आईपीएस ( IPS ) मैडम भिखारी बनकर SP से भीख मांगने पहुंचीं, फिर एक झटके में पूरा खेल पलट गया!…

“आईपीएस कविता राठौर: सिस्टम के खिलाफ जंग”
भाग 1: फटे हाल भिखारिन और सर्द सुबह
सर्दी की ठिठुरती सुबह थी। सूरज हल्का सा निकला था, लेकिन कोहरे की चादर अभी भी शहर को ढके हुए थी। पुलिस हेड क्वार्टर के बाहर एक फटे हाल औरत हाथ में कटोरा लिए खड़ी थी। चेहरे पर झुर्रियां, गंदे और उलझे बाल, शरीर पर फटे पुराने कपड़े। उसने कांपते हाथों से कटोरा आगे बढ़ाया और वहां खड़े गार्ड से कहा, “बेटा, दो दिन से भूखी हूं। कुछ दे दो।”
गार्ड ने घृणा से घूरा, “ओए हट यहां से। एसपी साहब के ऑफिस के सामने भीख मांग रही है। चल भाग।”
औरत नहीं हिली। गर्दन झुकाई, वहीं खड़ी रही। अंदर से काली स्कॉर्पियो निकली, जिस पर एसपी अरुण ठाकुर का बोर्ड लगा था। जैसे ही गाड़ी दरवाजे के पास आई, भिखारिन ने कांपते हुए हाथ आगे बढ़ाया, “साहब, एक दे दो।”
एसपी अरुण ठाकुर की नजर कुछ सेकंड के लिए उस औरत पर ठहर गई। उसकी आंखों में कुछ जाना-पहचाना था। गाड़ी का शीशा चढ़ाकर अंदर चले गए, लेकिन दिल की धड़कनें बढ़ गईं।
अंदर पहुंचकर एसपी बेचैन था। उसने गार्ड को बुलाया, “बाहर जो औरत भीख मांग रही थी, उसे अंदर भेजो।”
भिखारिन कांपते हुए आई। एसपी के सामने आई तो उसके होठों पर हल्की मुस्कान थी।
“पहचानिए साहब, कभी इसी शहर में वर्दी पहनकर आपके साथ चलती थी।”
एसपी के माथे पर पसीना आ गया।
“तुम…”
भिखारिन ने अपनी गंदी शॉल हटाई और जेब से एक पुलिस बैज निकाला। टेबल पर रखते ही पूरा कमरा सन्न हो गया।
एसपी की आंखों के सामने 4 साल पुरानी यादें दौड़ गईं—आईपीएस कविता राठौर, तेजतर्रार अफसर, शहर की पहली महिला आईपीएस, जिसने कई माफियाओं का सफाया किया था।
लेकिन 4 साल पहले उस पर भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगे और उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। आरोप किसने लगाए? एसपी अरुण ठाकुर ने।
क्यों? क्योंकि कविता राठौर एक ऐसा केस सुलझाने वाली थी जिसमें एसपी खुद शामिल था।
अरुण ठाकुर ने ऊंचे पहुंच वालों के साथ मिलकर कविता को फंसा दिया। फर्जी सबूत बनाए, कोर्ट में केस डाला, मीडिया में बदनाम किया।
कविता की वर्दी छीन गई, इज्जत मिट्टी में मिल गई।
लेकिन आज कविता वापस आई थी।
भाग 2: बदला और बेनकाबी
एसपी के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। “यह सब नाटक क्यों? तुम यहां क्यों आई हो?”
कविता मुस्कुराई। अपने मैले कुचैले कपड़ों के अंदर से एक रिकॉर्डर निकाला और प्ले बटन दबा दिया।
रिकॉर्डिंग में एसपी अरुण ठाकुर की आवाज गूंज उठी—”हां, मैंने केस दबाने के लिए पैसे लिए थे। अगर कविता राठौर को नहीं हटाया तो मेरा खेल खत्म हो जाएगा।”
कमरा सन्नाटे में डूब गया।
कविता ने कहा, “सबूत चाहिए था, तो 4 साल लगे, लेकिन आज तुम्हें बेनकाब करने आई हूं।”
दरवाजा खुला, क्राइम ब्रांच की टीम अंदर आई।
“एसपी अरुण ठाकुर, आपको भ्रष्टाचार और साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है।”
कविता ने उसकी कलाई पकड़ ली, “4 साल पहले तुमने मुझे फंसाया था, अब तुम्हारी बारी है।”
एसपी के हाथों में हथकड़ी डाल दी गई।
कमरे में मौजूद हर पुलिस अधिकारी स्तब्ध था।
जिस कविता राठौर को गुनहगार बताया गया था, आज वही इंसाफ दिलाने वापस आई थी।
भाग 3: असली मगरमच्छों की तलाश
एसपी अरुण ठाकुर को गिरफ्तार किया गया। लेकिन कविता जानती थी कि असली लड़ाई बाकी है।
उसने अपनी जेब से पेन ड्राइव निकाली और सीधे पुलिस कमिश्नर के केबिन में जा पहुंची।
“सर, आपको यह देखना चाहिए।”
पेन ड्राइव में ऐसे सबूत थे जो पूरे सिस्टम को हिला सकते थे।
वीडियो में कई बड़े नाम थे—एसपी अरुण ठाकुर सिर्फ मोहरा था। उसके पीछे डीआईजी प्रशांत मेहरा था, जो हर महीने करोड़ों की हेराफेरी कर रहा था।
कुछ मंत्री और बिजनेसमैन भी शामिल थे।
“अगर मैंने यह सबूत मीडिया में दे दिए तो पूरा महकमा हिल जाएगा।”
कमिश्नर सोच में पड़ गए। “तुम्हें क्या चाहिए?”
“मुझे डीआईजी प्रशांत मेहरा तक पहुंचना है।”
कमिश्नर बोले, “अगर लड़ना है, तो अकेले ही लड़ना होगा।”
कविता मुस्कुराई, “मैं तो अकेले ही आई थी सर।”
भाग 4: दिल्ली का वेयरहाउस—मौत का सामना
डीआईजी प्रशांत मेहरा दिल्ली में बैठा था। उसे खबर मिली कि एसपी अरुण ठाकुर गिरफ्तार हो चुका है। उसने तुरंत अपने आदमी को कॉल किया, “उसे खत्म कर दो।”
कविता को अंदाजा था, वह खुद शिकारी बनने निकल पड़ी।
रात के 12 बजे दिल्ली के बाहरी इलाके में एक पुराने वेयरहाउस के बाहर दो काली गाड़ियां खड़ी थीं।
अंदर डीआईजी प्रशांत मेहरा, चार गार्ड्स और दो खास आदमी बैठे थे।
“अब कविता ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेगी।”
“कौन नहीं रहेगा?”
दरवाजे से आवाज आई।
आईपीएस कविता राठौर दरवाजे पर खड़ी थी।
फायरिंग शुरू। कविता ने टेबल के नीचे से एसएमजी निकाली, सीधा फायर—पहली गोली पहले गार्ड के माथे में, दूसरी दूसरे गार्ड के कंधे में।
बाकी दो गार्ड्स ने गोली चलाई, कविता ने टेबल पलट कर खुद को कवर किया।
प्रशांत भागा, लेकिन गाड़ी तक पहुंचा तो कविता पहले से खड़ी थी।
“अब कहां भागोगे डीआईजी साहब?”
प्रशांत ने बंदूक निकाली, कविता ने सीधे उसके हाथ पर गोली मार दी।
“4 साल पहले तुमने मुझे मरवाने की कोशिश की थी। आज मैं तुम्हें जिंदा छोड़ रही हूं ताकि तुम्हें जेल में सड़ते देख सकूं।”
कमिश्नर को कॉल किया—”डीआईजी प्रशांत मेहरा गिरफ्तार।”
भाग 5: सिस्टम का सफाया—मिनिस्टर, माफिया, डीजीपी
सुबह के अखबार में हेडलाइन—”आईपीएस कविता राठौर ने पूरा सिस्टम हिला दिया।”
मंत्री सुरेश ठाकुर, ड्रग्स किंग विक्रम कोहली, डीजीपी रणधीर सिंह—सबका नाम सामने था।
मंत्री सुरेश ठाकुर
एक हाई प्रोफाइल क्लब में पार्टी चल रही थी।
काली साड़ी पहनी महिला अंदर आई—कविता राठौर।
मंत्री के कान में फुसफुसाई, “जिससे बचने के लिए तुमने करोड़ों खर्च किए, मैं वही हूं।”
पेन ड्राइव टेबल पर, “यह रहा तुम्हारा काला चिट्ठा।”
“या तो अगले 24 घंटे में खुद सरेंडर कर दो या फिर मैं वह करूंगी जो अब तक नहीं किया।”
मंत्री का खेल खत्म।
विक्रम कोहली
रात 2 बजे, विक्रम अपने विला में।
फोन आया—”पुलिस रेड पड़ी है, आईपीएस कविता राठौर लीड कर रही है।”
गाड़ी में बैठा, पीछे से कविता ने पिस्तौल टिका दी।
“अब तुम्हारा खेल खत्म।”
ड्रग्स गोदाम जल रहा था, पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
डीजीपी रणधीर सिंह
डीजीपी अपने बंगले में।
टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़—”कविता ने विक्रम कोहली को गिरफ्तार किया।”
फोन पर कॉल—”तुम्हारे खिलाफ सारे सबूत हैं।”
बाहर देखा—10 पुलिस की गाड़ियां, बीच में कविता।
“अब बचने का कोई रास्ता नहीं।”
पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
भाग 6: नया मिशन—देश के सबसे बड़े गद्दार
अब सिस्टम के सबसे बड़े मगरमच्छ गिर चुके थे।
कविता ने ऑफिस में गहरी सांस ली।
जूनियर अफसर ने पूछा, “मैडम अब क्या करेंगे?”
कविता मुस्कुराई, “अया शिकार ढूंढेंगे।”
अब देश की सबसे चर्चित अफसर बन चुकी थी।
लेकिन सफर खत्म नहीं हुआ था।
उसके दिमाग में सवाल था—क्या सिस्टम सुधर सकता है या जड़ से खत्म करना ही रास्ता है?
भाग 7: सबसे बड़ा खेल—अंतहीन लड़ाई
कमिश्नर ने लाल फाइल दी—अश्विन चौबे (हथियार डीलर), विकास त्रिपाठी (नेता, घोटालेबाज), जनरल आर के नायर (भ्रष्ट सैन्य अधिकारी)।
“अब यह मेरी जिम्मेदारी है। इनका अंत मैं ही करूंगी।”
कमिश्नर बोले—”इस बार खेल और भी खतरनाक होगा।”
कविता मुस्कुराई—”अगर मौत मेरे पास आ भी जाए तो मैं उसे भी सलाम ठोकने पर मजबूर कर दूंगी।”
अश्विन चौबे
मुंबई के बंदरगाह पर हथियारों की डील।
धमाका, धुआं, सामने कविता।
“खेल खत्म अश्विन।”
पुलिस ने घेर लिया, गिरफ्तार।
विकास त्रिपाठी
बंगले में बैठा, टीवी पर वीडियो—सारे घोटालों के सबूत।
दरवाजे पर पुलिस, कविता ने गर्दन से पकड़ लिया।
हथकड़ी, जेल।
जनरल नायर
हेलीकॉप्टर से देश छोड़ने वाला था।
कविता ने रनवे पर जीप रोक दी।
रिमोट से धमाका, हेलीकॉप्टर जल उठा।
“भागने की कोशिश मत करना जनरल।”
गिरफ्तारी, देशद्रोह का मुकदमा।
भाग 8: कविता का संकल्प
देश भर में कविता की जयकार थी।
लेकिन वह जानती थी—यह सिर्फ एक लड़ाई थी, जंग अभी बाकी थी।
एक शाम ऑफिस में फोन बजा—”मैडम, एक और लिस्ट मिली है।”
कविता खिड़की से आसमान देख रही थी—तारे चमक रहे थे।
फोन रखा, बंदूक उठाई।
“अब नया मिशन शुरू होगा।”
समाप्त
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जय हिंद।
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