इंटरव्यू के लिए देर हो रहा था, लड़के ने लिफ्ट मांगी… करोड़पति लड़की ने जो किया, इंसानियत भी रो पड़ी

“एक लिफ्ट, एक बारिश, एक नई जिंदगी”
प्रस्तावना
मुंबई की बरसाती सुबह, सड़कें पानी से चमक रही थीं। एक पुराने बस अड्डे की जर्जर छत से पानी टपक रहा था। उसी छत के नीचे, भीगते हुए खड़ा था रिहान खान—हाथ में प्लास्टिक में लिपटी फाइलें, बाल पूरी तरह भीगे हुए, चेहरा बेचैनी से भरा। आज उसका इंटरव्यू था, और वही एक मौका उसकी पूरी जिंदगी बदल सकता था।
वो बार-बार मोबाइल में समय देखता, लोकल ट्रेनें निकल चुकी थीं। ऑफिस जाने वाली भीड़ छाते खोलकर भाग चुकी थी, लेकिन रिहान वहीं खड़ा रहा। उसकी फाइल के कागज नमी सोख रहे थे, और रिहान उन्हें सीने से लगाए, जैसे अपनी आखिरी उम्मीद को भीगने से बचा रहा हो।
बारिश तेज हो गई, तो वह सड़क किनारे आ गया। गुजरती गाड़ियों को हाथ दिखाने लगा। कई कारें बिना रुके निकल गईं, किसी ने अनदेखा किया, किसी ने शीशा चढ़ा लिया। उसके जूते कीचड़ में डूब चुके थे, लेकिन आंखों में जिद बाकी थी। उसने आसमान की ओर देखा—”ऊपर वाले, आज बस इतना कर दे कि मैं देर ना करूं।”
लिफ्ट वाली मुलाकात
इसी बीच एक चमचमाती सिल्वर रेंज रोवर उसके सामने आकर रुकी। खिड़की नीचे हुई, और एक नरम आवाज आई—”कहां जाना है?”
रिहान ने झिझकते हुए कहा—”वरली सीव्यू कॉर्पोरेट पार्क, इंटरव्यू है।”
सामने बैठी लड़की थी—सान्या कपूर। सफेद शर्ट, नेवी ब्लेजर, बालों में हल्का सा वेट लुक। उसने रिस्ट वॉच देखते हुए कहा—”बैठो, मैं भी उसी तरफ जा रही हूं।”
रिहान एक पल को हिचका, लेकिन बारिश ने सोचने नहीं दिया। वो गाड़ी में बैठ गया, भीगी फाइल गोद में रखी—”सॉरी मैम, सीट गीली हो जाएगी।”
सान्या मुस्कुराई—”कोई बात नहीं, सीट सूख जाएगी। मौके रोज नहीं आते।”
कार आगे बढ़ी। अंदर हल्की इत्र की खुशबू, वाइपर की आवाज, और बाहर बारिश की लकीरें।
सान्या ने पूछा—”लगता है इंटरव्यू बहुत जरूरी है?”
रिहान ने बस इतना कहा—”हां, बहुत जरूरी।”
उस एक वाक्य में उसकी सारी कहानी छुपी थी। आवाज में घबराहट थी, लेकिन भीतर कहीं एक अटल भरोसा भी था।
सान्या ने साइड मिरर में उसकी झलक देखी—वो फाइल को सीने से चिपकाए बैठा था, जैसे अगर वह छूट गई तो जिंदगी का आखिरी सहारा ही टूट जाएगा।
संघर्ष की कहानी
कुछ देर बाद सान्या ने पूछा—”पहला इंटरव्यू है?”
रिहान ने गहरी सांस ली—”नहीं मैम, पांचवा है। पहले चार में पहुंचा ही नहीं। एक बार लोकल छूट गई, दूसरी बार मां की तबीयत खराब हो गई, तीसरी बार पापा के इलाज के लिए पैसे जुटाने पड़े…चौथी बार…”
वह रुक गया, जैसे अपनी दास्तान को और आगे ना बढ़ाना चाहता हो।
सान्या ने कुछ नहीं कहा, बस हल्के से सिर हिलाया, गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी।
रिहान बोला—”आज अगर देर हो गई तो शायद अगला मौका मिले ही ना। घर में अब और इंतजार करने की हालत नहीं है।”
सान्या ने पहली बार उसकी आंखों में देखा—वह थकी हुई थी, लेकिन उनमें कुछ ऐसा था जो पैसे वालों में बहुत कम दिखता है। एक सच्चा जज्बा।
“लगता है जिंदगी ने तुम्हारे साथ थोड़ी ज्यादा सख्ती कर रखी है।”
रिहान ने नजरें झुका ली—”सख्ती नहीं मैम, बस उम्मीद की कीमत थोड़ी ज्यादा रखी है उसने।”
सान्या मुस्कुरा दी। पहली बार किसी अजनबी लड़के की बातों में इतनी गहराई महसूस कर रही थी।
इंसानियत की एक मिसाल
सिग्नल पर गाड़ी रुकी। बाहर भीगते हुए कुछ बच्चे गजरे बेच रहे थे। एक छोटी बच्ची गाड़ी के पास आई—”दीदी, गजरा ले लो ना।”
सान्या ने मना किया, लेकिन रिहान ने जेब से ₹100 का नोट निकालकर बच्ची को दे दिया।
बच्ची की आंखें चमक उठी—”भैया, भगवान आपकी नौकरी पक्की कर दे।”
सान्या ने मुस्कुराते हुए कहा—”लगता है इंटरव्यू से पहले आशीर्वाद मिल गया।”
सिग्नल हरा हुआ, गाड़ी फिर चल पड़ी।
“कितनी दूर और है?”
“10-15 मिनट, अगर ट्रैफिक ना मिला तो।”
“और अगर मिला?”
“तो फिर वही पुरानी कहानी दोहराई जाएगी।”
सान्या ने हल्का सा एक्सलरेटर दबाया—”आज ट्रैफिक को भी छुट्टी है।”
इंटरव्यू की मंजिल
सीव्यू कॉर्पोरेट पार्क की चमचमाती इमारत सामने आ गई।
“यहीं उतरना है?”
“जी मैम, बहुत-बहुत शुक्रिया।”
रिहान दरवाजा खोलने लगा, सान्या ने कहा—”रुको।”
वो मुड़ा—”अंदर घबराहट हो तो याद रखना, कोई बाहर खड़ी है जो दिल से चाहती है कि तुम जरूर जीत जाओ।”
रिहान ने उसकी आंखों में देखा, उस पल बारिश भी शर्मा कर रुक सी गई।
वह मुस्कुराया, सिर झुकाया—”कोशिश करूंगा, आपको निराश ना करूं।”
वो तेज कदमों से इमारत के अंदर चला गया।
सान्या कार में बैठी उसे जाते देखती रही। पहली बार उसे किसी अजनबी के लिए दिल में अजीब सी हलचल हुई। उसने आसमान की ओर देखकर बुदबुदाया—”पता नहीं क्यों, पर लगता है यह मुलाकात यहां खत्म नहीं होगी।”
जिंदगी का नया मोड़
किस्मत ने भी ठान लिया था कि यह कहानी सिर्फ उस एक लिफ्ट तक नहीं रुकेगी। चार दिन बाद, मुंबई की हवा में अभी भी नमी और मिट्टी की सौंधी खुशबू थी। रिहान अपने छोटे से कमरे में बैठा था, मोबाइल बार-बार उठाता, स्क्रीन जलती फिर बुझ जाती। हर बार दिल बैठ जाता।
मां के लिए दवा का पर्चा उठाया—”मां, मैं दवा लेकर आता हूं।”
अंदर से कमजोर लेकिन प्यार भरी आवाज आई—”बेटा, छाता ले जा। हवा में अभी भी बूंदे हैं।”
मेडिकल स्टोर पहुंचा—”भाई साहब, यह वाली इंजेक्शन और ये तीन दवाइयां।”
फार्मासिस्ट ने बिल निकाला—₹7250।
रिहान ने जेब खंगाली—₹2460 और कुछ सिक्के।
“भाई साहब, 3000 अभी देता हूं, बाकी कल पक्का।”
“सॉरी भाई, यहां कैश या कार्ड, उधार नहीं चलता।”
रिहान चुपचाप पर्ची हाथ में लेकर बाहर निकल आया।
अचानक सामने से वही सिल्वर रेंज रोवर धीरे से रुक गई।
खिड़की नीचे हुई, वही परिचित मुस्कान।
“रिहान!”
“मैम, आप यहां?”
“ऑफिस से लौट रही थी। तुम मां की दवा लेने आए थे?”
“हां, लेकिन पैसे कम पड़ गए।”
“कितने की दवा है?”
“₹7250।”
“और तुम्हारे पास?”
“₹2460।”
सान्या ने बिना एक पल गवाए पर्स खोला, 5000 के दो नोट निकाले—”लो, ले लो।”
रिहान एक कदम पीछे हटा—”नहीं मैम, मैं किसी से उधार नहीं लेता।”
सान्या मुस्कुराई—”यह उधार नहीं, इंसानियत का छोटा सा निवेश है।”
वो पैसे लिए, सिर झुकाया, दुकान की ओर लौट गया।
5 मिनट बाद दवा का पैकेट लिए लौटा—”मैम, मैं पैसे जरूर लौटा दूंगा।”
“जरूरत नहीं, क्योंकि कुछ चीजों का हिसाब नहीं रखा जाता, बस दिल में याद रखा जाता है।”
रिहान की आंखें नम हो गईं।
“आपको कैसे पता चला कि मां की दवा है?”
“जिस नरमी से तुमने वो पर्ची पकड़ी थी, वो नरमी सिर्फ अपने सबसे करीबी के लिए होती है।”
सफलता की पहली सीढ़ी
पांचवें दिन सुबह 9:52 बजे दरवाजे पर कूरियर की घंटी बजी।
“सीयू टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड की ओर से…”
लिफाफा खोला—चमकता हुआ ऑफर लेटर।
“कांग्रेचुलेशंस! यू हैव बीन सिलेक्टेड एस असिस्टेंट मैनेजर, बिजनेस डेवलपमेंट। सैलरी 11.5 लाख प्रतिवर्ष प्लस बोनस।”
रिहान की आंखों से आंसू छलक पड़े।
मां के पास दौड़ा—”मां, नौकरी लग गई! अब सब ठीक हो जाएगा।”
मां ने कमजोर हाथों से उसका माथा चूमा—”बेटा, ऊपर वाला देखता जरूर है, बस थोड़ा इंतजार करवाता है।”
पहला दिन, नया परिचय
पहला दिन ऑफिस—वही सीव्यू कॉर्पोरेट पार्क, वही चमचमाता गेट, वही सिक्योरिटी गार्ड।
अब कदमों में डर नहीं, विश्वास था।
रिसेप्शन पर लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा—”सर, आपकी रिपोर्टिंग मिस सान्या कपूर, फाउंडर एंड सीईओ मैम को है।”
रिहान के पैरों तले जमीन खिसक गई।
“सान्या कपूर जी, हमारी चेयरपर्सन…”
27वीं मंजिल पर उनके केबिन तक पहुंचा, दरवाजा खुला—सामने वही चेहरा, वही मुस्कान, वही सादगी।
सान्या ने नजर उठाई—”वेलकम aboard, मिस्टर रिहान खान। देर से सही, पर बिल्कुल सही जगह पहुंचे हो।”
रिहान की जुबान लड़खड़ा गई—”आप…इस कंपनी की मालकिन हैं?”
सान्या हल्के से मुस्कुराई—”हां, लेकिन मैंने जानबूझकर उस दिन कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं देखना चाहती थी कि तुम बिना किसी सहारे के सिर्फ अपनी मेहनत और हिम्मत से यहां तक पहुंच सकते हो या नहीं। और तुम पहुंच गए।”
रिहान की आंखें नम थी, पर चेहरे पर गर्व था।
“अगर उस दिन आप ना मिलती तो शायद मैं आज भी बारिश में भीगता रहता।”
सान्या बोली—”और अगर तुम उस दिन पैसे लेने से मना कर देते तो शायद मैं आज भी वह लड़की होती जो सिर्फ बैलेंस शीट समझती है, इंसान नहीं।”
रिश्ते की शुरुआत
दिन हवा की तरह गुजरने लगे।
रिहान अपने काम में डूबा रहता, और सान्या उसे दूर से देखती।
हर सुबह 8:55 बजे वह लिफ्ट से निकलता, हाथ में कॉफी मग, चेहरे पर वही सादगी और आंखों में वो चमक जो मेहनत से आती है।
सान्या अक्सर अपनी ग्लास वॉल के पीछे से उसे देखती रहती, पर कभी कुछ कहती नहीं।
वो जानती थी, कुछ रिश्ते शब्दों से नहीं, खामोशी से पनपते हैं।
एक शाम ऑफिस खाली हो चुका था। बाहर फिर से मुंबई की बारिश शुरू हो गई थी।
रिहान अपनी डेस्क समेट रहा था कि केबिन का दरवाजा खुला।
सान्या दो कॉफी मग लिए उसके पास आई—”सोचा आज की जीत की कॉफी साथ पी लें।”
रिहान हंस पड़ा—”जीत तो कंपनी की है मैम।”
“कंपनी तो बहुत पहले जीत चुकी थी, आज जीत तुम्हारी है।”
दोनों खिड़की के पास खड़े हो गए। बाहर बूंदे शीशे से टकरा रही थीं।
रिहान बोला—”अजीब है ना? जब भी कुछ अच्छा होता है, बारिश आ जाती है।”
सान्या मुस्कुराई—”क्योंकि बारिश उन्हीं के हिस्से में आती है, जिनके पास भीगने की हिम्मत होती है।”
दूरी और इंतजार
कुछ हफ्ते बाद खबर आई कि सान्या को सिंगापुर और लंदन के बीच 6 महीने के लिए प्रोजेक्ट हैंडल करने जाना है।
बोर्ड मीटिंग में सबने तालियां बजाई, लेकिन रिहान की मुस्कान गायब थी।
मीटिंग खत्म हुई तो वह चुपचाप अपनी सीट पर लौट गया।
शाम को सान्या उसके केबिन में आई—”सुन लिया ना?”
रिहान ने सिर हिलाया।
“लौटूंगी ना?”
रिहान ने पहली बार आंखों में देखकर कहा—”लौटेंगी जरूर, क्योंकि कुछ इंतजार मौसम नहीं, दिल करते हैं।”
सान्या चुप रही, उसकी आंखें नम थी, पर वो मुस्कुरा दी।
वो चली गई।
उसके जाने के बाद ऑफिस सुना-सुना लगने लगा।
रिहान हर शाम 27वीं मंजिल की खिड़की पर खड़ा बारिश देखता, जैसे बूंदे उसके मन की खामोशी से बातें कर रही हों।
मां की बीमारी, सान्या का साथ
एक सोमवार सुबह रिहान ऑफिस नहीं आया। मंगल, बुधवार, तीसरा दिन भी बीत गया। उसकी सीट खाली थी।
सान्या की बेचैनी बढ़ती गई।
एचआर से पूछा—”रिहान की कोई खबर?”
“मैम, उनकी मां की हालत बहुत क्रिटिकल है। आईसीयू में हैं।”
सान्या ने एक पल नहीं गवाया। अपना बैग उठाया, ड्राइवर को छुट्टी दी, खुद रेंज रोवर लेकर अंधेरी ईस्ट की उस पुरानी चाल में पहुंच गई।
बारिश फिर तेज हो रही थी।
दरवाजा खोला—सामने रिहान खड़ा था, आंखें सूजी हुई, चेहरा थका हुआ।
“मैम, आप यहां?”
“मां कहां है?”
“चलो, अभी हॉस्पिटल चलते हैं।”
“मैम, बिल…लाखों में जाएगा…”
“पैसे की बात बाद में, अभी वक्त जिंदगी का है।”
दोनों मां को लेकर लीलावती हॉस्पिटल ले गए।
डॉक्टर ने कहा—”ब्लड प्रेशर और शुगर दोनों क्रैश कर गए थे, अभी आईसीयू में शिफ्ट किया है।”
सान्या ने सारी फॉर्मेलिटी खुद की—एडमिशन, ब्लड, दवाइयां, बिल सब कुछ।
रात के 2:00 बजे वह अभी भी आईसीयू के बाहर कुर्सी पर बैठी थी।
रिहान पास में खड़ा था, आंखें लाल।
“मैम, मैं यह इतना बड़ा एहसान कैसे उतारूंगा?”
सान्या ने कॉफी का कप उसके हाथ में थमाते हुए कहा—”काम करके उतारना। अभी सिर्फ मां को ठीक होने दो।”
सुबह 7:00 बजे मां की आंख खुली—डॉक्टर ने कहा खतरे से बाहर है।
रिहान फूट-फूट कर रोया।
सान्या ने उसका कंधा थाम लिया।
उस पल रिहान ने उसे सिर्फ बॉस नहीं, अपने सबसे अपने इंसान की तरह देखा।
रिश्ते की मंजिल
कुछ दिन बाद मां डिस्चार्ज हुई। घर लौटते वक्त मां ने कमजोर आवाज में कहा—”बेटा, उस लड़की को मेरी तरफ से कहना, वह फरिश्ता है जो इंसान बनकर आई थी।”
अब सान्या रोज फोन करके पूछती—”आंटी कैसी हैं?”
रिहान हर बार कहता—”आपकी दुआ से अब पहले से बहुत बेहतर हैं।”
जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने लगी।
एक शाम कंपनी का सबसे बड़ा क्लाइंट प्रेजेंटेशन था।
रिहान ने अकेले पूरी रात जागकर डेक तैयार किया।
प्रेजेंटेशन के बाद जापानी क्लाइंट ने खड़े होकर तालियां बजाई—”इस लड़के में जादू है।”
सान्या ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया—”हां, यही हमारी कंपनी का असली हीरा है।”
शाम ढलते-ढलते ऑफिस खाली हो चुका था।
सान्या दो कॉफी मग लिए रिहान के पास आई—”आज फिर जीत की कॉफी।”
रिहान हंसा—”आज तो डबल जीत है मैम।”
“नहीं, आज सिर्फ तुम्हारी जीत है।”
दोनों फिर खिड़की के पास खड़े थे।
बाहर बारिश फिर जोर पर थी।
रिहान ने धीरे से कहा—”जब आप सिंगापुर जा रही थीं, मुझे सबसे ज्यादा डर इसी बारिश का था कि कहीं आप ना लौटें।”
सान्या ने उसकी ओर देखा, आंखें नम थी—”मैं लौटूंगी, क्योंकि अब मेरी बारिश यहां है।”
उस रात पहली बार दोनों ने एक दूसरे का हाथ थामा।
शब्द नहीं बोले गए, बस एहसास बहुत कुछ कह गया।
नया जीवन, नया सफर
6 महीने बाद सिंगापुर एयरपोर्ट से मुंबई की फ्लाइट शाम 7:40 पर लैंड हुई।
बारिश फिर से मुंबई को धो रही थी, जैसे शहर भी सान्या का इंतजार कर रहा हो।
सिल्वर रेंज रोवर टर्मिनल के बाहर खड़ी थी, लेकिन इस बार ड्राइवर नहीं, खुद रिहान खड़ा था।
सान्या बैग लेकर बाहर निकली, दोनों की नजरें मिलीं, वो पल जैसे समय ठहर सा गया।
“बारिश फिर आ गई है, रिहान।”
रिहान ने छाता आगे बढ़ाया, पर उसकी आंखें हंस रही थीं—”हां, लगता है मौसम को भी हमारी कहानी पूरी होते देखनी है।”
घर पहुंचे—मां ने सान्या को गले लगा लिया—”बेटी, तू आ गई।”
सान्या ने माथा टेका—”आंटी, अब कभी इतने दिन दूर नहीं जाऊंगी।”
उस रात तीनों ने साथ खाना खाया।
मां ने कहा—”दोनों को एक बात कहनी है।”
मां ने रिहान का हाथ सान्या के हाथ में रखते हुए कहा—”मुझे अब चैन चाहिए। जब तक तुम दोनों एक नहीं हो जाते, मैं ठीक से नींद नहीं आएगी।”
सान्या शर्मा गई, रिहान ने सिर झुकाया।
मां बोली—”मैंने सब देख लिया। जिस दिन यह लड़की मेरे लिए रात-रात भर हॉस्पिटल में बैठी थी, उसी दिन समझ गई थी, यह मेरी बहू बनेगी।”
शादी और नया परिवार
दो हफ्ते बाद एक साधारण सा मंदिर, बारिश रुक चुकी थी, हवा में बस गीलापन बाकी था।
कोई शोरशराबा नहीं, कोई मीडिया नहीं, सिर्फ मां, कुछ करीबी दोस्त और दो सच्चे दिल।
सान्या ने सादा लाल साड़ी पहनी थी, रिहान ने ऑफ वाइट शेरवानी।
पंडित जी ने मंत्र पढ़े, सात फेरे हुए, और आखिरी फेरे में रिहान ने सान्या के मांग में सिंदूर भरा।
मां की आंखें भर आईं, सान्या ने उनके पैर छुए।
शादी के बाद दोनों घर लौटे।
मां ने दोनों को अलग-अलग कमरे में भेज दिया।
सान्या हंस पड़ी—”आंटी, अब तो…”
मां बोली—”पहली रात मेरे पास सोना है, रस्म निभानी है।”
दूसरे दिन सुबह सान्या किचन में चाय बना रही थी।
रिहान पीछे से आया, धीरे से कमर में हाथ डाले—”कोई देख लेगा…”
“अब कौन रोक सकता है?”
मां अंदर से आवाज लगाई—”अरे दोनों बच्चों, आज सुबह-सुबह रोमांस, पहले चाय तो पिलाओ।”
तीनों हंस पड़े। उस हंसी में वो सुकून था जो सिर्फ सच्चे रिश्तों में होता है।
सफलता और समाज सेवा
कुछ महीने बाद कंपनी की सालाना मीटिंग में सान्या ने माइक लिया—”आज मैं एक बहुत बड़ी घोषणा करने जा रही हूं। सीयू टेक्नोलॉजीज के नए चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर होंगे मिस्टर रिहान खान।”
पूरे हॉल में तालियां गूंज उठी।
रिहान मंच पर आया, सान्या के बगल में खड़ा हुआ—”यह पद मेहनत से नहीं, उस इंसान की वजह से मिला है जिसने मुझे बारिश में भीगने से बचाया था। धन्यवाद, सान्या।”
सान्या की आंखें नम थी।
उसी शाम दोनों फिर 27वीं मंजिल की उस खिड़की के पास खड़े थे।
बाहर बारिश नहीं थी, सिर्फ हल्की ठंडी हवा और सूरज डूबने की लालिमा।
सान्या ने रिहान का हाथ थामा—”उस दिन तुमने मुझसे लिफ्ट मांगी थी। आज मैं तुम्हें हमेशा-हमेशा का साथ दे रही हूं।”
रिहान ने उसे सीने से लगा लिया—”अब ना तुम्हें कभी अकेले बारिश में भीगना पड़ेगा, ना मुझे कभी लिफ्ट मांगनी पड़ेगी, क्योंकि अब हर रास्ता हमारा है।”
समाज सेवा: बारिश फाउंडेशन
कुछ साल बाद उसी अंधेरी ईस्ट की पुरानी चाल की जगह अब एक छोटा सा घर था। दीवार पर मां की तस्वीर लगी थी—”मां की दुआओं से बना यह आशियाना।”
सान्या और रिहान ने मिलकर एक फाउंडेशन शुरू किया था—”बारिश फाउंडेशन”।
जिसका मकसद था—जो बच्चे बारिश में भीग कर इंटरव्यू या परीक्षा देने जाते हैं, उन्हें लिफ्ट नहीं, पूरा रास्ता देना।
हर साल सैकड़ों बच्चों को स्कॉलरशिप, लैपटॉप, ट्रैवल अलाउंस दिया जाता।
हर साल 15 अगस्त को रिहान और सान्या खुद बच्चों के बीच जाते।
एक 15 अगस्त की सुबह फाउंडेशन के ग्राउंड में सैकड़ों बच्चे इकट्ठा थे।
रिहान ने माइक लिया—”मैं आज भी वह दिन नहीं भूलता जब मैं बारिश में भीग कर खड़ा था। एक गाड़ी रुकी थी, और एक इंसान ने पूछा था कहां जाना है? उस एक सवाल ने मेरी जिंदगी बदल दी। आज मैं आप सबको सिर्फ इतना कहना चाहता हूं—अगर आपके पास गाड़ी है तो रुकिए, अगर आपके पास वक्त है तो सुनिए, और अगर आपके पास दिल है तो लिफ्ट दीजिए, क्योंकि कभी-कभी एक छोटी सी लिफ्ट पूरी किस्मत बदल देती है।”
सान्या ने माइक लिया—”आज हम दोनों यह वादा करते हैं, जब तक हम जिंदा हैं, एक भी बच्चा बारिश में भीग कर अपने सपने से नहीं छूटेगा।”
पूरे ग्राउंड में तालियां गूंज उठी।
बच्चों ने एक साथ चिल्लाया—”भारत माता की जय।”
रिहान और सान्या ने एक दूसरे को देखा, हाथ में हाथ डाले, दोनों ने एक साथ बोले—”जय हिंद। जय भारत।”
उस पल बारिश भी रुक गई, जैसे ऊपर वाला भी मुस्कुराते हुए कह रहा हो—बस यही तो चाहिए था मुझे।
समापन
कहानी खत्म नहीं होती, यह बस एक शुरुआत है कि इंसानियत अभी जिंदा है।
जब तक एक सान्या किसी रिहान को लिफ्ट देगी, यह देश हमेशा तरक्की करता रहेगा।
अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो, भावुक कर गई हो, तो वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल किशोर वॉइस को सब्सक्राइब जरूर करें क्योंकि यहां हर कहानी सिर्फ इश्क नहीं, इंसानियत से शुरू होती है और दिल तक पहुंचती है।
मिलते हैं अगली वीडियो में। जय हिंद।
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