आज की रात मेरे साथ जो मरज़ी करलो | कल मेरी ला*श को मेरे मायके पहुँचा देना

पुल पर जन्मी मोहब्बत – अर्जुन और साक्षी की अनोखी प्रेम कहानी

अध्याय 1: एक खूबसूरत शुरुआत

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के गौर थाना क्षेत्र का एक गांव। यहां से चार लड़कियां – साक्षी, उसकी तीन सहेलियां, लगभग 21-22 साल की – रोज बस्ती डिस्ट्रिक्ट जाकर बीएससी की पढ़ाई करती थीं। दो स्कूटी पर बैठकर 20-22 किलोमीटर का सफर तय करतीं। रास्ते में क्वानो नदी पड़ती थी, जिस पर एक पुल बना था। उसी पुल के पास रेलवे पुल भी था – जहां से गुजरती ट्रेन का नजारा बेहद सुंदर लगता था।

यह पुल उन लड़कियों के लिए सिर्फ रास्ता नहीं, बल्कि छोटी-छोटी खुशियों का अड्डा था। कभी सेल्फी, कभी मार्केट से लाई चीजें खाते हुए, कभी ठंडी हवा का मजा लेते हुए – चारों वहां रुकतीं, बातें करतीं, हंसतीं।

पुल के नीचे मछुआरे मछली पकड़ते रहते। उन्हीं में अर्जुन निषाद था – मछली पकड़ने में माहिर, उसके चारे में कुछ खास था। एक दिन जब साक्षी पुल पर पहुंची, उसने देखा अर्जुन मछली पकड़ रहा है। उसे भी मछली पकड़ना अच्छा लगता था। वह अर्जुन के पास गई, “मैं भी मछली निकालूंगी।”

अर्जुन ने हंसकर कहा, “इतना गंदा काम आप लोग क्यों करेंगी? आप तो स्टूडेंट हो।”
साक्षी बोली, “इसमें गंदा क्या है? मैं मछली खाती हूं, घर में भी बनती है। मुझे पकड़नी है।”

अर्जुन ने इंतजार करने को कहा, “अभी कोई ना कोई मछली फंस जाएगी।”
पांच मिनट बाद कांटे में एक बड़ी मछली फंसी। अर्जुन ने कहा, “फंस गई! अब निकालो।”

साक्षी ने डोरी पकड़कर खींचना शुरू किया, लेकिन मछली बड़ी थी, करीब 4-5 किलो की टेंगर। वह अकेले नहीं खींच पाई। अर्जुन ने मदद की – दोनों ने मिलकर मछली निकाली। इस दौरान साक्षी का हाथ अर्जुन के हाथ में, अर्जुन का हाथ साक्षी के हाथ में – पहली बार दोनों का स्पर्श हुआ।

मछली निकालने के बाद साक्षी चली गई, लेकिन अर्जुन के मन में हलचल थी। वह बार-बार फ्लैशबैक में उस पल को याद करता रहा।

अध्याय 2: दोस्ती से प्यार की ओर

अगले दिन अर्जुन फिर सुबह-सुबह पुल पर आ गया। चारों लड़कियां स्कूटी से आईं। साक्षी ने पूछा, “आज सुबह-सुबह आ गए?”
अर्जुन बोला, “हां, आ गया।”
साक्षी बोली, “शाम को आऊंगी, तुम मेरा इंतजार करना, जाना मत। आज मुझे फिर मछली पकड़नी है।”

अर्जुन पूरे दिन इंतजार करता रहा, बिना खाए-पिए मछली मारता रहा। कई मछलियां फंसी, लेकिन उसने निकालने के लिए साक्षी का इंतजार किया। शाम को लड़कियां लौटीं, अर्जुन ने मछलियां निकालने में साक्षी की मदद की। इस बार भी दोनों का स्पर्श हुआ – कभी हाथ, कभी जुल्फ, कभी दुपट्टा।

अर्जुन ने मछलियां देने की पेशकश की, “अगर चाहो तो घर ले जाओ।”
साक्षी बोली, “घर ले जाऊंगी तो घर वाले डांटेंगे।”

दूसरी लड़की बोली, “अगर मछली देने का इतना ही शौक है तो भून कर खिला दो।”
अर्जुन ने अगली शाम भुनी हुई मछली तैयार रखी। नमक-मिर्च पीसकर लाया, प्लान बनाकर लाया। पहले तो लड़कियां मना करती हैं, लेकिन भूख और स्वाद के आगे हार मान जाती हैं। पुल के नीचे बैठकर सब मछली खाते हैं, पानी पीते हैं, हाथ-मुंह धोते हैं, खूब मजा आता है।

रास्ते में एक सहेली साक्षी से कहती है, “वो लड़का तुझे कुछ ज्यादा ही चाहने लगा है। तुझे ही तोड़-तोड़ के मछली खिला रहा था।”
साक्षी झल्ला जाती है, “क्या मैंने ही सिर्फ खाया है? तुम लोगों ने भी तो खाया है।”

लेकिन साक्षी भी अब अर्जुन के बारे में सोचने लगी थी। उसके दिल में भी हलचल थी।

अध्याय 3: रिश्ते की गहराई

अगले दिन साक्षी मुस्कुराकर अर्जुन से मिली, “कैसे हो?”
अर्जुन बोला, “रोज की तरह ठीक हूं।”
शाम को साक्षी समोसा लेकर आई, “यह लो, समोसा खाओ।”
अर्जुन बोला, “इसकी क्या जरूरत थी?”
साक्षी बोली, “हम लोग अक्सर कुछ ना कुछ खाते हैं, चलो खाते हैं।”

फिर पुल के नीचे बैठकर सब समोसा खाते हैं। साक्षी कहती है, “तुमने हमें मछली खिलाई थी, हम तुम्हें समोसा खिला रहे हैं।”
अर्जुन बोला, “मैंने तो मछली पकड़ना भी सिखाया था, तुम मुझे क्या सिखा सकती हो?”

साक्षी बोली, “हम पढ़ाई करते हैं, तुम्हें पढ़ाई के बारे में कुछ पढ़ा सकते हैं।”
अर्जुन बोला, “मैं कोई अनपढ़ नहीं हूं। मैंने डी फार्मा किया है, मेरा कोर्स कंप्लीट होने वाला है।”

लड़कियां हैरान हो गईं, “लगता नहीं तुम पढ़े-लिखे हो, मछली क्यों मार रहे हो?”
अर्जुन बोला, “मछली मारना मेरा पेशा है। मेरे पिताजी मछली मारते हैं, मां की तबीयत खराब है, डॉक्टर ने कहा है रोज मछली खाया करो। इसलिए मैं मछली मारता हूं।”

अब साक्षी को अर्जुन से और भी लगाव हो गया। दोनों का नंबर एक्सचेंज हुआ, फोन पर बातें होने लगीं, मुलाकातें बढ़ीं। अब पुल के अलावा भी वे रेस्टोरेंट वगैरह में मिलने लगे।

अध्याय 4: समाज की दीवार

कुछ महीनों तक यह सिलसिला चला। इश्क छुपाए छुपता नहीं – साक्षी के घर वालों को पता चल गया। साक्षी के पिता ठेकेदार, चाचा भाई दबंग टाइप के लोग थे। जब उन्हें अर्जुन और साक्षी के प्रेम प्रसंग की खबर मिली, वे पुल पर पहुंचे, अर्जुन को पकड़कर मारने लगे, “औकात में रहो, बहन-बेटियों को छेड़ते हो!”

अर्जुन समझ गया, चार-छ दिन नहीं आया। लेकिन बेचैनी दोनों के अंदर थी, फिर से बातें, मुलाकातें शुरू हो गईं। एक दिन जब दोनों पुल पर मिले, घर वालों ने दूर से ताड़ लिया, पकड़ लिया, फिर मारपीट की।

अर्जुन नदी में कूदकर तैर गया, साक्षी को घर वाले ले गए। अर्जुन लखनऊ चला गया, डी फार्मा की पढ़ाई पूरी करने। लेकिन बातचीत बंद नहीं हुई, फिर लखनऊ से लौटकर मुलाकातें शुरू हो गईं।

अब परिवार वाले समझ गए कि बेटी मानने वाली नहीं है। साक्षी ने साफ कह दिया, “शादी करूंगी तो अर्जुन से ही करूंगी।”
एक दिन साक्षी ने अर्जुन से मंदिर में जाकर चुपके से शादी कर ली। जीने-मरने की कसमें खाईं।

अध्याय 5: परीक्षा की रात

घर वालों को पता चला, उन्होंने अर्जुन के खिलाफ छेड़खानी, चोरी का केस दर्ज करवाया, षड्यंत्र रचकर उसे जेल में डाल दिया। इधर साक्षी की शादी बलरामपुर में सोनू सिंह नामक लड़के से तय कर दी गई, 100 किलोमीटर दूर।

शादी का कार्ड छप गया, अर्जुन जेल में था। साक्षी ने अपनी सहेली के जरिए शादी का कार्ड अर्जुन के घर भिजवा दिया। जिस दिन साक्षी की शादी थी, उसके एक दिन पहले अर्जुन की जमानत हुई, घर आया, कार्ड देखा, एड्रेस देखकर बलरामपुर पहुंच गया।

बलरामपुर में सोनू सिंह वही लड़का था, जो अर्जुन के साथ लखनऊ में डी फार्मा की पढ़ाई करता था, एक ही कॉलेज, एक ही रूम। सोनू ने अर्जुन को देखकर हैरानी जताई, “आओ अर्जुन भाई, बहुत अच्छा हुआ तुम आ गए।”

अर्जुन ने अकेले में बात की, “भाई, जिस लड़की से तुम्हारी शादी हो रही है, वह मेरी प्रेमिका है, मैं उससे शादी कर चुका हूं।”
सोनू ने कहा, “शादी वाले दिन दिल तोड़ने वाली बात मत करो। अगर प्यार करते थे तो शादी कर लेनी चाहिए थी।”
अर्जुन ने सारी कहानी बताई – जेल, केस, मजबूरी।

सोनू के पिता वकील थे, उन्होंने कागज देखा, जिसमें साक्षी ने लिखा था, “अर्जुन, मेरी शादी हो रही है, लेकिन मैं वादा करती हूं कि शादी के अगले दिन मेरी लाश तुम्हारे दरवाजे पर होगी। मुझे माफ कर देना।”

वकील साहब ने कहा, “बेटा, अब तो शादी हो रही है, अगर वह तुम्हें प्यार करती है तो तुम्हें तुम्हारी पत्नी मिल जाएगी, वरना अपना रास्ता पकड़ लेना।”

शादी धूमधाम से हुई, साक्षी सोनू की दुल्हन बनी। पहली रात जब सोनू ने घूंघट उठाया, साक्षी ने कहा, “कल मेरी लाश मायके भिजवा देना।”

सोनू भड़क गया, “तुम्हें मेरे साथ रहना होगा, पत्नी बनकर नहीं रहोगी तो दासी बनकर रहोगी, नौकरानी बनकर रहोगी।”
साक्षी बोली, “कभी ना कभी तो अकेला छोड़ोगे, तब मैं अपनी जान दे दूंगी। अर्जुन के बिना रह नहीं सकती।”

सोनू समझ गया कि साक्षी सच में अर्जुन से प्यार करती है। वह कमरे से बाहर गया, दो मिनट बाद अर्जुन को लेकर लौटा।

अध्याय 6: सच्चा प्यार जीतता है

अर्जुन ने साक्षी को आवाज लगाई, “साक्षी!”
साक्षी चौंक गई, बेड से कूदकर अर्जुन के पास दौड़ गई, गले लगाकर रोने लगी। सोनू का पैर पकड़ लिया। सोनू ने उसे उठाया, विश्वास नहीं हो रहा था कि यह सपना है या हकीकत।

सोनू के पिता ने कहा, “अब तुम इसकी पत्नी हो, हम तुम्हें आशीर्वाद देते हैं। हमारा परिवार तुम्हारे साथ रहेगा।”

साक्षी के घर वाले मानने को तैयार नहीं थे, पंचायत बिठाई, धोखाधड़ी का आरोप लगाया। लेकिन सोनू के पिता (वकील) ने कहा, “जब दोनों प्रेम करते थे, जबरदस्ती शादी क्यों करवाई?”

कुछ महीने ड्रामा चला, आखिरकार सब शांत हो गए। अर्जुन और साक्षी की पढ़ाई पूरी हो गई थी, दोनों लखनऊ चले गए। वहां अपना मेडिकल सेंटर, मेडिकल स्टोर खोल लिया। पति-पत्नी के रूप में बहुत खुश रहने लगे।

अध्याय 7: सुखद अंत

मार्च 2021 को शादी हुई थी, अब 2025 चल रहा है। चार साल में साक्षी ने जुड़वा बेटों को जन्म दिया। आज अर्जुन और साक्षी बहुत खुश हैं।

सीख और संदेश

यह कहानी सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं, समाज, संघर्ष, सच्चाई और सच्चे प्यार की मिसाल है। हालात चाहे जैसे हों, सच्चा प्यार कभी हारता नहीं। परिवार, समाज, पंचायत, कानून – सबके बावजूद अगर प्यार सच्चा हो, तो जीत उसी की होती है।

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अगली कहानी में फिर मिलेंगे।
जय हिंद!