नौकरानी पार्वती की, जिसकी सबसे बड़ी दौलत उसकी ईमानदारी थी।
राजवीर राठौर लुटियन ज़ोन की विशाल हवेली राठौर मेंशन में रहता था। सफेद संगमरमर की हवेली, चारों ओर फैले खूबसूरत लॉन, दर्जनों नौकर-चाकर। लेकिन उस हवेली में एक अजीब सी खामोशी रहती थी। राजवीर ने कभी किसी पर भरोसा नहीं किया। उसकी पत्नी सोनिया ने उसे प्यार के लिए नहीं, पैसे के लिए शादी की थी और तलाक लेकर उसकी आधी दौलत और इंसानियत पर से विश्वास दोनों ले गई थी। अब राजवीर का दिल पत्थर बन चुका था। वह मानता था कि खासकर गरीब लोग पैसे के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं।
दूसरी ओर, दिल्ली के एक बदबूदार बस्ती में पार्वती रहती थी। 30 साल की पार्वती, विधवा, उसका 7 साल का बेटा गोलू ही उसकी दुनिया था। पति शंकर मजदूर थे, लेकिन बेहद ईमानदार। पार्वती ने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। वह घरों में चौका-बर्तन, सफाई करके अपना और बेटे का पेट पालती थी। गरीबी में जी रही थी, लेकिन जमीर की अमीरी उसमें कूट-कूट कर भरी थी।
एक दिन पार्वती की एक नौकरी छूट गई। काम की तलाश में उसे राठौर मेंशन के बारे में पता चला। वह अपनी पुरानी साड़ी पहनकर हवेली पहुंची। दरबान ने उसे अछूत की तरह देखा, लेकिन उसकी आंखों की मासूमियत ने उसे अंदर भेज दिया। मुख्य प्रबंधक मिस डिसूजा ने पार्वती से कई सवाल पूछे। उसकी ईमानदारी और साफगोई ने मिस डिसूजा को प्रभावित किया और उसे साफ-सफाई के काम पर रख लिया।
कुछ ही हफ्तों में पार्वती मिस डिसूजा की सबसे भरोसेमंद कर्मचारी बन गई। वह कभी किसी की चीज को हाथ नहीं लगाती, फालतू बातें नहीं करती, बस सिर झुकाए अपना काम करती रहती। राजवीर ने कैमरों में देखा कि पार्वती दूसरों की तरह वक्त बर्बाद नहीं करती। वह इतनी गरीब और मजबूर थी, फिर भी उसकी आंखों में लालच क्यों नहीं था? राजवीर ने उसकी ईमानदारी की परीक्षा लेने का फैसला किया।
राजवीर के स्टडी रूम में एक बड़ी लोहे की तिजोरी थी, जिसमें लाखों रुपए नकद और सोने के बिस्कुट थे। एक सुबह उसने तिजोरी में और नकदी रखी, तिजोरी का दरवाजा थोड़ा सा खुला छोड़ दिया, बाहर से दौलत साफ नजर आ रही थी, ताला भी नहीं लगाया। मिस डिसूजा को सख्त हिदायत दी कि इस दौरान पार्वती ही सफाई करेगी।
परीक्षा शुरू हुई।
पहला दिन – पार्वती स्टडी रूम में गई। अधुली तिजोरी देखी, नोटों की गड्डियां और सोना चमक रहा था। उसे लगा साहब जल्दी में बंद करना भूल गए हैं। डर लगा कि अगर कुछ चोरी हो गया तो इल्जाम उस पर आएगा। उसने मिस डिसूजा को बताया, लेकिन डिसूजा ने डांट दिया – अपना काम करो, फालतू बातों में ध्यान मत दो। पार्वती ने जल्दी-जल्दी सफाई की, तिजोरी की तरफ पलटकर भी नहीं देखा।
राजवीर गुप्त कमरे में कैमरे से सब देख रहा था। अगले दो दिन भी यही सिलसिला चला। पार्वती आती, काम करती, तिजोरी की तरफ देखती भी नहीं। राजवीर बेचैन था – क्या सच में इतनी ईमानदार है या किसी मौके का इंतजार कर रही है?
चौथा दिन – पार्वती के घर से फोन आया, गोलू खेलते-खेलते सीढ़ियों से गिर गया, सिर में गहरी चोट। सरकारी अस्पताल में भर्ती, डॉक्टरों ने कहा ऑपरेशन के लिए प्राइवेट अस्पताल ले जाओ, खर्चा कम से कम एक लाख रुपये। पार्वती फूट-फूट कर रोने लगी – कहां से लाएगी इतने पैसे?
पांचवा दिन – पार्वती काम पर आई, आंखें सूजी हुईं। एडवांस मांगा, मिस डिसूजा ने मना कर दिया। दूसरे नौकरों से मदद मांगी, किसी के पास इतनी रकम नहीं थी। वह पूरी तरह हताश थी। उसे खुली तिजोरी की याद आई। स्टडी रूम में घुसी, आज वह तिजोरी उसे अपने बेटे की जिंदगी बचाने का जरिया लग रही थी। नोटों के बंडल उसे बुला रहे थे। उसके अंदर द्वंद छिड़ गया – एक तरफ पति के दिए संस्कार और ईमानदारी, दूसरी तरफ बेटे की जान। उसका हाथ तिजोरी की तरफ बढ़ा, उंगलियां कांप रही थीं। अगर कुछ गड्डियां उठा ले तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। लेकिन तभी उसे शंकर की बातें याद आईं – “पार्वती, चाहे जान चली जाए लेकिन ईमानदारी का सौदा मत करना।”
वह सोचने लगी – अगर आज चोरी कर ली तो बेटे को क्या सिखाऊंगी?
नहीं, मैं अपने बेटे की जान बचाने के लिए चोर नहीं बन सकती।
उसकी आंखों से आंसू बह निकले। वह जमीन पर बैठकर रोने लगी। उसने तिजोरी को नहीं छुआ। उसने फैसला किया – भीख मांगेगी, खून बेचेगी लेकिन चोरी नहीं करेगी।
राजवीर यह सब देख रहा था। पहली बार उसकी आंखों में पानी आ गया। उसे खुद पर घिन आ रही थी – उसने एक मां की ममता को अपनी घटिया परीक्षा के लिए इस्तेमाल किया था।
अगले दो दिन – पार्वती काम पर आई, लेकिन वह जिंदा लाश की तरह थी। सातवें दिन – काम खत्म करके उसने अपने मंगलसूत्र को चूमा, फैसला किया कि कल उसे बेचकर बेटे का इलाज करवाएगी।
परीक्षा खत्म हो चुकी थी। पार्वती जीत गई थी, राजवीर हार गया था।
आठवां दिन – पार्वती को बताया गया कि साहब वापस आ गए हैं, स्टडी रूम में बुला रहे हैं।
पार्वती डरते-डरते गई। राजवीर ने उसे सामने वाली कुर्सी पर बैठने को कहा।
“पार्वती, मैं पिछले सात दिनों से यहीं था, तुम्हें और तिजोरी को देख रहा था। मैं जानना चाहता था कि क्या इस दुनिया में कोई ऐसा इंसान है जिसे खरीदा नहीं जा सकता। क्या गरीबी हमेशा बेईमानी को जन्म देती है? आज मुझे मेरा जवाब मिल गया है।”
राजवीर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, “माफ कर दो, मैंने तुम्हारी मजबूरी का तमाशा बनाया, तुम्हारी ईमानदारी पर शक किया। मैं बहुत बुरा इंसान हूं।”
पार्वती की आंखों में आंसू थे – हैरानी के।
राजवीर ने कहा, “तुम्हारा बेटा मेरा बेटा है, उसे दुनिया का सबसे अच्छा इलाज मिलेगा।”
उसने तुरंत गोलू के ऑपरेशन का इंतजाम करवाया। गोलू का ऑपरेशन सफल रहा और राजवीर खुद उसे अस्पताल से हवेली ले आया। पार्वती और गोलू को हवेली के गेस्ट क्वार्टर में जगह दी। अब पार्वती नौकरानी नहीं थी, बल्कि राजवीर की सबसे भरोसेमंद साथी बन गई थी।
राजवीर घंटों पार्वती से बातें करता, उसकी सादगी और निस्वार्थ भाव में उसे सुकून मिलने लगा। वह गोलू के साथ बच्चा बनकर खेलता। सालों बाद हवेली में बच्चे की खिलखिलाहट गूंजने लगी। राजवीर को एहसास हुआ – असली दौलत पैसा नहीं, खुशियां बांटना है। उसे पार्वती से प्यार हो गया था, उस औरत से जिसका जमीर सोने की चमक के आगे भी नहीं झुका था।
एक शाम लॉन में बैठे हुए राजवीर ने पार्वती का हाथ थामा, “पार्वती, मेरी पत्नी मुझे धोखा देकर और दौलत लेकर चली गई थी। तुम्हारे पति तुम्हें ईमानदारी और प्यार की दौलत देकर गए हैं। मैं तुम्हारे पति की जगह नहीं ले सकता, लेकिन तुम्हें और गोलू को वह जीवन देना चाहता हूं जिसके तुम हकदार हो। क्या तुम मुझसे शादी करोगी? क्या तुम इस टूटे हुए इंसान को फिर से जीना सिखाओगी?”
पार्वती की आंखों में आंसू थे, उसने अपने बेटे के भविष्य के लिए सोचा। उसने राजवीर की आंखों में सच्चा पश्चाताप और गहरा प्रेम देखा। उसने रोते हुए ‘हां’ कह दिया।
उनकी शादी सादगी से मंदिर में हुई। बस हवेली के नौकर-चाकर थे, और गोलू था जो खुशी से तालियां बजा रहा था।
राजवीर अब भी कामयाब बिजनेसमैन था, लेकिन अब वह खुशमिजाज और दयालु इंसान भी था। उसने गरीबों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। पार्वती, जो कभी गरीब बेबस विधवा थी, अब राठौर मेंशन की मालकिन थी, राठौर ग्लोबल एंटरप्राइजेज की चेयरपर्सन थी और सबसे बढ़कर उस इंसान की पत्नी थी जिसने उसकी ईमानदारी को परखा जरूर था, लेकिन फिर उसी ईमानदारी के आगे अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था।
उस खुली तिजोरी ने एक नौकरानी को रानी बना दिया था और एक अमीर लेकिन कंगाल दिल वाले इंसान को प्यार और रिश्तों की सच्ची दौलत से मालामाल कर दिया था।
यह कहानी हमें सिखाती है – ईमानदारी दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन हों, हमें अपने उसूलों और जमीर का सौदा कभी नहीं करना चाहिए। जो इंसान अपनी ईमानदारी बचा कर रखता है, ईश्वर उसे एक दिन वह सब कुछ देता है जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होती।
समाप्त
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