एक अरबपति मर रहा है – उसे बचाने वाला एकमात्र व्यक्ति वह भिखारी है जिसे उसने 10 साल पहले फंसाया था।

जमीर का खून – राजन वर्मा और अरबपति अर्नव मल्होत्रा की कहानी
भाग 1: दौलत का साम्राज्य और मौत की दस्तक
मुंबई के आसमान को छूता था अरबपति अर्नव मल्होत्रा का साम्राज्य। मगर उस दिन, शहर के सबसे महंगे अस्पताल के प्रेसिडेंशियल स्वीट में, अर्नव जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। डॉक्टर शर्मा ने बताया – लीवर पूरी तरह फेल हो चुका है, तुरंत डोनर चाहिए। लेकिन अर्नव का ब्लड ग्रुप था बॉम्बे OH, जो दुनिया के सबसे दुर्लभ ब्लड ग्रुप्स में से एक था। पैसा, जो अब तक हर दरवाजा खोलता आया था, आज बेबस था।
अर्नव का बेटा रोहन – उतना ही घमंडी – बोला, “लिस्ट में सबसे ऊपर डाल दो, जितना पैसा चाहिए दे देंगे।” लेकिन डॉक्टर ने साफ कह दिया – जब तक यही ब्लड ग्रुप नहीं मिलता, ट्रांसप्लांट नामुमकिन है। पूरे शहर में इश्तहार, करोड़ों का इनाम – लेकिन नतीजा शून्य।
भाग 2: बांद्रा फ्लाईओवर के नीचे – राजन की रात
उधर, बांद्रा फ्लाईओवर के नीचे, बारिश की ठंडी बूंदें फटी चादर पर ढोल बजा रही थीं। वहीं रहता था राजन – एक फटी बोरी, एलुमिनियम का कटोरा, और कुछ बेमोल यादें। आज की बारिश ने उसकी बची-खुची रोटियां भी गीली कर दी थीं। एक आवारा कुत्ता उसके पास आया, राजन ने अपनी भीगी रोटी का टुकड़ा उसके आगे रख दिया – “खा ले मोती, आज हम दोनों का नसीब एक जैसा है।”
10 साल पहले राजन वर्मा था – छोटा लेकिन सफल व्यापारी, हंसता-खेलता परिवार। फिर अर्नव मल्होत्रा ने धोखे से उसकी फैक्ट्री, घर, सब छीन लिया। पत्नी सुजाता सदमे और इलाज के अभाव में चल बसी। राजन सड़क पर आ गया, भिखारी बन गया।
भाग 3: किस्मत का खेल – खून की कीमत
राजन ने दो लोगों की बात सुनी – “मल्होत्रा मरने वाला है, बॉम्बे ब्लड ग्रुप चाहिए, 10 करोड़ का इनाम!” राजन को याद आया – उसकी पत्नी के गर्भवती होने पर डॉक्टर ने बताया था कि उसका ब्लड ग्रुप भी बॉम्बे OH है। आज वही खून उस आदमी को बचा सकता था जिसने उसे सड़क पर ला दिया।
राजन के भीतर नफरत का सैलाब उमड़ पड़ा – “मरने दो उसे, यही इंसाफ है।” लेकिन फिर उसने मोती को देखा – भूखे कुत्ते की मदद क्यों की थी? सुजाता की बात याद आई – “पैसा तो हाथ का मैल है, असली दौलत इंसान का जमीर है।” अगर आज राजन ने मल्होत्रा को मरने दिया, तो उसमें और मल्होत्रा में क्या फर्क रह जाएगा? उसने तय किया – “मैं उसे बचाऊंगा, इसलिए नहीं कि वह अच्छा है, बल्कि इसलिए कि मैं बुरा नहीं हूं।”
भाग 4: अस्पताल की देहरी पर – जमीर की जंग
राजन द हेरिटेज हॉस्पिटल पहुंचा – गंदे कपड़े, नंगे पैर। गार्ड्स ने उसे धक्का देकर गिरा दिया, अपमानित किया। लेकिन राजन ने हिम्मत नहीं हारी। डॉक्टर शर्मा और रोहन को आवाज दी – “मेरा ब्लड ग्रुप बॉम्बे OH है, मैं डोनर हूं।” रोहन ने सोचा, यह पैसे के लिए झूठ बोल रहा है। लेकिन राजन ने कहा – “मुझे पैसे नहीं चाहिए, मुझे सिर्फ डॉक्टर से बात करनी है।”
डॉक्टर शर्मा ने राजन को अंदर बुलाया, टेस्ट किया – रिपोर्ट 100% परफेक्ट मैच! रोहन ने फिर पैसे की बात की, लेकिन राजन ने कहा – “मैं अपना खून मुफ्त में नहीं दूंगा। मेरी एक शर्त है – ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अर्नव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं, होश में, ताकि उसे पता चले कि उसे जिंदगी कौन दे रहा है।”
भाग 5: आईना – मुलाकात मौत के दरवाजे पर
दवाइयों से अर्नव को होश में लाया गया। राजन उसके सामने आया – गंदे, थके कपड़ों में, लेकिन आत्मसम्मान से भरा। अर्नव ने घृणा से कहा, “इसे 10 करोड़ का चेक दो और दफा करो।” राजन बोला, “10 करोड़ से ज्यादा कर्ज है आपका मुझ पर, सेठ अर्नव मल्होत्रा।”
अर्नव ने पहचाना – “तुम… राजन वर्मा?” उसकी मशीनें बीप करने लगीं। राजन बोला, “आपकी दौलत ने मेरा सब कुछ छीन लिया, आज आप उसी दौलत से मेरी जिंदगी का सुकून खरीदना चाहते हैं। आप आज भी नहीं समझे मल्होत्रा।”
डॉक्टर शर्मा की तरफ मुड़कर राजन बोला, “मेरा खून ले लीजिए।” अर्नव चौंक गया – “तुम मुझे क्यों बचा रहे हो? बदला लो, मुझे मरने दो!” राजन ने कहा, “मैं आपको नहीं बचा रहा, मैं खुद को बचा रहा हूं। मैं उस राजन वर्मा को बचा रहा हूं जिसे आपने मार दिया था, लेकिन जिसका जमीर आज भी जिंदा है।”
भाग 6: इंसाफ और आज़ादी
ऑपरेशन सफल रहा। अर्नव बच गया, लेकिन अब वह पहले जैसा नहीं था। अपने बेटे रोहन से पूछा – “वह राजन वर्मा कहां है?” रोहन ने सिर झुका लिया – “उसे तीन दिन पहले छुट्टी दे दी गई, उसने 10 करोड़ का चेक भी नहीं लिया।”
अर्नव ने चेक देखा, उसकी आंखों से आंसू बह निकले। वह एक ऐसे आदमी से हार गया था जिसके पास सिर्फ जमीर था।
उधर, बांद्रा फ्लाईओवर के नीचे, राजन ने मोती को रोटी दी। उसके पास आज भी कुछ नहीं था, लेकिन पहली बार उसे अपनी गरीबी पर शर्म नहीं, गर्व था। उसने बदला नहीं लिया था, इंसाफ किया था। उसने अर्नव मल्होत्रा को जिंदगी नहीं, एक आईना दिया था – जिसमें उसे अपनी असली सूरत देखनी थी।
राजन ने एक गहरी सांस ली। वह आज़ाद था।
मूल संदेश:
यह कहानी हमें सिखाती है कि सबसे बड़ी दौलत पैसा नहीं, इंसानियत और जमीर है। बदला लेना आसान है, लेकिन इंसाफ और माफ करना ही असली ताकत है। राजन की तरह अपने जमीर को जिंदा रखिए – यही असली जीत है।
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